शून्य हवेली का अभिशाप

प्रिया और रोहन शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से थककर, रामपुर गाँव में स्थित अपने पुश्तैनी घर, ‘शून्य हवेली’ में रहने आए थे। यह हवेली दशकों से वीरान पड़ी थी, जिसके बारे में गाँव वाले फुसफुसाते थे। उन्हें लगा था कि यह जगह उन्हें सुकून और एक नई शुरुआत देगी, लेकिन उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि यहाँ एक भयानक अतीत उनका इंतजार कर रहा था, जो धीरे-धीरे एक जीवित दुःस्वप्न में बदलने वाला था।

शुरुआती दिन शांत थे, पर जल्द ही अजीबोगरीब घटनाएँ होने लगीं। रात के गहरे सन्नाटे में, उन्हें सीढ़ियों पर किसी के कदमों की आहट सुनाई देती, जैसे कोई अदृश्य उपस्थिति लगातार घूम रही हो। दरवाज़े अपने आप खुलते-बंद होते, जबकि हवा का एक झोंका भी नहीं होता था। उन्होंने इन आवाज़ों को पुराने घर की स्वाभाविक ध्वनियाँ मानकर अनदेखा करने की कोशिश की, पर अंदर ही अंदर एक अजीब सी बेचैनी घर करती जा रही थी।

धीरे-धीरे, ये घटनाएँ और अधिक भयावह होने लगीं। रसोई में रखे बर्तन खुद-ब-खुद खिसक जाते और किताबों की अलमारी से किताबें ज़मीन पर गिर जातीं। प्रिया ने अक्सर रसोई में अकेले होने पर किसी की धीमी फुसफुसाहट सुनी, जैसे कोई उसका नाम ले रहा हो, पर जब वह मुड़कर देखती तो कोई नहीं होता था। एक दिन उसकी चाबियाँ पलंग के पास से गायब हो गईं और घंटों बाद वे एक बंद दराज में मिलीं।

एक रात, प्रिया की नींद अचानक खुली। उसने देखा कि रोहन बिस्तर पर सीधा बैठा था, उसकी आँखें खुली थीं, पर वह कहीं शून्य में देख रहा था। उसके मुँह से अजीब, अनजानी भाषा में कुछ शब्द निकल रहे थे, जैसे वह किसी अदृश्य शक्ति से संवाद कर रहा हो। प्रिया ने उसे हिलाकर जगाया, तो वह चौंककर उठा, उसे रात की कोई बात याद नहीं थी। इस घटना ने प्रिया के दिल में गहरा डर बिठा दिया और उसकी रातों की नींद हराम कर दी।

अब हवेली में हर जगह काली परछाइयाँ दिखने लगी थीं, जो पलक झपकते ही गायब हो जाती थीं। प्रिया ने अपनी बांह पर गहरे, खून के निशान देखे, जैसे किसी ने उसे नोंचा हो, जबकि उसे याद नहीं था कि चोट कब लगी। घर के कुछ कमरों में अचानक तापमान इतना गिर जाता कि हड्डियाँ काँप उठतीं, जैसे बर्फीली हवा अंदर घुस आई हो। यह सब उन्हें मानसिक रूप से थका रहा था और उनकी हिम्मत तोड़ रहा था।

स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि उन्होंने रामपुर छोड़ने का फैसला कर लिया। उन्होंने अपनी कार निकाली, लेकिन जैसे ही वे गाँव से बाहर निकलने वाले रास्ते पर पहुँचे, गाड़ी का इंजन अचानक बंद पड़ गया। कई कोशिशों के बाद भी वह स्टार्ट नहीं हुई। फिर उन्होंने देखा कि गाँव के मुख्य रास्ते पर एक बड़ा पेड़ गिर गया था, जिससे उनका बाहर निकलना असंभव हो गया। ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उन्हें हवेली में ही कैद करके रखना चाहती हो।

