चंदेरी गाँव में एक बरगद के पेड़ के नीचे, एक बूढ़ा आदमी दो बच्चों को कुछ बता रहा था। बच्चे उत्सुकता से पूछ रहे थे, “बाबूजी, हमारे गाँव के हर घर पर ‘ओह स्त्री रक्षा करना’ क्यों लिखा है?” बाबूजी गहरी साँस लेते हुए बोले, “बच्चों, यह बात तुम्हें बताना ठीक नहीं, कहीं तुम्हारे मन में डर न बैठ जाए।” बच्चे जोर देकर बोले, “कैसा डर, बाबूजी? बताइए ना!”
बाबूजी ने बताया, “आज से दस साल पहले पूरे गाँव के दिलों में एक डर बैठ गया था – स्त्री का डर। वह हर घर से एक मर्द को अपने साथ ले जाती थी। दरवाज़ा न खटखटाए, इसलिए लोग घरों की दीवारों पर ‘ओ स्त्री कल आना’ लिख देते थे। सबने उसे एक चुड़ैल के रूप में देखा, पर राजवीर ने अपने दोस्त पुनीत के साथ मिलकर एक पुरानी किताब में स्त्री का रहस्य खोजा।” उस किताब में लिखा था कि स्त्री को जीवन में मर्दों से कभी इज्जत और प्यार नहीं मिला, इसीलिए मरने के बाद वह पुरुषों को अगवा करती थी।
शहर को बचाना ज़रूरी था, इसलिए राजवीर ने उसकी चोटी काटकर उसकी शक्ति ख़त्म कर दी, और उस रात के बाद स्त्री कभी नज़र नहीं आई। गाँव वालों ने उसकी आत्मा की शांति के लिए उसकी चोटी का एक मंदिर बनवाया, जहाँ उसे एक ताबूत में रखा गया और उस पर लिखा गया ‘ओ स्त्री रक्षा करना’। धीरे-धीरे सभी ने अपने घरों के बाहर यही शब्द लिख दिए।
यह रात पुनीत की ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत रात थी। उसकी दुल्हन सुगना सेज पर बैठी थी और पुनीत उसके करीब जा रहा था। उसे अपनी ओर आता देख सुगना शरमा गई। पुनीत हँसते हुए बोला, “अरे, सुगना, शर्मा क्यों रही हो? हमने तो तुम्हें पहले भी देखा है!” यह कहते हुए उसने घूंघट उठाया। सुगना का सौंदर्य देखकर पुनीत की आँखों में चमक आ गई। वह उसकी ओर बढ़ ही रहा था कि तभी उसके घर की दीवार पर एक भयानक शोर होने लगा।
पुनीत चौंक गया, “अरे, कौन है यहाँ?” इतनी ज़ोर से कोई दरवाज़ा भी नहीं पीट सकता था, जितनी ज़ोर से दीवार पर आवाज़ आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि दीवार अभी टूटकर गिर जाएगी। तभी खिड़की खुली और एक कटा हुआ सिर अंदर आया, जिसे देखकर दूल्हा-दुल्हन दोनों बुरी तरह डर गए। फिर उसका शरीर भी अंदर आया, जो सिर से पूरी तरह अलग था। उसके लंबे, घने बाल हवा में लहरा रहे थे।
वह सिर दुल्हन की ओर बढ़ा और उसके बालों ने दुल्हन के दोनों हाथों को जकड़ लिया। उसने अपने बालों के सहारे दुल्हन को हवा में उठा लिया। जो दीवार अभी तक धमधमा रही थी, उसमें तेज़ रोशनी चमकने लगी। ऐसा लगा जैसे वह दीवार शीशे की बन गई हो और वह सिर दुल्हन को लेकर उसके अंदर चला गया। अगले ही पल दीवार एकदम ठीक हो गई और पुनीत चक्कर खाकर ज़मीन पर गिर गया।
सुबह हुई, तो पुनीत की माँ, पिता और कुछ पड़ोसी घर में मौजूद थे। वे उसे हैरानी से देख रहे थे। माँ ने पूछा, “पुनीत, दुल्हन कहाँ है? और तुम यहाँ ज़मीन पर क्यों पड़े हो?” पुनीत सहमते हुए बोला, “वो… वो सुगना को ले गया, वो सुगना को ले गया।” पिता ने पूछा, “अरे! कौन ले गया?” पुनीत बोला, “वो… वो सरकटा।” यह सुनकर सबकी जुबान से ‘राम राम’ निकल पड़ा।
