रामनगरम के मानसिक अस्पताल में रिहान का पहला दिन था। सुबह-सुबह, ऑटो से उतरकर उसने गार्ड को आवाज़ दी, पर कोई जवाब नहीं मिला। कुछ देर इंतज़ार करने के बाद, उसने खुद ही दरवाज़ा खोला और अंदर कदम रखा। जैसे ही वह भीतर जाने लगा, एक अजीबोगरीब आदमी उसके सामने आया और पूछा, “मांस खाएगा? इंसानी मांस… बोल खाएगा?” रिहान कुछ कहता, इससे पहले ही उस शख्स ने अपना हाथ उसके मुँह के सामने कर दिया।
रिहान ने देखा कि उस हाथ पर खून के कई निशान थे, जैसे उस आदमी ने कई बार अपनी नसें काटकर आत्महत्या करने की कोशिश की हो। तभी, उन कटे हुए निशानों से कुछ कीड़े रेंगते हुए बाहर निकले, जिन्हें देख रिहान को उल्टी आने लगी। वह अपना मुँह फेर पाता, उससे पहले ही उस शख्स ने अपने ही हाथ का मांस नोचकर खाना शुरू कर दिया। यह भयानक दृश्य देख रिहान को ज़ोरदार उल्टी हो गई।
तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा, “ठीक हो, बरखुरदार?” रिहान ने खुद को संभाला और पलटकर देखा, तो सफ़ेद कोट पहने एक व्यक्ति उससे बात कर रहा था। उस आदमी ने आगे कहा, “मैंने पूछा तुम ठीक हो? अगर तुम्हें कोई बीमारी है, तो तुम गलत जगह आ गए हो, क्योंकि यह पागलों का अस्पताल है। यहाँ आम लोगों का इलाज नहीं होता।” रिहान ने जवाब दिया, “नहीं, मैं बिलकुल ठीक जगह पर आया हूँ।”
“यानी तुम भी पागल हो?” आदमी ने पूछा। रिहान हिचकिचाते हुए बोला, “अअअ… कभी कभी।” “मतलब?” आदमी ने अपनी भौंहें चढ़ाईं। रिहान ने खुद को संभालते हुए कहा, “मेरा नाम रिहान है और आज मेरी जॉइनिंग है। और आप शायद डॉक्टर बद्री हैं, है ना?” डॉक्टर बद्री ने पुष्टि की, “जी, मैं ही डॉक्टर बद्री हूँ। तुम यहाँ से सीधे जाकर अपना जॉब लेटर ऑफिस में जमा करो और वहाँ से ड्रेस लेकर बगल के कैबिन में आ जाना, बाकी बातें वहीं करेंगे।” इतना कहकर डॉक्टर बद्री चले गए।
डॉक्टर के जाने के बाद, रिहान ने अपने आस-पास देखा तो उसे कोई भी नहीं दिखाई दिया। यह बात उसे बहुत अजीब लगी, लेकिन काम के पहले दिन वह इन बातों को सोचकर अपना दिन खराब नहीं करना चाहता था। उसे पता था कि यह एक पागलखाना है, इसलिए उसने इन अजीबोगरीब घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया और सीधे कंपाउंडर की ड्रेस पहनकर डॉक्टर के कैबिन में चला गया।
दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई। डॉक्टर बद्री ने कहा, “मैं पिछले आठ साल से इस पागलखाने को संभाल रहा हूँ, और अब तुम भी आ गए हो तो मुझे थोड़ी मदद मिल जाएगी। लेकिन ज़रा बच के रहना, यहाँ जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह कभी किसी को दिखाई नहीं देता, समझे?” डॉक्टर बद्री की ये रहस्यमयी बातें रिहान की समझ से परे थीं, फिर भी उसने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला दिया। उसका मन किया कि वह सुबह हुए भयानक हादसे के बारे में डॉक्टर से पूछे, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता, डॉक्टर ने अस्पताल के कंपाउंडर बंसी को ज़ोर से आवाज़ लगाई।
बंसी तुरंत डॉक्टर के सामने आ खड़ा हुआ। डॉक्टर बद्री ने उसे निर्देश दिया, “बंसी, ये अस्पताल के नए कंपाउंडर हैं, रिहान। जाओ, इन्हें सबसे मिलवाओ और अस्पताल की ज़रूरी बातें भी समझा देना। ठीक है?” डॉक्टर के कहे अनुसार, बंसी ने कुछ ही देर में रिहान को सभी से मिलवा दिया और उसे मरीजों के कमरों में ले गया। वहाँ हर कोई कुछ न कुछ अजीब हरकतें कर रहा था — कोई दिल टूटने वाली शायरी सुना रहा था, तो कोई फ़िल्मी गाने गाते हुए डायलॉग बोल रहा था। सभी मरीजों को दिखाते हुए बंसी ने रिहान से कहा,
