अमावस्या की रात का खौफ

शहर के बाहरी इलाके में एक पुरानी, वीरान हवेली थी, जिसके बारे में गाँव वाले अक्सर फुसफुसाते थे। अमावस्या की रात को, चार दोस्त, राहुल, प्रिया, समीर और अंजली, बहादुरी दिखाने के लिए वहाँ जाने का फैसला करते हैं। उनका मकसद सिर्फ एक रात रुक कर कहानियों को झूठा साबित करना था। जैसे ही उनकी गाड़ी हवेली की ओर बढ़ती है, हवा में एक अजीब सी ठंडक घुल जाती है, और घने पेड़ों की परछाइयाँ उन्हें डरावने चेहरे जैसी लगती हैं। हवेली के पास पहुँचते ही एक तीखी, सड़ी हुई गंध उनके नथुनों में भर जाती है, जो उन्हें अंदर आने वाले भयानक अनुभवों की चेतावनी दे रही थी।

हवेली का भारी लकड़ी का दरवाज़ा, जो सदियों पुराना लग रहा था, एक कर्कश आवाज़ के साथ खुलता है। अंदर घना अँधेरा था, जिसे उनकी टॉर्च की रोशनी मुश्किल से भेद पा रही थी। धूल की मोटी परत हर चीज़ पर जमी थी, और टूटे हुए फर्नीचर भूतिया आकृतियों जैसे लग रहे थे। अचानक, दूर से एक धीमी, गुनगुनाती आवाज़ सुनाई दी, जैसे कोई प्राचीन लोरी गा रहा हो। प्रिया ने महसूस किया कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा है, लेकिन जब वह मुड़ी, तो वहाँ कोई नहीं था, सिवाय ठंडी हवा के झोंके के जो खिड़की से अंदर आ रहा था।

जैसे-जैसे वे हवेली के गलियारों में आगे बढ़ते गए, दीवार पर पुरानी पेंटिंग्ज़ की आँखें उन्हें घूरती हुई महसूस हुईं। एक बंद कमरे के दरवाजे के नीचे से हल्की सी रोशनी आ रही थी। समीर ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वह अंदर से बंद था। तभी उन्हें लगा कि हवेली की दीवारों से किसी के कदमों की आवाज़ आ रही है, और यह आवाज़ उनके ठीक पीछे से आ रही थी, जैसे कोई अदृश्य चीज़ उनका पीछा कर रही हो। अचानक राहुल की टॉर्च फ़्लिकर करके बुझ गई, और चारों ओर अँधेरा और भी गहरा हो गया, जिसमें उन्हें सिर्फ अपनी धड़कनों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

अँधेरे में, अंजली को अपने कान के पास किसी की ठंडी साँस महसूस हुई और उसे एक प्राचीन भाषा में कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी। भयभीत होकर, उसने चीखना शुरू कर दिया। उसी पल, सभी की टॉर्च अपने आप जल उठीं और उन्होंने देखा कि सामने वाली दीवार पर खून से एक अजीब प्रतीक बना हुआ है। उस प्रतीक के ठीक नीचे एक पुरानी, फटी हुई डायरी पड़ी थी, जिसके पन्ने खून से सने थे। जब राहुल ने उसे उठाया, तो डायरी से एक भयानक चीख निकली और हवेली की दीवारों से अजीबोगरीब आकृतियाँ उभरने लगीं, जिनकी आँखें जलते अंगारों जैसी थीं।

वे समझ गए कि वे किसी भयानक चीज़ का सामना कर रहे हैं। बिना सोचे-समझे, वे चारों हवेली से बाहर की ओर भागे। पीछे मुड़कर देखे बिना, वे कार में बैठे और जितनी तेज़ी से हो सके, वहाँ से निकल गए। सुबह तक वे शहर से बहुत दूर पहुँच चुके थे, लेकिन उस रात का खौफ उनकी आत्माओं में गहरा उतर चुका था। अमावस्या की उस रात की भयानक यादें उन्हें ज़िंदगी भर सताती रहीं, और वे कभी उस हवेली के पास वापस जाने की हिम्मत नहीं कर पाए।

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