पुनीत अब राजवीर के पास गया और उसे सारी बात बताई। राजवीर हैरान था, “ये क्या बोल रहा है तू? दुल्हन को उठा ले गया?” पुनीत ने कहा, “हाँ, मेरी आँखों के सामने उठा के ले गया।” राजवीर ने पूछा, “तो अब तू मुझसे क्या चाहता है?” पुनीत बोला, “क्या चाहता है, क्या मतलब? अरे! जैसे हम दोनों ने मिलकर स्त्री से इस गाँव को छुटकारा दिलाया था, वैसे ही सरकटा को हराकर मेरी सुगना को वापस ले आते हैं।”
तभी राजवीर की पत्नी रिया वहाँ आई और बोली, “तब यह सिर्फ़ इस गाँव का एक नौजवान लड़का था, और अब यह मेरा पति है। मैं नहीं चाहती कि यह कोई भी जोखिम भरा काम करे।” पुनीत के पिता ने रिया से समझाने की कोशिश की, “रिया बेटा, तुम हमारी बात को समझो।” रिया ने ग़ुस्से में कहा, “मुझे कुछ नहीं समझना। आप सभी मेरे घर से बाहर निकलिए।” रिया ने सभी को घर से निकाल दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।
रिया ने राजवीर से कहा, “अगर फिर से तुमने किसी भूत को पकड़ने या भगाने की कोशिश की, तो मैं ख़ुद भूत बन जाऊँगी।” यह कहकर वह चादर तानकर सो गई। राजवीर को पुनीत की चिंता हो रही थी, लेकिन अपनी पत्नी के गुस्से के आगे वह मजबूर था। रात के लगभग 3 बजे रिया की आँख खुली। उसने पास रखा पानी का गिलास उठाया, तो वह खाली था। रिया ने सोचा, “अरे यार! इस गाँव में शादी करके तो मैंने अपनी ही किस्मत फोड़ ली।”
राजवीर सो रहा था, इसलिए उसने उसे जगाना ज़रूरी नहीं समझा। वह पानी का मटका उठाकर घर से बाहर निकली। बरामदे में एक कुआँ था। उसने बाल्टी पानी में फेंकी। जब बाल्टी पूरी तरह से पानी में गिरी, तो उसने रस्सी खींचना शुरू किया। अचानक से हँसने की आवाज़ आई, तो वह डर गई। रिया ने पूछा, “ये किसकी आवाज़ है?” उसने गहरी साँस ली और वापस पानी खींचना शुरू किया। तभी वह आवाज़ और तेज़ होने लगी।
रिया ने देखा कि बरामदे में लगे एक पेड़ के तने पर अजीब सी चमक हो रही है, जैसे उस पर हज़ारों जुगनू बैठे हों। उसे बहुत तेज़ प्यास लगी थी, इसलिए उसने तेज़ी से बाल्टी को खींचा। जैसे ही रस्सी पूरी ऊपर आई, उसने एक भयानक दृश्य देखा। उस बाल्टी के अंदर कोई काली चीज़ नज़र आई। रिया ने पूछा, “ये क्या है?” उसने उस काली चीज़ को उठाया, तो पाया कि वही कटा हुआ सिर था, जिसने सुगना पर हमला किया था।
उस पर लिपटे हुए काले बालों ने रिया के हाथ और पैरों को जकड़ लिया और वह हँसने लगा। रिया का दिल बुरी तरह दहल चुका था। उसकी साँसें भी ऊपर-नीचे हो रही थीं। उसने पूरी साँस अंदर ली और उसके कंठ से एक ख़ौफ़ भरी चीख़ निकली। वह चीख़ सुनकर राजवीर जाग उठा। राजवीर ने आवाज़ लगाई, “रिया, तुम कहाँ हो?” उसने खिड़की से देखा कि रिया कुएँ के पास है। वह भागकर बाहर गया, तो सामने का नज़ारा देखकर उसके भी रोंगटे खड़े हो गए।