“तुम जितनी जल्दी इन सब की आदत डाल लोगे, उतना ही अच्छा तुम्हारे लिए होगा। और हाँ, पागलों के बीच रह के तुम भी पागल मत बन जाना। यहाँ पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा पागल हो चुके हैं।” कुछ देर बाद, रिहान को पता चला कि उसकी नाइट ड्यूटी लगी है। दिन में आराम करने के बाद, रिहान रात को मरीजों की देखरेख में जुट गया। जैसे ही रात के 12 बजे, सभी मरीजों के चेहरे डर से पीले पड़ गए। जो मरीज दिन में खूब हल्ला कर रहे थे, वे भी चुपचाप एक कोने में बैठ गए।
यह सब देखकर रिहान को बड़ा अजीब लगा। उस रात नाइट ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर से रिहान ने पूछा, “आखिर यह सब क्या हो रहा है? सब लोग इतना डर क्यों रहे हैं?” डॉक्टर ने फुसफुसाते हुए बताया, “इस अस्पताल में रात के 12 बजे के बाद भूत घूमते हैं। वो सारे भूत इसी अस्पताल के पुराने मरीज हैं, जिनकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इसीलिए तुम संभल के रहना।” पर रिहान को भूतों पर बिलकुल विश्वास नहीं था। उसने डॉक्टर की बात को हँसी में टाल दिया और अपना काम करने लगा।
उसी रात, रिहान अकेला बाथरूम में जा रहा था, तभी उसे लगा कि कोई उसके पीछे है। मुड़कर देखने पर कोई नहीं दिखा। कुछ देर बाद, उसे फिर ऐसा ही महसूस हुआ। रिहान ने सोचा कि भूत की बात उसके दिमाग में घूम रही है, और वह इस बारे में कुछ ज़्यादा ही सोच रहा है। इसी वजह से उसे अब वहम होने लगे हैं। तभी, उसने शीशे पर खून से लिखा देखा – ‘आज तुम पागल हो जाओगे।’ रिहान को लगा कि कोई उसके साथ मज़ाक कर रहा है, इसीलिए उसने इस बात पर गौर नहीं किया और पूरे पागलखाने का मुआयना करने चल पड़ा।
जिन सेल्स से दिन में चीखने की आवाज़ आया करती थी, उन सभी में मौत की खामोशी पसरी थी। सभी पागल सेल्स के कोने में डरे-सहमे छिपे पड़े थे। जैसे ही वे रिहान को देखते, और ज़्यादा डर के दीवारों में सिमटने की कोशिश करते। रिहान भी सभी को देखते हुए उनके सामने से गुज़र रहा था कि उसे दूर से एक सेल से खूब ज़ोर-ज़ोर से हँसने की आवाज़ सुनाई दी। रिहान जब उस सेल के पास पहुँचा, तो देखा कि उस सेल में कोई था ही नहीं।
तभी उसे डॉक्टर बद्री की बात याद आई कि “जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं।” इसी बात को ध्यान में रख रिहान सेल के अंदर चला गया। पूरा सेल पहले से ही अंधेरे में डूबा हुआ था। रिहान ने तुरंत ही अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाई और सेल की दीवारों को गौर से देखा, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। किसी ने अपनी उँगलियों और हाथों को घिसकर दीवार पर बहुत कुछ लिख रखा था – ‘मैं राक्षस हूँ। मुझे खून चाहिए। मुझे इंसान का मांस खाना है। मैं पागल नहीं हूँ, मुझे पागल बनाया गया है।’
और हर लाइन के आसपास डरावने चित्र भी बने हुए थे, जिनमें एक आदमी कभी खुद का पेट फाड़ रहा था, तो कोई अपने ही हाथ का मांस नोचकर अपना ही खून पी रहा था। ऐसे बहुत से चित्र देखकर रिहान का मन विचलित हो गया था। उसे उल्टी आने लगी थी, पर रिहान के मुँह से अजीब किस्म के कीड़े और खून निकल रहा था। रिहान ने किसी तरह खुद को कंट्रोल किया और वह सेल से बाहर निकलने ही वाला था, तभी उसे किसी के हँसने की आवाज़ सुनाई दी। यह सुनकर रिहान का रोम-रोम कांप उठा।
