धुंध का आतंक

राठौरगढ़ के घने जंगल में फॉरेस्ट ऑफिसर कबीर का यह पहला दिन था। शाम होते-होते वह अपने ऑफिस पहुँच पाया। जैसे ही वह बाहर निकला, पश्चिम दिशा से एक घना धुंध का बादल आसमान में उड़ता दिखा, मानो पूरा जंगल जल रहा हो। यह दृश्य देखते ही कबीर बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जिप्सी में बैठकर जंगल की ओर निकल पड़ा। उसके सहयोगी भी दूसरी गाड़ी में उसके पीछे चल दिए।

कबीर तेजी से जंगल में आगे बढ़ता हुआ एक पहाड़ी के किनारे पहुँच गया। यहाँ से पश्चिम दिशा का वह जंगल साफ दिख रहा था। गौर से देखने पर कबीर ने पाया कि कहीं कोई आग नहीं लगी थी, फिर यह इतनी घनी धुंध कैसी थी? यह सवाल उसकी समझ से बाहर था। तभी उसके सहयोगी भी वहाँ पहुँचे। कबीर ने उनसे पूछा, “यह क्या माजरा है? जंगल में इतनी धुंध क्यों है?”

एक सहयोगी ने जवाब दिया, “यह आज तक कोई नहीं समझ पाया। जिसने भी इसकी तह तक जाने की कोशिश की, उसकी जान चली गई।” सहयोगी के मुँह से यह बात सुनकर कबीर आग बबूला हो उठा। इससे पहले कि वह कुछ कहता, उसने देखा कि नीचे जंगल में कुछ लोग उस धुंध की ओर बढ़ रहे थे। उनमें से एक के हाथ में मशाल थी, जो किसी पुजारी जैसा लग रहा था। उनके पीछे कुछ लोग जानवरों को बाँधे हुए ले जा रहे थे।

कबीर ने पूछा, “ये लोग जंगल से जानवर लेकर कहाँ जा रहे हैं?” अपने सहयोगी से यह कहते हुए कबीर गाड़ी की तरफ बढ़ा, तभी सहयोगी ने उसे रोकते हुए पूछा, “सर, कहाँ जा रहे हैं आप?” कबीर ने कहा, “भले तुम लोगों से कुछ नहीं हो पाया, पर अब मैं आ गया हूँ। मेरे रहते जंगल में शिकार बिलकुल भी नहीं हो सकता।”

कबीर अपनी गाड़ी में बैठने ही वाला था कि तभी उसके सहयोगी ने कहा, “सर, ये कोई शातिर शिकारी नहीं, बल्कि गाँव के सीधे-सादे लोग हैं, जो धुंध से राक्षसों को शांत करने के लिए बलि देने जा रहे हैं।” अपने सहयोगी के मुँह से राक्षस की बात सुनकर कबीर ने उसे ऐसे देखा जैसे वह कोई जाहिल इंसान हो और मनगढ़ंत कहानियाँ सुना रहा हो।

इसलिए वह अपना गुस्सा पीकर सबको साथ चलने को कहने ही वाला था कि एक और मुसीबत खड़ी हो गई। सबने कहा कि वहाँ पहुँचते-पहुँचते रात हो जाएगी और तब तक उनकी पूजा भी खत्म हो जाएगी। यह सब सुनकर कबीर ने कहा, “ठीक है, यह पहली बार है, इसलिए छोड़ रहा हूँ। आइंदा से ऐसा नहीं होना चाहिए, मुझे खबर भिजवा देना।” कबीर की यह बात सुनकर उसका सहयोगी बोला, “आप अभी जंगल में नए-नए आए हैं साहब, क्यों गाँव वालों के इन पचड़ों में पड़ रहे हैं?”

