सुहागन का प्रतिशोध

शाम गहरा रही थी, और कुछ लोग घने जंगल के रास्ते से गुज़रने वाले थे। इस खौफनाक रास्ते को देखकर फॉरेस्ट ऑफिसर विनोद से ज़्यादा चिंता चौकीदार सुधीर और उसके साथियों को हो रही थी। सुधीर ने विनोद को समझाया, “साहब, हमें समय रहते निकल जाना चाहिए। यह रास्ता बहुत खराब है, और इतनी देर करना सुरक्षित नहीं।” विनोद उसकी बात समझ रहा था, लेकिन अपनी जवानी के जोश में उसे कोई डर नहीं था। विनोद ने मुस्कुराते हुए सुधीर के कंधे पर हाथ रखा और कहा, “मैं इतने दिनों से रोज़ जंगल की सैर पर जाता हूँ, आज तक तो ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे मुझे डर लगे।”

सुधीर ने फिर भी अपनी चिंता व्यक्त की, “साहब, जंगल का रास्ता कभी भी खतरनाक हो सकता है। आपका अकेले जाना सही नहीं होगा। आप कहें तो मैं दो-चार लाठीधारी चौकीदारों को आपके साथ भेज देता हूँ।” विनोद ने उसकी बात अनसुनी कर दी और अपनी बाइक स्टार्ट करके जंगल की ओर बढ़ गया। उसे अकेला जाता देख, सुधीर ने चुपचाप दो चौकीदारों को उसकी बाइक के पीछे भेज दिया। जंगल में लगभग एक किलोमीटर आगे, एक चढ़ाई के बाद विनोद की बाइक का पेट्रोल अचानक खत्म हो गया। उसने अपनी बाइक की डिग्गी से एक थैला निकाला और उसमें से मांस के कुछ टुकड़े पूरे जोर से दूर जंगल में फेंकने लगा। राहत की साँस लेते हुए उसने खुद से कहा, “तुम्हारी बहुत याद आएगी।”

विनोद अभी कुछ ही कदम चला था कि उसे रास्ते में एक अजीब सा आदमी दिखाई दिया। “तुम हमारी फॉरेस्ट चौकी के चौकीदार हो ना?” विनोद ने पूछा। उस शख्स ने केवल ‘जी’ कहकर सिर हिलाया और विनोद के साथ चलने लगा। कुछ देर बाद, विनोद ने फिर पूछा, “इतनी रात को तुम जंगल के बीच में क्या कर रहे हो? तुम्हें तो चौकी में होना चाहिए था।” उस रहस्यमय शख्स ने फिर से ‘जी’ कहकर सिर हिलाया। विनोद के हर सवाल का जवाब वो सिर्फ ‘जी’ कहकर देता था, मानो उसके पास और कोई शब्द ही न हों।

विनोद को थोड़ी झुँझलाहट हुई। उसने कहा, “इतनी गर्मी में कम्बल ओढ़ रखा है? अगर बुखार है, तो तुम्हें घर पर आराम करना चाहिए।” उस शख्स ने इस बार भी ‘जी’ कहते हुए सिर हिलाया। विनोद का मन अब अजीब बेचैनी से भर गया था। दोनों लगभग दो किलोमीटर और आगे बढ़ चुके थे। वह पूर्णिमा की रात थी, चाँद आसमान में पूरी चमक के साथ था, जिससे हर चीज़ साफ दिखाई दे रही थी। विनोद ने उस शख्स को गौर से देखना शुरू किया, लेकिन कम्बल की वजह से उसका चेहरा चाँदनी में भी अस्पष्ट लग रहा था।

विनोद को कुछ संदेह हुआ क्योंकि इतनी तेज़ चाँदनी में भी उस शख्स के पैर दिखाई नहीं दे रहे थे, और उसके चलने पर कोई आहट भी नहीं आ रही थी। उसने खुद से बुदबुदाया, “यह ज़रूर कोई इंसान नहीं है। सुधीर ठीक ही कह रहा था, मुझे इतनी रात को अकेले जंगल में नहीं आना चाहिए था।” विनोद अभी यही सब सोच रहा था कि पीछे से साइकिल पर आते कुछ लोगों की आवाज़ सुनाई दी। साइकिल की आवाज़ सुनते ही, विनोद के साथ चल रहे उस शख्स ने एक विशाल, डरावना मुँह फैलाया और उस पर झपटने को तैयार हो गया।