क्योंकि वह पहले ही सेल का कोना-कोना छान चुका था, तो जब सेल में कोई था ही नहीं, तो फिर उसे हँसने की आवाज़ कैसे सुनाई दी? तभी उसे अपने सिर पर कुछ गीला-गीला महसूस हुआ। उसने जब छूकर देखा तो वह किसी का खून था, जो ऊपर से उसके सिर पर गिर रहा था। रिहान ने फ्लैशलाइट ऊपर करके सेल की छत को देखा, तो उसके दिल की धड़कनें एक पल को रुक गईं। छत से बहुत सारे मांस के लोथड़े लटके हुए थे, और उन्हीं के बीच दो आँखें रिहान को घूर रही थीं।
तभी मांस के लोथड़ों के साथ वो दो आँखें भी रिहान के ऊपर जा गिरीं, जिनके नीचे रिहान दब गया। जैसे ही रिहान चिल्लाने या मदद के लिए मुँह खोलता, एक मांस का लोथड़ा उसके पेट में चला जाता, जो उसके जिस्म को अंदर से काटता जा रहा था। रिहान जिस दर्द और तकलीफ से गुजर रहा था, वह हम और आप सोच भी नहीं सकते। वह जब भी मदद के लिए मुँह खोलता, मांस का लोथड़ा अपने आप ही उसके पेट में चला जाता। ऐसे करते-करते सारे मांस के लोथड़े खत्म हो गए और रिहान वहीं ज़मीन पर किसी मुर्दे की तरह पड़ा रहा।
इधर, सिक्योरिटी गार्ड कंट्रोल रूम में बैठा झपकियाँ ले रहा था कि अचानक पागलखाने का अलार्म सिस्टम बज उठा। गार्ड ने जब सीसीटीवी में देखा तो पाया कि सारे पागलों के सेल खुले हुए थे और सब अपनी जान बचाने के लिए एक-दूसरे को कुचलते हुए इधर-उधर भाग रहे थे। सायरन का शोर सुनकर पागलखाने के सभी गार्ड और डॉक्टर्स हड़बड़ा गए। इत्तेफ़ाक से डॉक्टर बद्री भी किसी इमरजेंसी काम की वजह से पागलखाने में अभी-अभी आए थे।
डॉक्टर बद्री गुस्से में सबको सुनाते हुए अस्पताल के अंदर ही आए थे कि उन्होंने जो देखा, उसे देखकर डर के मारे उनका भी खून सूखने लगा। क्योंकि उन्हें हर जगह खून और इंसान के मांस के टुकड़े ही दिखाई दे रहे थे। कभी किसी कोने में किसी गार्ड का कटा हुआ सिर पड़ा हुआ था, तो कहीं किसी पागल पेशेंट का कटा हुआ पेट, जो उसने खुद ही काटा था। डॉक्टर बद्री डरे-सहमे अभी कुछ ही अंदर गए थे, तो देखा एक पागल अपने हाथ को दीवार पर घसीटता हुआ कुछ लिखे जा रहा था।
डॉक्टर बद्री ने जब पास आकर पढ़ा, तो लिखा हुआ था – ‘उस रात हादसा नहीं बल्कि साजिश हुई थी।’ डॉक्टर बद्री ने जैसे ही यह पढ़ा, उन्हें सदमा-सा लगा। पर इससे पहले कि वह खुद को संभाल पाते, वह पागल जो अपने को घसीटते हुए दीवार पर लिख रहा था, वह कोई और नहीं बल्कि रिहान था। उसका चेहरा बहुत जगह से कट चुका था और उसके अंदर से कीड़े निकल रहे थे। और तो और, रिहान की एक आँख भी फूटकर चेहरे पर लटकी हुई थी, जो उसे और भी खूँखार और भयानक बना रहा था।
रिहान ने चीखते हुए डॉक्टर बद्री से कहा, “बोल, उस रात जो हुआ वो महज़ एक हादसा नहीं था, बल्कि सोची-समझी तेरी एक साज़िश थी। बोल…” रिहान, डॉक्टर बद्री की ओर बढ़ा, उसके खून का प्यासा बना हुआ था। डॉक्टर बद्री पीछे हटते हुए बोला, “रिहान, तुम्हें क्या हो गया है? होश में आओ। क्या तुम पागल हो गए हो?” रिहान (चीखते हुए), “मैं रिहान नहीं, मैं वेद बोल रहा हूँ।” वेद का नाम सुनते ही डॉक्टर बद्री धड़ाम से नीचे जा गिरा और अपनी एड़ियाँ रगड़ते हुए पीछे हटने लगा।
