रचित, उसकी पत्नी राशि और आठ साल का बेटा तुषार, ग्रेटर नोएडा की भागदौड़ से थक चुके थे। उन्हें सुकून की तलाश थी—कुछ ऐसा जो उन्हें शहर के शोरगुल से दूर ले जाए। तभी रचित को लाचुंग, सिक्किम की एक पुरानी लेकिन बेहतरीन रेटिंग वाली कॉटेज का विज्ञापन मिला। यह कॉटेज एक धुंध से ढकी पहाड़ी की चोटी पर स्थित थी। लाचुंग की आत्मा
पहुँच और पहली रात
सफर लंबा था—सड़कें संकरी होती गईं, और जंगल घना। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती, मोबाइल सिग्नल और धड़कनें दोनों कमजोर होने लगीं। जब वे कॉटेज पहुँचे, शाम का झुटपुटा चारों ओर फैल चुका था। ठंडी हवा चीड़ के पेड़ों के बीच सीटी बजा रही थी।
कॉटेज बाहर से जर्जर था, पर अंदर लकड़ी की चमचमाती फर्श, प्राचीन फर्नीचर और गरम रोशनी ने एक अलग ही माहौल बना दिया। तभी एक बूढ़ा आदमी झुकी कमर, दूधिया आँखों और टेढ़ी मुस्कान के साथ सामने आया।
“इस हफ्ते सिर्फ आप ही मेहमान हैं,” उसने खुरदुरी आवाज़ में कहा। एक भारी लोहे की चाबी थमाते हुए बोला, “शांति का पूरा आनंद लीजिए।”
शुरुआत में सब सामान्य था, लेकिन रात होते ही माहौल बदलने लगा। कॉटेज की खामोशी डराने लगी, जिसे केवल फर्श की चरमराहट और दूर से आती जानवरों की आवाज़ ही तोड़ती। aatma ki kahani
तुषार ने शिकायत की कि उसका कमरा बहुत ठंडा है, जबकि हीटर चल रहा था। राशि ने उसे गले लगाया और सुला दिया। उसने सोचा यह सब सिर्फ थकान की वजह से है।
पहला दिन: परछाइयाँ और फुसफुसाहटें
सुबह, रचित ने गलियारे में कीचड़ भरे नंगे पैरों के निशान देखे—बिल्कुल छोटे-छोटे पैरों के निशान, जो सीधे तुषार के कमरे से आते थे। उसने सोचा शायद तुषार रात में बाथरूम गया होगा, लेकिन तुषार ने इनकार कर दिया।
राशि आईने में बार-बार देख रही थी। “मुझे लगता है कोई मेरे पीछे खड़ा है,” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
दोपहर में तुषार ने बाहर खेलने से मना कर दिया। उसका चेहरा पीला था। उसने कहा, “मैंने जंगल के पास एक औरत देखी—वह सफेद साड़ी में थी, उसका चेहरा उसके उलझे बालों में छिपा हुआ था।”
रचित को कुछ नहीं दिखा, लेकिन उसके दिल में एक असहज सी सनसनाहट दौड़ गई।
रात को, जब सब सोने जा रहे थे, राशि को एक अजीब सी लोरी सुनाई दी—धीमी, और किसी अज्ञात भाषा में। वह आवाज़ का पीछा करते हुए लिविंग रूम तक गई, जहाँ खिड़की के पास एक परछाईं खड़ी थी। लेकिन लाइट जलाते ही वह गायब हो गई।
दूसरा दिन: वशीकरण की शुरुआत
अगली सुबह, रचित का फोन और कार की चाबी दोनों गायब थे। बूढ़ा मालिक भी कहीं नहीं दिख रहा था। राशि के चेहरे पर अजीब थकावट और आँखों के नीचे काले घेरे थे। वह सिरदर्द की शिकायत करने लगी और बोली, “कोई मेरी गर्दन पर सांस ले रहा है… हर वक़्त।”
डिनर के समय, लाइटें झपकने लगीं। हवा में बर्फ की सी ठंडक भर गई। तभी राशि की साँसें उखड़ने लगीं, उसकी आवाज़ बदल गई—अब वह कोई और थी। उसकी आँखों में अजनबीपन था।
रचित कुछ समझ पाता, उससे पहले ही राशि ने तुषार को पकड़ लिया और एक अनजानी ताकत से उसे किचन में घसीट ले गई। लाइट चली गई। केवल तुषार की चीखें सुनाई दीं… फिर सन्नाटा।
लाइट लौटी, तो तुषार फर्श पर निर्जीव पड़ा था। उसका चेहरा डर से विकृत था, और हाथ किसी अदृश्य चीज़ को पकड़ने की कोशिश में जकड़े हुए थे।
अंतिम टकराव
रचित की आँखों में अब सिर्फ ग़ुस्सा और ग़म था। वह राशि पर झपटा, जो अब पूरी तरह एक बुरी आत्मा के वश में थी। उसका चेहरा डरावना हो चुका था, आँखें उलटी, और आवाज़ घुटी हुई गहराई में से निकल रही थी।
दोनों लड़ते-लड़ते एक दरवाजे से नीचे गिर पड़े—कॉटेज के नीचे बने एक सीक्रेट बेसमेंट में। वहाँ बदबू और अंधेरा था।
लाइटर की रोशनी में रचित ने दो सड़ी-गली लाशें देखीं—एक पुरुष और एक स्त्री, लोहे की जंजीरों में बंधे। तभी अचानक वे लाशें जीवंत हो गईं—उनके मुँह से बिना आवाज़ के चीखें निकल रही थीं, जैसे कोई बहुत पुराना बदला मांग रहा हो। bhutiya kahaniyan
रचित ने वहीं रखी मिट्टी के तेल की बाल्टी उठाई, लाशों पर उड़ेल दी और आग लगा दी। लपटें भड़क उठीं। चीखों और धुएं में आत्माएँ मरोड़ते हुए गायब हो गईं। उसी पल राशि बेहोश हो गई, और बुरी आत्मा उसका शरीर छोड़ गई।
अंत
सुबह पुलिस को कॉटेज के बाहर जले हुए खंडहर के पास रचित और राशि मिले—सहमे हुए, टूटे हुए। बूढ़ा मालिक फिर कभी नहीं दिखा।
राशि मानसिक रूप से कभी ठीक नहीं हो पाई। वह अपने बेटे और लाचुंग के भूतों की यादों से डरी रहती थी, और दिनभर एक ही कोने में बैठी रहती।
रचित, अब एक खाली खोल मात्र था। कभी-कभी रात में उसे वही लोरी सुनाई देती थी… और सुबह उठकर वह अपने बिस्तर के पास कीचड़ भरे छोटे पैरों के निशान देखता था।
कुछ आत्माएँ कभी चैन से नहीं सोतीं।