एक पल के लिए विनोद की जान गले में अटक गई। अपनी जान बचाने के लिए वह पीछे हटा, लेकिन लड़खड़ाकर कच्ची सड़क पर गिर पड़ा। वह डर के मारे अपनी एड़ियाँ रगड़ता हुआ पीछे हटता जा रहा था, क्योंकि उसके सामने खड़ा शख्स अब आधा जानवर और आधा इंसान का भयावह रूप ले चुका था। वह एक दैत्य में बदल गया था और विनोद की मौत पर उसी की ओर बढ़ रहा था। इससे पहले कि वह दैत्य विनोद पर हमला करता, साइकिल पर आते लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज़ सुनकर, वह भयानक जीव जंगल की झाड़ियों में कूदकर अँधेरे में गायब हो गया।

साइकिल पर आए उन दो आदमियों ने विनोद को ज़मीन पर गिरा देखा। उन्होंने उसे उठाते हुए पूछा, “साहब, आप ठीक तो हैं ना?” विनोद ने काँपते हुए कहा, “हाँ, मैं ठीक हूँ, पर वो कौन था? वो तो किसी भूत-प्रेत जैसा लग रहा था!” उनमें से एक आदमी बोला, “छोड़िए साहब, यह जंगल है। यहाँ वही ज़िंदा रह पाता है जिसे इसके तौर-तरीके मालूम हों।” विनोद को तुरंत समझ आ गया कि ये वही चौकीदार थे जिन्हें सुधीर ने उसकी मदद के लिए भेजा था। बिना और बहस किए, उसने अपनी बाइक उठाई और तुरंत चौकी की ओर लौट चला।

एक घंटे की थका देने वाली पैदल यात्रा के बाद, विनोद अपनी फॉरेस्ट चौकी पर पहुँचा। उसकी अस्त-व्यस्त हालत देखकर सुधीर तुरंत समझ गया कि कुछ बुरा हुआ है। सुधीर ने विनोद को देखते ही कहा, “आ गए साहब, मैंने तो पहले ही कहा था कि रात में जंगल में अकेले जाना खतरे से खाली नहीं है। अभी कुछ दिन पहले ही संजू का कत्ल हुआ था, उसे तो कुछ गुंडों ने पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया था।” विनोद ने कहा, “वो एक भूत था क्या? वो मुझे मिला और करीब दो किलोमीटर तक मेरे साथ चला भी।” सुधीर ने तुरंत कहा, “साहब, वो आपको मिला? वो अकेला नहीं जाता, बहुतों को अपने साथ ले जाता है, साहब।”

सुधीर अभी बात कर ही रहा था कि विनोद ने बीच में टोकते हुए पूछा, “क्या संजू का कत्ल हुआ था?” सुधीर ने कहा, “साहब, वो तो लड़कीबाज़ी का मामला था। कहते हैं न, खिला-पिलाकर मार डालो। खैर, ये सब छोड़िए साहब जी। यह जंगल है, यहाँ जितने पत्ते, उतनी कहानियाँ हैं। अभी मैं आपके लिए खाना लगवाता हूँ, ठीक है?” रात का खाना खाने के बाद, विनोद की खाट चौकी के बगल में लगा दी गई। बिस्तर पर लेटते ही, थकान और दहशत के कारण उसकी आँख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला।

रात के करीब 2:30 बजे, छन-छन की एक अजीब आवाज़ सुनकर विनोद की नींद खुल गई। जागते ही उसने सबसे पहले अपने आसपास देखा, लेकिन उसे अँधेरे में काले सायों के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दिया। वह वापस सोने की कोशिश कर रहा था कि तभी उसे अँधेरे में एक पेड़ से उल्टी लटकी हुई एक लड़की दिखाई दी। वह लड़की लाल जोड़े में सजी हुई थी और डरावनी तरह से रेंगते हुए विनोद की ओर चली आ रही थी। इससे पहले कि विनोद कुछ समझ पाता, उसकी खाट की रस्सियों ने उसके हाथ-पैर कसकर जकड़ लिए।

विनोद मदद के लिए सुधीर को बुलाना चाहता था, लेकिन जैसे ही उसने चिल्लाने के लिए अपना मुँह खोला, खाट की रस्सियाँ अपने आप उसके मुँह में घुसने लगीं। वह असहनीय दर्द से तड़प और छटपटा रहा था, और लाल जोड़े में सजी वह भयानक लड़की धीरे-धीरे उसके और करीब आ रही थी। विनोद खाट पर रस्सियों से बंधा पड़ा था। तभी वह लाल जोड़े वाली लड़की उसकी छाती पर आकर बैठ गई। उसने अपने लंबे, नुकीले नाखून विनोद की छाती में गढ़ाते हुए एक कर्कश आवाज़ में कहा, “मुझे बर्बाद करके तू यहाँ मज़े कर रहा है? तुझे क्या लगा, मेरी ज़िंदगी बर्बाद करके तू ज़िंदा बच जाएगा?”

