रात के दो बजे थे, श्मशान घाट पर सन्नाटा पसरा था, जिसे चीरती हुई हवा भयानक शोर कर रही थी। कुछ देर पहले जली एक चिता की राख से अब भी धुआँ उठ रहा था, और हवा के हर झोंके के साथ राख चिंगारियाँ छोड़ रही थी। झिंगुरों की कर्कश आवाजें और कुत्तों का डरावना रोना मिलकर एक ऐसा माहौल बना रहे थे, जो किसी भी राहगीर की रूह कंपा दे।
ऐसे डरावने दृश्य के बीच, एक काली साड़ी पहने औरत एक पेड़ के नीचे बैठी थी। उसने अपने चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बनाया हुआ था और बड़ी एकाग्रता से काले कपड़े की एक गुड़िया बना रही थी। पास ही एक पुरुष उसकी मदद कर रहा था, जो शायद इस अनुष्ठान का जानकार था। पुरुष ने फुसफुसाते हुए कहा, “गुड़िया तैयार है। अब तुम मंत्र जाप शुरू करो।”
औरत ने अपनी आँखें बंद कीं और एक गहरा, डरावना मंत्र जपना शुरू किया: “ओम क्रीम चामुंडाय शमशान भैरवी मदद करू करू स्वाहा।” मंत्र के हर उच्चारण के साथ वह गुड़िया पर सूखे फूल फेंक रही थी। पुरुष उसे लगातार निर्देश दे रहा था, उसकी हर क्रिया पर नज़र रखे हुए था। जब अनुष्ठान पूरा हुआ, तो पुरुष ने कहा, “आज की पूजा संपन्न हुई। कल इसी समय आना।” इन शब्दों के साथ, वह औरत इतनी तेज़ी से गायब हुई, मानो अमावस्या की रात में चाँद अचानक ओझल हो जाए, कोई निशान छोड़े बिना।
राठौर मेंशन में सुबह से ही गहमा-गहमी थी। प्रणीति की शादी के उत्सवों की शुरुआत हो चुकी थी। मेहमानों की आवाजाही लगी थी और सुनीता जी उनके नाश्ते-पानी की व्यवस्था में व्यस्त थीं। राजेश जी ने सुनीता को आवाज दी, “सुनीता, कहाँ हो? कब से तुम्हें ढूँढ रहा हूँ!” सुनीता भागती हुई आईं, “क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे थे?”
राजेश जी ने जल्दी से पूछा, “बाहर गार्डन में डीजे, लाइट्स और सारे इंतजाम पूरे हो गए हैं ना? और लाडो कहाँ है? मेहमान हल्दी के कार्यक्रम का इंतजार कर रहे हैं।” तभी प्रणीति वहाँ आ गई, पीली साड़ी में बेहद खूबसूरत लग रही थी। सुनीता जी ने उसे प्यार से गले लगाया, “मेरी बेटी कितनी प्यारी लग रही है! किसी की नज़र न लगे!” खुशी और उत्साह का माहौल था, मगर यह क्षणिक था।
हल्दी का कार्यक्रम शुरू हुआ। सब मेहमान हँसी-मज़ाक कर रहे थे। तभी एक अजीब घटना हुई। जब प्रणीति को हल्दी लगाई गई, तो वह अचानक काली पड़ गई। सुनीता जी ने हैरान होकर कहा, “राधिका, यह क्या हुआ? मैंने तुम्हें खास कहा था कि ऑर्गेनिक हल्दी मंगवाना! तुम्हारा ध्यान कहाँ रहता है?” राधिका, जो सुनीता जी की देवरानी थी और शादी की तैयारियों में मदद कर रही थी, इस आरोप से थोड़ी नाराज़ हुई।
राधिका ने जवाब दिया, “भाभी, मैंने ध्यान दिया था। हल्दी ऑर्गेनिक ही है, यह देखिए पैकेट।” मगर हल्दी का काला पड़ जाना सबके लिए चिंता का विषय था। सुनीता ने प्रणीति से कहा, “तुरंत जाकर मुँह धोकर आओ।” राधिका, सबके सामने डाँट खाने से खामोश हो गई, लेकिन उसके मन में एक कड़वाहट गहरी होती जा रही थी। राजेश जी ने माहौल हल्का करने की कोशिश की, “डोंट पैनिक। कभी-कभी ऐसा हो जाता है। बाकी का फंक्शन एंजॉय करो।”
