कुमुद की बेहाल आवाज़ कमरे में गूँज उठी। “आचार्य जी, आप अब आये हैं? सब कुछ खत्म हो गया! मैंने आपको कितनी बार फ़ोन किया, अपने शिष्यों से कहलवाया, लेकिन आप अब आये हैं जब मेरे पति की लाश मेरी आँखों के सामने पड़ी है!” वह आचार्य श्रीधर के सामने बिलख रही थी। आचार्य श्रीधर ने धीरे से योगेश की आँखें बंद कीं और बुदबुदाये, “भगवान योगेश की आत्मा को शांति दे।”
आचार्य श्रीधर ने जब योगेश के शव का मुआयना किया, तो पल भर के लिए उनकी भी हिम्मत पस्त हो गई। दृश्य भयानक था: शरीर जगह-जगह से छिला हुआ था, चेहरे पर चाकुओं के अनगिनत निशान थे और छाती में एक खंजर गढ़ा था। नाखूनों में मांस के टुकड़े फँसे थे और पैर की उँगलियाँ भी कटी हुई थीं। आचार्य किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाते, इससे पहले ही उन्हें कमरे के एक कोने से दर्द भरी कराहने की आवाज़ सुनाई दी। “यह अभी ज़िंदा है!” आचार्य ने कहा, “चलो जल्दी करो, इसे अस्पताल ले जाना है।”
“कुमुद, क्या तुम सुन रही हो? वरना लक्ष्मी यहीं मर जाएगी!” आचार्य श्रीधर तेज़ी से उस कराहती हुई आकृति के पास पहुँचे और उसका सिर अपनी गोद में रखकर होश में लाने की कोशिश करने लगे। लेकिन कुमुद, योगेश के बेजान शरीर को घूरते हुए गुस्से में बोली, “मर जाए मेरी बला से! वैसे भी मेरा बचा ही क्या है? सब कुछ तो इसी ने बर्बाद किया है। जो कुछ हुआ, वो इसी डायन की वजह से है। इसी ने मेरे योगेश को मुझसे छीना है!” आचार्य को कुमुद की यह बात बेतुकी और चौंकाने वाली लगी।
“नहीं, तुम झूठ बोल रही हो कुमुद। लक्ष्मी ऐसा कभी नहीं कर सकती। तुम्हें ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हुई है,” आचार्य श्रीधर ने ज़ोर देकर कहा। लेकिन उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि लक्ष्मी, अचेत अवस्था में ही, खून की उल्टियाँ करने लगी। उसकी बंद आँखों से भी ख़ून रिस रहा था। जब आचार्य श्रीधर ने सावधानी से उसकी पलकें उठाईं, तो वे भय से सिहर उठे। आँखों की जगह काले, गहरे गड्ढे थे, जिनसे किसी भयावह चुड़ैल की उँगलियाँ बाहर आ रही थीं।
इस खौफनाक नज़ारे को देखकर आचार्य लक्ष्मी को उसकी हालत पर छोड़कर पीछे हट गए। उन्होंने तुरंत कुमुद का हाथ पकड़ा और उसे घर से बाहर ले जाते हुए कहा, “कुमुद, तुम्हारा यहाँ रहना ख़तरे से खाली नहीं है। जितना जल्दी हो सके, इस घर से निकलना होगा!” कुमुद ने अपना हाथ छुड़ाया और हताशा में बोली, “आचार्य, आप इसे जितना आसान समझ रहे हैं, यह उतना ही मुश्किल है। मैं और मेरे पति पिछले सात घंटों से इसी से लड़ रहे हैं।”
