ममता देवी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने राहुल से कहा, “इस अभागन के पेट में फिर से लड़की है! कैसी मनहूस है, पति को वारिस तक नहीं दे पा रही।” राहुल ने हैरानी से पूछा, “माँ, आपको कैसे पता कि इस बार भी बेटी है?” ममता ने आँखें तरेरते हुए जवाब दिया, “हॉस्पिटल की नर्स को मोटा पैसा देकर मैंने लिंग-जांच करवाई है।” राहुल चिंतित हो उठा, “माँ, यह तो गैरकानूनी है। अगर किसी को पता चल गया तो मुसीबत हो जाएगी।” ममता ने उसे डांटते हुए कहा, “तो क्या तू चाहता है कि मैं फिर नौ महीने इसकी तीमारदारी करूँ और हजारों रुपये खर्च करके एक और बेटी घर ले आऊँ?”
ममता आगे बोली, “फिर तू सारी जिंदगी उसके दहेज के लिए पैसे जुटाता रह। नहीं, मैं ऐसा कतई नहीं होने दूँगी।” राहुल ने डरते हुए पूछा, “तो आप क्या करेंगी, माँ?” ममता ने क्रूर मुस्कान के साथ कहा, “अरे! करना क्या है? इस नई मुसीबत से छुटकारा पाना है और क्या?” राहुल ने फिर आपत्ति जताई, “मगर माँ…” ममता ने उसकी बात काट दी, “कोई माँ-वां नहीं। मैंने कह दिया तो कह दिया।” राहुल ने एक आखिरी कोशिश की, “मगर उसे पता चलेगा तो वह कभी तैयार नहीं होगी।” ममता ने राहुल को निश्चिंत करते हुए कहा, “उसे कुछ पता ही नहीं चलेगा। तू बस कल सुबह उसे डॉक्टर के यहाँ चलने के लिए बोल देना। बाकी सब मैं देख लूँगी।”
दूसरी ओर, सोना गहरे सदमे और परेशानी में थी। दो बेटियों के बाद वह तीसरी बार माँ बनने वाली थी। दूसरी बेटी के जन्म के बाद ही डॉक्टर ने उसे ऑपरेशन की सलाह दी थी, क्योंकि वह शारीरिक रूप से तीसरी गर्भावस्था सहने के लिए बहुत कमजोर थी। उसके लाख मना करने के बावजूद, पति राहुल अपनी माँ की जिद के आगे झुक गया और उन्हें तीसरे बच्चे के बारे में सोचना पड़ा। मगर उसकी तबीयत इतनी खराब थी कि वह घर के रोजमर्रा के काम भी मुश्किल से कर पा रही थी। राहुल ने पूछा, “सोना, कैसी हो? तबीयत तो ठीक है ना?”
सोना ने उदासी से कहा, “मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है। मैं कुछ दिनों के लिए अपने मायके जाना चाहती हूँ।” राहुल ने उसे समझाया, “तुम ऐसे क्यों कह रही हो? मम्मी तुम्हारा कितना ख्याल रखती हैं। कल तुम्हारे लिए डॉक्टर का एक स्पेशल अपॉइंटमेंट लिया है। सुबह जल्दी तैयार हो जाना।” सोना को राहुल की बातों पर यकीन ही नहीं हुआ कि उसकी सास ने उसकी भलाई के लिए डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लिया होगा। वह जाना नहीं चाहती थी, लेकिन राहुल की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा। अगली सुबह, वह अपनी सास के साथ अस्पताल पहुँच गई, एक अनजाने डर से सहमी हुई।
ममता जी ने डॉक्टर से पहले ही अपॉइंटमेंट ले रखा था। उनके पहुँचते ही नर्स सोना को ऑपरेशन थिएटर में ले गई और ऑब्जर्वेशन की तैयारी करने लगी। बेहोशी की हालत में सोना को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है। मगर सोना की शारीरिक कमजोरी के कारण उसे अत्यधिक रक्तस्राव होने लगा, जिसे देखकर नर्स और डॉक्टर दोनों घबरा गए। नर्स ने चिंतित होकर कहा, “डॉक्टर, अब क्या करें? इसकी ब्लीडिंग रुक ही नहीं रही है।” डॉक्टर ने कहा, “मुझे भी समझ में नहीं आ रहा। ओ पॉज़िटिव ब्लड का इंतजाम करो। इसे तुरंत खून चढ़ाना पड़ेगा, वरना इसकी हालत और खराब हो जाएगी।”