राजेश जी ने भले ही कहा था कि सब ‘एंजॉय’ करें, पर उन्हें खुद नहीं पता था कि अब कोई भी फंक्शन आनंदमय नहीं रहेगा। उस रात, अँधेरे श्मशान में, वही औरत दोबारा बैठी अपनी डरावनी पूजा जारी रख रही थी, जिसका लक्ष्य प्रणीति की खुशियों को निगलना था।
अगली सुबह, शादी के लिए सभी लोग मैरिज हॉल जाने वाले थे। अचानक तेज़ हवा चलने लगी, खिड़की-दरवाज़े ज़ोर से हिलने लगे। जैसे ही प्रणीति घर से बाहर निकली, दरवाज़े पर बँधा हुआ तोरण ज़मीन पर गिर पड़ा। सुनीता जी का दिल सहम गया। राजेश जी ने उनका हाथ थामकर आगे बढ़ने को कहा, पर सबके चेहरों पर एक अनजाना डर साफ़ दिख रहा था।
बारात मैरिज हॉल पहुँच चुकी थी। प्रणीति अपने कमरे में तैयार हो रही थी। तभी उसकी चाची राधिका कमरे में आईं। प्रणीति ने खुशी से कहा, “अरे चाची जी! आप यहाँ?” राधिका का चेहरा गंभीर था, उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी कड़वाहट थी। “बेटा, आज तेरी शादी हो जाएगी। मैं तेरे लिए बहुत खुश हूँ। बचपन से आज तक तुझे हर वो चीज़ मिली जो तूने चाही। मगर मेरी बेटी हर चीज़ के लिए तरसती रही।”
प्रणीति हैरान थी, “चाची जी, ये आप क्या कह रही हैं? इस समय ये सारी बातें?” राधिका ने एक भयानक हँसी हँसते हुए कहा, “बेटा, जब इंसान का अंतिम समय आता है ना, तो उसे सारी सच्चाई बता देनी चाहिए। और अब तुम्हारा अंतिम समय आ चुका है, तुम्हें सब कुछ जानना होगा।” प्रणीति कुछ समझ पाती, इससे पहले कि वह चीखकर अपने माता-पिता को बुला पाती, राधिका ने उसका मुँह दबाकर उसे पलंग पर धकेल दिया।
राधिका की आँखें शैतानी चमक से भरी थीं। उसने प्रणीति की गर्दन पर चाकू अड़ा दिया और फुसफुसाई, “मुँह बंद कर, आवाज़ नहीं आनी चाहिए।” फिर एक खौफनाक मुस्कान के साथ बोली, “तुझे क्या लगा मैं तुझे इतनी आसानी से मार दूँगी? नहीं। तू मरेगी, मगर तड़प-तड़प कर। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुझे मैंने मारा है। देखना चाहेगी कैसे?”
राधिका ने अपने हाथ में एक छोटी, काली गुड़िया ली और उसका पैर मोड़ दिया। दर्द से प्रणीति का शरीर काँप उठा, हालाँकि गुड़िया का पैर मुड़ा था, पीड़ा प्रणीति को हुई थी। राधिका ने क्रूरता से कहा, “क्या हुआ? दर्द हो रहा है? ऐसा ही दर्द मेरे सीने में भी होता है जब मैं तुम लोगों को खुश देखती हूँ।” प्रणीति ने हिम्मत जुटाकर राधिका को धक्का दिया और कमरे से बाहर निकलने की कोशिश की।
“प्रणीति, रुक जा!” राधिका ने चीखते हुए कहा, “अगर तूने एक भी कदम इस कमरे से बाहर निकाला, तो तुझे पता है यह दूसरी गुड़िया कौन है? यह गुड़िया तुम्हारा होने वाला पति, साहिल है। देखना चाहेगी तो देख।” यह कहते हुए उसने उस गुड़िया का हाथ मोड़ा। बाहर घोड़ी पर बैठे साहिल दर्द से कराह उठा, उसका हाथ भी अचानक मुड़ गया। प्रणीति की आँखों में आँसू आ गए, उसने चीखकर कहा, “छोड़ दीजिए चाची जी! उसे छोड़ दीजिए! क्या चाहती हैं आप?”