उसने आगे कहा, “अरे! वो किसी कानून को नहीं मानते। बीच में पड़े तो आपकी जान को भी खतरा है।” कबीर ने गुस्से में कहा, “अबे! तू फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का आदमी है या गाँव का?” सहयोगी ने कहा, “पहले गाँव का हूँ साहब, समझ लीजिए। हर मामले में शहरी लोग टाँग न अड़ाएँ तो ही अच्छा होगा।”

दूसरा सहयोगी बोला, “ऐ, ऐ, ऐ… तू सर से ऐसी बात क्यों कर रहा है?” पहला सहयोगी बोला, “माफ़ कीजिये सर, पर मैं सही कह रहा हूँ। सदियों से यह सब चलता आ रहा है, पर अगर आप रोकेंगे तो दिक्कत हो सकती है।” कबीर ने कड़क आवाज में कहा, “जंगल को अपने बाप का समझा है क्या इन गाँव वालों ने, जो मन में आएगा वो करेंगे? याद रखो, अब दोबारा उस ओर जाते देखा, तो तुम्हारी छुट्टी हो जाएगी। फिर घर बैठ कर मनाते रहना राक्षस को।”

इतना कहकर कबीर वापस ऑफिस चला गया। देखते ही देखते गाँव वालों के बीच उसकी सख्ती के चर्चे तेज होने लगे, क्योंकि वह दिन पर दिन जंगल से जुड़े नियम-कानून पर अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा था। साथ ही नियम तोड़ने वालों की हालत खराब कर रहा था। अब न तो गाँव वाले जंगल से लकड़ियाँ ला पा रहे थे और न ही अपने मवेशियों को जंगल में चराने जा पा रहे थे।

फिर देखते ही देखते वह दिन आ गया, जब जंगल के पश्चिम में फिर से धुंध बननी शुरू हो गई। कबीर वहीं पहाड़ी पर बैठा सिगरेट पी रहा था। तभी एक बार फिर से उसकी नजर उसी धुंध पर गई और देखते ही उसने सिगरेट को फेंका और पहाड़ी से उतरते हुए जंगल में उसी ओर बढ़ गया। जैसे-जैसे शाम अपने शबाब पर चढ़ रही थी, जंगल के उस हिस्से में धुंध तेज होती जा रही थी।

अंत में धुंध इतनी बढ़ गई कि कबीर को अपने आगे कुछ नहीं दिख रहा था। इसी चक्कर में उसकी गाड़ी जाकर एक बड़े पेड़ से टकरा गई। बढ़ती धुंध के साथ अब आसमान भी गहरा स्याह हो गया था और गाड़ी पेड़ से टकराने की वजह से कबीर भी थोड़ा चोटिल हो गया था। वह गाड़ी से उतरकर पैदल आगे बढ़ने लगा, तभी किसी ने पीछे से उसकी पीठ पर वार किया और फिर वापस से धुंध में गायब हो गया।

कबीर ने गुस्से में कहा, “कौन था ये? सामने आओ, कायरों की तरह पीठ पर क्या वार करते हो?” कबीर ने इतना कहा ही था कि तभी जंगल की तरफ से घोड़ों के हिनहिनाने की डरावनी आवाजें आने लगीं। ऐसा लगा जैसे कि वे उसकी तरफ ही बढ़ रहे हों, पर आवाजें इस तरह से चारों ओर से आ रही थीं कि कबीर के लिए तय कर पाना मुश्किल था कि खतरा किस दिशा से उसके पास आ रहा है।

तभी उसे सामने धुंध में कुछ चमकता हुआ अपने पास नजर आया। डर के मारे अब कबीर के भी पसीने छूटने लगे थे, फिर भी अपनी हिम्मत बाँधकर कबीर ने कहा, “अरे! कौन है, बताता क्यों नहीं? साफ-साफ बताओ, वरना मैं गोली चला दूँगा।” कबीर ने इतना कहा ही था कि उसे धुंध में एक मशाल दिखी, जिस पर किसी ने क्या फेंका, पता नहीं?