पर डॉक्टर बद्री के गिरने पर रिहान ने उसका पैर पकड़ लिया और एक-एक कर उसकी उँगलियाँ खाने लगा। डॉक्टर बद्री ने अपने दूसरे पैर से रिहान को दूर करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही बद्री ने रिहान को मारना चाहा, उसने डॉक्टर बद्री के पैर में ऑपरेशन की कैंची घुसा दी, जिससे अब डॉक्टर बद्री दोनों पैरों से चलने में असमर्थ हो गया था। लेकिन रिहान ने बद्री को न छोड़ने की कसम खा ली थी। वह उसके पैरों का मांस नोचता हुआ अब उसकी जाँघों तक आ पहुँचा था।
अब डॉक्टर बद्री को अपनी मौत साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी, और उसे इस बात का भी यकीन हो गया था कि रिहान इस वक्त रिहान नहीं, बल्कि वेद है। तो उसने भी गिड़गिड़ाते हुए रिहान के अंदर छिपे वेद से कहा, “मुझे माफ़ कर दे, भाई। मैं बदले की आग में जल रहा था, पर तूने भी तो मेरी…।” रिहान ने बीच में ही टोक दिया, “मैंने भी तो क्या, बोल?” डॉक्टर बद्री ने जवाब दिया, “तू भी तो मेरी पीठ पीछे मेरी पत्नी के साथ रंगरेलियाँ मनाता था। तो फिर तू ही बता, मैं तुझे कैसे छोड़ देता? मैं भी तो इंसान हूँ, मुझे भी तो तकलीफ होती है। और माँ-पापा के जाने के बाद मैंने तेरी परवरिश की और तुझे अपने साथ इसी अस्पताल में रखा ताकि तू प्रैक्टिस कर सके और एक काबिल और बड़ा डॉक्टर बने, पर तूने मेरे साथ विश्वासघात किया, वेद।”
रिहान (वेद की आत्मा) ने पलटकर कहा, “मैंने कोई विश्वासघात नहीं किया था, भाई। भाभी कभी आपसे प्यार ही नहीं करती थीं। उन्होंने तो आपके पैसे और रुतबे के लिए आपको अपनाया था। बेचारी की बची-खुची चंद खुशियाँ थीं, जो कहीं से भी नहीं मिलीं, तो वो मेरे पास आईं और मैं मना नहीं कर पाया। लेकिन जब आपको मेरे और भाभी के अफ़ेयर के बारे में पता चला तो आपने मौका देखकर मेरे खिलाफ़ साज़िश की। मैं अस्पताल में राउंड पे निकल गया था और आपने सभी सेल के दरवाज़े खोल दिए। सभी पागलों ने मुझे घेर लिया, मुझे बिजली के झटके दिए, मेरे हाथों मेरा खुद का ऑपरेशन करवाया। इस दर्द से गुज़रने से अच्छा मैंने मौत को अपना लिया और अब बारी आपकी है, भैया।”
रिहान के अंदर वेद की आत्मा की बात सुनकर डॉक्टर बद्री ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। डॉक्टर बद्री ने क्रूरता से कहा, “अरे! तू मरने से पहले भी भोला था और मरने के बाद भी भोला ही है। तुझे बिजली के झटके देने वाले और तुझसे खुद का ऑपरेशन करवाने वाले कोई पागल नहीं थे, बल्कि मेरे आदमी थे। मैंने उन्हें पागल बनाकर अस्पताल में रखा था ताकि वो मेरा बदला पूरा कर सकें। आज शायद मैं ज़िंदा न रहूँ, लेकिन तुझे ठिकाने लगाने के बाद मैंने तेरी भाभी को भी तिल-तिलकर मारना शुरू कर दिया। मैंने उसे ऐसी दवाइयाँ दीं, जिससे उसका मानसिक संतुलन हिल गया और वो पगला गई। उसे शरीर की भूख थी ना? तो उसके पागल होने पर मैंने पहले उससे अपना पेट भरा, फिर दिल्ली के एक रेड लाइट एरिया में बेच आया, जहाँ हर दिन उसकी भूख मिटाने हज़ारों लोग बोली लगाते हैं और उसे…”
इससे पहले कि डॉक्टर बद्री अपनी बात पूरी कर पाता, रिहान ने डॉक्टर बद्री की गर्दन पकड़ी और उसकी साँस की नली उखाड़कर उसे मौत के घाट उतार दिया। फिर पागलों की तरह उसके खून को अपने चेहरे पर लगाकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसके रोने की आवाज़ से पूरा पागलखाना दहल उठा था। इस भयानक हादसे के बाद रिहान कभी उबर नहीं पाया। वह आज भी उसी पागलखाने में कैद एक पागल की ज़िन्दगी जी रहा है। हालाँकि उसे डॉक्टर बद्री और वेद की पूरी कहानी पता है, लेकिन उस पर अब खूनी पागल होने का ठप्पा लग चुका है, जिससे उसकी बात पर कोई यकीन नहीं करता।