राधिका की आवाज़ में जीत की धार थी, “बस इतना ही कि तेरी जगह आज मेरी गुड्डो दुल्हन बने। और तू उसके रास्ते से हमेशा-हमेशा के लिए हट जाए।” कहते हुए उसने प्रणीति पर सम्मोहन किया और उसे छत पर बनी पानी की टंकी में जाकर छिप जाने का आदेश दिया। सम्मोहित प्रणीति बिना किसी सवाल के छत की टंकी में जाकर छिप गई।
बारात का स्वागत हुआ, और कुछ देर बाद फेरों की तैयारियाँ शुरू हो गईं। पंडित जी ने कहा, “शादी का मुहूर्त नज़दीक आ चुका है। दूल्हे को पूजा पर बिठाइए और दुल्हन को बुलवाइए।” राजेश जी ने साहिल को मंडप में बिठाया और सुनीता जी प्रणीति को लेने गईं।
अगले ही पल, अच्छा-भला मौसम अचानक खराब होने लगा। ज़ोरदार हवाएँ चलने लगीं, मंडप टूटकर गिर गया और बारिश के कारण हवन कुंड की अग्नि बुझ गई। राजेश जी घबराकर बोले, “अरे! यह क्या हुआ? यह तो घोर अपशगुन है!” वे पंडित जी से इस अपशगुन का उपाय पूछ ही रहे थे कि सुनीता जी बदहवास होकर वहाँ आईं।
सुनीता जी ने चीखते हुए कहा, “राजेश, गज़ब हो गया! प्रणीति कहीं नहीं मिल रही है!” राजेश जी अवाक रह गए, “यह क्या कह रही हो? वो कहीं नहीं मिल रही है? ऐसा कैसे हो सकता है? ढूँढो उसे!” तभी राधिका वहाँ आई, उनके परेशान चेहरों को देखकर एक कुटिल मुस्कान के साथ बोली, “भाई साहब, आप प्रणीति को ढूँढ रहे हैं? मुझे तो लगता है, प्रणीति इस मंडप को ही छोड़कर भाग गई। उसे शादी ही नहीं करनी होगी।”
राजेश जी गुस्से में बोले, “मेहमानों के सामने ये क्या बकवास कर रही हो? उसे शादी नहीं करनी होती तो वो मुझे पहले ही मना कर देती। इस तरह घर छोड़कर कभी नहीं जाती।” राधिका ने पलटवार किया, “तो फिर अब आप ही बताओ कि वो कहाँ चली गई? आप लोगों को तो मेरी कही हर बात बुरी लगती है, मगर आप लोगों ने तो अपनी बेटी को इतनी छूट दे रखी है कि जिसका नतीजा देख ही लिया आप लोगों ने। दोनों परिवारों की कितनी बदनामी होगी। मैं सही कह रही हूँ ना भाई साहब?”
राधिका ने प्रणीति के ससुर की ओर मुड़कर बात की। वे भी हैरान थे और अपने परिवार की इज़्ज़त की चिंता में डूबे थे। “आप ठीक कह रही हैं। यदि बिना दुल्हन के हम लोग घर पहुँचे तो हमारी कितनी बदनामी होगी?” राजेश जी पहले से ही परेशान थे, अब उनकी बात सुनकर और भी विचलित हो गए, “भाई साहब, मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ, मगर मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि प्रणीति इस तरह कहाँ चली गई? अब बताइए मैं क्या कर सकता हूँ?”
