भारत एक ऐसा देश है जहाँ अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं, और यह अक्सर लोगों के जीवन को तबाह कर देता है। गुजरात के जयेश भाई के परिवार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनका जवान बेटा सुमित लगभग सात-आठ सालों से बिस्तर पर पड़ा था, बीमारी की ऐसी मार कि घर की खुशियाँ काफूर हो चुकी थीं। वह बोल नहीं पाता था, बस पलकें झपकाता हुआ सब कुछ देखता रहता था। पड़ोसी फुसफुसाते, “आपके बेटे पर किसी का साया है। इसे बंगाल ले जाओ।” एक औरत ने कटाक्ष किया, “करोड़ों की संपत्ति का क्या करोगे जब बेटा ही नहीं रहेगा?” जयेश और उसकी पत्नी विमला, अपने बेटे को दर्द में तड़पता देख, इन बातों को सुनने पर मजबूर थे।
जयेश ने बड़े से बड़े अस्पतालों में सुमित का इलाज कराया, लाखों रुपये हकीमों, तांत्रिकों, अघोरियों पर खर्च किए, यहाँ तक कि श्मशान घाट जाकर आधी रात को कच्चे मांस से कौओं को खिलाया, पीपल के पेड़ पर तेरह अमावस्या पानी चढ़ाया – पर कोई फायदा नहीं हुआ। सुमित की हालत में रत्ती भर भी सुधार नहीं आया था। अब जब लोगों ने बंगाल जाने की सलाह दी, तो जयेश हताश था। “ऐसा क्या है वहाँ जो पूरे भारत में नहीं?” उसने पूछा। तभी विमला ने उम्मीद की किरण देखी। “सुनिए जी, एक बार चलकर देख लेते हैं। क्या पता दवा नहीं तो दुआ ही काम आ जाए।” एक माँ का दिल अभी भी बेटे के ठीक होने की आस लगाए था। विमला की बात सुन जयेश कोलकाता के नीमतला घाट पहुँच गए।
नीमतला घाट पर काले जादू की चर्चा बहुत मशहूर थी, कहते थे कि यहाँ मुर्दे में भी जान फूंकी जा सकती है। जयेश और विमला वहाँ पहुँचे तो एक भयावह दृश्य देखा: एक अघोरी अपनी जीभ पर कपूर जलाकर एक बेजान-सी लेटी औरत के चारों ओर घूम रहा था। औरत की हड्डियाँ तड़पती हुई-सी लग रही थीं। जैसे ही अघोरी ने जलते कपूर से उसके मुँह पर फूंक मारी, वह औरत झटके से उठकर बैठ गई। आसपास मौजूद लोग खुशी से झूम उठे। जयेश और विमला की आँखों के सामने यह चमत्कार होता देख, उनकी उम्मीदें भी चमक उठीं। उन्हें लगा, शायद यही ब्रजलाल नाम का अघोरी उनके बेटे को बचा सकता है।
जयेश ने तुरंत अपने बेटे सुमित को अघोरी ब्रजलाल के पास पहुँचाया। पर ब्रजलाल ने सुमित को छूने से भी मना कर दिया। “जयेश, तेरे बेटे पर किसी डायन का साया है। सच कहूँ तो इसके पास केवल तेरह दिन बचे हैं। मैं भी इसे नहीं बचा सकता। इसे यहाँ से ले जाओ,” अघोरी ने ठुकरा दिया। जयेश और विमला उसके पैरों में गिर पड़े, गिड़गिड़ाने लगे। “बाबा, आपको जितना पैसा चाहिए, मैं देने को तैयार हूँ। बस मेरे बेटे को ठीक कर दो।” उनकी बेबसी देख अघोरी का मन पिघला (या शायद पैसों का लालच)। उसने सुमित के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “ठीक है। मेरे पास एक जिन्नात की आत्मा कैद है, मैं उसकी और तुम्हारे बेटे पर जिस डायन का साया है, उसकी लड़ाई करवाऊँगा। पर इस विद्या में लाखों का खर्चा है, और तुम्हें उस जिन्नात की आत्मा को अपने अंदर समाना होगा। तुम्हें खुद उस डायन के साये से लड़ना होगा।” यह आखिरी रास्ता था।
अघोरी की बात सुन जयेश चौंक गया, पर अपने बेटे की जान के लिए वह अपनी जान भी दाँव पर लगाने को तैयार था। बहुत सोचने के बाद, जयेश और विमला ने हाँ कर दी। अघोरी ब्रजलाल ने उन्हें आधी रात के पहर अकेले पच्चीस लाख रुपयों के साथ श्मशान घाट बुलाया। वहाँ एक आधी जली चिता के पास ब्रजलाल आहुति डाल कर मंत्र पढ़ रहा था। “आ गए तुम लोग? मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था,” अघोरी ने क्रूर मुस्कान के साथ कहा। “तुम्हारा बेटा बहुत खुशकिस्मत है। यह देखो, बड़ी मुश्किल से कुंवारी लाश मिली है मुझे। चिता की आग बुझने से पहले ही हमें तुम्हारे बेटे को ठीक करना होगा। पैसे मेरे हवाले कर दो और पूजा में कोई विघ्न न डालना।”
