अनदेखी छाया: कोलकाता की एक डरावनी रात

कोलकाता की एक गुप्त रात की कहानी: रीना, 17 साल की, और उसके छोटे भाई रोहन, 10 साल के, और बहन प्रिया, 5 साल की, एक प्यारे से परिवार में बड़े हुए थे। उनके माता-पिता, मीना और राजेश, घर को हमेशा प्रेम और सुगंध से भरा रखते थे — मीठी चमेली की खुशबू और गरम चाय की गंध दरवाजे तक आती रहती थी। लेकिन एक शाम, सब कुछ बदल गया।

माँ-पिता बाहर गए थे। रीना अपनी सहेलियों के साथ डरावनी फिल्मों के बाद बहादुर बनने का फैसला कर लिया। ‘चलो, एक आखिरी खेल खेलते हैं,’ उसने फुसफुसाते हुए कहा। एक पुराना ओइजा बोर्ड मिला — ऐसा बोर्ड जिससे लोग कहते हैं कि भूत बात करते हैं।

जब उन्होंने उसे कमरे में रखा, अचानक हवा बर्फ जैसी ठंडी हो गई। फूलों की खुशबू गायब हो गई। बोर्ड पर लकड़ी का टुकड़ा चलने लगा। धीरे-धीरे लिखा: हाँ (Y-E-S)

सारे भागे। डर से मुंह तक जम गया। जब उन्होंने पूछा — ‘तुम कौन हो?’ — टुकड़ा तेजी से बोर्ड पर गुजरा: मेरा (M-I-N-E)

फिर लिखा: रीना (R-I-N-A)

तभी अंधेरे कोने में प्रिया चिल्लाने लगी। उसने देखा, उसके बिस्तर के पास एक काली, लंबी महिला खड़ी थी। उसकी माँ भागकर आई, लेकिन वह हँसकर कहीं खो गई जोर से जल्दी तो लगाई।

अगले दिन, चीजें और भी अजीब होने लगीं। रीना की गुड़िया अपने आप घूमने लगी। उसे अपनी पीठ के पीछे घूमती हुई परछाइयाँ दिखतीं। छत के सिरे से एक धीमी, नाखूनों की तरह टूटती हुई हँसी आती।

एक दोपहर, पंखा उल्टा घूमने लगा और चीख मारा। दीवार पर तस्वीर गिरी और टूटी, उस पर एक काला घाव दिखा जो रीना के चेहरे का निशान था।

रोहन बताता कि उसके कान में कोई फुसफुसा रहा है — रीना की गुप्त बातें। प्रिया रोती रहती — ‘वह आती है। वह घूरती है।’

एक रात, रीना की बांह पर तीन खरोंच दिखीं, जैसे नाखूनों से चोट लगी हो। दरवाजे के बाहर भारी कदमों की आवाज़ आती रही। फिर एक गुर्राहट। हवा ठंडी हो गई।

माँ ने पंडितजी बुलाया। जब उन्होंने गीत गाए, बिजली चमकने लगी। टीवी चल गया। बर्तनों का कड़कड़ाहट सुनाई दी। पंडितजी गंभीर हो गए: ‘यह सामान्य नहीं है। यह भूत नहीं, एक बहुत अंधेरे आत्मा है। वह रीना से चिपक गई है।’

घर छोड़ने की तैयारी के दौरान दीवारों ने चिल्लाया। सूटकेस खाली हो गए। जब पिताजी एक तस्वीर उतार रहे थे, वह हाथ से उड़कर उनके चेहरे पर लगी और खून बहने लगा।

आखिरी रात, दरवाजा खुल गया। एक धुंधली आकृति घुसी — लंबी, पतली महिला जिसका चेहरा बस एक खाली गड्ढा था। बाल जंगली, बाहें मुड़ी हुई, हाथ हड्डीदार। वह एक चीख छोड़ी — जैसे हवा फाड़ी जा रही हो।

रीना अदृश्य ताकत से खींची जा रही थी। माँ-पिता ने उसे पकड़ा। लेकिन उसके हाथ में बेबसी थी। फिर रीना ने याद किया — ओइजा बोर्ड बिस्तर के नीचे है!

पिताजी ने उसे निकाला, रसोई में ले गए। तेल से भरी मिट्टी की टोकरी में आग लगा दी। जैसे ही लकड़ी जली — एक भयानक चीख गूंजी। हवा चली। अंधेरा गायब हो गया। गंध बदल गई — जलती लकड़ी की आरामदायक सुगंध।

खामोशी। बिल्कुल खामोशी।

सारा घर छोड़कर चले गए। नई शुरुआत की। लेकिन मुट्ठी भर आशा के साथ भी रीना के मन में एक सवाल बस रहा — क्या कोई दरवाजा कभी बंद नहीं होता?

कभी-कभी रात के बीच में वह जाग जाती — और एक हल्की आवाज़ सुनती: ‘रीना…’। जैसे वह अभी भी उसके बुरे नाम को गूंजती हुई हो।

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