प्रेतवाधित कलाकृति का अभिशाप

पुराने शहर के एक सुनसान कोने में, एक पेंटर रहता था जिसका नाम था रमेश। उसकी कला में एक अजीबोगरीब जादू था। लोग कहते थे कि उसकी बनाई हर तस्वीर में एक आत्मा बसती थी, खासकर पोर्ट्रेट्स में। रमेश की पेंटिंग्स इतनी सजीव लगती थीं कि देखने वाला एक पल के लिए अपनी नजरें नहीं हटा पाता था। पर इस अद्भुत कला के पीछे एक गहरा, काला रहस्य छिपा था।

रमेश ने अपनी कला को जीवित करने के लिए एक भयावह सौदा किया था। वह सिर्फ चेहरों को नहीं चित्रित करता था, बल्कि अपने विषयों के सार को, उनकी आत्मा के अंश को अपनी कैनवस में फंसा लेता था। अक्सर यह उनकी इच्छा के विरुद्ध होता था, या किसी दुखद घटना के बाद। उसके स्टूडियो में हमेशा एक अजीब-सी खामोशी और फुसफुसाहट महसूस होती थी, जैसे कैनवस से झांकती आँखों में अनकहे दर्द छिपे हों।

जैसे-जैसे रमेश बूढ़ा होता गया, उसके हाथ कांपने लगे, पर यह सिर्फ बुढ़ापा नहीं था। यह उसकी पेंटिंग्स में फंसी आत्माएं थीं, जो मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रही थीं, और बदले में रमेश की जीवन शक्ति को सोख रही थीं। वह जानता था कि उसका अंत निकट है, इसलिए उसने अपने बेटे अमन को अपनी कला सिखाने का फैसला किया, यह उम्मीद करते हुए कि अमन इस अभिशाप से बच पाएगा।

अमन ने जल्द ही पेंटिंग बनाना सीख लिया, लेकिन उसकी कला में वह गहराई और आत्मा नहीं थी जो उसके पिता की पेंटिंग्स में थी। अमन हताश हो गया और उसने अपने पिता से उस रहस्य के बारे में पूछा जो उनकी कला को इतना अनोखा बनाता था। रमेश, कमजोर और भयभीत, ने उसे उस भयावह सौदे के बारे में कुछ बताया, जिसमें किसी की आत्मा का एक अंश कैनवस में उतार दिया जाता था।

रमेश ने अमन को सावधान किया कि यह कला एक अभिशाप है, पर महत्वाकांक्षी अमन ने इसे एक बूढ़े आदमी की बकवास समझा। उसने अपने पिता की गुप्त डायरी ढूंढ निकाली, जिसमें अनुष्ठानों और काले जादू के मंत्रों का विवरण था। अमन ने अपने खुद के भयानक चित्र बनाना शुरू कर दिया। उसकी पहली पोर्ट्रेट एक युवा महिला की थी जो कुछ दिनों बाद रहस्यमय तरीके से गायब हो गई।

अमन की कला बढ़ती गई, और उसके स्टूडियो के चारों ओर एक भयावह आभा छा गई। पेंटिंग्स की आंखें अब अंधेरे में हल्की चमकती थीं, मानो वे उसे देख रही हों। एक रात, अमन ने अपना एक आत्म-चित्र बनाया, जिसमें उसने अपनी सारी नई-सीखी हुई शक्ति झोंक दी। जैसे ही उसने अंतिम स्ट्रोक पूरा किया, पेंटिंग में उसका प्रतिबिंब स्वतंत्र रूप से हिलने लगा।

चित्र से निकला हुआ अमन अब कमरे में खड़ा था, मुस्कुराते हुए। असली अमन ने महसूस किया कि वह धीरे-धीरे पेंटिंग में खींचा जा रहा है, एक बेजान छवि बनकर, उसकी आँखों में फंसी आत्मा का डर साफ झलक रहा था। पेंटिंग से निकले अमन ने अपने बूढ़े, डरे हुए पिता रमेश को देखा, और फिर वर्षों पहले रमेश द्वारा बनाई गई अपनी मां की पुरानी, खामोश पोर्ट्रेट को देखा। भयानक कला का यह चक्र जारी रहा, कलाकारों और उनके विषयों दोनों को निगलते हुए।

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