द्रौपदी का प्रतिशोध

गाँव वाले चंदा को जंगल के रास्ते से जाने से मना करते रहे, पर सड़क से उसे घर पहुँचने में दो घंटे से अधिक लगते, जबकि जंगल से आधे घंटे में पहुँच जाती। अपने बच्चे का चेहरा याद कर, उसने हिम्मत जुटाई और खुद को ढांढस बंधाया कि यह रास्ता रोज़ का नहीं है। उसने सोचा, “थोड़ी सी दूरी और, फिर मेरा बच्चा मेरी गोद में होगा।” वह तेज कदमों से जंगल पार करने की कोशिश कर ही रही थी कि अचानक आसमान में भीषण गर्जना के साथ बिजली चमकी। उस क्षणिक रोशनी में, चंदा को एक अनजान, खौफनाक आकृति का आभास हुआ, जैसे कोई मौत का दूत सामने खड़ा हो। इससे पहले कि वह उस आकृति का चेहरा देख पाती, अँधेरे ने जंगल को फिर से अपनी काली चादर में ढक लिया।

चंदा ने इसे अपना वहम समझकर आगे बढ़ना चाहा, तभी उसे महसूस हुआ कि किसी ने अँधेरे में उसका पल्लू खींचा। डर के मारे वह सिहर उठी। जब उसने काँपते हाथों से अपना पल्लू पकड़ा, तो पता चला कि वह किसी लकड़ी की टहनी में उलझ गया था। खुद की नादानी पर मुस्कुराते हुए उसने गहरी साँस ली, तभी एक जोरदार झटके के साथ किसी ने उसकी कमर पकड़ी और उसे जमीन पर पटक दिया। चंदा तुरंत समझ गई कि यह किसी पुरुष का हाथ था। अँधेरे में एक गंदी हँसी गूँजी, “अरे! इतनी भी क्या जल्दी है? अभी तो पूरी रात बाकी है। इतनी जल्दी घर जाकर क्या करेगी?” उसकी आवाज में छिपी हवस चंदा के रोंगटे खड़े कर रही थी।

चंदा ने गिड़गिड़ाते हुए विनती की, “हमें छोड़ दो! हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? मेरा बच्चा घर पर भूखा है, उसे दूध पिलाने वाला कोई नहीं। एक विधवा का जीवन बर्बाद करके तुम्हें क्या मिलेगा? मैं हाथ जोड़ती हूँ, मुझे जाने दो।” उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि एक और तेज बिजली चमकी। उस पल भर की रोशनी में, चंदा ने देखा कि वह अकेली नहीं थी; उसे दर्जनों अनजाने मर्दों ने घेर रखा था। वे सब हवस के भूखे भेड़ियों की तरह लग रहे थे, जो किसी हवन कुंड में अपनी कुटिल इच्छाओं की आहुति डालने को तैयार थे। यह देखकर चंदा बिलख-बिलखकर रोने लगी। उसे लगा कि आज ये दरिंदे उसे नोंच खाएँगे और वह फिर कभी अपने बच्चों का मुँह नहीं देख पाएगी।

उसी पल मौसम ने भी अपना रौद्र रूप दिखाया। मूसलाधार बारिश इतनी तेज हुई कि लगा जैसे शरीर को चीर देगी। बारिश ने चंदा की भागने की हर उम्मीद तोड़ दी थी। तभी उसे अपने बदन पर अनजाने हाथों का स्पर्श महसूस होने लगा। डर और गुस्से में चंदा चिल्लाई, “हमें छोड़ दो! वरना हम उसे बुलाएँगे, और वह तुम सबको टुकड़े-टुकड़े कर देगा!” एक बदमाश ने हँसते हुए कहा, “किसकी बात कर रही है? यहाँ तुम्हें बचाने कोई नहीं आएगा।” चंदा ने दृढ़ता से कहा, “वह आएगी… वह आएगी और तुम सबको एक झटके में मौत के घाट उतार देगी!” उसकी आँखों में एक अजीब सी उम्मीद चमक रही थी, जिसके सहारे उसने उन दरिंदों को दूर रहने को कहा। पर हवस में अंधे उन लोगों ने उसकी एक न सुनी।