कुमुद ने आगे कहा, “इसी लड़ाई में मेरे घर का यह हाल हुआ है। जब मेरी जान पर बन आई, तो मेरे पति ने मुझे बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। आचार्य श्रीधर, आप मेरा यकीन कीजिए, अगर आप दरवाज़े तक गए तो लक्ष्मी जाग जाएगी!” लक्ष्मी का ज़िक्र सुनकर आचार्य ने उस बेजान शरीर की तरफ देखा, जो अभी भी खून की उल्टियाँ कर रहा था, जिससे कुमुद का डर और भी पुष्ट हो गया।
कुमुद का दिमाग़ शायद वास्तविकता से जूझ रहा था। “क्या यह मरेगी, जो खुद अपनी आख़िरी साँसें गिन रही है? अब जल्दी मेरे साथ घर से बाहर चलो, फिर पुलिस के पास जाकर उन्हें सब सच बता देंगे।” लेकिन घर से बाहर जाने के विचार से ही कुमुद फिर से डर गई। “नहीं, बाहर मत जाओ, वरना वह जाग जाएगी! फिर हम में से कोई ज़िंदा नहीं बचेगा!” आचार्य ने उसे दिलासा देते हुए कहा, “होश में आओ कुमुद, मैं हूँ ना। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा, मेरा यकीन करो।”
जैसे ही कुमुद ने काँपते हुए श्रीधर का हाथ पकड़ा और बाहर जाने को हुई, उसे किसी के गुर्राने की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ सुनकर कुमुद ने पीछे मुड़कर देखा तो लक्ष्मी अभी भी खून की उल्टियाँ कर रही थी। तभी आचार्य श्रीधर ने इशारे से कुमुद को योगेश की लाश देखने को कहा। उसे देखकर कुमुद के भी होश उड़ गए। योगेश का शरीर धीरे-धीरे खुद ब खुद हिलने लगा था, जिसका साफ़ मतलब था कि अब योगेश किसी के वश में है। फिर भी, अगले ही पल आचार्य श्रीधर कुमुद का हाथ पकड़कर घर के दरवाज़े तक पहुँच गए और जैसे ही उन्होंने हैंडल पकड़ा।
एक ठंडी आवाज़ आचार्य श्रीधर के कान में फुसफुसाई, “इतनी भी क्या जल्दी है, आचार्य? आप अभी तो हमारे घर आए हैं और मेरी पत्नी के साथ आपने अभी तक कोई छल नहीं रचाया, उसके बिना कैसे जा सकते हैं?” यह सुनते ही श्रीधर ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, उनके होश उड़ गए। उनके कंधे पर हाथ रखने वाला कोई और नहीं, बल्कि योगेश था। योगेश का चेहरा अब पहले से भी ज़्यादा ख़ूँख़ार और डरावना हो गया था। उसके चेहरे पर जो कटे हुए निशान थे, उनसे अब कीड़े रेंग रहे थे।
इस भयावह दृश्य को देखकर आचार्य श्रीधर की रूह काँप गई। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते, योगेश ने आचार्य श्रीधर की गर्दन से पकड़कर उन्हें हवा में उठा दिया। यह सब अपनी आँखों के सामने होता देख कुमुद योगेश के पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगी थी। “आचार्य को छोड़ दीजिए! उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। उन्हें छोड़ दीजिए! आपके गुनाहगार मैं हूँ, आचार्य नहीं!”
