आलोक, प्रिया और उनकी सात वर्षीय बेटी सिया ने शहर की गहमागहमी छोड़कर पहाड़ों के बीच एक एकांत, पुराने बंगले में नई ज़िंदगी की शुरुआत की। चारों ओर फैली हरियाली और शांत वातावरण उन्हें लुभा रहा था। उन्हें लगा कि यह बदलाव उनके जीवन में सुकून लाएगा, पर घर के भीतर एक अजीबोगरीब खामोशी छाई थी। यह सिर्फ़ सन्नाटा नहीं, बल्कि एक भारीपन था जो हवा में घुला हुआ था, एक अनदेखी उपस्थिति का अहसास कराता हुआ। कभी-कभी प्रिया और आलोक को एक अस्पष्ट बेचैनी महसूस होती, जिसे वे नई जगह की वजह से मानकर अनदेखा करने की कोशिश करते।
कुछ ही दिनों में, सिया ने एक नए दोस्त की बातें करनी शुरू कर दीं। उसने उसे ‘छाया’ बुलाया और बताया कि वह अदृश्य है, केवल सिया ही उसे देख सकती है। प्रिया और आलोक ने पहले इसे बच्चों की कल्पना समझा, लेकिन सिया की गंभीरता उन्हें चौंकाती थी। वह अक्सर घर के एक पुराने स्टोर रूम के पास, खाली कमरों में, उस अनदेखी दोस्त से घंटों बातें करती रहती। उसके चेहरे पर अब एक अजीब सी एकाग्रता और कभी-कभी उदासी भी दिखती, जो उसकी उम्र के बच्चों में असामान्य थी।
धीरे-धीरे, घर में अजीबोगरीब घटनाएँ होने लगीं। रात के गहरे सन्नाटे में, उन्हें कभी-कभी गुनगुनाने की धीमी आवाज़ें सुनाई देतीं, जैसे कोई दूर से लोरी गा रहा हो। प्रिया ने कई बार रसोई से बाहर निकलते ही दरवाज़ों को अपने आप खुला या बंद पाया। आलोक को भी अपनी किताबें अक्सर एक अलग जगह पर मिलीं, जैसे किसी ने जानबूझकर उन्हें हटाया हो। उन्हें लगा कि यह सिर्फ़ पुराने घर की हवा या चूहों की शरारत है, लेकिन उनके अंदर एक अनदेखा, गहरा डर धीरे-धीरे घर कर रहा था।
एक रात, जब गहरी नींद में सब सो रहे थे, सिया के कमरे से भयानक हँसी और ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ें एक साथ आने लगीं। आलोक और प्रिया हड़बड़ा कर भागे और देखा कि सिया अपने बिस्तर पर बैठी बुरी तरह काँप रही थी। उसने डरी हुई आवाज़ में बताया कि छाया उसे अपने साथ खेलने के लिए बुला रही थी, और उसके खिलौने खुद-ब-खुद हवा में उछल रहे थे। यह दृश्य देखकर प्रिया और आलोक की साँसें अटक गईं। अब वे इस बात से इनकार नहीं कर सकते थे कि उनके घर में कुछ बहुत भयानक हो रहा था।
इस भयानक घटना के बाद, प्रिया ने घर के अतीत को खंगालना शुरू किया। उसने स्थानीय पुस्तकालय और पुराने रिकॉर्ड्स में घंटों बिताए। कुछ ही दिनों की खोज के बाद, उसे एक चौंकाने वाली जानकारी मिली: दशकों पहले, इसी बंगले में, एक सात साल की बच्ची रहती थी जिसका नाम भी ‘छाया’ था। वह एक रहस्यमय दुर्घटना में सीढ़ियों से गिरकर मर गई थी। रिकॉर्ड्स में इसे एक हादसा बताया गया था, पर स्थानीय लोग हमेशा कहते थे कि उसकी मौत सामान्य नहीं थी। यह सच्चाई प्रिया के मन में एक गहरा भय भर गई।
छाया का प्रभाव सिया पर लगातार बढ़ता जा रहा था। सिया अब पहले से भी ज़्यादा गुमसुम और डरी हुई रहने लगी थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी रिक्तता छा गई थी। वह अक्सर खाली कमरों में घंटों तक घूरती रहती, जैसे किसी अदृश्य उपस्थिति को देख रही हो। कई बार वह आधी रात को उठकर पूरे घर में घूमने लगती और फुसफुसाती आवाज़ में किसी से बातें करती। सिया के व्यवहार में आया यह भयावह बदलाव आलोक और प्रिया को भीतर से तोड़ रहा था, उन्हें लग रहा था कि उनकी बेटी उनसे दूर होती जा रही है।