राजवीर ने चीख़कर कहा, “रिया!” वह रिया की तरफ़ भागा, लेकिन उस सिर ने बालों के सहारे ही रिया को हवा में उठा लिया। पेड़ में जो रोशनी जल रही थी, वही एक गोल घेरा खुल गया और वह सरकटा रिया को उसके अंदर ले गया। राजवीर ने चीख़कर कहा, “नहीं!” राजवीर भागकर उस पेड़ के पास पहुँचा, तो अचानक से वह पेड़ पहले जैसा हो गया। अब राजवीर की नज़र घर की दीवार पर पड़ी, तो उसने ‘स्त्री रक्षा करना’ वाली लाइन को मिटा हुआ पाया।
अगली सुबह, पुनीत और गाँव के सभी लोग एक जगह जमा हुए थे। राजवीर के चेहरे पर परेशानी साफ़ नज़र आ रही थी और उसके हाथ में वही किताब थी। राजवीर ने कहा, “रिया ने इस किताब को खोलने तक से मुझे मना किया था, लेकिन अब उसी की जान ख़तरे में है। इसीलिए रिया, मुझे माफ़ कर देना।” ऐसा कहकर उसने किताब का वह आख़िरी पन्ना खोला जो उसने पढ़ा ही नहीं था। उसमें लिखा था, स्त्री बनने से पहले वह एक अच्छी नृत्यांगना थी और उसे मारकर ‘स्त्री’ बनाने वाला एक सरकटा था।
जब तक ‘स्त्री’ शहर में घूम रही थी, तब तक सरकटा नहीं आ सकता था। लेकिन अगर आपने ‘स्त्री’ को भगा दिया, तो सरकटा वापस आएगा। ये सरकटा कौन है, इसके बारे में हम जानेंगे इस किताब के अगले भाग में…। राजवीर ने हैरानी से कहा, “अगले भाग में?” एक आदमी ने पूछा, “अगला भाग? क्या इस किताब के बाद कोई दूसरी किताब भी लिखी गई थी?” राजवीर ने कहा, “पता नहीं। जब मैं और पुनीत उस अँधेरी गुफ़ा के अंदर गए थे, तो हमें वहाँ पर एक ही किताब मिली थी।”
आदमी ने पूछा, “तो फिर इसमें क्यों लिखा है कि…?” राजवीर ने पुनीत से कहा, “पुनीत, मुझे लगता है अब हमें वापस उसी गुफ़ा में जाना पड़ेगा।” पुनीत ने कहा, “क्यों? अब तू क्यों उस सरकटे को ढूँढना चाहता है? क्योंकि अब तेरी बीवी गायब हुई है इसलिए?” राजवीर ने कहा, “बीवी तेरी भी गायब हुई है। ये गिले-शिकवे करने का वक़्त नहीं है यार। अगर तू चाहे तो मेरे साथ चल सकता है, या फिर मैं अकेले भी अपनी पत्नी के लिए वहाँ जा सकता हूँ।” यह कहकर राजवीर वहाँ से निकल गया और पुनीत किसी सोच में डूब गया।
रात के 12 बजे, सुनसान जंगल और अँधेरी रात। ऐसे में एक अकेले इंसान की चहलक़दमी उसके लिए माहौल को बहुत डरावना बना रही थी। काफ़ी देर चलने के बाद वह गुफ़ा पर पहुँचा। उस गुफ़ा को उसने आज 5 साल बाद देखा था और उसे देखते ही उसकी आँखों के सामने वह सारा मंज़र ऐसे घूमने लगा जैसे कि ये कल ही की बात हो। राजवीर ने दृढ़ता से कहा, “मुझे जाना ही पड़ेगा। रिया पता नहीं किस हाल में होगी।” यह कहकर वह उस गुफ़ा के अंदर दाखिल हो गया।
कुछ कदम बढ़ाने के बाद ही एक चील तेज़ शोर करती हुई सामने से आई। राजवीर नीचे झुककर उस चील से बच गया और वह पीछे निकल गई। राजवीर की साँसें तेज़ चल रही थीं और माथे पर पसीने की बूंदें छलक आई थीं। राजवीर ने कहा, “ये तो पहले से भी ज़्यादा वीरान हो गया यार।” तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और वह अचानक से डर गया। उसने पलट कर देखा तो वह पुनीत था। राजवीर ने पूछा, “तुम… तुम आ गए?” पुनीत ने कहा, “हाँ, दिख रहा हूँ तो साफ़ सी बात है कि आ ही गया हूँ।”