उस लड़की की बात सुनकर और उसका डरावना, खूंखार चेहरा देखकर विनोद की रूह काँप गई। वह कुछ बोल नहीं पा रहा था, लेकिन उसकी आँखों में साफ दिख रहा डर बता रहा था कि वह इस लड़की को अच्छी तरह जानता था और उसे अपनी मौत सामने दिख रही थी। तभी अचानक विनोद के हाथ-पैर की रस्सियाँ अपने आप खुल गईं, क्योंकि उसे बचाने के लिए सुधीर वहाँ पहुँच चुका था। सुधीर के एक हाथ में भभूत और दूसरे में एक माला थी, और वह कुछ मंत्र बुदबुदा रहा था। उसके इन उपायों से उस लाल जोड़े वाली औरत की शक्तियाँ कम होती जा रही थीं।

कुछ ही पलों में विनोद सही-सलामत खड़ा था, जबकि लाल जोड़े वाली औरत हवा में दर्द से तड़प रही थी। सुधीर ने विनोद से पूछा, “साहब, यह कौन है?” विनोद ने घबराते हुए कहा, “पता नहीं कौन है? मैं तो यहाँ चैन से सो रहा था कि अचानक यह लड़की मेरी छाती पर आ बैठी और अपने नाखून गढ़ाने लगी।” विनोद की बात सुनकर सुधीर ने उस औरत से पूछा, “जल्दी बोल, तू कौन है? मेरे साहब की जान क्यों लेना चाहती है? जल्दी बता, वरना मैं इस माला को तोड़कर तुझे यहीं भस्म कर दूँगा!”

लड़की की आवाज़ अब हवा में गूँज रही थी, “मुझसे क्या पूछते हो? अपने साहब से पूछो! मुझे बर्बाद करके ये जंगलों में चैन से रह रहा है। मैंने आखिर ऐसा क्या गुनाह किया था, जो इसने मेरे साथ इतना बुरा किया?” लड़की की बात सुनकर सुधीर भी गहरे सोच में पड़ गया, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ पूछता, विनोद ने चिल्लाकर कहा, “सुधीर, इसकी बात मत सुन! यह एक भूतनी है! अपने साहब की बात मान, न कि इस भूतनी की। मैं कहता हूँ, तोड़ दे इसकी माला और इसे यहीं भस्म कर दे!”

अपने साहब की बात सुनकर, सुधीर ने माला खींचना शुरू किया, जिससे हवा में तड़पती लड़की के शरीर से हल्का-हल्का धुआँ निकलने लगा। दर्द से कराहते हुए भी उसने हार नहीं मानी और बोली, “मैं और तुम्हारा फॉरेस्ट ऑफिसर विनोद अच्छे दोस्त थे। वह मुझसे प्यार करता था, पर मैं उससे नहीं करती थी। उसने मुझे मनाने की बहुत कोशिश की, मुझसे शादी करना चाहता था, पर मैं मजबूर थी। मेरे पिताजी ने मेरी शादी कहीं और तय कर दी थी, और यह बात विनोद को बिलकुल पसंद नहीं आई। मेरी सुहागरात की रात, पता नहीं कैसे वह मेरे कमरे में घुस आया।”

“मैं शादी के जोड़े में बैठी अपने पति का इंतज़ार कर रही थी जब विनोद अचानक मेरे कमरे में घुस आया और मेरे चेहरे पर तेज़ाब डालकर उसे जला दिया। मेरा चेहरा जल रहा था, और मैं दर्द से चीख रही थी। इस आदमी ने मुझे पूरी तरह बर्बाद कर दिया। अगर मैं इसकी नहीं हो सकी, तो इसने मुझे किसी और का भी नहीं होने दिया। इस भयावह हादसे के बाद मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया। दुनिया वाले मेरा जला हुआ चेहरा देखकर घिन खाने लगे। मुझे खुद से नफरत होने लगी, पर मैंने हार नहीं मानी। मैंने अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करने की कोशिश की, लेकिन यह भी उसे बर्दाश्त नहीं हुआ।”

“यह विनोद फिर से मेरी ज़िंदगी में आया, सिर्फ मुझे तबाह करने के लिए। इसने मुझे अगवा करके इसी जंगल में ले आया और रोज़ अपनी हवस का शिकार बनाने लगा। किसी जानवर की तरह, यह मुझे रोज़ नोचता था। मैं कब तक यह सब बर्दाश्त करती? आख़िरकार, मैं हार गई और मौत को गले लगा लिया। और फिर, मेरे मरने के बाद, इसने मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। रोज़ जंगल में घूमने के बहाने, यह मेरे शरीर के उन टुकड़ों को जंगली जानवरों को खिलाया करता था। तो अब तुम ही बताओ, क्या ऐसा इंसान ज़िंदा रहने के लायक है?”

