रायपुर गांव की रातें अब पहले जैसी नहीं रहीं। हर रविवार या अमावस्या की रात, जैसे ही अंधेरा गहराता, गांव की गलियों में “छम-छम” की अजीब सी आवाज़ गूंजने लगती। यह आवाज़ किसी पायल की तरह थी—धीमी, लेकिन दिल दहला देने वाली।
तीन महीने बीत चुके थे। जिस रात वह रहस्यमयी आवाज सुनाई देती, अगले दिन गांव के किसी न किसी घर से कोई सदस्य लापता हो जाता—कभी कोई बच्चा, तो कभी कोई बुज़ुर्ग। पुलिस या खोजबीन से भी कोई सुराग नहीं मिला। ऐसा लगने लगा मानो वह शख़्स कभी था ही नहीं।
गांव में अफ़वाह फैल गई कि कोई चुड़ैल है जो खुले दरवाजों या खिड़कियों से घर में घुसती है और अपने शिकार को साथ ले जाती है। गर्मियों की रातों में जब लोग लापरवाही से खिड़की खुली छोड़ देते, अगली सुबह उस घर में मातम होता।
डर इतना फैल गया कि लोग रात होते ही दरवाज़े-खिड़कियां बंद करके अपने घरों में दुबक जाते। गांव वीरान-सा दिखने लगा। यहां तक कि कई लोग गांव छोड़ने का भी मन बना चुके थे।
सरपंच की अपील
गांव के सरपंच ठाकुर सुरेन्द्र सिंह ने जब हालात बिगड़ते देखे, तो उन्होंने गांववालों को बुलाकर कहा:
“क्या एक छाया से डरकर हम अपनी जड़ें छोड़ देंगे? हमें इसका सामना करना होगा।”
हरिया, जिसका बेटा लापता था, फूट पड़ा:
“सरपंच जी! डर से नहीं, मजबूरी से जा रहे हैं। रोज़ एक नया मातम होता है, अब तो हिम्मत जवाब दे गई है।”
सरपंच ने सबको आश्वासन दिया कि उन्होंने पड़ोस के गांव की “जानकी ताई” से संपर्क किया है—जो टोने-टोटके, तांत्रिक विद्या और आत्माओं से संवाद करने में निपुण थीं। पूरे गांव को अब बस एक आस थी—जानकी ताई। chudail ki kahani in hindi
जानकी ताई का आगमन
अगली सुबह, जानकी ताई गांव पहुंचीं। काले कपड़ों में, गले में तरह-तरह की माला, और हाथ में मोरपंख वाला झाड़ू। वे सीधा गांव के पुराने पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गईं।
जब गांववालों ने पूरी बात बताई, तो ताई ने कुछ क्षण आंखें बंद कीं और कहा:
“यहां केवल कोई बुरी आत्मा नहीं है—यह बदले की आग में जल रही एक अत्याचारी आत्मा है। इसे मुक्ति चाहिए, मगर वह आसानी से नहीं मानेगी।”
उन्होंने हिदायत दी कि पूरे गांव को एक साथ हवन और पूजा करनी होगी, और हर घर की स्त्रियां अपने सुहाग की चूड़ियां और सिंदूर एक विशेष चिन्ह के रूप में दरवाज़े पर बांधेंगी—यह उसकी रक्षा करेगा।
पूजा और रहस्य का खुलासा
पूरे गांव में मशालें जलाई गईं। हवन-कुंड सजाया गया। जैसे ही पूजा शुरू हुई, दूर पीपल के पेड़ से एक भयानक साया निकला। उसकी आंखों से खून टपक रहा था, चेहरा विकृत, और शरीर से श्मशान की दुर्गंध आ रही थी।
जानकी ताई ने मंत्रों से उसे बांधा और पूछा:
“तू कौन है? और गांववालों को क्यों सता रही है?”
चुड़ैल चीखी:
“मैं पूनम हूं… इसी गांव की। मुझे निःसंतान होने के कारण एक तांत्रिक के बताए उपाय करने पड़े। एक रात मैं पीपल के नीचे दिया जला रही थी, गांव वालों ने मुझे डायन समझ कर मार डाला—इनके कहने पर!” bhutiya kahani
सबकी नज़र सरपंच पर गई। उन्होंने झुके सिर से कबूल किया:
“हमसे बहुत बड़ी गलती हुई थी…”
पूनम बोली:
“मैंने जिनको मारा, उन्हें छोड़ा नहीं—लेकिन मेरा गुस्सा अब भी अधूरा है। सरपंच… तेरा हिसाब बाकी है!”
बलिदान और मुक्ति
जानकी ताई ने गांववालों को पीछे हटने का आदेश दिया, लेकिन तभी सरपंच खुद आगे बढ़े:
“अगर मेरी जान से तू शांत हो सकती है, तो ले ले। पर बाकी गांव को माफ कर दे।”
चुड़ैल कुछ पल चुप रही, फिर उसकी आंखों से आँसू बह निकले।
“तेरा पछतावा देखकर अब मेरी आत्मा को शांति मिल रही है। मुझे मुक्त कर दो…”
जानकी ताई ने विशेष मंत्रों के साथ पूजा संपन्न की। वह भूतिया छाया धीरे-धीरे धुएं में विलीन हो गई। पीपल के नीचे से रोशनी की एक किरण फूटी, और रात फिर सामान्य हो गई।
अंतिम संदेश
उस दिन के बाद रायपुर गांव में फिर कभी “छम-छम” की आवाज़ नहीं गूंजी। गांव में शांति लौट आई, लेकिन हर घर के दरवाज़े पर चूड़ियों और सिंदूर का वह प्रतीक आज भी लटका है—एक भूल की याद और चेतावनी के रूप में।