इमली का श्राप

एक बुढ़िया अपनी गोद में एक रोते हुए बच्चे को चुप कराने की कोशिश कर रही थी। पास में खड़ी एक और औरत, जिसकी आँखें बच्चे पर जमी थीं, अधीरता से इंतजार कर रही थी। बच्चा लगातार सिसकियाँ भर रहा था, उसकी छोटी मुट्ठियाँ हवा में उछल रही थीं। बुढ़िया ने एक धीमी, भयावह मुस्कान के साथ कहा, “ये ले बेटी, तेरा नया खिलौना। देख तो सही, कितना प्यारा है? जब तू पैदा हुई थी, बिल्कुल इसके जैसे ही खिलखिलाती थी। ये ले, ये तेरी गोद में जाने के लिए बेताब है। ले रख अपनी अमानत को अपने पास।” इतना कहते ही, उस बुढ़िया ने बच्चे को औरत की गोद में थमा दिया। औरत ने बच्चे को कस कर पकड़ा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। “आले आले मेरा राजा बेटा, अपनी माँ को अपना चेहरा नहीं दिखाएगा?”

प्रेम को आज फिर घर पहुँचने में देर हो गई थी। वह मन ही मन बुदबुदा रहा था, “आज तो संगीता घर में भी घुसने नहीं देगी। उसे इस हालत में अकेला छोड़कर काम पर जाने का मेरा बिल्कुल मन नहीं करता।” वह इन्हीं विचारों में खोया रास्ते से गुजर रहा था कि तभी एक पागल-सी दिखने वाली औरत, अपने हाथों में किसी की तस्वीर लिए, उसके सामने आ गई। उसकी आँखें लाल थीं और बाल बिखरे हुए थे।

औरत ने प्रेम को रास्ते में रोकते हुए पूछा, “तुमने… तुमने… तुमने इस औरत को कहीं देखा है? ये… ये मुझसे मेरा बच्चा चुराकर भाग गई है। बहुत ढूँढा इसे मगर नहीं मिलती। क्या आपने इसे कहीं देखा है?” प्रेम झुंझलाकर बोला, “कौन हो तुम और मुझे बीच रास्ते में परेशान क्यों कर रही हो? छोड़ो मुझे, मैंने ऐसी किसी औरत को नहीं देखा।” प्रेम उसे एक तरफ हटाकर आगे बढ़ने लगा, पर औरत की बातें अभी खत्म नहीं हुई थीं। उसने चीखते हुए कहा, “यह औरत… ये औरत गर्भवती औरतों को इमली खिलाती है और उनसे उनका बच्चा चुराकर ले जाती है। हाँ। हो सके तो तुम इस औरत से बचकर रहना… प्रेम।”

प्रेम ने जैसे ही अपना नाम सुना, उसके कदम थम गए। वह कुछ बोलने के लिए पीछे मुड़ा ही था कि देखा, उसके पीछे कोई नहीं था। वह पागल औरत जा चुकी थी, जैसे कभी थी ही नहीं। घर पहुँचकर, प्रेम ने अपनी पत्नी संगीता से कहा, “सोच रहा हूँ, वर्क फ्रॉम होम ले लूँ। घर पर रहूँगा तो काम भी कर लूँगा और तुम्हारी देखभाल भी हो जाएगी।” संगीता मुस्कुराई।

संगीता ने जवाब दिया, “प्रेम, तुम्हें फ़िक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। मैंने डिलीवरी तक के लिए एक आया रख ली है जो घर के साथ-साथ हमारे होने वाले बच्चे की भी देखभाल करेगी।” प्रेम ने थोड़ा चिंतित होकर कहा, “अच्छा… मगर सोच-समझकर रखना काम पर। आजकल बच्चा चोरी होने की बहुत खबरें सुनने को मिल रही हैं।” संगीता ने आश्वस्त किया, “हाँ हाँ, देख-परख कर ही रखा है उसको। कल से आएगी वो काम करने। वैसे ये सब छोड़ो… मैंने तुमको इमली लाने को कहा था ना, कहाँ है वो? आज फिर भूल गए ना?” संगीता के इमली खाने की बात ने प्रेम को उस पागल औरत की चेतावनी याद दिला दी।

