प्रेतात्मा का शिशु

एक छोटे शहर की बिंदिया, मातृत्व की गहरी लालसा में जी रही थी। तीन गर्भपात के बाद, उसकी कोख सूनी ही रही। हर बार, एक बच्चे की उम्मीद दिल में पलती, पर किस्मत उसे हर बार ठुकरा देती। चौथी बार जब वह गर्भवती हुई, तो आशा और भय दोनों ने उसे घेर लिया। उसके पति, जो खुद एक साधारण मज़दूर था, अपनी पत्नी के दुःख को समझता था। इस बार, वे दोनों पूरी सावधानी बरत रहे थे, इस उम्मीद में कि उनका सपना आखिरकार सच होगा। बिंदिया ने अपने आप को पूरी तरह से बच्चे की देखभाल में झोंक दिया, पर एक अनजाना डर हमेशा उसके साथ रहता था।

एक रात, प्रसव पीड़ा असहनीय हो गई। पति उसे लेकर भागते हुए अस्पताल जा रहा था कि रास्ते में ही बिंदिया अचेत हो गई। पास के श्मशान घाट से एक चंडाल निकला, जिसके हाथों में पानी का पात्र था। उसने पानी बिंदिया पर छिड़का, और वह होश में आ गई, पर पीड़ा और बढ़ गई। चंडाल ने राख देकर उसकी मदद की, और बच्चे का जन्म हुआ। पर शिशु में कोई हलचल नहीं थी। बिंदिया का दिल टूट गया, पति भी गम में डूब गया। यह उसका चौथा बच्चा था, और फिर से वही दुखद अंत। तभी, चंडाल ने कुछ मंत्र बुदबुदाए, और बच्चे ने आँखें खोलीं, एक अजीब-सी किलकारी मारकर रोने लगा। वर्षों बाद मिली संतान को देखकर वे खुशी से झूम उठे।

कुछ महीने बीत गए, और एक रात बिंदिया चौंककर जाग उठी। उसने देखा कि उसका दो महीने का बच्चा, जो अभी ठीक से पलटना भी नहीं सीखता, फर्श पर चल रहा था। उसका शरीर छोटा था, पर चाल किसी वयस्क जैसी। डर से उसकी रूह कांप गई। उसने पति को जगाने की कोशिश की, पर वह गहरी नींद में था। काँपते हाथों से उसने बच्चे को उठाया और वापस बिस्तर पर लिटा दिया। सुबह पति ने उसकी बात को एक बुरा सपना कहकर टाल दिया। बिंदिया जानती थी यह कोई सपना नहीं था, पर उस भयानक सच को स्वीकार करने की हिम्मत उसमें नहीं थी।

एक दिन, बिंदिया घर के काम में व्यस्त थी कि उसकी नज़र बच्चे पर पड़ी। वह बिल्ली के खून से सने पंखों के साथ खेल रहा था। उसी पल पड़ोस की महिला अपनी खोई हुई बिल्ली को ढूंढती हुई आई। बिंदिया ने डर के मारे झूठ बोल दिया कि उसने कुछ नहीं देखा। शाम को जब पति लौटा, तो बिंदिया ने उसे पूरी बात बताई। पति की चिंता बढ़ गई। वह सीधे श्मशान घाट गया और चंडाल से मिला। चंडाल ने उदास स्वर में बताया कि बच्चा तो जन्म के समय ही मर गया था, लेकिन बिंदिया के दर्द को देखकर उसने एक प्रेतात्मा को उसके मृत शरीर में डाल दिया था।

चंडाल ने उस प्रेतात्मा को शांत करने का उपाय बताया, पर बिंदिया अपने बच्चे से बिछड़ने को तैयार नहीं थी। उसने मना कर दिया। पति ने डरकर, आधी रात को सोते हुए बच्चे को उठाकर श्मशान घाट ले जाने का फैसला किया। वहाँ चंडाल ने पति को डाँटा कि माँ की सहमति के बिना यह काम नहीं हो सकता। तभी, बच्चे ने अपनी आँखें खोलीं। उसकी आँखों में एक भयानक चमक थी। एक पल में, उसने अपनी अद्भुत शक्ति से चंडाल और पति दोनों को पास के एक गहरे गड्ढे में खींच लिया। श्मशान की हवा में एक चीख गूँजी और दोनों ज़िंदा ही दफन हो गए।

इधर, बिंदिया अपनी नींद से जागी। उसने अपने बच्चे को अपने बगल में मुस्कुराते हुए सोते हुए देखा। उसकी मुस्कान में एक अजीब-सी क्रूरता थी, एक ऐसी चमक जो किसी साधारण बच्चे की नहीं हो सकती। बिंदिया ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया, पर अब उस मातृत्व की खुशी में एक भयानक सच्चाई का साया था। वह जानती थी कि उसके पास जो है, वह एक बच्चा नहीं, बल्कि एक अमानवीय शक्ति है, जो उसके पति और उस चंडाल को निगल चुकी थी। अब वह अकेली थी, उस मुस्कान के साथ, जो उसके जीवन का सबसे भयानक रहस्य बन चुकी थी।

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