एक बदमाश ने क्रूरता से कहा, “पूरा चौधरी का गैंग आया है तुम्हें चखने के लिए, और तुम डर रही हो? इसे अपनी खुशकिस्मती समझो! पूरे चालीस कोस तक हमारा डंका बजता है। अब और रात काली मत करो। चलो, आ जाओ जल्दी से।” चंदा ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह किसी का आह्वान कर रही हो। फिर अपनी पूरी शक्ति लगाकर वह चीखने लगी, “द्रौपदी! मेरी रक्षा करो! देवी द्रौपदी! मेरी रक्षा करो! ये भेड़िए मुझे भी तुम्हारी तरह बर्बाद करने की सोच रहे हैं, देवी!” उसकी आवाज जंगल में गूँज उठी, जैसे वह किसी अदृश्य शक्ति को पुकार रही हो।

चंदा की पुकार के साथ ही, मूसलाधार बारिश के बीच एक भयंकर बवंडर उठने लगा। मौजूद सभी पुरुषों को अँधेरे में एक अदम्य शक्ति अपनी ओर बढ़ती महसूस हुई। उनकी आँखें घबराहट में किसी को तलाशने लगीं, पर उन्हें अपनी मौत के काले साए के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दिया। अचानक एक बदमाश चीखा, “लगता है द्रौपदी सच में वापस आ गई है! भागो अपनी जान बचाओ! द्रौपदी वापस आ गई है!” यह सुनते ही पूरे गैंग में भगदड़ मच गई। चंदा को वहीं छोड़कर सभी अपनी जान बचाने के लिए जंगल में इधर-उधर भागने लगे। जंगल के हर कोने से डरावनी चीखें गूँजने लगीं।

तभी एक भयावह आवाज़ गूँजी, “तू अभी तक जिंदा है। मैं तुझे ही ढूँढ रही थी। मुझे बर्बाद करने के बाद भी तेरा पेट नहीं भरा जो अब इस अभागन को बर्बाद करना चाहता है? मैं तेरे भी उतने ही टुकड़े करूँगी, जितने तूने मेरे किए थे, बलवंत!” अगली बिजली की चमक में, चंदा ने देखा एक वस्त्रहीन स्त्री, भूखी शेरनी की तरह उन दरिंदों का शिकार कर रही थी। वह हवा में एक आदमी को गर्दन से पकड़े हुए थी। बादलों की गड़गड़ाहट के बीच, उस स्त्री ने अपने मुँह से निकली शक्ति से उस आदमी के चिथड़े उड़ा दिए और उसका कटा हुआ सिर चंदा के कदमों में फेंक दिया। कटा हुआ सिर देखकर चंदा काँप उठी, क्योंकि उसकी मृत आँखें अभी भी उसके शरीर को घूर रही थीं।

जिन मर्दों की हँसी सुनकर चंदा कुछ देर पहले डर से काँप रही थी, अब उन्हीं की चीखें सुनकर वह चौंक उठी। वह एक पल में समझ गई कि वह निर्वस्त्र स्त्री और कोई नहीं, बल्कि देवी द्रौपदी ही थीं। उधर, महिला इंस्पेक्टर कल्पना को चंदा का बयान पढ़कर गुस्सा आया। “क्या पागल हो गए हो क्या?” उसने अपने हवलदार से कहा। “यह किसी डायन की कहानी ले आए हो मेरे पास? इसमें लिखा है कि 22 लोगों को किसी द्रौपदी नाम की एक वस्त्रहीन डायन ने मारा है, जिसके बाल जमीन छूते हैं? यह क्या बकवास है? अगर यह रिपोर्ट जज के सामने रखी, तो वह मुझे ही अंदर डाल देगा!” कल्पना जानती थी कि 22 लोगों का कत्ल किसी एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकता, खासकर एक लड़की का तो बिल्कुल नहीं।

