काला जादू का साया

राकेश और प्रीति अपने बिस्तर पर गहरी नींद में सो रहे थे। अचानक कमरे में किसी चीज़ के गिरने की एक भयानक आवाज़ आई, जिससे प्रीति की आँखें तुरंत खुल गईं। उसने डरते हुए इधर-उधर देखा। अँधेरे में उसे दो चमकती हुई आँखें दिखाई दीं, जो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थीं। डर के मारे उसके मुँह से चीख भी नहीं निकल पाई। तभी वे काली आँखें एक काली बिल्ली के रूप में उसके सामने थीं। बिल्ली ने पास रखी ड्रेसिंग टेबल से उसकी सिंदूरदानी गिरा दी और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गई। प्रीति ने काँपते हाथों से लाइट जलाई तो देखा सिंदूर के पास कुछ उलटे पैर बने हुए थे।

प्रीति अभी भी सोच रही थी, “बिल्ली के ऐसे उल्टे पैर कैसे हो सकते हैं?” तभी अचानक राकेश की ज़ोरदार चीख से कमरा गूँज उठा। वह अपनी जगह पर बैठा हुआ था, आँखें बंद थीं और उसे साँस लेने में भारी तकलीफ़ हो रही थी। पलक झपकते ही उसके चेहरे से खून निकलने लगा, मानो किसी ने उसे बुरी तरह नोच दिया हो। यह भयावह दृश्य देखकर प्रीति सन्न रह गई। उसने घबराकर राकेश को हिलाया, “राकेश, क्या हुआ है? होश में आओ! ये चोटें कैसे लगीं?” लेकिन राकेश को कोई होश नहीं था। उसके हाथ मुड़कर बेतरतीब हो गए थे, और उसके मुँह से बस चीखें निकल रही थीं, “बचाओ… बचाओ, अरे कोई मुझे बचाओ! कोई है?”

कई साल पहले, वैलेंटाइन डे के दिन, हर कोई अपने प्यार का इज़हार कर रहा था। विशाल भी प्रीति से अपने प्यार का इज़हार करना चाहता था। उसने घुटनों पर बैठकर गुलाब के साथ प्रीति को प्रपोज़ किया, लेकिन प्रीति ने साफ इनकार कर दिया। कुछ समय बाद प्रीति की शादी राकेश से हो गई, लेकिन विशाल प्रीति को भूल नहीं पाया। एक रात, शराब के नशे में धुत विशाल प्रीति की याद में रो रहा था। “प्रीति, तुमने मेरे साथ अच्छा नहीं किया,” उसने गुस्से में कहा। “मैं तुमसे बदला लेकर रहूँगा।” उसके दोस्त ने पूछा, “बदला? कैसे लेगा?” विशाल ने कहा, “चल मेरे साथ।”

शराब के नशे में चूर दोनों दोस्त शहर के श्मशान घाट पहुँचे। वहाँ गहरे अँधेरे में बस एक जलती हुई चिता की लौ टिमटिमा रही थी। वे अँधेरे में आगे बढ़े, एक चमगादड़ उनके सिर के ऊपर से उड़ता हुआ निकल गया, जिससे सिहरन दौड़ गई। उनकी नज़रें जलती हुई चिता के पास एक अघोरी पर पड़ी, जो उसके पास बैठा तंत्र पूजा कर रहा था। चिता के चारों ओर एक चौकोर घेरा बना हुआ था। एक कटोरे में खून रखा था, पास में एक काले कपड़े की गुड़िया और एक नींबू जिसमें सुइयाँ चुभोई हुई थीं।

तांत्रिक ने भयानक मंत्रों का उच्चारण करना शुरू किया। कुछ देर बाद उसने नींबू में से सुई निकालकर उसे काले कपड़े वाली गुड़िया के हाथों में चुभाना शुरू किया। हैरानी की बात थी कि गुड़िया के हाथों से खून निकलने लगा। यह देखकर तांत्रिक के चेहरे पर एक रहस्यमयी, क्रूर मुस्कान आ गई। वह कुछ देर तक उस गुड़िया के शरीर में जगह-जगह सुई चुभोता रहा, और जहाँ-जहाँ सुई चुभती, वहाँ से खून बहना शुरू हो जाता। फिर उसने उस गुड़िया के हाथ-पैर तोड़ दिए और उसकी गर्दन मरोड़कर उसे जलती हुई चिता पर फेंक दिया।