राधिका ने अपने शातिर मनसूबे को आगे बढ़ाते हुए कहा, “दोनों परिवारों को बदनामी से बचाने का एक ही उपाय है: प्रणीति की जगह गुड्डो को दुल्हन बना दिया जाए।” राधिका की बात सुनकर सब लोग सकते में आ गए। राजेश जी गुस्से से लाल हो गए, “यह कोई सब्ज़ी मंडी है क्या कि एक सब्ज़ी नहीं मिली तो दूसरी ले आओ? ऐसा कैसे हो सकता है? साहिल खुद इसके लिए तैयार नहीं होगा। क्यों साहिल, मैं सच कह रहा हूँ ना? अब यह शादी नहीं हो सकती।”
मगर राधिका के पास साहिल की वुडू गुड़िया थी। उसने उस पर काला जादू करके साहिल को सम्मोहित किया और उससे शादी के लिए हाँ करवा ली। प्रणीति की जगह उसकी चचेरी बहन गुड्डो की शादी साहिल से होने लगी। साहिल की आँखों में एक अजीब सूनापन था, जैसे वह कोई मशीन हो।
उस शादी में आए पंडित जी काले जादू के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी रखते थे। पहले शादी में आई अड़चन, फिर दुल्हन की अदला-बदली, उन्हें दाल में कुछ काला नज़र आने लगा। उन्होंने कुछ मंत्र पढ़ते हुए जैसे ही साहिल के हाथ में रक्षासूत्र बाँधा, उसका सम्मोहन टूट गया और वह हैरान था कि उसकी शादी गुड्डो से क्यों हो रही है।
सब लोग परेशान हो गए, क्योंकि साहिल ने खुद गुड्डो से शादी करने के लिए हाँ की थी, और अब उसे क्या हो गया था। पंडित जी ने कहा, “आप लोग साहिल की बात सुनकर परेशान न हों। किसी ने इसके ऊपर काला जादू किया था, इसीलिए वह शादी करने के लिए मान गया था। मगर हमने उस काले जादू को तोड़ दिया है।” पंडित जी की बातें सुनकर राधिका गुस्से से लाल हो गई।
राधिका ज़ोर से चीखते हुए बोली, “आपको क्या लगता है? आपने साहिल को बचा लिया? नहीं! आपको नहीं पता! साहिल और प्रणीति दोनों की जान खतरे में है! अगर यह शादी रुकी तो दोनों अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे! समझ गए ना आप लोग? साहिल, अगर तुम चाहते हो कि प्रणीति ज़िंदा रहे तो यह शादी कर लो!” सुनीता ने घबराकर पूछा, “राधिका, तुम यह क्या कह रही हो? प्रणीति कहाँ है?”
राधिका की आँखों में हैवानियत नाच रही थी। उसने अपने हाथों से छत की ओर इशारा किया। छत की मुंडेर पर प्रणीति खड़ी हुई थी, बेजान सी। वह किसी भी वक़्त वहाँ से छलांग लगा देती। राधिका ने क्रूरता से कहा, “आप यह शादी होने दे रही हैं या मैं प्रणीति से कहूँ कि वह छत से कूद जाए?” सुनीता जी की रूह काँप गई, “राधिका, तुम यह क्या कह रही हो? प्रणीति छत से कूद जाए? तुम ऐसा नहीं कर सकती!”
“तो हो जाने दीजिए यह शादी, वरना…” राधिका ने धमकी दी और अपनी वुडू गुड़िया निकाली। तभी उसकी बेटी गुड्डो, जो अब तक चुपचाप सब सुन रही थी, तुरंत उठकर अपनी माँ के हाथों से वह गुड़िया छीन ली और उसे हवन कुंड की बची हुई चिंगारियों में फेंक दिया। गुड्डो ने हिम्मत से कहा, “माँ, आप इस तरह मेरी शादी जबरन नहीं कर सकतीं! आपको कोई हक़ नहीं है कि आप प्रणीति दीदी और जीजा जी को परेशान करो!”
राधिका ने गुस्से में कहा, “मैं तो यह तेरे भले के लिए कर रही थी, मगर…” राधिका कुछ और बोल पाती, इससे पहले ही उसके कपड़ों में आग लग गई थी। गुड़िया के साथ-साथ वह भी जलने लगी। उसका किया हुआ काला जादू उसी पर लौट आया और उसे राख में बदल दिया। इस भयानक अंत के बाद, प्रणीति और साहिल की शादी धूमधाम से हुई, और उनके जीवन से बुराई का साया हमेशा के लिए हट गया।