प्रेम ने थोड़ा असहज होकर कहा, “पता नहीं तुमको खट्टा खाने में क्या मज़ा आता है?” अगली सुबह, संगीता ने दरवाजे पर देखा तो हैरान रह गई। “अरे विमला! तुम..? पर तुम तो 8 बजे आने वाली थी और अभी तो 7 ही बजे हैं।” विमला ने एक मीठी-सी मुस्कान के साथ कहा, “संगीता दीदी, मैंने आपके बारे में सब कुछ पता किया। अगर आज मैं जल्दी नहीं आती तो आपने पहले ही घर का काम कर लेना था और अभी तो आपको सातवाँ महीना शुरू हुआ है। आपको आराम की जरूरत है।” संगीता आराम से सोफे पर बैठे विमला को घर को चमकाते हुए देख रही थी, उसकी फुर्ती और लगन देखकर प्रभावित थी।

विमला ने जब घर का सारा काम खत्म कर लिया, तो वह संगीता के पास आई। “लीजिये दीदी जूस पीजिए, आराम आ जाएगा। और इस महीने में तो आपको थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-न-कुछ खाना चाहिए, पर आप तो ऐसे ही बैठी रहती हैं।” संगीता ने अपनी इच्छा जाहिर की, “विमला, तुझे तो पता ही है प्रेगनेंसी के इस वक्त में खट्टा खाने का बड़ा मन करता है? मैं कितने दिनों से प्रेम से कह रही हूँ, मुझे इमली खानी है पर वो लाते ही नहीं। तू लाएगी क्या मेरे लिए?” विमला की आँखों में एक अजीब सी चमक आई।

विमला ने तुरंत जवाब दिया, “दीदी, नेकी और पूछ पूछ! खट्टा तो मुझे भी बहुत पसंद है इसीलिए तो मैं हमेशा अपने पास ये इमली रखती हूँ। मेरे घर के पास तो इमली का बड़ा सा पेड़ भी है। जब मन किया मुँह खट्टा कर लिया। लीजिये, आप भी ले लीजिये।” यह कहते हुए उसने अपनी जेब से कुछ इमली निकालकर संगीता को दी। संगीता ने खुशी-खुशी इमली ली और उसे खाने लगी, इस बात से बेखबर कि यह सिर्फ कोई साधारण इमली नहीं थी।

उसी रात, संगीता दर्द से कराह उठी। “विमला… विमला, कहां है तू? मुझे दर्द हो रहा है, विमला!” संगीता के बार-बार पुकारने पर भी जब विमला नहीं आई, तो संगीता ने किसी तरह हिम्मत कर प्रेम को फ़ोन किया। उसकी आवाज़ में दर्द और घबराहट साफ झलक रही थी। “हैलो प्रेम! जल्दी आओ प्रेम, मेरी तबीयत बहुत खराब है। मुझे दर्द हो रहा है प्रेम।” प्रेम ने फ़िक्र से कहा, “संगीता, तुम चिंता मत करो। मैं तुरंत आता हूँ।”

प्रेम ऑफिस से जल्दी-जल्दी में निकला। रास्ते में उसे फिर वही पागल औरत मिली, जिसने उसे देखते ही कहा, “कहा था ना, इमली मत खाने देना उसको? चुरा लिया उसने तेरे बच्चे को भी। अब तू भी पागलों की तरह अपने बच्चे को ढूँढ… जा ढूँढ।” इतना कहकर वह औरत प्रेम के रास्ते से हट गई और प्रेम सीधा भागता हुआ घर पहुँचा। उसने देखा कि घर के कमरे के सारे दरवाजे खुले पड़े थे और संगीता बिस्तर पर ही बेहोश पड़ी थी। “संगीता, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। मैं आ गया हूँ संगीता,” प्रेम ने उसे गोद में उठाते हुए कहा और अस्पताल की ओर भागा।

