एक अँधेरे, वीरान कमरे में मिस्टर सिंघानिया को हवा में बाँधा गया था। उनके नीचे उबलती मोम का एक बड़ा टब था, जिसकी तीखी भाप से उनका जिस्म झुलस रहा था। उनके शरीर पर कई जगह गहरे घाव थे, जिनसे टपकता खून मोम को लाल कर रहा था। सिंघानिया दर्द से चीख रहे थे, पर उनकी आवाज़ सुनने वाला कोई न था। जब दर्द असहनीय हो गया और वे बेहोश होने लगे, तभी एक नकाबपोश शख्स कमरे में दाखिल हुआ। उसने सिंघानिया को देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “तो मिस्टर सिंघानिया, कैसे हैं आप? मुझे उम्मीद है कि मैंने आपको ज़्यादा तकलीफ़ नहीं दी होगी। भला मौत से अच्छी शांति किसको मिली है आज तक?”
सिंघानिया ने हिम्मत बटोरते हुए कहा, “तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि मैं कितना ख़तरनाक आदमी हूँ? अगर मैं ज़िंदा बच गया, तो तुम सोच भी नहीं सकते मैं तुम्हारा क्या हाल करूँगा!” नकाबपोश ने सिगरेट जलाई और फिर एक मोमबत्ती जलाकर उस रस्सी के नीचे रख दी जिससे सिंघानिया लटके हुए थे। जैसे-जैसे रस्सी जलती गई, सिंघानिया धीरे-धीरे नीचे आने लगे। उन्होंने दर्द भरी आवाज़ में पूछा, “नहीं, ऐसा मत करो। आख़िर मेरी गलती क्या है? मैंने तुम्हारा…” सिंघानिया अपनी बात पूरी कर पाते, उससे पहले ही रस्सी पूरी तरह जल गई और वे सीधे खौलती मोम में जा गिरे। उनकी अंतिम चीख भी कमरे की दीवारों में गुम हो गई।
कुछ समय बाद, सब-इंस्पेक्टर अतुल एक पुरानी हवेली में पहुंचा, जहाँ उसकी मुलाकात चौकीदार बंशी से हुई। बंशी ने अतुल को एक अजीबोगरीब पेंटिंग दिखाते हुए कहा, “साहब, यह बड़ी मनहूस पेंटिंग है। जो कोई भी इसे खरीदने की सोचता है, वह रहस्यमयी तरीके से गायब हो जाता है। तीन लोगों का तो हमें पता है, वे एक दिन आए, पेंटिंग देखी, और अगले दिन ग़ायब हो गए। फिर कभी नहीं दिखे, न यहाँ, न दुनिया में।” अतुल ने पेंटिंग को गौर से देखा। उसमें एक गर्भवती महिला थी, जिसके एक हाथ में गुलाब और चाकू था। चाकू से निकलता खून एक बच्चे के दूध के प्याले में गिर रहा था, और दूसरे हाथ में एक मोमबत्ती थी।
अतुल ने पेंटिंग की बारीकियों को सराहते हुए कहा, “बनाने वाले ने क्या बनाया है! इसे एक बार देख लो तो नज़रें चुराना भी पाप सा लगता है। ऐसा सुकून, वो भी इतने दर्द में… कोई कैसे बर्दाश्त कर पाया होगा?” बंशी ने कहा कि उसे इसमें कुछ ख़ास नहीं दिखता, बस एक गर्भवती लड़की है जिसके हाथ से खून एक प्याले में गिर रहा है। अतुल ने बंशी को फटकारते हुए कहा कि इसी वजह से वह चौकीदार है और अतुल सब-इंस्पेक्टर। अतुल ने उसे पेंटिंग पैक करने को कहा, क्योंकि उसे यह मिस्टर कपूर तक पहुँचानी थी। बंशी ने पैकिंग की व्यवस्था की और अतुल को चाय के लिए अपने कमरे में ले गया।
चाय पीने और कुछ बातें करने के बाद, अतुल पेंटिंग लेकर अपनी मंज़िल की ओर चल दिया। उसकी पुलिस जीप सुनसान रास्ते पर तेज़ रफ्तार से दौड़ रही थी, जहाँ सिर्फ खेत ही खेत थे। शाम ढल रही थी, और जुगनू धान की बालियों पर मंडरा रहे थे। अतुल गुनगुनाते हुए जा रहा था कि तभी उसे ज़ोर से ब्रेक लगानी पड़ी। रास्ते में एक बड़ा पेड़ गिरा पड़ा था। अतुल ने सोचा कि यह कोई साज़िश हो सकती है। वह सतर्क होकर पिस्तौल निकालकर जीप से बाहर निकला और धीमी कदमों से आगे बढ़ा, तभी पीछे से किसी ने उसके सिर पर हमला किया, और वह वहीं बेहोश हो गया।
