अन्या की आखिरी रात

अन्या ने जब उस पुराने, एकांत घर में कदम रखा, तो हवा में एक अजीब सी ठंडक थी। गाँव से बहुत दूर, पेड़ों से घिरा यह घर बरसों से खाली पड़ा था। उसने सोचा था कि यहाँ उसे अपनी लेखन के लिए शांति मिलेगी, लेकिन पहली रात से ही कुछ अजीब सा लगने लगा। पुरानी लकड़ी की सीढ़ियाँ अनायास चरमरातीं, और खिड़कियों से आती हवा की सरसराहट किसी फुसफुसाहट जैसी लगती। वह इसे मन का वहम समझती रही।

कुछ ही दिनों में, फुसफुसाहटें और स्पष्ट होने लगीं। कभी उसके नाम की हल्की पुकार, तो कभी किसी के चलने की धीमी आहट। रात में अक्सर उसे लगता जैसे कोई उसके कमरे के बाहर खड़ा है। पर जब भी वह दरवाजा खोलती, वहाँ सन्नाटा होता। एक शाम उसने अपनी परछाई के साथ एक दूसरी, धुंधली सी आकृति को दीवार पर देखा, जो पलक झपकते ही गायब हो गई। उसके भीतर एक अनजाना डर जड़ जमाने लगा था।

गाँव वालों से मिलने पर उन्हें पता चला कि यह घर दशकों से भूतों का अड्डा माना जाता है। एक बूढ़ी औरत ने काँपते हुए बताया कि बरसों पहले इसी घर में रीना नाम की एक युवती रहती थी, जो अचानक एक रात गायब हो गई थी। उसका शव कभी नहीं मिला। गाँव वालों का मानना था कि घर में कोई बुरी आत्मा रहती है जो उसे कभी शांति नहीं देती। अन्या ने उन बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन रीना की कहानी उसके मन में घर कर गई।

एक दिन सफाई करते हुए अन्या को चिमनियों के पीछे एक पुरानी डायरी मिली। धूल से ढकी वह डायरी रीना की थी। पन्ने पलटने पर अन्या के हाथ काँप गए। रीना ने उसमें अपने डर, अजीब घटनाओं और एक अदृश्य शक्ति के बढ़ते प्रभाव का जिक्र किया था। उसने लिखा था कि वह घर की दीवारों में फंसी हुई महसूस करती है, और एक साया लगातार उसका पीछा करता है। डायरी के अंतिम पन्ने पर बस एक चीख भरी लाइन थी: “वह मुझे नहीं छोड़ेगा…”

डायरी पढ़ते-पढ़ते अन्या के आसपास वही ठंडक बढ़ने लगी। उसे महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा हो। पीछे मुड़ने पर वहाँ कोई नहीं था, पर कमरे के कोने में एक धुंधली परछाई खड़ी थी। परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगी, उसकी आँखें लाल थीं। अन्या ने भागने की कोशिश की, पर उसके पैर जम गए। रीना की चीखें अब अन्या की आवाज में बदल रही थीं। घर ने एक और शिकार पकड़ लिया था, और अगली सुबह, अन्या का कमरा खाली पड़ा था, बस खुली हुई डायरी वहीं ज़मीन पर पड़ी थी।

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