अपनी निराशा के बीच, उन्होंने हवेली के एक पुराने, अप्रयुक्त हिस्से की तलाशी ली। एक जीर्ण-शीर्ण अलमारी के पीछे, उन्हें एक छिपा हुआ दरवाज़ा मिला, जो एक अंधेरी, धूल भरी तहखाने की ओर जाता था। तहखाने में अजीबोगरीब चिन्हों और प्रतीकों वाली पुरानी किताबें बिखरी थीं, साथ ही कुछ सूखे फूल और जली हुई मोमबत्तियाँ भी पड़ी थीं। वहाँ की हवा में एक अजीब, सड़ी हुई गंध थी, जिससे रूह काँप उठती थी।

तहखाने में उन्हें एक पुरानी डायरी मिली। उसमें लिखी बातें भयावह थीं – हवेली के पिछले मालिक, एक परिवार ने, काले जादू और आत्माओं को बुलाने के अनुष्ठानों में खुद को उलझा लिया था। डायरी में उस परिवार के सदस्यों के अचानक, दर्दनाक अंत का जिक्र था, जिसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल थी, जिसकी आत्मा हवेली में कैद होकर रह गई थी। उनका अंत इतना भयानक था कि पूरे गाँव में डर फैल गया था।

उस रात, हवेली का माहौल पहले से कहीं अधिक भयावह था। हवा में एक भारीपन था, और चारों ओर फुसफुसाहटें और बर्तनों के गिरने की आवाज़ें स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। जैसे ही वे सोने लगे, प्रिया ने महसूस किया कि कोई अदृश्य हाथ उसके पैरों को कसकर पकड़ रहा है। रोहन ने देखा कि कमरे के बीचों-बीच एक काली आकृति बन रही है, जो धीरे-धीरे एक महिला के भयावह साये का आकार ले रही थी।

काली आकृति ने अचानक चिल्लाना शुरू कर दिया, उसकी आवाज़ इतनी तीखी थी कि कान के परदे फट सकते थे। उसकी आँखें लाल थीं और वह सीधे रोहन की ओर बढ़ी। रोहन ने अपनी पूरी ताकत से उसे दूर धकेलने की कोशिश की, पर वह आकृति उसके शरीर में घुसने का प्रयास कर रही थी। प्रिया ने डायरी में लिखी एक पुरानी प्रार्थना को याद किया और उसे डर से काँपते हुए ज़ोर-ज़ोर से पढ़ना शुरू कर दिया।

प्रार्थना का असर होता दिख रहा था। आकृति थोड़ी देर के लिए पीछे हटी, लेकिन फिर और अधिक क्रोधित होकर वापस आई। उसने कमरे में रखी हर चीज़ को तोड़ना-मरोड़ना शुरू कर दिया। प्रिया ने रोहन को पकड़ा और वे दोनों तहखाने से मिली एक छोटी ताबीज़ को हाथ में लेकर प्रार्थना करते रहे। अंततः, एक ज़ोर की चीख के साथ, आकृति धुएँ में बदल गई और अंधेरे में विलीन हो गई, लेकिन उसकी भयानक उपस्थिति अभी भी महसूस हो रही थी।

अगली सुबह, जैसे ही सूर्य की पहली किरण हवेली पर पड़ी, उन्हें भागने का एक नया रास्ता मिल गया। गिरा हुआ पेड़ अपने आप हट गया था, और कार बिना किसी दिक्कत के स्टार्ट हो गई। उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उस भयावह जगह से दूर चले गए। हवेली का अभिशाप उनके पीछे रह गया था, लेकिन उस भयानक रात की यादें उनके दिमाग में हमेशा के लिए कैद हो गईं, जो उन्हें कभी नहीं छोड़ेंगी।

आज भी, ‘शून्य हवेली’ रामपुर गाँव में एक वीरान खंडहर के रूप में खड़ी है। कोई भी ग्रामीण उसके पास जाने की हिम्मत नहीं करता। हवा में अब भी एक अजीब खामोशी है, जो किसी अनकही कहानी को समेटे हुए है। प्रिया और रोहन ने उस हवेली को कभी बेचने की कोशिश नहीं की, क्योंकि उन्हें पता था कि उसका अभिशाप किसी और को भी अपनी चपेट में ले सकता है। वह जगह एक भयावह चेतावनी है, जो बताती है कि कुछ रहस्य कभी नहीं खुलने चाहिए।

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