डर अब केवल आवाज़ों या सिया के व्यवहार तक सीमित नहीं रहा था। प्रिया और आलोक को अब घर में हर पल अदृश्य छायाओं का अहसास होने लगा था। उन्हें लगता था कि कोई लगातार उन पर नज़र रखे हुए है। घर की बिजली कई बार अपने आप चली जाती, जिससे पूरा घर अँधेरे में डूब जाता और दहशत का माहौल और गहरा हो जाता। आलोक ने अब यह तय कर लिया था कि उन्हें तुरंत यह घर छोड़ना होगा। उन्होंने अपनी चीज़ें समेटना शुरू किया और सुबह जल्दी निकलने का इरादा बना लिया।
अगली सुबह, जब वे घर से निकलने की तैयारी कर रहे थे, तो उनकी कार अचानक ख़राब हो गई। आस-पास कोई मैकेनिक भी मौजूद नहीं था। जैसे-तैसे उन्होंने किसी और वाहन का इंतज़ाम करने की कोशिश की, लेकिन अचानक शुरू हुई मूसलाधार बारिश और भूस्खलन के कारण पहाड़ों का रास्ता बंद हो गया। ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस घर से बाहर जाने ही नहीं देना चाहती। उन्हें भयानक रूप से महसूस हुआ कि वे इस शापित घर में फँस चुके हैं, और यह जगह उन्हें अपनी कैद में रखना चाहती है।
एक रात, जब प्रिया और आलोक सो रहे थे, उन्हें सिया के कमरे से बेहद डरावनी चीखें सुनाई दीं। वे तुरंत भागे और जो देखा, उससे उनकी रूह काँप उठी: सिया छत की ओर हवा में तैर रही थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे ऊपर खींच रही हो। उसके हाथ हवा में बेजान लटक रहे थे और उसकी आँखें पूरी तरह से खाली, निर्जीव थीं। आलोक और प्रिया ने उसे पकड़ने की पूरी कोशिश की, लेकिन एक अदृश्य और शक्तिशाली बल उन्हें दूर धकेल रहा था। उन्हें लगा कि वे अपनी बेटी को हमेशा के लिए खोने वाले हैं। यह उनके जीवन का सबसे भयानक और असहाय पल था।
आलोक और प्रिया को छाया के गहरे दुख और अनसुलझे क्रोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने सिया को बचाने के लिए अपनी पूरी शक्ति और हिम्मत जुटा ली। उस भयावह रात में, उन्हें यह अहसास हुआ कि छाया की आत्मा को सिर्फ़ शांति और समझ चाहिए थी। वह अकेली थी और किसी साथी को चाहती थी, यही वजह थी कि वह सिया को अपने साथ रखना चाहती थी। उन्होंने छाया से बात करने की कोशिश की, उसे समझाया कि सिया का परिवार उसके साथ है और उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। उन्होंने उसे उसकी मृत्यु के दर्द को स्वीकार करने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
जैसे ही आलोक और प्रिया ने छाया की कहानी को समझा और उसकी आत्मा को शांति देने की सच्ची कोशिश की, घर का माहौल धीरे-धीरे शांत होने लगा। सिया की आँखें खुलने लगीं और वह अपनी माँ को पहचान गई। उन्होंने छाया की आत्मा के लिए प्रार्थना की और उसे ससम्मान विदाई दी, यह विश्वास करते हुए कि उसे अब मुक्ति मिल गई है। उस घर से निकलने के बाद, वे कभी वापस नहीं लौटे। वह बंगला आज भी वहीं खड़ा है, लेकिन उस भयानक रात की यादें आलोक, प्रिया और सिया के साथ हमेशा के लिए एक गहरे निशान की तरह रह गईं।