अस्पताल पहुँचकर डॉक्टर ने जाँच के बाद कहा, “प्रेम, डरने की कोई बात नहीं है। संगीता बिल्कुल ठीक है। बस पेट में थोड़ी गैस हो गई थी इसलिए पेट इतना मोटा लग रहा है। कुछ टाइम के बाद सब नॉर्मल हो जाएगा।” प्रेम स्तब्ध रह गया। “डॉक्टर साहब, आप ये क्या कह रहे हैं? उसका सातवाँ महीना चल रहा है और आप कह रहे हैं कि उसका पेट गैस की वजह से मोटा दिख रहा है।” लेडी डॉक्टर ने भी हैरानी से कहा, “क्या… पेट से? अरे! नहीं नहीं, आपको शायद कोई गलतफहमी हुई है। मैंने अभी तो संगीता का अल्ट्रासाउंड किया। उसके पेट में कोई बच्चा नहीं है।”

लेडी डॉक्टर की बात सुन प्रेम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसे एक बार फिर उस पागल औरत की चेतावनी याद आई। बिना समय गंवाए, वह भागते हुए फिर से उसी सड़क पर उस पागल औरत से मिलने जा पहुँचा। “तुमने बिल्कुल सही कहा था। किसी ने मेरे बच्चे को चुरा लिया है,” प्रेम ने हाँफते हुए कहा। पागल औरत की आँखों में एक गहरी उदासी थी। “किसी ने नहीं, बल्कि… बल्कि उसने ही तुम्हारे बच्चे को चुराया है। दरअसल पिशाच के बच्चे सात महीने में ही पैदा होते हैं।”

प्रेम ने पूछा, “पर वो ये सब करती क्यों है? क्या मिलता है उसको?” पागल औरत ने एक लंबी साँस ली। “इन्हीं पिशाच की एक बेटी हुआ करती थी जिसको एक इंसान से प्यार हो गया था। दोनों ने शादी भी करी लेकिन पिशाच की बेटी कभी माँ नहीं बन पाई। इस चक्कर में उसका पति उसे रोज़ मारता, पीटता, घर से निकाल देता। जब इमली पिशाच की बेटी से ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने आत्महत्या करने की कोशिश की।”

पागल औरत ने आगे बताया, “पर उसकी माँ (इमली) ने उसे बचा लिया, पर वो पहले जैसी नहीं रही, पागल हो गई उस बच्चे के दुख में जिसने उसे कभी माँ कहकर भी नहीं पुकारा। तो इमली पिशाचिनी अपनी बेटी के लिए इन बच्चों को चुराती है।” प्रेम ने सवाल किया, “पर वो तो सिर्फ सात महीने के होते हैं फिर बच्चे कैसे ज़िंदा हो पा रहे हैं?” औरत ने समझाया, “यहीं तो इमली पिशाचिनी का जादू काम आता है। इमली पिशाचिनी को उसकी ताकत एक इमली के पेड़ से मिलती है। और वो इमली जो कोई भी गर्भवती औरत खाएगी, उसका बच्चा भी पिशाच बन जाएगा और सात महीने में ही पैदा हो जाएगा।”

पागल औरत ने आगे इशारा करते हुए कहा, “देखो वो रहा इमली का पेड़… और उसके नीचे जो वो घर है, उसमें वो दोनों रहते हैं। यहाँ से तुमको अकेले ही जाना होगा… अकेले ही जाना होगा।” प्रेम ने पूछा, “मुझे एक बात समझ नहीं आई, आप मेरी इतनी मदद क्यों कर रही हैं।” औरत ने अपनी आँखों में आँसू लिए जवाब दिया, “मैं नहीं चाहती जिस दर्द और तकलीफ से मैं गुज़र रही हूँ, उससे तुम्हारी पत्नी भी गुज़रे। और याद रखना… पिशाच पैदा होने के बाद दोबारा कोई माँ नहीं बन सकता।” इसके बाद प्रेम इमली के पेड़ के नीचे मौजूद घर की ओर निकल जाता है।