कुमुद ने जैसे ही अपनी बात ख़त्म की, योगेश ने उसे लात मारकर दूर धकेल दिया और आचार्य श्रीधर के गले को और ज़ोर से दबाने लगा। आचार्य की आँखों की पुतलियाँ अब फटने को थीं कि तभी उन्होंने बहुत हिम्मत करके अपनी जेब से रुद्राक्ष की माला निकाली और एक आख़िरी ज़ोर लगाकर उसे योगेश के गले में डाल दिया।
जैसे ही माला डाली गई, योगेश का आवेशित शरीर फिर से एक निर्जीव लाश बन गया और आचार्य ज़मीन पर आ गिरे, हाँफते हुए। कुछ देर बाद खुद को सँभालने के बाद आचार्य श्रीधर ने फिर से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, पर वह नहीं खुला। एक बार फिर घर में किसी के दर्द में कराहने की आवाज़ आने लगी। आचार्य ने धीरे-धीरे चीज़ों पर नज़र दौड़ाई, तो उन्हें कुछ भी ऐसा ख़ास या डरावना नहीं दिखा।
कि अचानक ही उनकी नज़र एक जगह ठहर गई। उनकी आँखों में आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। आचार्य श्रीधर की आँखों के सामने ही कुमुद अपनी आख़िरी साँसें गिन रही थी। दरअसल, योगेश ने जब कुमुद को लात मारी थी, तो एक नुकीली चीज़ उसकी छाती के आर-पार घुस गई थी। “यह कैसे हो गया, कुमुद? तुम भी अब मुझे छोड़कर जा रही हो?” आचार्य दुख से भर गए।
आचार्य श्रीधर कुमुद के पास बैठकर अपना दुख मना रहे थे, पर कुमुद के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान थी। “वो कहते हैं ना श्रीधर, जिनका मिलना नसीब में नहीं होता, उन्हें मोहब्बत कमाल की होती है,” उसने फुसफुसाया। “किसे पता था, मेरे जाने के बाद तुम ब्रह्मचर्य जीवन अपना लोगे? मेरे श्रीधर से आचार्य श्रीधर हो जाओगे? पर देखो, शायद हम सच्चे थे। हमारा प्यार सच्चा था। इसीलिए तो मरते वक्त मैं तुम्हारा चेहरा देख पा रही हूँ।”
“हमने कुछ गलत नहीं किया है और मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा, कुमुद! हम अभी अस्पताल जाएँगे!” श्रीधर ने ज़ोर दिया। कुमुद ने सिर हिलाया। “नहीं। मुझे पता है मेरा आख़िरी समय आ गया है। एक प्रेमिका होने का फ़र्ज़ तो मैं सही से नहीं निभा पाई, पर एक पत्नी का फ़र्ज़ निभाना चाहती हूँ। मुझे जाने दो श्रीधर… मैं थक गई हूँ… प्यार को ढूँढते-ढूँढते। पर तुम अभी ज़िंदा हो और ज़िंदा बच भी सकते हो। बस उस डायन के होश में आने से पहले ही उसका गला घोंटकर उसे मार डालो।”
“यह क्या बकवास कर रही हो तुम?” श्रीधर चिल्लाया। “वह कोई डायन नहीं है, वह लक्ष्मी है! वह मरी नहीं है, कुमुद, वह ज़िंदा है! और मैं तुम्हारी तरह कोई कातिल नहीं हूँ। मैं लक्ष्मी को अस्पताल लेकर ही जाऊँगा।” अपने प्रेमी से खुद को कातिल कहते सुन कुमुद हल्की सी मुस्कुराने लगी थी। शायद अब उसे अपनी गलतियों का अहसास होने लगा था।
“तुम सही कह रहे हो श्रीधर, मैं एक कातिल हूँ,” कुमुद ने स्वीकार किया, उसकी आँखों में एक दुखद अहसास था। “पहले मैंने तुम्हारे प्यार का कत्ल किया, तुम्हें अकेला छोड़ दिया। फिर इस बेचारी लक्ष्मी का, जिसकी वजह से आज तुम्हें यह दिन देखना पड़ा।” श्रीधर, भ्रमित होकर, तुरंत बोला, “नहीं कुमुद, जो लक्ष्मी वहाँ अचेत पड़ी है, वह ज़िंदा है! तुमने खुद मुझसे कहा था कि तुमने अलक्ष्मी को तहखाने में बंद कर दिया था, यह सोचकर कि वह ही हमारे दुर्भाग्य का कारण है!”