लेकिन मशाल से आग टकराते ही चारों तरफ एक चिंगारी फैल गई। तभी कबीर की नजर मशाल के पीछे खड़े एक इंसान पर गई, जो शायद वही पुजारी था जिसे उसने कभी पहाड़ी के ऊपर से देखा था। पर तब कबीर ने यह नहीं सोचा था कि जब वह सामने आएगा, तो उसे देख उसकी रूह काँप जाएगी। क्योंकि वह पुजारी था ही ऐसा कि उसे अगर कोई देख ले, तो मौत आ जाए। उसकी एक आँख तो ऐसे बंद थी जैसे मानो किसी ने सुई-धागे से सिल रखी हो।

कबीर ने जैसे-तैसे हिम्मत कर उससे कहा, “ये तुम्हीं थे जिसने मुझ पर वार किया? और एक सरकारी अफसर पर हाथ उठाने का मतलब भी जानते हो तुम? अच्छा, पोचिंग… इसलिए मारना चाहते हो तुम मुझे।” पुजारी ने जवाब दिया, “मैंने बचाया है तुम्हें, नहीं तो मारे जाते तुम उस धुंध राक्षस के हाथों। अब रास्ते से हट जाओ, नहीं तो बलि में देरी हुई तो हम सब मारे जाएँगे।”

कबीर ने कहा, “पागल समझा है क्या? गाँव वालों को राक्षस के नाम पर बेवकूफ बना सकते हो, मुझे नहीं। चलो, जानवर को छोड़ो और चलते बनो, नहीं तो यहीं पर पाँचों को ठोंक दूँगा।” पुजारी लगातार कबीर को समझाने की कोशिश कर रहा था कि यह बलि कितनी जरूरी है, पर उसने उसकी एक नहीं सुनी और अपने बंदूक के दम पर जानवरों को आजाद करवाकर उन सभी को वापस जाने को कह दिया।

लेकिन इससे पहले कि कोई कुछ करता, कहीं से जोर से चीखने की आवाज आई और अगले ही पल वो पाँचों आदमी औंधे मुँह जमीन पर गिर पड़े और खींचे-खींचे जंगल के अंदर जाने लगे। मगर कबीर सही सलामत खड़ा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर वो गिरे कैसे और अपने आप कैसे खींचे जा रहे हैं। इसीलिए वह भी उनके पीछे दौड़ जाता है ताकि सच का पता लगा सके।

भागते-भागते वह धुंध के उस पार एक काँट के घर के पास आ पहुँचा। जहाँ वे चार आदमी तो नहीं दिखे, मगर वह पुजारी अपनी शक्तियों से एक विशाल धुंध के साए से लड़ता हुआ दिखाई दिया। तभी कबीर आनन-फानन में उस धुंध के राक्षस पर गोली चलाकर अंदर चला गया। कबीर ने पूछा, “क्या हो रहा है ये और बाकी चार कहाँ गए?”

पुजारी ने कहा, “ले गया वो राक्षस उन्हें।” कबीर ने फिर पूछा, “आप साफ-साफ बताएँगे कि हो क्या रहा है?” कबीर के पूछते ही घर के अंदर से उन चारों की चीख गूँजने लगी और बादल गरजने लगे। एक बार फिर चारों तरफ से घोड़े के पास आने की डरावनी आवाज आने लगी और पुजारी काँपते हुए कहता है, “अब हम में से कोई नहीं बचेगा, उसका बदला आज पूरा हो जाएगा।”

और उसी के साथ उसने कबीर को बरसों पुरानी कहानी बतानी शुरू कर दी। इस गाँव में बाहर से एक व्यापारी बसने आया था, लेकिन उसकी तरक्की देख गाँव का जमींदार उससे जलने लगा और उसकी संपत्ति को हड़पकर उसे गाँव से भगा दिया। बाहर का होने के कारण वह कुछ नहीं कर पाया और अपनी छुपाई गई संपत्ति को लेकर वह अपने परिवार और घोड़े के साथ छुपकर जंगल में रहने लगा।

