शूरपंखा का खौफ: कॉलेज डेयर की भयानक रात

कॉलेज के कुछ सीनियर्स, जानवी और आकाश, अपने जूनियर्स काव्य और अंजली को एक खौफनाक डेयर देते हैं। जानवी ने कहा, “तुम लोग हमारे जूनियर्स हो, डरने की कोई ज़रूरत नहीं। हम बस एक छोटा सा डेयर करवा रहे हैं।” आकाश ने आगे बताया कि उन्हें कॉलेज के पीछे वाले जंगल में जाना होगा। वहाँ एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे, पिछली अमावस्या को गाँववालों ने काले कपड़े में लिपटी हुई कोई चीज़ गाड़ रखी थी। उनका काम था उस पोटली को निकालना और फिर वीडियो कॉल करके आगे के निर्देशों का इंतज़ार करना।

रात के ठीक 10 बजे, काव्य और अंजली अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट की रोशनी में जंगल में आगे बढ़ रहे थे। जंगल का सन्नाटा इतना गहरा था कि उनके पैरों के नीचे कुचले सूखे पत्तों की चर-चर की आवाज़ भी साफ सुनाई दे रही थी। अंजली ने डरते हुए पूछा, “यह कितना बड़ा जंगल है? तुम्हें लगता है कि हम उस पेड़ को ढूँढ पाएँगे जहाँ सीनियर्स ने हमें जाने को कहा था?” काव्य ने जवाब दिया, “अगर यह नहीं किया तो वे लोग कॉलेज में हमारा जीना मुश्किल कर देंगे।” तभी अंजली के पैर के पास से एक गिलहरी गुजरी, और वह डरकर चिल्ला उठी, “आह!” उसने डरते हुए काव्य का हाथ पकड़ लिया, और उनकी आँखें मिलीं। काव्य ने उसे दिलासा दिया, “डरो मत, बस एक गिलहरी थी।”

एक-दूसरे का हाथ थामे हुए वे आगे बढ़ने लगे। कुछ ही दूरी पर उन्हें एक विशाल बरगद का पेड़ नज़र आया। काव्य ने कहा, “वो देखो, बरगद का पेड़ वही है।” दोनों तेज़ी से उस पेड़ के पास पहुँचे। रात के अंधेरे में जंगल के बीच वह पेड़ बेहद डरावना लग रहा था। काव्य ने अपने हाथों से ज़मीन की मिट्टी हटाई। थोड़ी खुदाई के बाद उन्हें एक काले कपड़े की पोटली दिखाई दी। काव्य बोला, “मिल गई! अब उन्हें कॉल करता हूँ।” काव्य ने तुरंत स्मित को वीडियो कॉल लगाया, और स्क्रीन पर तीनों सीनियर्स नज़र आने लगे। काव्य ने कहा, “सर, देखिए हम यहाँ पहुँच गए और हमने खुदाई भी कर ली है। यह रही पोटली।” जानवी ने आदेश दिया, “ठीक है, अब यह लड़की इस पोटली को खोलकर दिखाएगी।” यह सुनकर अंजली को बेहद डर लगा, पर वह मना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।

काव्य ने मोबाइल पकड़ा हुआ था, और अंजली ने काँपते हाथों से उस पोटली को खोला। उसके अंदर एक सिंदूर की डिब्बी, सात काली मिर्च और एक नींबू मिला, जिसमें चार सुइयाँ चुभी हुई थीं। आकाश ने उपहास करते हुए कहा, “ये गाँव के लोग भी ना बड़े बेवकूफ होते हैं। ऐ लड़की! अब इस नींबू को उठाओ और उसमें से ये सभी सुइयाँ निकाल दो।” यह सुनकर अंजली की आँखें फटी रह गईं, और उसने काव्य की तरफ देखा। काव्य ने कहा, “यह काम मैं करूँगा।” अंजली ने उसे रोका, “नहीं, तू यह नहीं करेगा।” डरते-डरते अंजली ने उस नींबू से चारों सुइयाँ निकाल दीं, और अचानक उस नींबू से धुआँ निकलने लगा। वे दोनों उससे दूर हटे, और वह धुआँ निकलकर अंजली के सर पर घूमने लगा। तेज़ तूफानी हवाएँ चलने लगीं, जिससे माहौल और भी भयावह हो गया।