कुमुद ने धीरे-धीरे सिर हिलाया, एक आँसू उसके गाल से बह निकला। “नहीं, श्रीधर… जिसे मैंने अलक्ष्मी समझकर बंद किया था, वह असल में लक्ष्मी थी। और यह वाली,” उसने कमज़ोरी से आवेशित लड़की की ओर इशारा किया, “यह अलक्ष्मी है। यह पूरा दुःस्वप्न, यह तबाही, मेरे पति की मौत… यह सब उसी का बदला है, उसका भयानक खेल।”
“यह खेल, श्रीधर, खुद किस्मत ने मेरे साथ खेला है,” कुमुद ने अपनी आवाज़ को फीका पड़ते हुए कहा। “तुम्हें छोड़ने के बाद मैंने एक अमीर लड़के, योगेश से शादी कर ली थी। मैंने सोचा था कि भले ही जीवन में सुख न मिले, कम से कम मेरा बुढ़ापा तो सुख-शांति से कटेगा।”
“पर नहीं… योगेश कभी मुझे बच्चा नहीं दे पाया। हमने अमेरिका में भी इलाज करवाया, मगर कोई सुधार नहीं हुआ। थककर हमने दस साल की दो जुड़वाँ लड़कियों को गोद ले लिया — लक्ष्मी और अलक्ष्मी। पर दोनों के घर आते ही योगेश का व्यवसाय डूबने लगा।”
“हमने बहुत झाड़-फूँक करवाई, बड़े-बड़े आचार्य और ज्योतिषी भी दिखाए। सबका यही कहना था कि अलक्ष्मी अशुभ है। जिस तरह लक्ष्मी सुख और धन की देवी है, उसी तरह अलक्ष्मी दरिद्रता और गरीबी का प्रतीक है। और जब तक वह हमारे साथ है, हमारा व्यवसाय डूबता रहेगा। पर हम किसी को घर से नहीं निकाल सकते थे, ना ही कहीं और भेज सकते थे।”
“इसलिए मैंने और योगेश ने एक योजना बनाई। हमने एक महीने के लिए लंदन जाने का फैसला किया, दिखावे के लिए हनीमून पर। लेकिन जाने से पहले, हमने अलक्ष्मी को बंगले के तहखाने में बंद कर दिया, जहाँ वह भूख-प्यास से खुद ही मर जाएगी। और ऐसा ही हुआ। जब हम वापस आए तो लाश के सड़ने की वजह से पूरा बंगला बदबू मार रहा था।”
“हमें लगा कि हमारी सारी मुसीबतें अपने आप ही हल हो गईं। किसे पता था कि हमने तो शैतान को अपने घर बुलाकर अपनी बर्बादी को न्योता दिया था? अगले कुछ महीनों में हम पूरी तरह से दरिद्र हो गए। सब कुछ बिक गया। बेसहारा होकर जब दर-दर भटक रहे थे, तब हमें किसी ने एक आश्रम का पता बताया। जब वहाँ पहुँचे, तो हम यह जानकर दंग रह गए कि तुम, मेरे श्रीधर, उसके आचार्य हो।”
“एक पल को लगा कि तुम्हारे पास लौट जाऊँ और तुमसे माफ़ी माँग लूँ। पर मेरी हताशा इतनी गहरी हो गई थी… मेरे इरादे कमज़ोर पड़ गए। हम बस सोचकर ही रह गए।” कुमुद की इस भयानक कहानी को सुनने के बाद श्रीधर बस इतना ही पूछ पाया, उसकी आवाज़ में तनाव था।
“तुम किसी शैतान का ज़िक्र कर रही थी, कुमुद… वह कौन है?” श्रीधर ने पूछा, उसकी नज़र उस पर टिकी थी। कुमुद ने मुश्किल से घूँट भरा। “श्रीधर, मैंने उसे अलक्ष्मी समझकर तहखाने में बंद किया था। लेकिन वह लक्ष्मी थी। यह चाल अलक्ष्मी ने खुद चली थी। शायद उसे पता चल गया था कि हम उसे वहीं मरने के लिए छोड़कर जाने वाले हैं।”
“तो, अलक्ष्मी ने हमें धोखे में रखा, और बेचारी लक्ष्मी उस तहखाने में तड़प-तड़प कर मर गई। जो लड़की तुम्हारे सामने खून की उल्टियाँ कर रही है, वह लक्ष्मी नहीं है; वह अलक्ष्मी है। उसने लक्ष्मी की आत्मा और मेरे पति योगेश की आत्मा, दोनों को अपने वश में कर लिया है।” आचार्य श्रीधर की आँखें अविश्वास से चौड़ी हो गईं। “वश में? भला यह कैसे मुमकिन है?”
