अज्ञात गाँव का रहस्य

चार दोस्त – रवि, सीमा, राहुल और प्रिया – पहाड़ों की ओर एक लंबे सफर पर निकले थे। सूरज ढलने लगा और उनका जीपीएस काम करना बंद कर दिया। वे एक सुनसान सड़क पर भटक गए। अचानक, उन्हें दूर जंगल के बीच से एक धुंधली रोशनी दिखाई दी। उत्सुकता में, उन्होंने उस दिशा में गाड़ी मोड़ी, यह सोचकर कि शायद वहां कोई गाँव हो। सड़क कच्ची और ऊबड़-खाबड़ थी, जो एक पुराने, जीर्ण-शीर्ण गेट पर खत्म हुई। गेट के उस पार एक गाँव जैसा कुछ दिखाई दे रहा था, लेकिन वहाँ अजीब सी खामोशी छाई हुई थी।

गाँव में घुसते ही उन्हें एक अजीब सी गंध महसूस हुई – मिट्टी और नमी का मिश्रण, जिसमें कुछ और भी डरावना मिला हुआ था। घरों की खिड़कियाँ टूटी हुई थीं और दरवाज़े आधे खुले थे, मानो लोग अचानक सब कुछ छोड़कर चले गए हों। रवि ने डरते-डरते राहुल को आवाज़ दी, “यह जगह ठीक नहीं लग रही है।” तभी उन्हें एक पुराने कुएँ के पास कुछ हलचल दिखी। राहुल, जो हमेशा साहसी बनता था, कुएँ की ओर बढ़ गया। बाकी तीनों दोस्त वहीं गाड़ी के पास रुके रहे, उनके दिल ज़ोरों से धड़क रहे थे।

राहुल कुएँ के पास जाकर झुककर देखने लगा। अचानक, एक ठंडी हवा का झोंका आया और उसने एक अजीब सी फुसफुसाहट सुनी। “वापस जाओ… वापस जाओ…” आवाज़ इतनी धीमी थी कि राहुल को लगा उसने शायद गलती सुनी हो। वह पलटा और अपने दोस्तों की ओर देखने लगा। तभी कुएँ में से एक विकृत हाथ निकला और उसने राहुल के पैर पकड़ लिए। राहुल चीखा, लेकिन इससे पहले कि रवि और बाकी दोस्त कुछ समझ पाते, राहुल को खींचकर कुएँ के अंधेरे में गायब कर दिया गया। उनकी चीखें सुनसान गाँव में गूँज उठीं।

रवि, सीमा और प्रिया अब दहशत में थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। वे गाड़ी की ओर भागे, लेकिन गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी। इंजन बस ‘खुर्र खुर्र’ की आवाज़ कर रहा था, मानो कोई अदृश्य शक्ति उसे रोक रही हो। तभी उन्होंने एक और फुसफुसाहट सुनी, इस बार उनके ठीक पीछे से। “तुम सब भी…” वे तेज़ी से मुड़े, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। केवल पुराने, धूल भरे घर और उनके टूटे हुए शीशे थे जो उन्हें घूर रहे थे। उन्हें महसूस हुआ कि वे इस गाँव में फंस गए हैं और यहाँ से बाहर निकलना शायद नामुमकिन है। रात गहरी हो रही थी और हर तरफ़ से अजनबी, डरावनी आवाज़ें आने लगी थीं, जैसे अदृश्य आत्माएँ उन्हें घेर रही हों।

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