रोहन, प्रिया और उनकी नन्ही बेटी मीरा को कृष्णापुर गाँव की पुरानी हवेली विरासत में मिली। शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर, वे यहाँ एक शांत नए जीवन की उम्मीद में आए थे। हवेली विशालकाय और भव्य थी, लेकिन उसकी प्राचीन दीवारों में एक गहरी खामोशी सिमटी थी, जो मन में एक अजीब सी सिहरन पैदा करती थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें अंदर खींच रही हो।
मरम्मत का काम शुरू होते ही घर में अजीबोगरीब घटनाएँ होने लगीं। कभी भारी औजार अपने आप गायब होकर दूर कोने में मिलते, तो कभी खाली कमरों से धीमी फुसफुसाहट सुनाई देती, जैसे कोई गुप्त बात कर रहा हो। प्रिया ने इन्हें पुराने घर की आम आवाज़ें मानकर अनदेखा किया, पर रोहन के भीतर एक अनजाना डर धीरे-धीरे घर करने लगा था।
जल्द ही मीरा ने एक अदृश्य सहेली, ‘छाया’ के बारे में बताना शुरू कर दिया, जिसे वह एक उदास लड़की कहती थी। पहले तो रोहन और प्रिया ने इसे बच्ची का भोलापन समझा, लेकिन मीरा का व्यवहार बदलने लगा। वह पहले से अधिक शांत और गुमसुम रहने लगी, अक्सर खाली दीवारों को घूरती रहती, मानो किसी अनदेखे को देख रही हो, उसकी आँखें गहराई में कुछ तलाशतीं।
घर की डरावनी घटनाएँ बढ़ती जा रही थीं। रात में दरवाज़े खुद-ब-खुद खुलते-बंद होते, ऊपर के खाली कमरों से किसी के कदमों की हल्की आहट सुनाई देती। ठंडी हवा के झोंके अचानक पूरे घर में फैल जाते, जबकि सभी खिड़कियाँ बंद होती थीं। प्रिया को हर पल एक अदृश्य उपस्थिति महसूस होने लगी, जैसे कोई हर कोने से उन्हें लगातार घूर रहा हो, और रोहन का शक अब खौफ में बदल चुका था।
एक दिन मरम्मत करते हुए, रोहन को एक दीवार में छिपा हुआ एक पुराना डायरी मिला। यह डायरी दशकों पहले इसी हवेली में रहने वाली एक युवा लड़की, लीला की थी। शुरुआती पृष्ठों में उसके आम जीवन की बातें थीं, लेकिन धीरे-धीरे उसमें एक ‘अंधेरी शक्ति’ और कैद होने के अहसास का भयानक वर्णन मिलता गया, जो पढ़ने वाले के रोंगटे खड़े कर देता था।
डायरी के पन्नों से पता चला कि लीला को उसके क्रूर चाचा ने एक भयानक घटना का गवाह बनने के बाद हवेली के एक गुप्त कमरे में बंद कर दिया था। उस अँधेरे और अकेलेपन में, भय और उपेक्षा के कारण लीला ने दम तोड़ दिया। उसकी आत्मा न्याय की तलाश में उसी घर में भटक रही थी, कभी मुक्त न हो पाने के दर्द में तड़पती हुई।
जैसे-जैसे रोहन डायरी के रहस्यमय पन्ने पढ़ता गया, मीरा का ‘छाया’ से संबंध और गहरा होता गया। वह पुराने हिंदी वाक्य बोलने लगी, ठीक वैसे ही जैसे लीला ने अपनी डायरी में लिखे थे। मीरा एक खास दीवार की ओर इशारा करती, वही दीवार जिसके पीछे लीला को कैद किया गया था, और उसकी आँखों में एक अजीब सी, गहन चमक आ जाती।