डॉक्टर के आदेश पर नर्स तुरंत ओटी से बाहर निकली और खून का इंतजाम करने लगी। दूसरी तरफ, सोना की हालत तेजी से बिगड़ती जा रही थी। नर्स खून लेकर पहुँच पाती, उससे पहले ही सोना ने दम तोड़ दिया था। डॉक्टर ने उदास होकर कहा, “वी आर सॉरी, शी इज नो मोर। कमजोरी के कारण बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो गई थी। हम उसे नहीं बचा पाए।” अपनी पत्नी की मौत की खबर सुनकर राहुल तो टूट सा गया, लेकिन ममता जी अंदर ही अंदर खुश थीं। अब वह अपने बेटे की दूसरी शादी करने के लिए स्वतंत्र थीं। ममता ने राहुल से कहा, “अरे! क्यों फिक्र कर रहा है तू? क्या कमी है तुझ में? तेरे लिए लड़कियों की लाइन लगा दूँगी। अभी इसके मायके वालों को फ़ोन कर, इस मुसीबत से छुटकारा पाते हैं।”
सोना का अंतिम संस्कार कर जब राहुल घर लौट रहा था, तभी अचानक साफ मौसम में एक भयंकर तूफान आ गया। तेज तूफान के कारण राहुल के लिए गाड़ी चलाना मुश्किल हो रहा था। बारिश की वजह से सामने कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी अचानक उसे लगा कि उसकी पत्नी सोना सामने खड़ी है। उसने तुरंत झटके से ब्रेक लगाया, मगर गाड़ी उसकी पत्नी से जाकर टकरा गई। राहुल चीखा, “सोना, नहीं… ये नहीं हो सकता।” यह कहते हुए राहुल सोना को ढूंढने के लिए सड़क पर उतर गया। वह जोर-जोर से आवाज लगाकर सड़क के बीच में बैठे-बैठे रो रहा था।
तेज बारिश और आंधी-तूफान के बीच कार के दरवाजे खुले और ऐसा लगा कि मानो कोई ड्राइवर के पास वाली सीट पर आकर बैठ गया हो। कुछ ही पल के बाद मौसम एकदम साफ हो गया। तभी राहुल के मोबाइल पर उसकी माँ का फ़ोन आया। फ़ोन की आवाज से राहुल को जैसे होश आया हो और वह सड़क के बीच से उठकर वापस कार में बैठ गया और घर पहुँच गया। पानी में भीगे हुए राहुल के पैरों की छाप घर में बन रही थी और उसके पैरों के साथ ही दो पैरों की छाप और बन रही थी, मगर वह पैर उल्टे थे, जिससे घर में एक भयानक सन्नाटा छा गया।
सोना को मरे हुए चार दिन हो चुके थे। ममता जी तो जैसे सोना को पूरी तरह भूल ही गई थीं। वह राहुल की दूसरी शादी की तैयारियों में व्यस्त थीं। मगर राहुल और उसकी दोनों बेटियाँ आज भी सोना को बहुत याद करती थीं। उसी रात उन लोगों को सोना के अपने आसपास होने का एहसास होने लगा। बड़ी बेटी ने डरते हुए पूछा, “पापा, आपको भी लगा ना कि मम्मी यहीं पर हैं?” राहुल ने आह भरते हुए कहा, “हाँ, मुझे उसकी खुशबू आ रही है।” फिर उसने हवा में देखते हुए कहा, “सोना, तुम यहीं हो ना? कहाँ हो, कहाँ हो तुम? सामने आओ सोना। एक बार हमारे सामने आ जाओ।”