काव्य ने अंजली का हाथ पकड़कर कहा, “अंजली, चलो यहाँ से!” वे दोनों वहाँ से हॉस्टल की तरफ भागे। जानवी ने कैमरे में देखते हुए कहा, “अरे यार! ये पागलों की तरह क्यों भाग रहे हैं? कुछ नज़र भी नहीं आ रहा है।” तभी अंजली के शरीर में अचानक अकड़न होने लगी। वह दर्द से कराह उठी, “आह…।” काव्य ने घबराकर पूछा, “क्या हुआ अंजली? आगे चलो!” अंजली ज़मीन पर गिर गई और उसका शरीर पूरी तरह से काँपने लगा। काव्य ने उसे उठाने की कोशिश की, “उठो अंजली!” उसके सर पर कई सारे चील-कौवे आकर अजीब तरह का शोर करने लगे, और उसकी तड़प और बढ़ गई। काव्य ने अंजली का सिर अपनी गोद में रख लिया। अंजली की आँखें ऊपर की ओर चढ़ गईं, और उसकी साँसें तेज़-तेज़ चलने लगीं। वह धुआँ अभी भी उनके आसपास ही घूम रहा था। तभी अंजली के मुँह से एक बहुत भयानक चीख निकली। वह धुआँ उसके मुँह में घुस गया, और वह बेहोश हो गई। काव्य ने अंजली को उठाया और फिर उसे हॉस्टल की तरफ लेकर भागा। वह मन ही मन बड़बड़ाया, “इसे कुछ हो ना जाए। इन ज़ालिमों के चक्कर में हम दोनों की जान खतरे में डाल दी।”

काव्य अंजली को अपनी बाँहों में थामे हुए हॉस्टल के सामने वाले गार्डन में पहुँचाने ही वाला था, तभी अंजली ने होश में आकर कहा, “अरे काव्य! तुम ठीक हो?” अंजली काव्य को इस तरह देख रही थी जैसे वह उसे पहली बार देख रही हो। उसने काव्य के चेहरे पर हाथ फेरा और बोली, “अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आपका शुक्रिया मुझे यहाँ लाने के लिए।” काव्य ने अंजली को ज़मीन पर उतार दिया और उसका हाथ थामा। अंजली के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। वे दोनों अब गार्डन में पहुँचे, जहाँ वे तीनों सीनियर्स बैठे हुए थे।

जानवी ने पूछा, “तुम लोग इस तरह वहाँ से भाग क्यों आए?” काव्य ने जवाब दिया, “हमने टास्क पूरा कर दिया। अब आप लोग प्लीज़ हमें जाने दीजिए।” आकाश ने कहा, “ठीक है, ठीक है, जाओ अपने रूम पर जाओ।” काव्य ने अंजली से कहा, “अंजली, अब मैं चलता हूँ, ठीक है? तुम भी अपने हॉस्टल पहुँचो।” अंजली ने अजीब से लहजे में कहा, “मेरा हॉस… हॉस…” अंजली से हॉस्टल शब्द भी ठीक से नहीं बोला जा रहा था, जो बात काव्य को बहुत अजीब लगी। काव्य ने सोचा कि वह अभी भी सदमे में है, और रास्ते की तरफ इशारा करते हुए कहा, “वो जो सामने गेट नज़र आ रहा है ना, वो तुम्हारे हॉस्टल का ही है। अब तुम जाओ, मैं भी जाता हूँ।” यह कहकर काव्य सीधा अपने हॉस्टल के अंदर घुस गया। उसके पीछे ही जानवी, आकाश और स्मित भी लड़कियों के हॉस्टल में अंदर जाने लगे।

गार्ड ने जानवी को रोका, “जानवी मैम, आप अंदर मत जाइए। वार्डन को पता चल गया तो मेरी नौकरी खतरे में आ जाएगी।” जानवी ने उसे आश्वस्त किया, “ऐसा कुछ नहीं होगा। हम लोग सेकंड फ्लोर पे जा रहे हैं। तुम हमारे ऊपर जाते ही सीढ़ियों के दरवाज़े पर ताला लगा देना और रोज़ की तरह उसको सुबह 5 बजे खोल देना।” अब वे सभी हॉस्टल के अंदर चले गए। वे तीनों सीढ़ियों से होते हुए सेकंड फ्लोर पर चले गए, और गार्ड ने सीढ़ियों के दरवाज़े पर बाहर से ताला लगा दिया। लेकिन बाहर खड़ी हुई अंजली के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। कुछ देर बाद, रात के 12 बज चुके थे। जानवी, आकाश और स्मित तीनों एक कमरे में बैठे हुए ताश खेल रहे थे।