एक रात प्रिया को एक भयानक सपना आया। उसने सपने में लीला के गहरे दुख, उसकी चीखें और उसकी घुटन को महसूस किया। वह पसीने से तरबतर होकर जागी, इस बात से पूरी तरह आश्वस्त थी कि यह घर सचमुच प्रेतवाधित है। बेटी मीरा की सुरक्षा को लेकर चिंतित प्रिया ने रोहन से तुरंत वह हवेली छोड़कर जाने की गुहार लगाई।
रोहन, अब पूरी तरह से इस बात पर यकीन कर चुका था, उसने गुप्त कमरा खोजने का निश्चय किया। डायरी में दिए गए सुरागों और मीरा के अजीबोगरीब संकेतों का अनुसरण करते हुए, उसे एक बड़ी किताबों की अलमारी के पीछे एक छिपा हुआ दरवाजा मिला। भीतर एक छोटा, धूल से भरा कमरा था, जहाँ सड़ी-गली चीजों की हल्की, भयानक गंध आ रही थी।
गुप्त कमरे में उन्हें एक पुराना, जंग लगा लॉकेट और कुछ सड़ी-गली चीज़ें मिलीं। जैसे ही उन्होंने लॉकेट को छुआ, एक बर्फीली हवा पूरे घर में फ़ैल गई, और मीरा अचानक बेहोश हो गई। तभी एक धीमी, दर्द भरी चीख गूंज उठी, जिसने सीधे उनकी आत्मा तक पहुँचकर पूरे माहौल को दहशत से भर दिया, एक अनकहा डर हर सांस में समा गया।
उन्हें एहसास हुआ कि लीला की आत्मा को पहचान और अपनी दुखद कहानी दुनिया के सामने रखने की ज़रूरत है। उन्होंने लीला को एक उचित अंतिम संस्कार देने का फैसला किया। उसकी स्मृति का सम्मान करने और उसकी तड़पती हुई आत्मा को अंततः शांति दिलाने के लिए उन्होंने हवेली में एक छोटा सा अनुष्ठान आयोजित किया।
अनुष्ठान के बाद, हवेली में अचानक एक अजीब सी शांति छा गई। अजीबोगरीब आवाज़ें पूरी तरह बंद हो गईं। मीरा सामान्य हो गई, अब वह अपनी अदृश्य सहेली छाया का कोई जिक्र नहीं करती थी। वह भयानक उपस्थिति हट गई थी, जैसे एक भारी बोझ उतर गया हो, और घर में एक नई, सुखद शांति महसूस होने लगी थी।
परिवार ने हवेली में रहने का फैसला किया, अब उन्हें कोई डर नहीं था। वे समझ गए थे कि लीला की आत्मा दुर्भावनापूर्ण नहीं थी, बल्कि एक फँसी हुई, दुखी आत्मा थी जो केवल शांति चाहती थी। उन्होंने उसकी याद को जीवित रखने का संकल्प लिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि उसकी दुखद कहानी कोई न भूले और उसे हमेशा सम्मान मिले।
जीवन धीरे-धीरे अपनी सामान्य गति में लौट आया। यह हवेली, जो कभी खौफ का स्रोत थी, अब एक सुरक्षित और शांत जगह बन गई थी, भले ही इसका एक दर्दनाक इतिहास था। उन्हें कभी-कभी एक कोमल उपस्थिति महसूस होती थी, लीला की याद दिलाती हुई, लेकिन अब वह डरावनी नहीं थी, बल्कि एक शांत, स्वीकार्य एहसास बन चुकी थी।
परिवार ने आखिरकार अपनी यह रहस्यमय कहानी भरोसेमंद दोस्तों और परिवार को सुनाई, यह सुनिश्चित करते हुए कि लीला की अनकही कहानी हमेशा सुनी जाए। वे एक ऐसे घर के रखवाले बने रहे जिसने कभी एक गहरा और दुखद रहस्य छिपा रखा था, अब यह शांत स्मरण और स्थायी शांति का स्थान था, जो हमेशा एक बच्ची की आत्मा से स्पर्शित था।