सारी क्रिया करने के बाद जब तांत्रिक अपनी जगह से उठा, तो विशाल ने उसके पैर पकड़ लिए। तांत्रिक ने गुस्से में कहा, “दुष्ट, मेरे पैर छोड़ दे! तूने मेरे पैर क्यों पकड़ रखे हैं?” विशाल गिड़गिड़ाया, “मुझे आपकी मदद की ज़रूरत है।” तांत्रिक ने पूछा, “मदद? कैसी मदद चाहिए तुझे?” विशाल ने अपनी इच्छा बताई, “मुझे काले जादू से अपने खोए हुए प्यार को वापस पाना है।” विशाल के मुँह से ‘काले जादू’ की बात सुनकर तांत्रिक ज़ोर-ज़ोर से उपहास करने लगा, उसकी हँसी श्मशान के सन्नाटे में गूँज उठी।

तांत्रिक ने ठहाका लगाते हुए कहा, “हा हा हा… आजकल के लोगों को लगता है कि तंत्र साधना बच्चों का खेल है। मैंने इस साधना को सीखने के लिए अपनी पूरी जवानी श्मशान में बिता दी है। वैसे भी, दूसरे का बुरा सोचकर की गई तंत्र साधना हमेशा गलत नतीजा देती है। कहीं ऐसा न हो कि उसका पूरा असर तुम पर ही हो जाए?” विशाल ने अपनी जेब से ढेर सारे पैसे निकालकर तुरंत तांत्रिक को दे दिए। “यह तो सिर्फ़ नज़राना है,” विशाल ने कहा। “यदि आप हाँ कर देंगे, तो मैं आपको और कई सारे पैसे दूँगा।”

विशाल ने तांत्रिक से कहा, “मेरा काम तो आपके लिए बाएँ हाथ का है, है ना?” तांत्रिक ने गुस्से में कहा, “पैसों से मेरी विद्या का अपमान कर रहा है, मूर्ख?” यह कहते हुए उसने तुरंत अपने हाथ से विशाल के कुछ बाल उसके सिर से खींच कर तोड़ लिए। फिर कुछ तंत्र मंत्र पढ़े और पास रखे नींबू में वे बाल लपेट दिए। जैसे ही उसने बाल को नींबू पर लपेटा, नींबू पर सुई लगने लगी। उसकी चुभन का एहसास विशाल को तुरंत हुआ। वह हर बार ज़ोर से चीखते हुए तांत्रिक से माफ़ी माँग रहा था।

तांत्रिक ने क्रूरता से पूछा, “अब एहसास हुआ तंत्र विद्या क्या होती है?” विशाल दर्द से कराहते हुए बोला, “मान गया, मैं आपकी तंत्र विद्या की ताकत को अच्छे से मान गया। मुझे मेरा प्यार दिलवा दीजिए, सारी ज़िंदगी आपकी गुलामी करूँगा। यक़ीन मानिए।” विशाल की बात सुनकर तांत्रिक मुस्कुराया और बोला, “जा… जिसे तेरे रास्ते से हटाना है, उसके बाल और शरीर पर पहना हुआ कपड़ा लेकर आने वाली अमावस्या पर आजा। तेरा काम हो जाएगा।”

विशाल को राकेश को अपनी ज़िंदगी से हटाने का रास्ता तो मिल गया था, लेकिन राकेश के बाल और उसका कपड़ा कैसे हासिल करता? वह एक पब में बैठा इसी सोच में डूबा था कि उसने देखा प्रीति और राकेश दोनों उसी रेस्टोरेंट में दाखिल हुए। डिनर करने के बाद जब पेमेंट करने की बारी आई, तो राकेश का पर्स उसके पास नहीं था। किसी जेबकतरे ने उसका पर्स चुरा लिया था। होटल का मैनेजर उनकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं था। ऐसे में विशाल आगे आया और उसने उन दोनों के बिल का भुगतान कर दिया। इसी घटना से राकेश और विशाल की दोस्ती की शुरुआत हो चुकी थी।

