श्रापित हवेली का रहस्य

गाँव के किनारे, घनी झाड़ियों के पीछे एक पुराना, जीर्ण-शीर्ण हवेली खड़ी थी। स्थानीय लोग उसे “श्रापित हवेली” कहते थे और सूरज ढलते ही उसके पास से भी गुजरने से डरते थे। कुछ दोस्तों ने एक रात वहीं बिताने की शर्त लगाई। रवि, अमित और प्रीति, तीनों ही बहादुर होने का दावा करते थे, लेकिन उनके दिलों में एक अजीब सी बेचैनी थी। अंधेरा गहरा रहा था और हवेली की काली परछाईं डरावनी लग रही थी। वे दरवाज़े को धक्का देकर अंदर घुसे, जहाँ सन्नाटा और धूल का राज था।

जैसे ही वे अंदर घुसे, हवा में एक अजीब सी ठंडक पसर गई, मानो सूरज की रोशनी कभी इस जगह में न आई हो। पुरानी दीवारों पर मकड़ी के जाले लटक रहे थे, और हर कोने से एक अजीब सी बदबू आ रही थी। अमित ने टॉर्च जलाई, जिसकी पीली रोशनी में चीज़ें और भी डरावनी लग रही थीं। अचानक, उन्हें फुसफुसाहट की आवाज़ सुनाई दी, जो कहीं से नहीं आ रही थी, बस हवा में तैर रही थी। प्रीति ने रवि का हाथ कसकर पकड़ लिया। “तुमने सुना?” उसने दबी आवाज़ में पूछा। रवि ने सिर्फ सिर हिलाया, उसका चेहरा सफेद पड़ गया था।

वे तीनों एक कमरे में घुसे जहाँ एक पुरानी टूटी हुई कुर्सी पड़ी थी। अचानक, कुर्सी ज़मीन पर घिसटती हुई कुछ इंच आगे बढ़ गई, जैसे किसी ने उसे खींचा हो। रवि ने चीखने से खुद को रोका। फिर, उन्हें एक काली परछाईं दिखाई दी जो दीवार पर तेज़ी से गुजरी और गायब हो गई। अमित ने अपनी टॉर्च उस दिशा में घुमाई, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। “यह अब मज़ाक नहीं रहा,” प्रीति ने काँपते हुए कहा। तभी, उन्हें अहसास हुआ कि राहुल, जो उनके साथ आया था, कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। “राहुल कहाँ है?” अमित ने पूछा, उसकी आवाज़ में डर साफ झलक रहा था।

राहुल को ढूंढने की कोशिश में वे हवेली के और अंदर चले गए। हर दरवाज़ा, हर खिड़की बंद थी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें अंदर फँसा लिया हो। हवा में सड़ी हुई मांस की गंध तेज़ होती जा रही थी, और फुसफुसाहट अब और भी स्पष्ट और करीब लग रही थी। ऐसा लगा जैसे अनगिनत आवाज़ें उनका नाम पुकार रही हों। वे भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन जिस दरवाज़े से वे अंदर आए थे, वह अब बंद हो चुका था। उनके दिल ज़ोरों से धड़क रहे थे, हर आहट पर वे उछल पड़ते थे।

एक बंद कमरे से मंद रोशनी आ रही थी। डरते-डरते उन्होंने दरवाज़ा खोला। अंदर, राहुल ज़मीन पर अचेत पड़ा था, उसकी आँखें खुली और बेजान थीं। उसके चेहरे पर एक ऐसी भयावह अभिव्यक्ति थी जैसे उसने अपने जीवन की सबसे डरावनी चीज़ देखी हो। कमरे की दीवारों पर खूनी हाथ के निशान थे और एक पुरानी गुड़िया, जिसकी आँखें काली थीं, राहुल के सीने पर रखी थी। रवि, अमित और प्रीति चिल्लाते हुए पीछे हटे। उन्हें पता था कि वे अब अकेले नहीं थे, और इस हवेली से बाहर निकलना नामुमकिन था। हवेली की आत्मा ने एक और शिकार ढूंढ लिया था।

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