राजवीर ने कहा, “मैं सच में उस रात तुम्हारी बात सुनने वाला था, लेकिन…।” पुनीत ने उसे टोकते हुए कहा, “बस बस… अब आगे चलो, कहीं दूसरी चीज़ ना आ जाए।” ये दोनों अब आगे बढ़ते रहे। कहीं कोई मरा हुआ जानवर मिलता, जिसके मांस को चील और कौवे खा रहे थे, तो कहीं मानव कंकाल की हड्डियाँ मिलतीं। लेकिन फिर भी ये दोनों हिम्मत करके आगे बढ़ते रहे। आख़िरकार ये एक जगह पहुँचे, जहाँ एक बक्सा रखा हुआ था।
राजवीर ने पुनीत से पूछा, “यही वो बक्सा था ना, जिससे हमने वो किताब निकाली थी?” पुनीत ने पुष्टि की, “हाँ, यही था।” राजवीर ने उस बक्से को खोला, तो उसके अंदर उनको एक काला कपड़ा रखा हुआ मिला। राजवीर ने आश्चर्य से कहा, “ये वही कपड़ा है जो उस किताब पर लिपटा था, लेकिन… वो दूसरी किताब इसके अंदर नहीं है। तो कहाँ होगी?” यह कहते हुए राजवीर ने उस कपड़े को उठाया और उसके नीचे उन्हें एक चाबी और एक नक़्शा नज़र आया।
राजवीर ने ख़ुशी से कहा, “अरे, ये तो हमने देखा ही नहीं था।” इन दोनों ने अब उस नक़्शे को ठीक से देखा, जो दिखने में काफ़ी आसान था। पुनीत ने कहा, “ये नक़्शा तो इसी गुफ़ा का है और इसके हिसाब से हमें अभी और आगे जाना है, पर ज़्यादा दूर नहीं है।” ये दोनों गुफ़ा के थोड़ा और अंदर गए। जितना अंदर ये जा रहे थे, उतना ही अँधेरा और गहरा होता जा रहा था। लेकिन इन्होंने अपने क़दमों को नहीं रोका और आगे बढ़ते रहे।
आख़िरकार वो एक कोने में पहुँचे, जहाँ एक और बक्सा रखा था। लेकिन इस बक्से पर एक ताला लगा था। राजवीर ने कहा, “तो ये चाबी शायद इसी ताले की होगी। इसे खोलते हैं ना?” राजवीर ने जैसे ही ताले को हाथ लगाया, ज़मीन ज़ोर से हिली और तेज़ शोर करते हुए काफ़ी सारी मिट्टी छत से नीचे गिरने लगी। राजवीर ने महसूस किया, “इसमें ज़रूर कुछ होगा।” राजवीर ने हिम्मत करके ताला खोला और ढक्कन हटाते ही उन्हें एक किताब रखी हुई नज़र आई।
किताब का शीर्षक था: “सरकटा भूत स्त्री भाग दूर।” पुनीत ने उत्साहित होकर कहा, “तो यही… यही वो किताब है, जो उस किताब का दूसरा भाग है।” राजवीर ने किताब जैसे ही उठाई, तो गुफ़ा के अंदर भूकंप आ गया। पुनीत ने घबराकर पूछा, “अरे! ये क्या हो रहा है?” तभी कुछ बड़े-बड़े पत्थर छत से गिरने लगे। ये दोनों गुफ़ा के मुँह की तरफ़ भागे। धीरे-धीरे पूरी गुफ़ा ढह रही थी, और अगर ये एक कदम भी रुकते, तो उसी में दबकर मर जाते।
ये दोनों गुफ़ा से बाहर आए और पूरी गुफ़ा ढह गई। इन दोनों की साँसें तेज़-तेज़ चल रही थीं। कुछ देर इन्होंने साँस ली और उसके बाद ये गाँव में पहुँचे। चौक पर सभी पहले ही इनका इंतज़ार कर रहे थे। राजवीर ने बताया, “स्त्री के मरने के बाद ही सरकटा भूत वापस आएगा, क्योंकि उसी की वजह से नृत्यांगना की मौत हुई थी और मरने के बाद वो ‘स्त्री’ बनी थी। वो सरकटा भूत अपने जीवन काल में चंदेरी गाँव का राजा हुआ करता था। और उस राजा का स्मृतिकी के साथ क्या सम्बन्ध था? जानने के लिए इस कहानी का अगला पार्ट ज़रूर देखें।”