हालांकि, एक ही रात में 22 लोगों की इतनी बेरहमी से हत्या कोई मज़ाक नहीं था। इन अनसुलझे सवालों से जूझते हुए, कल्पना ने हवलदार को फटकारते हुए पूछा, “आखिर यह चंदा कौन है?” हवलदार ने एक 17 साल की लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा, “मैडम जी, वो ही चंदा है। विधवा है।” चंदा ने दृढ़ता से कहा, “नहीं मैडम जी, इन सबको देवी द्रौपदी ने ही मारा है। हमने उन्हें कल देखा था। वह निर्वस्त्र होकर इन राक्षसों का सर्वनाश कर रही थीं।” देवी द्रौपदी की कहानी सुनकर कल्पना परेशान हो चुकी थी। उसने झल्लाते हुए चंदा से कहा, “बस करो! सिर्फ इतना बताओ कि क्या तुमने उस औरत का चेहरा देखा था, जिसने इन 22 लोगों को मारा है? जिसकी तुम बात कर रही हो?”

कल्पना के गुस्से भरे लहजे ने चंदा को ही नहीं, उसकी गोद में खेल रहे बच्चे को भी डरा दिया। बच्चा रोने ही वाला था कि चंदा ने उसे सुनाते हुए कहा, “कल रात हमने देवी द्रौपदी का चेहरा ही देखा था, और यही सच है! अगर आपको फिर भी यकीन न हो, तो जाकर खुद ही देवी द्रौपदी को देख लो। हम गाँव वालों ने इस जंगल के बीचों-बीच देवी द्रौपदी का मंदिर बनाया है। जाओ, तुम उनके दर्शन कर आओ।” सच कहूँ तो चंदा को देखकर कल्पना दंग रह गई। एक 17 साल की विधवा लड़की की गोद में आठ महीने का बच्चा देखकर वह बेचैन हो गई। “तुम तो खुद एक बच्ची हो,” कल्पना ने पूछा, “फिर भला तुम अपने बच्चे को कैसे संभालती होगी?”

चंदा से बात करने के बाद कल्पना ने हवलदार को तुरंत मंदिर चलने का आदेश दिया। हवलदार का मुँह बन गया और वह बड़बड़ाया, “क्या पागल औरत है! अभी रात को 22 लोगों की मौत हुई है जंगल में, और अब फिर रात होने वाली है, और इसे मंदिर जाना है। अच्छा हुआ इसके पति ने इसे छोड़ दिया। ऐसी पागल औरत के साथ रहेगा भी कौन?” कल्पना ने हवलदार की बातें साफ सुनीं। उसे लगा कि उसके पापा और पति में भी ज़्यादा फर्क नहीं था; वे सब उसके बारे में यही सोचते थे। पर उसकी डीएसपी की वर्दी के सामने हवलदार की एक न चली। उसने गाड़ी को रफ्तार दी और कल्पना को मंदिर की ओर ले जाने लगा।

शाम ढल चुकी थी और अँधेरा गहराने लगा था। गाड़ी अभी कुछ ही दूर चली थी कि एक गोली की आवाज ने सब कुछ शांत कर दिया, यहाँ तक कि गाड़ी का इंजन भी। किसी ने हवलदार को गोली मार दी थी। “चलो रे! निकालो उस डीएसपी को गाड़ी से बाहर, बड़ी आई इंसाफ करने वाली!” कुछ बदमाशों ने चिल्लाते हुए कल्पना की गाड़ी को घेर लिया। उसके शरीर के हर हिस्से पर बंदूकें तनी थीं। कल्पना समझ गई कि अगर वह बाहर नहीं आती, तो वे उसे गाड़ी के अंदर ही छलनी कर देते। उनके हाव-भाव देखकर उसे यह भी समझ आ गया कि वे उसके साथ वही करना चाहते थे जो उन्होंने चंदा के साथ करने की कोशिश की थी। उसने रिवॉल्वर निकालकर धमकाते हुए कहा, “मैं कहती हूँ, दूर रहो मुझसे, वरना मैं एक-एक को भूनकर रख दूँगी!” फिर वह गाड़ी से बाहर आ गई।