उस लड़की की आपबीती सुनकर सुधीर दंग रह गया। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इंसान किसी के साथ इतनी क्रूरता कैसे कर सकता है। लड़की की दर्दनाक कहानी सुनकर सुधीर ने अपनी मंत्र-शक्ति रोक दी और विनोद से गुस्से में कहा, “तो आप रोज़ रात जंगल में इस लड़की के शरीर के टुकड़े फेंकने जाते थे? मुझे तो लगा था कि खूँखार जानवर सिर्फ जंगल में ही होते हैं, पर आपके जैसा घिनौना जानवर मैंने आज तक नहीं देखा, साहब। आखिर आपने इस लड़की के साथ इतना बुरा क्यों किया?” सुधीर की बात सुनकर विनोद ने उस आत्मा से कहा, “संचिता, तुम्हें याद है… एक रात पार्टी के बाद हम मेरे घर आए थे, और नशे में हम दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए थे।”

संचिता की आत्मा ने जवाब दिया, “हाँ, पर वो मेरी गलती थी, विनोद। मैं बहक गई थी।” इस पर विनोद ने अहंकार से कहा, “पर मैं तो पागल हो गया था, है ना? तुम मेरी ज़िंदगी की पहली लड़की थी जिसके साथ मैंने वो पल बिताए थे, फिर मैं तुम्हें इतनी आसानी से कैसे जाने देता? मैंने वो सब कुछ किया जिससे मैं तुम्हें अपने पास रख सकूँ। और मुझे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि मैं अपनी ज़िंदगी जी चुका हूँ। अब मौत आए तो आए।” विनोद की बातों में उसके घमंड और क्रूरता की झलक साफ दिख रही थी।

विनोद ने अपनी बात खत्म की ही थी कि सुधीर ने बुदबुदाते हुए कुछ मंत्र पढ़े और इशारा किया, जिससे संचिता की आत्मा विनोद के शरीर में घुस गई। विनोद दर्द से तड़पने लगा। वह ज़मीन पर तकलीफ के मारे रेंग रहा था क्योंकि संचिता की आत्मा उसके शरीर को अंदर से चीर रही थी, और उसके नाक, कानों व मुँह से खून बहने लगा। विनोद की आँखों की पुतलियाँ लगातार बड़ी होती जा थीं और अगले ही पल किसी बुलबुले की तरह फट गईं। वह पूरी तरह अंधा हो चुका था, पर संचिता का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। तभी सुधीर विनोद के पास आया और उसने वही माला उसके गले में डाल दी, जिससे उसने संचिता की आत्मा पर काबू किया था।

सुधीर ने विनोद के शरीर में मौजूद संचिता की आत्मा से कहा, “संचिता, जब तक यह माला विनोद के गले में रहेगी, तुम्हें उसके शरीर से कोई नहीं निकाल पाएगा। जब तक तुम्हारा बदला पूरा नहीं हो जाता, तुम्हें इसके साथ जो करना है, तुम कर सकती हो।” इतना कहकर सुधीर वापस चौकी की ओर मुड़ गया। संचिता भी विनोद के शरीर को अपने काबू में लेकर जंगल की गहराइयों में चली गई। उस दिन के बाद से विनोद का फिर कभी कोई पता नहीं चला। सुधीर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि फॉरेस्ट ऑफिसर विनोद को जंगल की सैर का बहुत शौक था और एक दिन वह सैर पर गए, पर कभी वापस नहीं लौटे।

आज इस हादसे को पाँच साल बीत चुके हैं। कभी-कभी रात को सुधीर को जंगल से किसी के चीखने की भयानक आवाज़ सुनाई देती है। सुधीर जानता है कि यह आवाज़ विनोद की है, जो संचिता के प्रतिशोध का शिकार बन चुका है। लेकिन वह इस आवाज़ को किसी भूत, प्रेत या आदमखोर की झूठी कहानी बता देता है, ताकि जंगल का खौफ बरकरार रहे और कोई भी विनोद जैसी क्रूरता करने की हिम्मत न करे।

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