जब अतुल की आँख खुली, तो उसे किसी की चीख सुनाई दी। उसके सिर में अभी भी चोट का दर्द गूंज रहा था। होश संभालने पर उसने देखा कि उसके सामने मिस्टर कपूर हवा में बंधे हुए हैं, और उनके नीचे उबलती मोम का एक बड़ा बर्तन है। भाप से मिस्टर कपूर का शरीर झुलस रहा था। मिस्टर कपूर, जिनकी चीखें अतुल ने सुनी थीं, चिल्ला रहे थे, “कौन हो तुम और मुझे इस तरह क्यों बाँध रखा है? मैं तुमसे बात कर रहा हूँ! मुझे दर्द हो रहा है! तुम सुन क्यों नहीं रहे हो?” मिस्टर कपूर की आवाज़ सुनते ही अतुल ने उन्हें पहचान लिया। वह वही मिस्टर कपूर थे जिनके पास अतुल को पेंटिंग पहुँचानी थी।
मिस्टर कपूर की नज़रें अतुल पर नहीं, बल्कि कमरे के कोने में रखी पेंटिंग पर टिकी थीं। अतुल ने उनकी नज़रों का पीछा किया और देखा कि एक नकाबपोश शख्स पेंटिंग को देख रो रहा था। अतुल ने मौके से निकलने की कोशिश की, पर तभी उसे अपने पास कुछ गीला महसूस हुआ। उसने इसे नज़रअंदाज़ कर उठने की कोशिश की, पर एक ज़ोरदार चीख के साथ वह वापस अपनी जगह बैठ गया। यह दर्द की चीख थी, किसी ने उसकी किडनी में चाकू घुसा रखा था। नकाबपोश आदमी अतुल की ओर आहिस्ता कदमों से बढ़ा। उसने अतुल के घाव को देखते हुए कहा, “अरे! मुझे तो लगा था कि तुम होश में आते ही बोलोगे, पर तुम तो चीखने लगे।”
नकाबपोश ने आगे कहा, “ख़ामख़ां तुम इसका हिस्सा बन गए। पुलिसवालों की ज़िंदगी ऐसी होती है—कभी दलाल, कभी चौकीदार, तो कभी पोस्टमैन। बस पुलिस का काम छोड़कर तुम सब करते हो।” नकाबपोश की बात सुनकर अतुल का माथा ठनक गया। उसने सोचते हुए कहा, “बंशी… तू है इस नकाब के पीछे?” बंशी का नाम सुनते ही नकाबपोश ने अतुल की किडनी में धंसे चाकू को आहिस्ते से और अंदर धंसाते हुए कहा, “बंशी नहीं, आर्टिस्ट सत्या… महान चित्रकार सत्या!” सत्या अपने दांत भींचते हुए चाकू को और गहरा कर रहा था, जिससे अतुल को असहनीय दर्द हो रहा था। उसने सत्या के चेहरे पर नाखून मारे, जिससे नकाब हटकर नीचे गिर गया।
नकाब हटते ही अतुल का चेहरा हैरानी में बदल गया। नकाब के पीछे बंशी था, जिसने खुद को सत्या बताया था। अतुल ने दर्द को सहते हुए सत्या से पूछा, “तो इससे पहले जितने भी लोग इस पेंटिंग के नाम पर मारे गए, उन सबका कत्ल तुमने किया था, है ना? पर क्यों? ऐसा क्या है इस पेंटिंग में? क्यों तुम इसे किसी और की होने नहीं देते?” अतुल गुस्से से सत्या की आँखों में आँखें डालकर पूछ रहा था। तभी मोम के बर्तन के ऊपर लटके मिस्टर कपूर ने तड़पते हुए कहा, “साले, एक चौकीदार होकर तेरी इतनी हिम्मत? तेरे तो मैं इतने टुकड़े करूँगा ना कि लोग गिनेंगे नहीं, बल्कि बटोरेंगे।”
मिस्टर कपूर द्वारा चौकीदार कहे जाने पर सत्या का गुस्सा आसमान पर पहुँच गया। वह तुरंत खड़ा हुआ और कील से बंधी रस्सी को ढीला करने लगा, जिससे मिस्टर कपूर सीधे मोम के बर्तन के और करीब आ गए। भाप इतनी बढ़ चुकी थी कि मिस्टर कपूर के चेहरे से मांस गलकर नीचे मोम में गिरने लगा, और उनकी चीखें आसमान तक पहुँच गईं। सत्या ने उन्हें धमकी देते हुए कहा, “मेरा नाम ‘सत्या’ है… महान चित्रकार सत्या। अगर दुबारा ऐसी गलती की तो रस्सी ढीली नहीं, सीधा तोड़ दूँगा, समझे?” उसने मिस्टर कपूर को वापस कील में बांधा और सब-इंस्पेक्टर से बात करने के लिए मुड़ा।
