रात का गहरा सन्नाटा था जब पुलिस स्टेशन का फोन अचानक बज उठा। गहरी नींद में डूबे एक हवलदार ने फोन उठाया। दूसरी ओर से एक व्यक्ति की आवाज दहशत से काँप रही थी – “साहब, यहाँ एक गाड़ी में लाश पड़ी है, कृपया जल्दी आइए!” हवलदार ने तुरंत पता नोट किया और वायरलेस पर गश्त दल को सूचना दी। रात के मौन को चीरती हुई पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती हुई उस स्थान पर पहुँची जहाँ गाड़ी खड़ी थी। प्रारंभिक जाँच में शव पर किसी चोट का निशान नहीं मिला, सिवाय एक उंगली पर छोटे से कट के निशान के, जिससे निकला रक्त पूरी तरह सूख चुका था।
शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। दो दिन बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, तो सभी स्तब्ध रह गए। मृत शरीर में रक्त का एक कतरा भी नहीं था; पूरा शरीर पीला पड़ चुका था। यह सुनकर इंस्पेक्टर को विश्वास नहीं हुआ जब डॉक्टर ने बताया, “इस उंगली के मामूली कट से किसी ने सारा खून चूस लिया है। यही इसकी मृत्यु का कारण है।”
जांच से पता चला कि यह लाश पैंतीस वर्षीय योगेश की थी। उसके घर में उसकी पत्नी और एक सात वर्षीय बेटी थीं। शव को घरवालों को सौंपने के बाद, पुलिस ने हत्यारे और हत्या के पीछे की वजह का पता लगाने के लिए पूछताछ शुरू की, लेकिन तीन महीने की गहन जाँच के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला।
एक रात, योगेश की पत्नी अपनी बेटी के साथ सो रही थी, तभी उसकी बेटी अचानक जाग गई और “पापा-पापा” चिल्लाने लगी। माँ ने उसे किसी तरह चुप कराया और पूछा – “बेटी, क्या हुआ? क्या कोई बुरा सपना देखा है?” बेटी ने जवाब दिया, “नहीं माँ, पापा सामने खड़े थे और कह रहे थे अपनी उंगली में एक कट लगा ले, फिर वे मुझे अपने साथ ले जाएँगे। मम्मी, जल्दी से मेरी उंगली में एक कट लगा दो।” योगेश की पत्नी को भय सताने लगा। उसने बेटी को चुप कराकर सुला तो दिया, लेकिन उसे खुद नींद नहीं आ रही थी। अगला पूरा दिन इसी डर में बीता। रात को माँ और बेटी दोनों सो गईं। सुबह जब माँ ने अपनी बेटी को देखा, तो उसकी उंगली पर खून की एक बूंद जम कर सूख गई थी। पास ही एक सेफ्टी पिन पड़ी थी, और बच्ची का पूरा शरीर पीला पड़ चुका था।
उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। योगेश की पत्नी ने पुलिस को सारी घटना बताई। बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया, और दो दिन बाद रिपोर्ट में फिर वही बात सामने आई: शरीर में खून का एक कतरा भी नहीं था।
इस घटना को पंद्रह दिन बीत चुके थे। घर में जमा हुए सभी रिश्तेदार भी धीरे-धीरे वापस जा चुके थे। एक रात, योगेश की पत्नी सो रही थी, तभी उसे योगेश और उसकी बेटी दिखाई दिए। वे दोनों उसे भी अपनी उंगली पर कट लगाने के लिए कह रहे थे। उनकी बातों का उस पर इतना गहरा असर हुआ कि अगले दिन पुलिस को उसकी भी लाश मिली, और उसके हाथ की उंगली पर एक छोटा सा कट था। ऐसा प्रतीत होता था मानो उसी कट से किसी ने उसका सारा रक्त पी लिया हो।
यह भयावह खबर पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई। कई तांत्रिकों और विशेषज्ञों ने न्यूज़ चैनलों पर इस विषय पर बहस छेड़ दी; उनकी राय में यह रक्तपिपासु पिशाचों का काम था जो इंसानों को अपने समूह में शामिल करना चाहते थे। अगले चार महीनों में, शहर के अलग-अलग हिस्सों में इसी तरह की घटनाएँ सामने आने लगीं। जहाँ पहले घर का एक सदस्य मृत पाया जाता, वहीं कुछ ही समय बाद, वही मृत व्यक्ति अपने घर के बाकी सदस्यों को उंगली पर कट लगवाकर उनका सारा खून पी लेता था, जिससे वे भी नरपिशाच बन जाते थे।
इस खबर का परिणाम यह हुआ कि सूर्यास्त होते ही पूरे शहर में भयावह चुप्पी छा जाती। लोग दिन के उजाले में भी अकेले घर से बाहर निकलने से कतराने लगे। सभी ने अपने घरों से चाकू और अन्य धारदार वस्तुएँ बाहर फेंक दीं, यहाँ तक कि काँच के बर्तन भी हटा दिए गए। पुरुषों ने डर के मारे शेव करना बंद कर दिया, इस आशंका से कि कहीं कोई छोटा सा कट न लग जाए और रक्तपिपासु पिशाच उनका खून पीने न आ जाएँ।
