गाँव के बाहरी छोर पर एक वीरान हवेली खड़ी थी, जिसके बारे में यह आम धारणा थी कि वहाँ बुरी आत्माओं का बसेरा है। सूरज ढलते ही उस हवेली के चारों ओर एक अजीबोगरीब सन्नाटा पसर जाता। गाँव के बड़े-बुजुर्ग बताते थे कि आधी रात को हवेली से चीखने और फुसफुसाने की आवाज़ें सुनाई देती हैं, लेकिन किसी की भी हिम्मत नहीं होती थी कि वह उस रहस्यमय जगह के अंदर कदम रख सके। उसकी पुरानी दीवारों पर सदियों की कहानियाँ और अनकहे राज़ कैद थे, जो हर बीतते दिन के साथ और भी गहरे होते जा रहे थे।
एक बार, शहर से कुछ दोस्त रोमांच की तलाश में उस गाँव पहुँचे। उनमें अर्जुन नाम का एक निडर युवक भी था, जिसने हवेली के रहस्य को जानने का फैसला किया। उसने अपने साथियों की चेतावनियों को अनसुना कर दिया और पूर्णिमा की भयावह रात को हवेली में प्रवेश किया। जैसे ही वह दहलीज के पार गया, एक ठंडी हवा का झोंका उसे छूकर निकल गया और विशाल लकड़ी के दरवाज़े अपने आप ज़ोर से बंद हो गए, जिसकी गूँज पूरे भवन में फैल गई। चारों ओर फैले अंधेरे में उसे किसी अदृश्य शक्ति के होने का एहसास हुआ, मानो कोई उसे चुपचाप देख रहा हो।
अर्जुन ने एक धूल भरी पुरानी डायरी देखी, जिसमें हवेली के पूर्व मालिक की अंतिम इच्छा दर्ज थी। डायरी में लिखा था कि एक छोटे बच्चे की आत्मा, जिसे बेरहमी से मार दिया गया था, अभी भी शांति नहीं पा सकी है। तभी उसे एक नन्ही बच्ची के रोने की अस्पष्ट आवाज़ सुनाई दी और एक धुंधली छाया उसके सामने से गुजरी। अर्जुन का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने महसूस किया कि वह वहाँ अकेला नहीं था, और यह हवेली केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि एक दर्दनाक अतीत का जीता-जागता गवाह थी।
जैसे ही रोने की आवाज़ और तेज़ हुई, अर्जुन ने बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन सभी दरवाज़े बंद थे। उसे एहसास हुआ कि वह उस बच्चे की परेशान आत्मा के जाल में फंस चुका है। हवेली की ठंडी, सीलन भरी हवा उसके रोंगटे खड़े कर रही थी। अगली सुबह, गाँव वालों ने हवेली का मुख्य दरवाज़ा खुला पाया, लेकिन अर्जुन का कोई निशान नहीं था। ज़मीन पर बस उसकी टार्च और एक फटी हुई डायरी पड़ी थी, जिसके आखिरी पन्ने पर एक बच्चे की धुंधली आकृति बनी थी, जो हमेशा के लिए हवेली के अनसुलझे रहस्यों में गुम हो गई थी।











