पर्वत पर चलने की आवाज़: एक अनोखी यात्रा का सफर

सोचो, जिंदगी के भारी वजन के बाद तुम किसी ऐसी जगह पहुंचो जहां ध्वनि सिर्फ हवा और जंगल की आहट हो। कहीं ऐसी जगह जहां शहर की चिल्लाहट नहीं, बस चूहों की आवाज़ और बर्फ की लड़ाई के दर्शन हों। वो हैं वो छोटे से मार्ग, जो किसी को बस एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि दिल के असली नक्शे बनाने के लिए होते हैं।

लोग अक्सर जब भी ट्रेकिंग की बात करते हैं, उनके सामने केवल स्वामी के कलेजा ही आता है—हालांकि, ये एक गलतफहमी हे। ट्रेकिंग बस नहीं चलना, बल्कि जीना है। छोटे मार्गों पर चलते हुए तुम नए तरीके से धरती को स्पर्श करते हो, आकाश को छूते हो, और बात करते हो उस भाषा से जो बातचीत का नाम नहीं है।

ये अनकही बातें आसमान के नीचे कभी न बोली जाएंगी, पर लेटते समय पहाड़ों के नीचे उन्हें सुना जाता है। ताज़ी हवा के बीच मौनता की मुलाकात होती है, और तब समझ आता है—हम बस पागलों के बारे में बात करते थे, लेकिन वो असल में निर्मल जानवर थे।

तो क्यों न हम एक छोटे से सफर पर निकलें? नहीं लार्ज लिमिट वाले घर में बैठे जोड़े में कोई नहीं बसे, बल्कि एक राह, जहां प्रोफेशनल केबिन यानी कलाकार के लिए नहीं, बल्कि यात्री के लिए है। जब तक मन नहीं ध्यान देता, सरदोबर के बारे में भूल से ले जाता है। तभी पैर पर अंगूठे का दर्द आता है, लेकिन इस बार नहीं है कोई ब्लिस्टर, बल्कि एक नई जीत है—जीत जो कि कोई रिजल्ट और नहीं, बल्कि मन की ताकत है।

ये यात्रा सिर्फ एक सप्ताह के लिए नहीं, बल्कि सालों तक की स्मृति बन जाती है। रात के सातने में ज्वाला, शाम बचे लोगों के बीच गहरा मिजाज और उन घरों में जहां चाहे तो एक कप चाय से वादे तक हो सकते हैं। आखिरकार, तुम्हें लगना शुरू होता है तो मार्ग खुद जी गया है, सच्चाई नहीं, बल्कि जीवन ने बोलना शुरू कर दिया है।

और जैसे एक मार्ग खत्म होता है, तो नया शुरू होता है—इस बार अंदर की जगह में घूमने का। वह यात्रा जो कभी लौट के नहीं चलती। बहुत बेहतर है।

अब क्यों नाम हो, तो वहीं, वो मौका, जहां पैर को थकान नहीं सुनाई देती—बल्कि बस एक आवाज़, कहती है: ‘चलो, अभी आगे जाओ।’

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