आकाश ने कहा, “अबे! ये घुँघरूओं की आवाज़ कैसी है?” जानवी हँसते हुए बोली, “यहाँ हॉस्टल में कौन मंजोलिका आ गई? हा हा हा…।” तीनों ने ताश खेलना जारी रखा, तो यह आवाज़ अब और तेज़ आने लगी, जैसे कोई उनके कमरे के ठीक पास से गुज़रा हो। आकाश ने पूछा, “ये कौन है?” स्मित ने कहा, “मुझे लगता है ये कोई जूनियर है जो हमें डराने की कोशिश कर रहा है।” जानवी ने कहा, “लेकिन इस फ्लोर पे तो सभी कमरे खाली हैं।” आकाश ने कहा, “रुको, मैं देखता हूँ।”

आकाश कमरे से निकला और उसने दोनों तरफ गर्दन घुमाकर देखा। कमरे से काफी दूर कॉरिडोर के एक कोने में उसे किसी का अक्स नज़र आ रहा था। आकाश उस अक्स की तरफ तेज़ी-तेज़ी कदम बढ़ाने लगा, और जैसे ही उसके करीब पहुँचा, तो उसने पाया कि यह अंजली ही थी, जिसने साड़ी पहनी थी और पैरों में पाजेब थी। आकाश ने उसे डाँटा, “तू… तू पागल हो गई है क्या? हमें डराने चली थी?” यह कहकर आकाश उसकी तरफ बढ़ा, तभी अंजली ने अचानक हाथ बढ़ाया। आकाश दर्द से चीखा, “आआह….।” जानवी ने सुना, “अरे! ये तो आकाश की आवाज़ है ना?” वे दोनों कमरे से निकले तो उनको कुछ शोर सुनाई दिया – कचड़-कचड़ की आवाज़, जैसे कोई जानवर मांस चबा रहा हो।

जानवी ने चीखते हुए कहा, “वो देखो!” वे दोनों भागे और कोने में पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंजली दीवार की तरफ मुँह करके बैठी हुई है, और वह आवाज़ उसी के मुँह से आ रही है। जानवी आगे बढ़ी और उसने अंजली के कंधे पर हाथ रखा। तभी अंजली ने अपनी गर्दन पीछे घुमाकर उन दोनों को देखा और दोनों का दिल दहल उठा। अंजली की आँखें लाल-लाल चमक रही थीं। उसकी साँसें फूल रही थीं, चेहरे पर एक भयानक मुस्कान थी। उसके मुँह के आसपास खून लगा हुआ था और ठुड्डी से होता हुआ नीचे टपक रहा था। उसके सामने आकाश का कटा हुआ सिर रखा था, और शायद उसी की गर्दन का मांस वह खा रही थी। जानवी ने डरते हुए पूछा, “आह… आह! कौन हो तुम, कौन हो तुम?” स्मित चिल्लाया, “भागो यहाँ से!”

वे दोनों सीढ़ियों की तरफ भागे और दरवाज़ा पीटने लगे, लेकिन उन्हीं के कहने पर दरवाज़े के बाहर ताला लगाया गया था। दरवाज़े को पीटने की तेज़ दम-दम की आवाज़ काफी दूर तक पहुँच गई। काव्य अपने कमरे में था, “अरे! ये कौन शोर कर रहा है इतनी रात को?” वह कमरे से निकलकर बाहर आया। उसने सीढ़ियों के नीचे लगे दरवाज़े को ज़ोरों से हिलते देखा। स्मित और जानवी अंदर से चिल्ला रहे थे, “खोलो… दरवाज़ा खोलो, वो हमें मार देगी!” काव्य को आवाज़ें पहचान में आईं, “अरे! ये तो स्मित और जानवी की आवाज़ है!” वह बाहर भागा और उसने गार्ड से कहा, “आप जल्दी से अंदर चलिए। वो स्मित और जानवी दरवाज़ा पीट रहे हैं, उसे खोलिए।”

गार्ड ने मना किया, “अरे! उन्हीं ने तो कहा था कि 5 बजे खोलना है। तुम कहीं मेरे साथ मज़ाक तो नहीं कर रहे?” तभी दो आदमी एक तांत्रिक के साथ वहाँ पर आए। देखने पर पता चलता है कि वे दोनों आदमी गाँव के हैं। गार्ड ने पूछा, “जी कहिए?” तांत्रिक ने सवाल किया, “क्या कोई आपके इस विद्यालय से जंगल में गया था?” गार्ड ने जवाब दिया, “नहीं नहीं लगता तो नहीं… बताइए, वैसे आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?” तांत्रिक ने चिंता से कहा, “किसी ने बरगद के पेड़ के नीचे खुदाई कर रखी है। बता दीजिए, अगर किसी ने ऐसा किया है तो…।” काव्य ने सामने आकर कहा, “जी, मुझे पता है। कुछ सीनियर्स ने मुझसे और मेरी एक फ्रेंड से ऐसा करवाया था। लेकिन बात क्या है?”