अब दोनों अक्सर पब में बैठकर साथ शराब पीते थे। एक दिन शराब ज़्यादा हो जाने के कारण राकेश का किसी से झगड़ा हो गया। उसी हाथापाई में उसके कपड़े भी फट गए। विशाल तो इसी मौके की तलाश में था। उसने तुरंत राकेश की फटी हुई शर्ट का टुकड़ा उठाया और उसके बाल खींचकर अपनी जेब में सँभालकर रख लिए। कुछ दिनों बाद जब अमावस्या आई, तब वह सारा सामान लेकर उसी तांत्रिक के पास श्मशान में पहुँचा। तांत्रिक पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था।

आज श्मशान में कोई चिता भी नहीं जल रही थी, इसलिए तांत्रिक ने श्मशान के बीचोबीच एक हवन कुंड जलाया हुआ था। हवन कुंड के आसपास काले जादू का पूरा सामान रखा हुआ था। जैसे ही विशाल ने तांत्रिक को राकेश के बाल और कपड़े दिए, तांत्रिक ने काली गुड़िया उठाई और उस पर वह सारा सामान रख दिया। फिर उसने पूजा के ज़रिए उस गुड़िया में राकेश की आत्मा का आह्वान किया और काले जादू के ज़रिए राकेश की जान ले ली। विशाल बहुत खुश था, क्योंकि राकेश के जाने के बाद उसका खोया हुआ प्यार उसे मिल गया था।

कुछ समय बाद, विशाल और प्रीति साथ रहने लगे। एक दिन विशाल किसी काम से बाहर गया था और प्रीति घर की सफाई कर रही थी। उसी समय उसे विशाल की अलमारी में एक काले कपड़े की गुड़िया और काले जादू का सामान मिला। यह सब देखकर वह हैरान थी। उसके मन में कई सवाल थे जो वह विशाल के घर आते ही पूछने वाली थी। मगर उसके पहले ही उसकी एक सहेली अचानक से उसके घर आ गई और उसके हाथों में सारा सामान देखकर उससे कई सवाल पूछने लगी।

सहेली ने चौंककर पूछा, “ये काले जादू का सामान तुम्हारे पास कैसे? कहीं तुम कोई गलत काम तो नहीं कर रही हो?” प्रीति ने जवाब दिया, “कैसी बातें कर रही है तू? ये सब सामान विशाल का है। मैं खुद उससे सवाल पूछने वाली थी।” सहेली ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “विशाल का सामान…? कहीं राकेश की मौत में विशाल का हाथ तो नहीं?” प्रीति अविश्वास से बोली, “कैसी बातें कर रही है? क्या कहना चाहती है तू?”

सहेली ने समझाया, “तू मान या न मान, मगर मुझे यक़ीन है कि राकेश की मौत काले जादू से ही हुई है। विशाल तुझे कॉलेज के समय से चाहता था। हो न हो, उसी ने राकेश को अपने रास्ते से हटाया है।” यह सुनकर प्रीति ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, उसके आँसुओं में राकेश की याद और विशाल के धोखे का दर्द था। “मुझे तेरी मदद की ज़रूरत है,” प्रीति ने अपनी सहेली से कहा। “तू भी तो काले जादू के बारे में जानती है? मुझे राकेश की मौत का बदला लेना है।”

सहेली ने पहले उसे समझाया, “पागल मत बन। विशाल अब तेरा पति है।” लेकिन प्रीति ने दृढ़ता से कहा, “मगर राकेश मेरा पहला प्यार था।” सहेली के लाख समझाने के बावजूद जब प्रीति नहीं मानी, तो सहेली विशाल पर काला जादू करने के लिए राज़ी हो गई। अमावस्या की रात को, घर के तहखाने में दोनों ने काले कपड़े की गुड़िया की मदद से विशाल पर काला जादू किया। जिस तरह राकेश तड़प-तड़पकर मरा था, प्रीति ने ठीक उसी तरह गुड़िया को प्रताड़ित किया। मरने से पहले विशाल की सारी हड्डियाँ मुड़ चुकी थीं, हाथ-पैर बेतरतीब हो चुके थे। अंत में प्रीति ने उस गुड़िया की गर्दन मरोड़ दी, और विशाल साँस रुक जाने से मर गया। प्रीति ने फुसफुसाते हुए कहा, “बुरे काम का बुरा नतीजा।”

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