“यह मुमकिन है, श्रीधर,” कुमुद ने पुष्टि की, उसकी साँसें उथली थीं। “पता नहीं अलक्ष्मी ने कहाँ से काला जादू सीखा, लेकिन उसने लक्ष्मी की आत्मा को अपने वश में कर लिया। जब मुझे इस बारे में पता चला, तो मैंने उसके खाने में ज़हर मिला दिया। फिर भी, उसने सिर्फ़ आधा ही खाया। अगर वह पूरा खा लेती, तो शायद मैं अब विधवा होकर नहीं मरती।”
“ज़हर का असर कभी भी ख़त्म हो सकता है। वह कभी भी होश में आ सकती है, श्रीधर!” कुमुद ने बेताबी से आग्रह किया। “इसीलिए मैं कह रही हूँ… उस डायन का गला घोंटकर उसे मार डालो!” पूरी भयानक कहानी सुनकर श्रीधर के होश उड़ गए थे। एक गहरा, दिल दहला देने वाला डर अब उसके दिल को जकड़ चुका था।
श्रीधर अभी कुमुद से बात कर ही रहा था कि अचानक उसे अपने पीछे किसी की मौजूदगी महसूस हुई। वह घूमकर पलटा, और उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अलक्ष्मी उसके सामने खड़ी थी, भयावह रूप से, अपने ही हाथ का मांस नोच-नोचकर खा रही थी। उसने तुरंत अपनी जेब टटोली, रुद्राक्ष की माला ढूँढने के लिए, पर वह तो उसने कुछ देर पहले ही योगेश को शांत करने के लिए उसके गले में डाल दी थी।
श्रीधर तुरंत समझ गया कि अब उसकी जान ख़तरे में है। डर के मारे वह दरवाज़े की ओर भागा, लेकिन अलक्ष्मी तेज़ी से उस तक पहुँची। उसने श्रीधर को गर्दन से पकड़ा और उसे सहजता से हवा में उठा दिया। “छोड़ दे, डायन!” कुमुद चीखी, उसकी आवाज़ कमज़ोर पर defiant थी। “श्रीधर ने तेरा क्या बिगाड़ा है? मैंने तेरी बहन को मारा था, फिर तुम श्रीधर को सज़ा क्यों दे रही हो?”
अलक्ष्मी की आवाज़, अब एक ठंडी गुर्राहट, कमरे में गूँज उठी। “क्यों..? जब अपना कोई तेरी आँखों के सामने मरता है तो तुझे बड़ी तकलीफ़ हो रही है? मेरी लक्ष्मी भी तो इसी तरह तड़पी होगी। उसकी सज़ा तो तुझे मिलकर ही रहेगी!” इन शब्दों के साथ, अलक्ष्मी का क्रोध फूट पड़ा। उसने श्रीधर की गर्दन इतनी ज़ोर से दबाई कि उसकी आँखों की पुतलियाँ फटकर बाहर आ गईं।
श्रीधर की ऐसी निर्मम मौत देखकर कुमुद भी अपने घावों के आगे हार गई और उसने आख़िरी साँस ली। अगली सुबह जब पुलिस को इस मामले की ख़बर मिली, तो वे भी इस दृश्य से पूरी तरह चकित थे। मामले को जल्द से जल्द रफ़ा-दफ़ा करने के लिए, उन्होंने कुमुद और श्रीधर की कॉलेज की प्रेम कहानी को आधार बनाकर एक झूठी कहानी गढ़ी। उन्होंने जनता को बताया कि कुमुद और श्रीधर के बीच अवैध संबंध थे, और जब यह बात योगेश, कुमुद के पति, को पता चली, तो उसने उन दोनों को मारकर खुद आत्महत्या कर ली।
रही बात लक्ष्मी की – जो अब पूरी तरह से अलक्ष्मी के वश में थी – वह अपनी जवानी एक सरकारी अनाथालय में काट रही है। वहाँ, उसकी एकमात्र साथी उसकी अपनी बहन, असली लक्ष्मी की आत्मा है, जिससे वह आज भी घंटों बातें करती है, एक भयानक अतीत की गूँज बनकर।











