रक्त कुआँ

अर्णव, एक युवा फोटोग्राफर, अपनी पुरानी जीप में “काले पानी” नामक एक सुदूर गाँव में पहुँचा। उसे यहाँ की सदियों पुरानी वास्तुकला और खंडहरों को अपने कैमरे में कैद करना था। गाँव की हवा में एक अजीब सा ठहराव था और लोग बाहरी लोगों से बचते हुए दिखते थे। हर शाम, चौपाल पर बुजुर्ग फुसफुसाते, एक भूले हुए कुएं की कहानियाँ सुनाते, जिसे सुनकर बच्चों की रूह काँप जाती थी। अर्णव ने इसे बस पुरानी कहानियाँ समझकर अनसुना कर दिया, अनजाने में एक गहरे रहस्य की ओर बढ़ रहा था।

गाँववालों की उदासीनता के बावजूद, अर्णव ने आखिरकार “रक्त कुआँ” के बारे में सुना। यह एक ऐसा कुआँ था जहाँ दशकों पहले कई लोग रहस्यमय तरीके से गायब हो गए थे। किसी ने कभी उनके अवशेष नहीं खोजे और न ही कोई सुराग मिला। कहानियों में था कि कुआँ एक प्राचीन अभिशाप से ग्रस्त था, और जो भी उसके करीब गया, वह वापस नहीं आया। अर्णव का खोजी मन रोमांच और उत्सुकता से भर उठा। उसने एक ऐसी तस्वीर खींचने का फैसला किया जो इस मिथक को चुनौती दे सके, या शायद उसे सच साबित कर दे।

जैसे ही रात गहराने लगी, अर्णव ने अपना कैमरा और टॉर्च उठाई। चाँद की धीमी रोशनी में, वह घने पेड़ों के बीच से होते हुए उस भयानक कुएं तक पहुँचा। कुआँ काई से ढका, पत्थरों से घिरा, और उसकी गहराई में एक अनजाना अंधेरा था जो किसी की भी हिम्मत तोड़ सकता था। एक अजीब सी दुर्गंध और ठंडी हवा का झोंका उसे छू गया, जिससे उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने अपना तिपाई स्थापित किया, और तभी कुएं के भीतर से एक धीमी, कराहने वाली आवाज़ सुनाई दी, जैसे कोई गहरे दर्द में हो।

अर्णव ने आवाज़ को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की, अपना लेंस समायोजित किया। लेकिन तभी, उसके कैमरे का लेंस अजीब तरीके से धुंधला हो गया, जैसे उस पर किसी अदृश्य नमी की परत जम गई हो। कुएं से फुसफुसाहटों का एक भयावह कोरस सुनाई देने लगा, जो उसके कानो में गूंज रहा था और उसे भ्रमित कर रहा था। अचानक, गहरे अंधेरे से एक आकृति धीरे-धीरे उभरने लगी। वह एक धुंधली परछाई थी, जिसकी आँखें अंगारों की तरह लाल थीं, और वे सीधे अर्णव को घूर रही थीं, जैसे उसे अपने जाल में फँसा रही हों।

डर के मारे अर्णव के हाथ से कैमरा छूट गया, और वह ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी साँसें अटक गईं। उसने एक पल भी बर्बाद नहीं किया और अपनी जान बचाने के लिए भागा, पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत उसमें नहीं थी। लेकिन वह जानता था कि लाल आँखें उसका पीछा कर रही थीं, उसकी हर साँस पर निगरानी रख रही थीं। अगली सुबह, अर्णव बिना किसी को बताए गाँव से चला गया। वह “रक्त कुआँ” की भयानक यादों और उन लाल आँखों के शाश्वत पीछा से कभी नहीं उबर पाया। हर रात, वे आँखें उसे सोने नहीं देती थीं, उसे अपनी भयानक उपस्थिति का अहसास कराती थीं।

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