शर्मा परिवार, जिसमें राजेश, सुनीता और उनके दो प्यारे बच्चे मीना व रवि शामिल थे, हमेशा एक बड़े और हवादार घर का सपना संजोए हुए थे। उनकी यह चाहत तब पूरी होती दिखी जब शहर से थोड़ा दूर एक पुराना, मगर बेहद खूबसूरत घर उन्हें पसंद आया। उस घर में एक विशाल हरा-भरा बगीचा था और एक अनोखा पुरानापन था, जिसने उन्हें तुरंत अपनी ओर खींच लिया। अपनी उम्र के बावजूद, वह घर एक नई शुरुआत का अहसास करा रहा था, शहरी भाग-दौड़ से दूर एक शांत जीवन का वादा। राजेश और सुनीता ने बिना देर किए इसे अपना नया ठिकाना बनाने का फैसला कर लिया। बच्चे भी नए बड़े-बड़े कमरों को देखकर उत्साहित थे। उन्हें ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि इस पुरानी सुंदरता के भीतर एक गहरा, रूह कंपा देने वाला रहस्य इंतज़ार कर रहा था।
शुरुआती कुछ हफ्तों में सब कुछ सामान्य लग रहा था। कभी-कभार हवा में एक धीमी फुसफुसाहट सुनाई देती, जिसे वे हवा का खेल समझकर टाल देते। रसोई में अचानक किसी बर्तन के खिसकने की आवाज़ आती, पर इसे भी वे पुरानी इमारत की सामान्य आहटें मान लेते। रात के समय, रवि ने अपने कमरे के दरवाज़े के नीचे से एक हल्की सी रोशनी देखी थी, मगर जब उसने अपनी माँ को बताया, तो उन्होंने इसे बस सपनों का भ्रम कह कर ख़ारिज कर दिया। सुनीता को कई बार ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उसे देख रहा हो, लेकिन जब भी वह मुड़कर देखती, तो वहाँ हमेशा सन्नाटा ही मिलता। परिवार ने इन छोटी-मोटी घटनाओं पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, उन्हें नए घर में बसने की शुरुआती उथल-पुथल मानकर अनदेखा कर दिया।
धीरे-धीरे, ये घटनाएँ अब और ज़्यादा अजीब होती जा रही थीं। घर के कुछ हिस्सों में अचानक इतनी ठंडक महसूस होने लगी, मानो वे किसी बर्फीले तहखाने में हों, जबकि बाहर तेज़ गर्मी होती। मीना ने शिकायत की कि उसके खिलौने रात में अपनी जगह से हट जाते हैं, और एक बार तो उसकी गुड़िया छत पर मिली। राजेश ने अपने दफ़्तर की फ़ाइलें एक खाली दराज़ में बंद की थीं, लेकिन अगली सुबह वे बिखरी हुई फ़र्श पर पड़ी थीं। अब फुसफुसाहटें ज़्यादा साफ़ सुनाई देती थीं, कभी-कभी तो ऐसा लगता था जैसे कोई उनका नाम पुकार रहा हो। सुनीता को अक्सर अपने कंधे पर किसी के हाथ का अहसास होता, मगर जब वह देखती, तो कोई भी मौजूद नहीं होता। यह सब धीरे-धीरे पूरे परिवार में एक अनजाना डर पैदा कर रहा था।
एक रात, रवि चीख़ता हुआ नींद से उठा। उसने दावा किया कि उसके बिस्तर के पास एक लंबी, अँधेरे से बनी आकृति खड़ी थी। उसी रात, सुनीता ने रसोई में एक गिलास को अपने आप मेज़ से फिसलते और ज़मीन पर टूटते देखा। अब चीज़ें सिर्फ़ अजीब नहीं थीं; वे डरावनी हो चुकी थीं। मीना ने अपने माता-पिता को बताया कि उसने घर के अंदर एक छोटी लड़की को सफ़ेद कपड़ों में देखा है, जो हमेशा उसकी तरफ़ घूरती रहती है। परिवार ने अब अपनी आँखों से ऐसी घटनाएँ देखी थीं जिनकी कोई तार्किक व्याख्या संभव नहीं थी। बच्चों की नींद उड़ गई थी, और वे दिन भर सहमे रहते। राजेश और सुनीता अब ख़ुद को इस रहस्यमय आतंक से घिरा हुआ महसूस कर रहे थे, जिसकी कोई सीमा नहीं थी।
राजेश ने घर के पुराने कागज़ात और उसके इतिहास की तलाश शुरू की। उसे पता चला कि यह घर कई दशकों पुराना था और इसमें कई दिल दहला देने वाली घटनाएँ घट चुकी थीं। एक छोटी बच्ची, जिसका नाम राधा था, इसी घर में एक दुखद दुर्घटना का शिकार हुई थी और उसकी मौत हो गई थी। उसके माता-पिता इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। इन कहानियों से उनका डर और बढ़ गया। सुनीता ने एक स्थानीय पंडित जी से बात की, जिन्होंने घर में एक नकारात्मक ऊर्जा के होने की पुष्टि की। पंडित जी ने कुछ अनुष्ठान करने का सुझाव दिया, यह कहते हुए कि आत्माएँ शायद घर में शांति चाहती थीं या कुछ अधूरा छोड़ गई थीं। परिवार ने तुरंत अनुष्ठान करने का फ़ैसला किया, लेकिन क्या यह काफ़ी होगा?
पंडित जी ने अनुष्ठान शुरू किया। जैसे ही उन्होंने पवित्र मंत्रों का उच्चारण करना शुरू किया, घर में अजीब सी हलचल मच गई। हवा में एक अजीब सी दुर्गंध फैल गई, और वातावरण इतना ठंडा हो गया कि उनकी साँसें जमने लगीं। अचानक, ऊपर से एक तेज़, चीख़ने की आवाज़ आई, और मीना के कमरे से एक ज़ोरदार धमाका हुआ। जब राजेश और सुनीता ऊपर दौड़े, तो उन्होंने देखा कि मीना का कमरा पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था, और उसकी गुड़िया दीवार पर, ख़ून जैसे लाल धब्बों के बीच चिपकी हुई थी। गुड़िया की आँखें उन्हें घूर रही थीं, मानो उसमें कोई भयानक आत्मा समा गई हो। पंडित जी ने घबराकर कहा कि यह आत्मा बहुत शक्तिशाली है और इसे शांत करना असंभव होगा। वे सब आतंकित होकर पीछे हट गए।
उस भयानक रात के बाद, राजेश और सुनीता ने फ़ैसला किया कि वे अब और उस घर में एक पल भी नहीं रह सकते। उन्होंने तुरंत घर छोड़ने का निश्चय किया। यह उनके सपनों का घर था, लेकिन अब यह एक जीते-जागते दुःस्वप्न में बदल चुका था। वे अपना अधिकांश सामान वहीं छोड़कर, बस अपनी जान बचाकर भागे। उन्होंने कभी उस घर में वापस जाने की हिम्मत नहीं की। आज भी, जब वे उस खौफ़नाक घटना को याद करते हैं, तो उनकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाती है। वे उस रहस्यमय डर को कभी नहीं भूल सकते जो उस प्रेतवाधित हवेली में उनकी आत्माओं में गहराई तक समा गया था। कुछ घर सिर्फ़ पत्थर और गारे से नहीं बने होते; वे पुरानी पीड़ा और अशांत आत्माओं की कहानियों को अपने भीतर समेटे होते हैं।











