मुंबई की चहल-पहल के बीच प्रिया नाम की एक छोटी लड़की रहती थी, जिसे गुड़ियों से बेइंतहा प्यार था। उसकी अलमारी में रंग-बिरंगी, खूबसूरत गुड़ियों का खज़ाना था, लेकिन एक गुड़िया थी जो उसे सबसे ज़्यादा परेशान करती थी – उसकी कथकली गुड़िया। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और हरा चेहरा प्रिया को हमेशा डराता था, मानो वह हर पल उसे घूर रही हो।
गर्मी की छुट्टियों में, प्रिया का परिवार केरल में अपनी दादी के पुराने, विशाल घर गया। दादी का घर दिन में तो शांत लगता था, लेकिन रात होते ही वहाँ अजीब सा सन्नाटा पसर जाता था। कोनों में परछाइयाँ किसी आकार में ढलती थीं, और अक्सर खिड़कियाँ अपने आप खुल जाती थीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति अंदर आने का इंतज़ार कर रही हो। दादी को रात में बाहर निकलने में डर लगता था, इसलिए पड़ोस की आयशा आंटी और उनकी बेटी मीना घर के कामों में मदद करती थीं।
एक दिन, आयशा आंटी प्रिया को स्थानीय बाज़ार ले गईं। वहाँ, एक पुरानी दुकान पर प्रिया की नज़र एक कथकली गुड़िया पर पड़ी। उसका हरा चेहरा, गहरी काली आँखें और सिर पर लाल मुकुट – यह हूबहू वैसी ही थी जैसी प्रिया ने सपने में देखी थी। आयशा आंटी ने उसे प्रिया के लिए खरीद लिया। प्रिया ने उसे प्यार से अपने पास तो रख लिया, लेकिन उसे हर पल महसूस होता था कि गुड़िया की आँखें उसे ही घूर रही हैं, मानो कोई रहस्य छिपा हो।
पहली ही रात, जब घर में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था और सब सो रहे थे, प्रिया को अचानक एक अजीब सी खामोश हँसी सुनाई दी। कमरे में ठंडी हवा का एक झोंका आया और उसे लगा जैसे कोई उसके बिस्तर के पास खड़ा है। प्रिया ने डरते हुए आँखें खोलीं और देखा कि वही कथकली गुड़िया उसकी अलमारी से निकलकर, खुद-ब-खुद उसके बिस्तर के बिल्कुल पास आ गई थी। गुड़िया की आँखों से एक अजीब सी चमक निकल रही थी और उसके पैरों में बँधे घुंघरू अपने आप बज रहे थे, लेकिन इस बार उनकी आवाज़ बेहद तेज़ और डरावनी थी। प्रिया ने घबराहट में चादर में खुद को छिपा लिया, लेकिन उसे लगा जैसे कोई उसके कान के पास फुसफुसा रहा है, – “मैं तुम्हारी दोस्त हूँ… हमेशा के लिए… और अब तुम कभी अकेली नहीं रहोगी।”
अगली सुबह, प्रिया ने देखा कि उसकी बाकी सारी प्यारी गुड़ियाँ फर्श पर बिखरी पड़ी थीं, उनके चेहरे पर गहरी खरोंचें थीं और उनके कपड़े फटे हुए थे। दीवार पर लाल रंग से कुछ लिखा था, – “आओ खेलें… या फिर तुम भी टूट जाओगी।” प्रिया का दिल डर से ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसे लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ उसका गला दबा रहा है। उसने तुरंत अपनी मम्मी को बताया, लेकिन मम्मी ने यह सोचकर टाल दिया कि शायद कोई चूहा आ गया होगा और प्रिया बस डर के मारे ऐसा कह रही है।
रात होते ही, प्रिया को फिर से अलमारी से खरोंचने की भयानक आवाज़ें आने लगीं, इस बार आवाज़ इतनी तेज़ थी जैसे कोई दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश कर रहा हो। कभी उसे लगता कि कोई उसके बिस्तर के नीचे से उसे देख रहा है, उसकी साँसें सुन रहा है। वह पलक झपकते ही सो नहीं पाती थी। एक रात, प्रिया की आँख खुली तो उसने देखा कि मीना, आयशा आंटी की बेटी, कोने में बैठी उस गुड़िया को घूर रही थी। मीना की आँखें पूरी तरह सफेद हो गई थीं और वह किसी अजीब, भयानक भाषा में कुछ बोल रही थी। अचानक मीना ज़ोर से चिल्लाई और बेहोश होकर गिर पड़ी। आयशा आंटी तुरंत उसे उठाकर ले गईं, लेकिन जाते वक़्त उन्होंने प्रिया को कुछ इस तरह देखा, जैसे वह किसी अपराध की दोषी हो। उस दिन के बाद मीना और आयशा आंटी फिर कभी नहीं आईं, मानो वे अचानक कहीं गायब हो गई हों।
अब हर रात, प्रिया को अपने कमरे में और भी डरावनी आवाज़ें सुनाई देती थीं। कभी खिलौनों की शैतानी हँसी, कभी किसी के चलने की आवाज़, कभी दरवाज़ा अपने आप खुल जाता और ठंडी, बर्फीली हवा अंदर आ जाती थी। एक रात, प्रिया की आँख खुली तो उसने देखा कि कथकली गुड़िया उसके सिरहाने बैठी है, उसकी आँखें लाल अंगारों सी दहक रही थीं और वह धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थी – एक भयानक, डरावनी मुस्कान। कमरे की लाइट अपने आप जल-बुझ रही थी और दीवारों पर काले, डरावने साए नाच रहे थे, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उनके साथ एक भयानक खेल खेल रही हो। प्रिया डर के मारे चीख पड़ी, लेकिन उसकी आवाज़ उसके गले में ही घुटकर रह गई, जैसे किसी ने उसका मुँह कसकर बंद कर दिया हो।