सत्या मुड़कर देखता है कि सब-इंस्पेक्टर अतुल ठीक उसके सामने खड़ा है, हाथ में वही चाकू लिए हुए जो कुछ पल पहले उसकी किडनी में धंसा था। अतुल ने सत्या से कहा, “सत्या, अब खुद को सरेंडर कर दे वरना तेरा अंजाम अच्छा नहीं होगा।” सत्या ने मुँह बनाते हुए कहा, “फिर से वही घिसी-पिटी लाइन? अरे! कुछ तो नया बोल।” इससे पहले कि सत्या अपनी बात पूरी करता, अतुल ने वह चाकू सत्या की पसली में घुसा दिया और धीरे-धीरे घुमाते हुए बोला, “जब डायलॉग इतना फेमस है, तो इसे फिर बदलना क्यों? चल अब तेरा पंचनामा लिखता हूँ। बता सब शुरू से वरना चाकू में अभी भी बहुत धार बची है।”
सत्या को एहसास हो गया था कि वह अपने ही जाल में फँस चुका है, और अगर उसने जल्दी कुछ नहीं किया तो वह ज़िंदा नहीं बचेगा। उसने कहा, “तू सही था, इंस्पेक्टर। इस पेंटिंग में जो औरत है, वो मेरी माँ है और उसके पेट में जो बच्चा है, वो मैं हूँ। ये पेंटिंग मेरे बाबा ने मेरी माँ के लिए बनाई थी, जो मेरे पैदा होते ही चल बसी थी। जिसका इल्ज़ाम मेरे बाबा ने मुझ पर डाल दिया था। वो मुझसे नफरत करते थे। बचपन से ही मुझे मारते थे। मेरे चेहरे में उन्हें अपनी मरी हुई पत्नी दिखाई देती थी। इसीलिए फिर एक दिन मैंने उनको मार दिया… ठीक मिस्टर सिंघानिया की तरह उबलती मोम में डुबोकर।”
सत्या ने आगे बताया, “और मेरे पास मेरी माँ की बस यही एक निशानी थी, ये पेंटिंग… जिसे बाबा ने कौड़ियों के भाव भंगार में बेच दिया था। इसीलिए जब कोई दूसरा पैसे के दम पर मेरी माँ को खरीदना चाहता है, तो मैं उससे उसकी जान खरीद लेता हूँ… वो भी कौड़ियों के भाव… वो भी कौड़ियों के भाव।” अतुल ने गुस्से से कहा, “इसलिए तू ये पेंटिंग खरीदने वालों को पहले ही मार देता है, ताकि तू अपनी माँ से अलग न हो पाए? तू सच में एक दरिंदा है, जिसे सलाखों के पीछे होना चाहिए।” दोनों बहस कर रहे थे कि तभी मिस्टर कपूर ने तड़पते हुए कहा, “हेल्प मी प्लीज!”
मिस्टर कपूर की बात सुनकर अतुल तुरंत उन्हें मोम के बर्तन से ऊपर हटाकर अपने पास ले आता है। पर जब उसने दोबारा सत्या को देखना चाहा, तो वह गायब था और उसकी माँ की पेंटिंग भी गायब थी। अतुल तुरंत समझ गया था कि सत्या एक बार फिर फरार हो चुका है। वह मिस्टर कपूर को सहारा देकर बाहर जाने को ही हुआ, तभी सत्या ने अपने एक हाथ में मशाल और दूसरे हाथ में पेंटिंग लिए पीछे से कहा, “इतनी जल्दी कहाँ चल दिए, इंस्पेक्टर अतुल? अभी तो खेल शुरू हुआ है। भागो जहाँ तक भाग सकते हो। अब मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाला।” इतना कहकर सत्या ने पूरे घर में आग लगा दी।
सारा घर मोम का बना हुआ था, इसलिए देखते ही देखते पूरा घर आग की चपेट में आ गया। अतुल भी होश से काम ले तुरंत मिस्टर कपूर के साथ बाहर आ गया। उनके बाहर आते ही पूरा घर ढह चुका था। बाद में पंचनामा हुआ तो उसी घर के तहखाने में बहुत सी लाशें मिलीं, जिन पर मोम लगा हुआ था। उन सभी की पहचान तो हो गई थी, पर सब-इंस्पेक्टर अतुल को सत्या की लाश नहीं मिली, जिसका मतलब साफ था कि सत्या अभी भी फरार है। आज 10 साल बाद सब-इंस्पेक्टर अतुल डीजीपी बन गया है, लेकिन उसके मन से यह सत्या नाम की टीस आज तक नहीं मिटी, और साथ ही पेंटिंग में उस लड़की का चेहरा, जो आज भी अतुल के ख्यालों में जिंदा है।