जयेश ने तुरंत पैसों से भरा बैग अघोरी को दे दिया और कहा, “नहीं, नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं अपने बेटे को कुछ नहीं होने दूँगा। आप बस जल्दी से मेरे अंदर जिन्नात की आत्मा डालिए, बाकी मैं उस डायन को संभाल लूँगा।” पैसे मिलते ही अघोरी ने अनुष्ठान शुरू कर दिया। उसने जयेश के माथे पर किसी जानवर का खून लगाया, उसे चिता के सामने बैठाया, उसके हाथ में खोपड़ी पकड़ाकर उसके चारों तरफ घूमने लगा और भयानक मंत्र पढ़ने लगा। विमला कोने में खड़ी, आँखे बंद किए, सबकी सलामती की दुआ कर रही थी। मंत्रोच्चारण के साथ चिता की लपटें काली पड़ने लगीं, और सुमित के जिस्म के आसपास काले साए मंडराने लगे। अगले ही पल, ब्रजलाल ने चिता से आग का एक दहकता टुकड़ा उठाकर जयेश की जीभ पर रख दिया और तुरंत उसका मुँह बंद कर दिया, ताकि उसकी चीखें किसी को सुनाई न दें।
जलती हुई जीभ के असहनीय दर्द से जयेश तड़प उठा, पर बेटे को बचाने की आस में उसने सब बर्दाश्त कर लिया। अघोरी ने एक छोटी बोतल निकालकर उसे दी। “ले पी जयेश इसे, इसमें जिन्नात की आत्मा कैद है। इसे पीते ही ये आत्मा तेरे अंदर आ जाएगी और फिर तू अपने बेटे के अंदर छिपी डायन को भी देख पाएगा और उससे लड़ भी पाएगा।” जयेश ने उस कड़वी, भयानक शराब को एक घूँट में पी लिया। बोतल खत्म होते ही उसकी आँखें लाल हो गईं। अघोरी ब्रजलाल खिलखिलाया, “वाह मेरे जिन्नात! देख मैंने तेरे लिए कितना अच्छा शरीर ढूँढ़ निकाला है? चल अब शुरू हो जा और जल्दी से मेरा काम कर दे।” जयेश जोर-जोर से हँसने लगा, उसकी हँसी में एक अजीब, दर्दनाक पाशविकता थी। विमला को लगा कि जिन्नात की आत्मा उसके पति में समा गई है और उसका बेटा अब ठीक हो जाएगा, वह दुआ में लगी रही। पर जयेश अब अपने वश में नहीं था।
अघोरी ब्रजलाल ने जयेश के हाथों में खंजर पकड़ाकर उसे अपने बेटे के पास खड़ा कर दिया। “अपने बेटे के शरीर के अंदर छिपी डायन से बात कर और उससे बोल कि अगर उसने शरीर नहीं छोड़ा तो तू यह शरीर ही हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर देगा।” जयेश, जिसका मुँह धधकते कोयले से खून से लथपथ था, अपने बेटे सुमित के पास गया। सुमित पहले की तरह बेजान लेटा अपने पापा को देख रहा था, उसकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। “बोल डायन, सुमित का शरीर छोड़ती है या नहीं? नहीं तो मैं सुमित का शरीर ही हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दूँगा। बोल जल्दी… डायन बोल!” नशे में मदहोश जयेश एक खूँखार जानवर बन चुका था, उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके सामने पड़ा बेजान जिस्म उसका अपना बेटा सुमित है। जब सुमित का कोई जवाब नहीं आया, तो जयेश ने अपने हाथ में लिए खंजर से अपने बेटे का सीना चीर डाला।
विमला की चीखें निकलीं, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह जयेश की ओर लपकी, पर अघोरी ब्रजलाल ने उसे पकड़ लिया। “रुक जा पगली, अभी मेरी पूजा पूरी नहीं हुई है। मुझे दो और लोगों की बलि देनी थी। अभी तो एक का मरना बाकी है।” अघोरी निर्दयता से हँस रहा था। “वैसे तो साल में एक-दो बार ऐसा होता है। तुम जैसे अमीर अपने अंधविश्वास के चक्कर में मेरे पास मरने के लिए चले आते हो और बदले में खूब सारे पैसे भी देते हो।” यह कहते हुए अघोरी ने विमला को झटक दिया और जयेश के पास जाकर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा। जयेश, जो अब पूरी तरह से अघोरी के वश में था, बोला, “मालिक, मुझे माफ़ कर दो। मैं आपका एक छोटा-सा काम भी नहीं कर पाया। मैं सुमित के शरीर से उस डायन को नहीं निकाल पाया।”
अघोरी ने क्रूरता से कहा, “नहीं मेरे गुलाम, मेरी अदालत में माफ़ी नहीं, सज़ा मिलती है सज़ा, मौत की सज़ा। तो अब तुझे पता है ना कि तुझे क्या करना है?” अघोरी के बोलते ही जयेश ने खुद अपने हाथ में पकड़े खंजर को अपनी गर्दन पर रख लिया और सीधी जलती हुई चिता की ओर चलने लगा। विमला चीखती रही, “रुक जाओ सुमित के पापा, यह न करो! बेटा तो छोड़ कर चला गया, अब आप भी जा रहे हो! होश में आओ! अघोरी ढोंगी है! पता नहीं इसने आपको क्या पिला दिया है?” विमला की चीखें जयेश तक नहीं पहुँचीं। उसने एक झटके में अपना सर धड़ से अलग कर दिया और घुटनों के बल चिता पर जा गिरा। एक ही रात में विमला ने अपना पूरा परिवार खो दिया। कहते हैं, इस भयावह घटना के बाद विमला पागल हो गई और आज भी वह उसी नीमतला घाट पर किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रही है, उसकी आँखों में सूनी दहशत के सिवा कुछ नहीं।