अगली सुबह, प्रिया ने हिम्मत करके गुड़िया को कूड़ेदान में फेंक दिया, लेकिन कुछ ही देर में वह फिर से उसकी अलमारी में वापस आ गई, मानो उसे कोई अदृश्य शक्ति खींच लाई हो। प्रिया ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और गुड़िया को मिक्सर में डाल दिया। मिक्सर चलते ही एक अजीब सी, दर्दनाक चीख निकली, जैसे कोई बहुत ज़्यादा पीड़ा में चिल्ला रहा हो। कमरे में काला, दुर्गंधयुक्त धुआँ फैल गया और गुड़िया का सिर टूटकर अलग हो गया, लेकिन उसकी आँखें अब भी चमक रही थीं और उनसे गाढ़ा, लाल खून टपक रहा था। प्रिया को लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके कंधे को छू रहा है, उसकी गर्दन पर ठंडी, बर्फीली साँसें ले रहा है। वह डर के मारे बुरी तरह काँपने लगी और बेहोश होकर गिर पड़ी।
अब घर में और भी ज़्यादा डरावनी बातें होने लगी थीं। लाइटें अपने आप जलने-बुझने लगीं, रात को खिलौने खुद-ब-खुद हिलने लगे और दीवारों पर छोटे-छोटे लाल पैरों के निशान दिखने लगे, जैसे कोई लगातार उसके पीछे चल रहा हो। कभी प्रिया को लगता कि कोई उसके ठीक पीछे खड़ा है और धीरे-धीरे साँस ले रहा है, मानो उसे किसी बड़े खतरे के लिए तैयार कर रहा हो। उसकी नींद पूरी तरह उड़ गई थी, वह हर वक्त डरी-डरी रहती थी और उसे लगने लगा था कि वह पागल हो जाएगी। मम्मी-पापा भी परेशान थे, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्यों हो रहा है।
आखिरकार, प्रिया की मम्मी ने एक पंडित जी को बुलाया। पंडित जी ने घर का माहौल भाँप लिया और गंभीर होकर कहा, – “इस गुड़िया में एक बहुत ही शक्तिशाली और बुरी आत्मा का वास है, जो इस घर और प्रिया को पूरी तरह बर्बाद कर देगी। लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं, हम इसे यहाँ से भगा सकते हैं, हालाँकि यह बहुत मुश्किल होगा।” पंडित जी ने गुड़िया को एक तांबे के डिब्बे में सावधानी से बंद किया, उस पर लाल धागा बाँधा और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर उसे पास के एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ आए। पंडित जी ने कई शक्तिशाली मंत्र पढ़े और कहा, – “अब यह आत्मा कभी वापस नहीं आएगी, लेकिन तुम्हें हमेशा सावधान और निडर रहना होगा।”
उस रात, प्रिया ने सालों बाद चैन की नींद सोई, लेकिन उसे एक डरावना सपना आया। उसने देखा कि वही कथकली गुड़िया पीपल के पेड़ के नीचे से बाहर निकलकर आ रही है, उसकी आँखें लाल हैं और वह उसे मारने के लिए तेज़ी से उसकी ओर दौड़ रही है। प्रिया डर के मारे चीख पड़ी और उसकी नींद खुल गई।
अगली सुबह, प्रिया ने देखा कि उसकी अलमारी पर एक छोटा सा लाल निशान बना हुआ है, जैसे किसी ने खून से कुछ लिखा हो। प्रिया फिर से डर गई और उसने तुरंत अपनी मम्मी को बताया। मम्मी ने इस बार उसे हिम्मत दी और कहा, – “डरने की कोई बात नहीं है, हम सब मिलकर इस बुरी आत्मा से लड़ेंगे और इसे हरा देंगे।”
उस दिन से, प्रिया और उसके परिवार ने मिलकर उस बुरी आत्मा से लड़ने का फैसला किया। उन्होंने घर में नियमित रूप से पूजा-पाठ किया, शक्तिशाली मंत्र पढ़े और हर रात एक साथ सोने लगे। धीरे-धीरे, घर में डरावनी घटनाएँ कम होने लगीं और प्रिया का डर भी कम होने लगा। उसे लगने लगा कि वह सचमुच मज़बूत हो रही है।
एक रात, प्रिया ने फिर से वही सपना देखा कि कथकली गुड़िया पीपल के पेड़ के नीचे से निकलकर आ रही है, लेकिन इस बार प्रिया बिल्कुल भी डरी नहीं। उसने गुड़िया को देखा, अपनी आँखों में हिम्मत भरी और कहा, – “तुम मुझे डरा नहीं सकती, मैं तुमसे ज़्यादा मज़बूत हूँ!” उसके शब्दों में एक अजीब सी शक्ति थी।
अगली सुबह, प्रिया ने देखा कि उसकी अलमारी में बना लाल निशान पूरी तरह गायब हो गया है। उसने गहरी राहत की साँस ली और समझ गई कि उसने उस बुरी आत्मा को हमेशा के लिए हरा दिया है।
अब प्रिया के घर में सिर्फ हँसी, शांति और खुशियाँ थीं। कथकली गुड़िया हमेशा के लिए दूर चली गई थी और प्रिया ने कभी भी किसी गुड़िया से डरने की ज़रूरत नहीं समझी, क्योंकि उसे अपने भीतर के साहस पर विश्वास हो गया था।
इस कहानी से सबसे महत्वपूर्ण सीख यह है: साहस और एकता, डर और बुराई पर हमेशा विजय प्राप्त कर सकते हैं।