राहुल और उसकी दोनों बच्चियों को सोना नजर आने लगी। दोनों लड़कियाँ अपनी माँ को देखकर बहुत खुश हुईं, क्योंकि उनकी माँ उन्हें छोड़कर कहीं नहीं गई थी, बल्कि उन्हीं के पास थी। सोना अब एक सामान्य इंसान की तरह अपने बच्चों के साथ खेलती और पति से बातें करती। ममता जी हैरान थीं कि उनके घर में यह सब क्या हो रहा है? उनके बेटे के कमरे से उसके साथ-साथ किसी स्त्री के भी हंसने की आवाजें आ रही थीं। ममता जी कुछ दूर खड़ी होकर उन बातों को सुनने की कोशिश कर रही थीं, मगर उन्हें सही से कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तभी अचानक से दरवाजा खुला और उनका बेटा राहुल बाहर आया। उसकी आँखें गुस्से में लाल थीं। साड़ी पहने हुए उसने पूरा महिलाओं की तरह मेकअप किया हुआ था। उसकी यह दशा देखकर ममता जी जोर-जोर से चीख पड़ीं। राहुल (सोना की आवाज में), “क्या हुआ, मम्मी जी? आप परेशान लग रही हैं? आप तो खुश थीं कि मैं इस दुनिया से चली गई, मगर मैं लौटकर आ गई हूँ अपने राहुल और बच्चों के पास। मुझे उन लोगों से कोई दूर नहीं कर सकता। उन लोगों को मैं अपने साथ लेकर जाऊंगी। कोई मुझे नहीं रोक सकता। ममता नाम है ना आपका? मगर आपके अंदर ममता नाम की कोई चीज नहीं है।”
सोना की आत्मा राहुल के शरीर से बोलती रही, “एक अजन्मे बच्चे को मारने के लिए आपने अपने बेटे का घर उजाड़ दिया। अब आप अकेली ही रहना यहाँ।” यह कहते हुए राहुल जोर-जोर से हंसने लगा और अचानक बेहोश हो गया। जब उसे होश आया तो खुद को उस हालत में देख कर शर्मिंदा हो गया। राहुल ने पूछा, “माँ, यह सब क्या है और यह मैंने साड़ी क्यों पहन रखी है?” राहुल की बात सुनकर ममता जी उसे सारी बात बताने लगीं। अपनी बच्चियों की सुरक्षा के लिए राहुल ने अपनी माँ के साथ गाँव जाकर पंडित जी से रक्षा सूत्र बंधवाकर लाया।
उस रक्षा सूत्र के कारण अब सोना की आत्मा राहुल के शरीर के भीतर नहीं जा पा रही थी और न ही राहुल से और न ही अपनी बच्चियों से कोई बात कर पा रही थी। वह गुस्से में ममता जी के सामने आकर बोली, “तुम्हें क्या लगता है, तुम मुझे मेरे पति और बच्चों से दूर कर दोगी? नहीं, कभी भी नहीं। मैं उन्हें अपने साथ लेकर ही जाऊंगी।” कहते हुए गुस्से में उसने पूरे घर का सामान अस्त-व्यस्त कर दिया। उसकी आत्मा का रौद्र रूप देखकर ममता जी परेशान हो गईं। अगले दिन सोना की आत्मा अपने बच्चों के सामने खड़ी थी। बच्चे अपनी माँ को देखकर बहुत खुश हुए।
सोना ने प्यार से बुलाया, “आओ बेटा, मेरे पास आओ।” सोना के बुलाने पर दोनों लड़कियाँ उसकी तरफ बढ़ने लगीं, तभी सोना ने उन्हें रुकने का इशारा किया। सोना ने कहा, “बेटा, तुम्हारे हाथ में जो धागा बंधा है, इसे खोलकर मेरे पास आओ। राहुल, तुम भी मेरे पास आओ। देखो, हमारी तीसरी बेटी तुम्हें बुला रही है। आओ आओ, अपनी बहन के पास आओ, बेटा।” राहुल और उसके दोनों बच्चे सम्मोहित होकर सोना की तरफ देख रहे थे। सोना की गोद में एक छोटी सी बच्ची थी, जो मुस्कुराकर उन्हें अपने करीब बुला रही थी।
तीनों ने सम्मोहित होकर अपने हाथ का धागा खोल दिया। ममता जी के मना करने के बावजूद, वे सभी सोना की तरफ बढ़ने लगे। जैसे ही राहुल ने सोना की गोद में से बच्ची को लिया, एक तेज बवंडर आया और तीनों उस बवंडर के अंदर घूमने लगे। जैसे ही वह बवंडर शांत हुआ, तीनों की लाशें जमीन पर पड़ी थीं। सोना अपने साथ अपने पूरे परिवार को ले जा चुकी थी। ममता जी के पास पछताने के अलावा कुछ भी नहीं बचा था। पोते की चाह में उनका भरा-पूरा घर उजाड़ चुका था, और वह हमेशा के लिए अकेली रह गईं।