चिनोबू: हिमालय का आत्मा-भक्षी प्रेत

हिमालय की बर्फीली चोटियों के बीच, जहाँ सन्नाटा और सर्द हवाएँ राज करती हैं, वहाँ एक भयानक किंवदंती साँस लेती है – चिनोबू की। यह एक ऐसा प्रेत है जो आत्माओं का भक्षण करता है, केवल अंधेरी, सर्द रातों में अपने शिकार की तलाश में भटकता है। ग्रामीण बताते हैं कि यह उन अकेले यात्रियों को अपना ग्रास बनाता है जो अँधेरे में रास्ता भटक जाते हैं या जो अनजाने में इसकी मांद में चले जाते हैं। इसका नाम सुनते ही पहाड़ों में दहशत फैल जाती है और हर दिल में एक अनजाना डर पैदा हो जाता है।

स्थानीय कथाओं के अनुसार, चिनोबू कभी एक साधारण इंसान था, लेकिन किसी भयानक शाप के कारण वह एक राक्षस में बदल गया। अब वह अपनी अधूरी और खोई हुई शक्ति को पूरा करने के लिए जीवित मनुष्यों की आत्माओं को खाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी आत्मा तृप्त नहीं होती, और इसीलिए यह हमेशा दूसरों की प्राण शक्ति को निगलने के लिए भटकता रहता है, ताकि वह अपनी शापितExistence को कायम रख सके। यह पहाड़ों का एक जीवित प्रेत है, जिसकी भूख कभी नहीं मिटती।

इसकी सूरत बेहद डरावनी होती है: शरीर दुबला और बेहद लंबा, छूने पर बर्फ़ जैसा ठंडा महसूस होता है। इसकी आँखें दूधिया सफ़ेद होती हैं, जिनमें कोई पुतली नहीं होती और वे अंधेरे में एक धीमी, eerie चमक छोड़ती हैं। इसके हाथ असामान्य रूप से लंबे होते हैं, जिनकी उँगलियाँ नुकीले पंजों में बदल चुकी हैं। यह हमेशा फटे-पुराने, बर्फ़ से भीगे कपड़ों में लिपटा रहता है। इसकी चाल धीमी और अजीब होती है, पर हमला करते वक्त यह बिजली की तेज़ी से झपटता है, जिससे बचने का कोई मौक़ा नहीं मिलता।

लोककथाओं में इसकी उत्पत्ति एक दुखद कहानी के रूप में वर्णित है। बहुत समय पहले, एक व्यक्ति ने घोर लालच और भूख के कारण पवित्र आत्माओं का अनादर किया। इस जघन्य कार्य से देवता क्रोधित हो उठे और उन्होंने उसे शाप दिया कि वह हमेशा के लिए इन ठंडे, वीरान पहाड़ों में भटकेगा। समय के साथ, उसका शरीर पत्थर जैसा कठोर हो गया और उसकी आत्मा अपूर्ण रह गई। अब वह अनंत काल तक दूसरों की आत्माओं को निगलकर ही अपनी शक्ति और अस्तित्व बनाए रखता है, एक शापित जीवन जीते हुए।

चिनोबू केवल सबसे ठंडे, बर्फ़ से ढके और इंसानों से दूर पर्वतीय इलाकों में पाया जाता है। विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति और किनौर जैसे दुर्गम स्थानों, उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ की ऊँची वादियों, लद्दाख के बर्फीले दर्रों, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में इसकी कहानियाँ प्रचलित हैं। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह रात के सन्नाटे में, बर्फीले तूफ़ानों के दौरान या घने कोहरे में प्रकट होता है, जब इंसान सबसे ज़्यादा अकेला और लाचार महसूस करता है।

एक भयानक कथा में बताया जाता है कि एक यात्री बर्फीले तूफ़ान में खो गया। उसने दूर से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनी और मदद के लिए आगे बढ़ा। लेकिन जब वह नज़दीक पहुँचा, तो वहाँ बच्चे की जगह एक विशाल, डरावना चिनोबू खड़ा था। जैसे ही यात्री ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया, चिनोबू ने उसकी छाती पर अपना बर्फीला हाथ रखा और उसकी आत्मा को धीरे-धीरे बाहर खींच लिया। अगली सुबह, उसकी जमी हुई लाश मिली, जिसकी आँखें ख़ाली और भावनाहीन थीं, मानो किसी ने उसके अंदर का जीवन निचोड़ लिया हो।

इन प्रेत से बचने के लिए कुछ प्राचीन उपाय बताए जाते हैं। अपने पास हमेशा एक लाल धागा रखना चाहिए, क्योंकि यह चिनोबू को पास आने से रोकता है। याक की घंटी की आवाज़ उसे भ्रमित करती है, इसलिए उसे बजाना या अपने साथ रखना सुरक्षित माना जाता है। घर के दरवाज़ों और खिड़कियों पर नमक छिड़कने से यह अंदर नहीं आ पाता। लहसुन और अदरक का प्रयोग भी इसे दूर रखने के लिए किया जाता है, इनकी तेज़ गंध इसे पसंद नहीं आती।

चिनोबू की कुछ ख़ास बातें इसे और भी भयानक बनाती हैं। यह केवल ठंडी और बर्फीली रातों में ही सक्रिय होता है। यह इंसानों की आवाज़ की नकल कर सकता है, जिससे लोग अक्सर धोखे में आ जाते हैं। इसका स्पर्श बेहद ठंडा होता है, जिससे शरीर तुरंत जमने लगता है। यह अपने शिकार को सीधे नहीं मारता, बल्कि उसे धीरे-धीरे कमज़ोर करता है, ताकि उसकी आत्मा आसानी से बाहर निकाली जा सके। यह अक्सर घात लगाकर हमला करता है, जब शिकार पूरी तरह अकेला और बेख़बर हो।

चिनोबू चाहे केवल एक लोककथा हो, लेकिन पहाड़ी गाँवों में इसकी कहानियाँ आज भी जीवित हैं और लोगों के दिलों में डर पैदा करती हैं। लोग अब भी इन बर्फीली और सुनसान रातों में सावधानी बरतते हैं, अनजान आवाज़ों और अँधेरी जगहों से दूर रहने की कोशिश करते हैं। यह प्रेत हमें यह सिखाता है कि कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जिनसे दूर रहना ही समझदारी है, क्योंकि कुछ डर केवल हमारी कल्पना में नहीं, बल्कि अंधेरी रातों के सन्नाटे में भी मौजूद हो सकते हैं।

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