घनघोर अंधेरी रात थी। आसमान बादलों से घिरा हुआ था, जैसे कोई अशुभ संकेत दे रहा हो। उसी रात, आंचल अपने सुहाग की सेज पर बैठी थी, चेहरे पर शर्म और दिल में सपनों की चांदनी लिए। तभी दरवाजे की चरमराहट ने उसकी धड़कनों की रफ्तार बढ़ा दी। काली सुहागन
रमेश कमरे में आया, लेकिन उसके चेहरे पर ना प्यार था, ना अपनापन।
रमेश (रुखाई से): “सुनो, ये शादी मेरी मर्जी के बिना हुई है। मैं तुम जैसी काली औरत से कभी शादी नहीं करता, लेकिन मेरे मम्मी-पापा ने दहेज के लालच में तुम्हें चुना। ये कमरा मेरा है, तुम बगल वाले कमरे में सो जाना।”
आंचल के सपनों की चादर फट चुकी थी। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई।
जैसे ही वह सीढ़ियों के पास पहुंची, नीचे से हँसी के ठहाके सुनाई दिए। उसने झाँककर देखा—रमेश के माता-पिता बैठे थे।
ससुर (हँसते हुए): “क्या दहेज मिला है! तिजोरी भर गई, लड़की चाहे जैसी भी हो!”
सास: “इस काली कलमुंही से जल्दी छुटकारा पाना है। रमेश की दूसरी शादी किसी गोरी और अमीर लड़की से कराऊंगी।”
आंचल का दिल टूट चुका था। पिता ने दहेज देकर बेटी की खुशियाँ खरीदनी चाहीं थीं, पर बदले में उसे धोखा मिला। horror love story
वह चुपचाप कमरे में जाकर रोती रही… और सुबह उसकी सास ने ताना मारा—
सास: “अपने घर फोन कर, तुझे आज ही पगफेरे के लिए ले जाएं। तेरी मुंह दिखाई नहीं होगी, लोग मजाक उड़ाएंगे।”
आंचल के पिता उसे लेने आए। घर पहुंचकर आंचल ने किसी से बात नहीं की। वह कमरे में बंद हो गई, और…
उसने चूहे मारने की दवा पी ली।
कुछ देर बाद, उसने खुद को अपने मृत शरीर से अलग होते देखा। अब वह एक आत्मा बन चुकी थी—बिना शांति की आत्मा।
आंचल की आत्मा का बदला
आंचल की आत्मा सीधे अपने ससुराल पहुंची। रमेश और उसके माता-पिता, दहेज के जेवर और नोटों को गिनते हुए खुशियाँ मना रहे थे।
तभी कमरे में अजीब सी हवा चलने लगी, बंद खिड़कियों के बावजूद। दीवार की घड़ी गिरकर टूट गई। लाइट धीमी होने लगी।
फोन की घंटी बजी। रमेश ने सुना और उसका चेहरा पीला पड़ गया।
रमेश: “मां… आंचल के पापा का फोन था… उन्होंने कहा आंचल ने ज़हर खा लिया… वो… मर चुकी है।”
सास (बिना पछतावे के): “अच्छा हुआ खुद ही मर गई। अब रमेश की नई शादी करेंगे।”
तीनों बाहर जाने लगे, लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। कमरे में धुआं भरने लगा, खिड़कियाँ नहीं खुल रहीं थीं। पलंग पर पड़े नोटों में आग लग गई।
तभी रमेश का पैर किसी ने खींच लिया! वह गिरा और उसके सिर पर चोट आई।
और तभी—खिड़की के पास आंचल खड़ी थी, सफेद साड़ी में, बाल खुले, आंखों में आग।
आंचल (हँसते हुए): “दहेज चाहिए था ना? अब लो… मैं तुम्हारे बेटे को साथ ले जा रही हूँ।”
सास (गिड़गिड़ाते हुए): “बहु… माफ कर दे… मेरे बेटे को छोड़ दे…”
आंचल: “जो जलाया है, वो अब खुद जलेगा।”
सारा दहेज जल रहा था, और रमेश की सांसें बंद हो रही थीं। आंचल ने उसका गला दबा दिया। कुछ ही क्षणों में रमेश की मौत हो गई।
जवाबदेही और अंतहीन भय
पुलिस आई। सास-ससुर चिल्ला रहे थे—
सास: “मेरे बेटे को मेरी बहू ने मारा है!”
इंस्पेक्टर: “आपकी बहू तो सुबह ही मर चुकी थी।”
पूरे घर की तलाशी ली गई, लेकिन कोई आत्मा नहीं दिखी। बस, रमेश की जली हुई लाश मिली। bhutiya kahaniyan
आंचल का शव शमशान में था, उसके पिता उसे अंतिम विदाई दे रहे थे, आंखों में आंसुओं का समंदर लिए।
पिता: “काश, मैं इस लालच भरे रिश्ते में अपनी बेटी को न भेजता… अब किसके लिए जियूं?”
रिश्तेदार जो कल तक बधाई दे रहे थे, आज शोक में डूबे थे।
आंचल की आत्मा अब शांत नहीं थी। उसका बदला अधूरा था।
अब वह अपने अगली मंज़िल की ओर बढ़ रही थी… अपने सास-ससुर की ओर…