लेकिन जब यह बात जमींदार को पता चली, तो वह वहाँ भी उस पर टूट पड़ा और अपने चारों बेटों के साथ में लूटपाट मचा दी। इस बार वे यहीं नहीं रुके। संपत्ति लूटने के साथ उसने उनके घर की इज्जत भी लूटी और फिर इन सबको मार दिया। जमींदार इतना खूँखार था कि उसने घोड़े को भी जान से मार दिया और पूरे घर में आग लगा दी।

फिर कब उस आग के धुएँ ने एक राक्षस का रूप ले लिया, यह किसी को पता नहीं चला। जमींदार उन लूटी हुई संपत्ति से और अमीर हो गया, लेकिन उसे पता था कि उसने उस धन को कैसे पाया है। किसी तरह की अनहोनी न हो, इसीलिए उसने शांति हवन कराने के लिए पुजारी को बुलाया। लेकिन किसी वजह से पुजारी को देरी हो गई और इससे पहले कि पुजारी वहाँ पहुँचता,

व्यापारी के परिवार की आत्मा ने धुंध का रूप ले जमींदार की हवेली पर कहर बन बरस गया और सभी जिंदा लाश बन हवा में तैरने लगे। बदले की आग में झुलस रही आत्माओं ने घर और बच्चों को भी नहीं छोड़ा। सभी को हवा में लटकाए मौत का इंतजार करवा रहे थे, क्योंकि उन्हें बदला लेना था। सबसे पहले जमींदार से, जिसकी हालत राक्षस ने ऐसी कर दी थी कि वह खून की उल्टियाँ करते-करते मर गया।

तभी पुजारी भी वहाँ पहुँचा। उसे पूरा मामला नहीं पता था। इसीलिए उसने सबसे पहले उन्हें बचाने की सोची और अपने तंत्र-मंत्र के सहारे सभी आत्माओं से अकेले लड़ने लगा। इसी सबके बीच उसे अपना चेहरा खोना पड़ा, क्योंकि धुंध के राक्षस को शांत करना इतना भी आसान नहीं था। पुजारी जमींदार को तो नहीं बचा पाया, पर उनके बेटे को बचाने का उपाय बताया, जो बलि के रूप में था।

और अब यह बलि पुजारी के लिए भी जरूरी थी, क्योंकि उसने भी उन्हें बचाने में उनकी मदद की थी। लेकिन कबीर की वजह से इस बार वह बलि अधूरी रह गई और वे चारों धुंध के राक्षस के शिकार हो गए। पूरी कहानी जानने के बाद कबीर कहता है, “अपने कर्मों की सजा मिली उन्हें, पर तुम्हारा क्या होगा पुजारी?” पुजारी ने कहा, “वही… जो इन चारों का हुआ।”

कबीर ने जैसे ही सब होते देखा, वह उल्टे पाँव वहाँ से भाग निकला बिना पीछे देखे। लेकिन तभी एक पत्थर से उसका पाँव टकराया और वह गिर पड़ा, जिसके बाद उसकी आँखें बंद हो गईं। और जब खुलीं, तो वहाँ कोई धुंध नहीं थी। साथ ही सुबह भी हो चुकी थी। और जानवर उसी के आजू-बाजू में थे, जिसे उसने आजाद करवाया था।

शायद इसलिए ताकि बेहोशी के वक्त कोई और जानवर कबीर पर हमला न करे। कबीर खुद को जिंदा पाकर यह सब समझ गया और उन जानवरों को प्यार करने लगा। साथ ही यह भी समझ गया कि उस धुंध के राक्षस ने उसे इसीलिए नहीं मारा, क्योंकि उसने बलि को रोक उन्हें अपना बदला लेने में मदद की थी।

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