तांत्रिक ने क्रोधित होकर कहा, “ये क्या किया तुम लोगों ने? पता भी है कितना बड़ा खतरा है वो? उस नींबू के अंदर शूरपंखा की आत्मा को कैद किया गया था। जिसने भी उसे उस नींबू से निकाला है, अब शूरपंखा की आत्मा उसी के शरीर पे होगी।” काव्य ने पूछा, “ये शूरपंखा कौन है?” तांत्रिक ने बताया, “वह हमारे गाँव में ही एक छोटे से घर में रहा करती थी। बच्चे, बूढ़े, जवान, औरत, मर्द – सभी को अपना शिकार बनाकर उनके मांस का सेवन करती थी। मैंने अपने कुछ साथियों के साथ उसको मारकर उसकी आत्मा को उस नींबू के अंदर कैद कर दिया था। उस लड़की ने उस नींबू से सुइयाँ निकालीं, तो इसका मतलब है कि अब उस लड़की के शरीर में शूरपंखा की आत्मा है।” तभी स्मित की चिल्लाने की आवाज़ आई, “बचाओ, हमें बचाओ। ये हमें मार देगी, बचाओ!” तांत्रिक ने कहा, “अरे! ये आवाज़ किसकी है? जल्दी चलो, शायद वो वहीं है।”

अब ये सभी लोग तेज़ी से अंदर भागे। दरवाज़े पर अब एक अजीब तरह की शांति छाई हुई थी। गार्ड ने चाबी लगाई और ताला खोला। वे सभी सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर पहुँचे, तो सामने का मंज़र दिल दहला देने वाला था। जानवी और आकाश का मृत शरीर ज़मीन पर पड़ा था। अंजली अपने उसी भयानक अवतार में ज़मीन पर बैठी थी। उसने अपने दोनों टाँगों से स्मित की गर्दन को जकड़ रखा था। स्मित अभी ज़िंदा था, लेकिन उसकी पकड़ में था। तांत्रिक ने शूरपंखा को आदेश दिया, “शूरपंखा, उस लड़की को छोड़ दो। निकल जाओ उसके शरीर से।” अंजली के स्वर में शूरपंखा ने धमकी दी, “अगर सामने आए तो इस लड़के को भी मार दूँगी।”

यह सुनकर उस तांत्रिक ने अपने झोले से सिंदूर की डिब्बी निकाली और अंजली के ऊपर छिड़का। शूरपंखा दर्द से चिल्लाई, “आह… आह!” शूरपंखा ने स्मित के सीने को चीर डाला और उसका दिल निकाल लिया, और उसे इन सभी की तरफ दिखाते हुए बोली, “ये देखो, इसकी मौत के ज़िम्मेदार तुम लोग हो।” अब उस तांत्रिक ने अपने झोले से एक सुई-धागा और एक नींबू निकाला। उसने मंत्र पढ़ते हुए उस नींबू को धागे में पिरो लिया और अंजली की तरफ बढ़ा। अंजली (शूरपंखा) ने फिर धमकी दी, “आगे मत आना, तुझे भी मार दूँगी।” अब काव्य ने आगे बढ़कर अपनी बाँहों में अंजली को जकड़ लिया। शूरपंखा ने चीखते हुए कहा, “आह… आह, छोड़!”

तांत्रिक उस नींबू को अंजली के सिर पर घुमाने लगा। शूरपंखा ने दर्द और क्रोध से कहा, “नहीं नहीं, तू ये ठीक नहीं कर रहा। छोड़ दे मुझे, छोड़!” सात बार नींबू घुमाने के बाद अंजली के शरीर में फिर से अकड़न पैदा हुई। उसके शरीर से कुछ धुएँ सा निकला और उस नींबू के अंदर समा गया। उस तांत्रिक ने तेज़ी से उस नींबू के अंदर चार सुइयाँ घुसेड़ दीं। अंजली अब बेहोश हो चुकी थी। काव्य ने उसे संभाला, “अंजली… अंजली।” काव्य उसके पास ही रुका रहा। अब तांत्रिक और वह दोनों गाँव के आदमी वहाँ से चले गए। उन्होंने फिर से उस नींबू को काली पोटली में डालकर उसी बरगद के पेड़ के नीचे ज़मीन में गाड़ दिया। इस तरफ अंजली होश में आते ही काव्य से लिपट गई। शायद उसे कुछ-कुछ याद था कि उसके साथ क्या हुआ था। काव्य ने भी अंजली को कसकर अपनी बाँहों में भर लिया, और इस भयानक रात का अंत हुआ।

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