घर के अंदर, बुढ़िया पिशाचिनी अपनी बेटी को एक और बच्चा थमा रही थी। “ये ले बेटी, तेरा नया खिलौना। देख तो सही, कितना प्यारा है? जब तू पैदा हुई थी, बिलकुल इसके जैसे ही खिलखिलाती रहती थी।” औरत पिशाचिनी ने बच्चे को गोद में लेते ही कहा, “आले आले मेरा राजा बेटा, अपनी माँ को अपना चेहरा नहीं दिखाएगा।” तभी प्रेम अंदर दाखिल हुआ, उसकी आँखों में गुस्सा और बदले की आग थी। “चुपचाप से मुझे मेरा बच्चा वापस कर दे पिशाचिनी, वरना मैं तेरे साथ इमली का पेड़ भी जला दूँगा। समझी..?”

औरत पिशाचिनी ने अपनी माँ से पूछा, “माँ, कौन है ये जो मुझसे मेरा बच्चा छीनने आया है?” बुढ़िया पिशाचिनी ने हँसते हुए कहा, “मामूली सा इंसान है बेटी। तू चिंता मत कर, मैं अभी इसकी औकात बताती हूँ। लगता है तू अपनी पत्नी से बिल्कुल प्यार नहीं करता जो यहाँ मेरे पास मरने चला आया? और तेरा ये बच्चा… ये कोई आम बच्चा नहीं है बल्कि ये एक पिशाच बन चुका है, पिशाच जो मेरे एक इशारे पर तेरा ही खून पी सकता है। समझा..?” बुढ़िया पिशाचिनी के एक इशारे पर, तीन-चार छोटे पिशाच बच्चे प्रेम पर कूद पड़े और उसे काटने लगे।

प्रेम किसी तरह अपने आप को उन छोटे पिशाचों से बचाकर वहाँ से बाहर भागा। बाहर आकर उसने मिट्टी के तेल का डिब्बा उठाया और इमली के पेड़ के ऊपर छिड़काव करने लगा। बुढ़िया पिशाचिनी घर से बाहर निकली और चीखी, “ये क्या कर रहा है? मैं कहती हूँ रुक जा। खबरदार… खबरदार अगर तूने इमली के पेड़ को छूने की कोशिश भी की तो!” प्रेम ने दृढ़ता से कहा, “अब से तू और तेरे बच्चों को चुराने का धंधा सब खत्म।”

प्रेम अपनी जेब से लाइटर निकालता है और उसे जलाने ही वाला होता है कि तभी बुढ़िया पिशाचिनी अपनी काली शक्तियों से तेज हवा का झोंका प्रेम के ऊपर छोड़ती है, जिससे उसके हाथ से लाइटर गिरकर दूर चला जाता है। बुढ़िया पिशाचिनी जोर-जोर से हँसते हुए बोली, “अब क्या करेगा? हमने तो तेरी आखिरी उम्मीद के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिए।” पिशाचिनी जोर-जोर से हँस ही रही थी कि प्रेम ने सीना ताने अपने दोनों हाथों में पत्थर उठा लिए।

प्रेम ने पत्थरों को आपस में रगड़ते हुए कहा, “एक औरत के लिए माँ बनना दुनिया का सबसे बड़ा सुख है और तुमने उससे वो सुख और खुशी छीन ली। उसकी सज़ा तो तुम्हें मिलकर रहेगी।” इतना कहकर प्रेम अपने दोनों हाथों में लिए पत्थरों को आपस में रगड़ने लगा और उससे जो चिंगारी निकली, उससे वो इमली का पेड़ जलने लगा। पेड़ के जलते ही, वो दोनों पिशाचिनी, माँ और बेटी, चीखते हुए आग की लपटों में जलकर भस्म हो गईं। उनकी चीखें जंगल में दूर तक गूँजती रहीं, इमली के श्राप का अंत हो गया।

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