पर बदमाश इतने सारे थे कि अँधेरे में कल्पना सबको देख भी नहीं पा रही थी। तभी अचानक किसी ने उसे पीछे से धक्का दिया, जिससे वह जमीन पर गिरी और उसकी रिवॉल्वर अँधेरे में कहीं खो गई। इससे पहले कि वह खुद को संभाल पाती, और लोगों ने उसे जकड़ लिया। कल्पना चीखी, “खबरदार! किसी ने मुझे छूने की कोशिश भी की तो! छोड़ो मुझे! तुम लोग डीएसपी को नहीं छोड़ते!” एक बदमाश ने हँसते हुए कहा, “मैं तो डर गया! चलो रे! नोंच फेंको इसके जिस्म से इस वर्दी को! आज तक कानून के हाथ देखे थे, आज उसका जिस्म भी देखते हैं!” वह आदमी उसे गलत तरीके से छूने लगा। कल्पना भी चंदा की तरह चीखने-चिल्लाने लगी, पर कोई मदद को नहीं आया। दरिंदों ने उसके जिस्म से वर्दी नोंच फेंकी। वह अब किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रही थी।

तभी कल्पना को चंदा की बात याद आई – अगर उसकी इज्जत पर बात आए, तो वह भी देवी द्रौपदी को ही याद करे। भले ही उसे चंदा के बयान पर यकीन न था, पर इस समय उसके पास कोई और उम्मीद नहीं थी। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और बस इतना कहा, “देवी द्रौपदी, मेरी रक्षा करो! मुझे आपकी ज़रूरत है! ये दरिंदे चंदा की तरह मेरी इज्जत को भी तार-तार करने वाले हैं, देवी द्रौपदी!” उसके इतना कहते ही, अँधेरी रात में सुनसान जंगल के बीचों-बीच तेज हवाएँ चलने लगीं। इससे पहले कि कल्पना कुछ सोच या समझ पाती, जो हाथ उसके जिस्म को नोच रहे थे, वे अब अपने शरीरों से कट चुके थे। उसे भी अँधेरे में किसी शक्ति का आभास हुआ। बहुत कोशिश करने पर भी वह बस इतना देख पाई कि एक निर्वस्त्र स्त्री उन मर्दों का संहार कर रही थी, उनके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर रही थी।

कुछ देर बाद जब कल्पना ने होश संभाला, तो देखा दूर-दूर तक जमीन पर इंसानों के टुकड़े पड़े थे। जमीन पर इतना खून बिखरा था, मानो किसी ने खून की नदियाँ बहा दी हों। इतना सारा खून और इंसानी माँस देखकर वह सहम गई। तभी अँधेरे में किसी ने उससे कहा, “डरो मत, तुम्हें परेशान करने के लिए अब कोई जिंदा नहीं बचा। अब तुम आराम से घर चली जाओ। तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।” यह आवाज़ किसी औरत की थी, या यूँ कहें कि देवी द्रौपदी की थी। कल्पना ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। इससे पहले कि देवी द्रौपदी हवा में विलीन होतीं, उसने तुरंत उनसे पूछा।

कल्पना ने पूछा, “आप कौन हैं? आप पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं है। आखिर ऐसा क्यों? क्या हुआ था आपके साथ?” कल्पना का यह सवाल सुनकर देवी द्रौपदी रोने लगीं, जिससे सारा जंगल दहल उठा। तभी देवी द्रौपदी ने केवल इतना कहा, “दीदी, मुझे पहचाना नहीं? मैं… मैं सक्कू।” इतना कहकर देवी द्रौपदी हवा में विलीन हो गईं। आखिर क्या थी देवी द्रौपदी की कहानी, जो वह निर्वस्त्र होकर लड़कियों की इज्जत की रक्षा करती थीं? और डीएसपी कल्पना का उनसे क्या संबंध था? यह जानने के लिए कहानी का अगला भाग अवश्य पढ़ें।

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