कुछ दिनों बाद, एक हाईवे पर एक बाइक पर सवार दो लोग जा रहे थे। बाइक फिसलने से वे दोनों गिर गए, और उनके सिर से खून बहने लगा। दिन के समय में ही वे दोनों सड़क पर बेहोश पड़े थे। जब पुलिस वहाँ पहुँची, तो पाया कि दोनों मृत थे। बाद में पता चला कि उनकी मौत दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी, बल्कि सिर से रक्त निकलने के कारण नरपिशाचों ने उनका पूरा खून चूस लिया था।
इस भयावह खबर के फैलते ही पूरे शहर में गहरा आतंक पसर गया। लोग बाहर आना-जाना और अपने वाहनों का उपयोग करना बंद कर चुके थे; शहर की सड़कों पर केवल पुलिस की गाड़ियाँ सायरन बजाती हुई घूम रही थीं। जो भी इंसान इन नरपिशाचों का शिकार बनता, कुछ ही दिनों में उसका पूरा परिवार भी रक्त चूसकर मार दिया जाता। जब उन्हें बाहर कोई नया शिकार नहीं मिलता, तो वे अपने ही घर की काँच की खिड़की तोड़कर अपनी उंगली पर कट लगा लेते थे, ताकि उनकी रक्तपिपासा शांत हो सके।
इस असाधारण संकट को समझने के लिए, पुलिस ने एक ऐसे परिवार पर कड़ी निगरानी रखी, जिसका एक सदस्य हाल ही में रक्तपिपासुओं का शिकार बना था। वे यह देखना चाहते थे कि खून चूसने कौन आता है। रात के समय, घर के सबसे छोटे लड़के ने अचानक सिगरेट से अपनी उंगली जला ली और फिर उसे कुरेदना शुरू कर दिया, जिससे खून निकलने लगा। तभी पुलिसकर्मी वहाँ पहुँचे। उन्होंने जो देखा, उससे सबके होश उड़ गए। एक काला, धुएँ जैसा साया प्रकट हुआ और उस उंगली के घाव से सारा खून पीने लगा। कुछ ही देर में लड़का मर गया, और उसके मरते ही वह साया भी गायब हो गया।
अपनी आँखों से इस भयानक दृश्य को देखकर पुलिस भी भयभीत हो उठी। पूरे शहर के लोग, हर घर में, एक-दूसरे को आपस में बाँधकर रखने लगे, इस डर से कि कहीं अकेला पाकर नरपिशाच उन्हें अपना शिकार न बना लें। आने वाले कुछ महीनों में, शहर में इंसानों की आबादी तेज़ी से घटती जा रही थी और नरपिशाचों की संख्या बढ़ती जा रही थी। यदि एक भी इंसान गलती से बाहर निकल जाता, तो अगले दिन उसकी लाश मिल जाती थी। जिस घर से एक भी व्यक्ति की मृत्यु होती, कुछ ही दिनों में उसका पूरा परिवार समाप्त हो जाता था।
शहर की पुलिस के भी कई जवान इस आतंक का शिकार हो चुके थे। शहर के निवासी इस जगह को छोड़ना चाहते थे, लेकिन दिनदहाड़े मृत्यु के भय से वे अपने घरों में रहने को विवश थे। शहर का बाकी देश से संपर्क टूट चुका था; कोई भी आवश्यक सामान उस शहर तक नहीं पहुँच पाता था।
शहर के सभी लोग अपने घरों में भूखे मरने लगे। अंततः, मजबूरी में उन्हें बाहर निकलना पड़ा, और बाहर आते ही वे नरपिशाचों का शिकार बन जाते। पूरे शहर पर रक्तपिपासुओं का भीषण आतंक था। इस सर्वव्यापी भय के बीच, केवल एक माँ काली के मंदिर के पुजारी ही सुरक्षित थे। वे मंदिर के आँगन में लगे कई फलों के पेड़ों से फल तोड़कर माँ काली को भोग लगाते और स्वयं भी वहीं खाकर अपना गुजारा करते थे। मंदिर के भीतर किसी भी प्रकार का खतरा नहीं था।
शहर को इस अभिशाप से बचाने के लिए, मंदिर के पुजारी ने लगातार सात दिनों तक घोर तपस्या की और माँ काली का आह्वान किया। माँ के आशीर्वाद से, उन्होंने अनेक काले धागों को मंत्रों से अभिमंत्रित किया। इस जाप की शक्ति से पंडित जी अत्यंत शक्तिशाली हो गए। उन्होंने एक धागा अपनी कलाई पर बाँधा और शेष धागे लेकर पूरे शहर में निकल पड़े। वे हर घर में जाकर उन धागों को बाँधते गए। अब सभी लोग निडर होकर अपने घरों से बाहर निकलने लगे। नरपिशाच किसी को भी अपना शिकार नहीं बना पा रहे थे, और रक्त न मिलने से उनकी शक्ति तेज़ी से क्षीण होती जा रही थी।
इधर, पंडित जी ने प्रतिदिन शहर के अलग-अलग स्थानों पर हवन करना शुरू कर दिया, जिसके शक्तिशाली मंत्रों के उच्चारण से सभी नरपिशाचों को मुक्ति मिलने लगी। पंडित जी ने पहले ही शहर के मुख्य द्वार पर एक बड़ा काला धागा बाँध दिया था, जिससे कोई भी नरपिशाच शहर से बाहर न जा सके। कुछ ही दिनों में, पूरा शहर सामान्य हो गया। उस शहर के लोगों ने पंडित जी को एक उद्धारकर्ता के रूप में पूजना शुरू कर दिया और उनका बहुत मान-सम्मान किया गया। इस प्रकार, शहर के निवासियों को रक्तपिपासु नरपिशाचों के आतंक से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई थी।