अदृश्य छाया का आतंक

राहुल और प्रिया ने शहर की हलचल से दूर एक शांत ठिकाना ढूँढ़ने की उम्मीद में एक पुरानी, भव्य हवेली खरीदी। यह गाँव के बाहरी छोर पर, घने जंगल से घिरा हुआ था। घर की विशालता में एक अजीब सी खामोशी थी, जो भीतर तक सिहरन पैदा करती थी। उनकी छोटी बेटी, मीरा, शुरू में इस नए घर से बहुत खुश थी, पर जल्द ही उसने दीवारों से आती फुसफुसाहटों और खिड़कियों पर नाचती परछाइयों की बातें करनी शुरू कर दीं। राहुल और प्रिया ने इसे बच्ची की कल्पना या नए माहौल की प्रतिक्रिया मानकर टाल दिया। उन्हें लगा कि समय के साथ सब सामान्य हो जाएगा।

धीरे-धीरे, घर में अजीबोगरीब घटनाएँ बढ़ने लगीं। रात के अँधेरे में प्रिया को रसोई से बर्तनों के खिसकने की आवाज़ें आतीं, जैसे कोई अदृश्य हाथ उन्हें चला रहा हो। कभी-कभी, उसे लगता जैसे कोई उसके ठीक पीछे खड़ा है, उसकी साँसों की गरमाहट महसूस होती, पर जब वह मुड़ती तो वहाँ कुछ नहीं होता—केवल एक सर्द हवा का झोंका उसे छूकर निकल जाता। राहुल, जो हमेशा तर्क पर विश्वास करते थे, इन बातों को मन का वहम या पुरानी संरचना की आवाज़ें कहकर खारिज कर देते। पर प्रिया के मन में एक गहरी बेचैनी घर करती जा रही थी, जिसे वह अब और अनदेखा नहीं कर सकती थी।

मीरा ने एक नए दोस्त के बारे में बताना शुरू किया, जिसे वह “छाया” कहती थी। यह छाया केवल मीरा को ही दिखाई देती थी और उससे बातें करती थी। मीरा उसके साथ खेलती, हँसती और कभी-कभी तो डाँटती भी थी। उसके चित्र भी बदल गए थे; अब वह अक्सर गहरे रंगों में एक धुंधली आकृति बनाती थी, जिसकी आँखें बड़ी और शून्य होती थीं। जब प्रिया ने मीरा से उस आकृति के बारे में पूछा, तो मीरा ने बड़ी मासूमियत से कहा, “यह छाया है, मम्मी।” प्रिया को यह सब थोड़ा विचित्र लगा, लेकिन उसने इसे बच्चों की कल्पना का परिणाम ही समझा।

समय बीतने के साथ, राहुल को भी असामान्य अनुभवों का सामना करना पड़ा। एक रात, जब वह अपनी किताब में खोए हुए थे, तो लिविंग रूम की सारी बत्तियाँ अचानक टिमटिमाकर बुझ गईं और फिर खुद-ब-खुद जल उठीं। उन्होंने सोचा कि यह बिजली की खराबी होगी, लेकिन स्विच बोर्ड की जाँच करने पर सब सामान्य पाया गया। अगली सुबह, उन्होंने अपने बेडरूम का दरवाज़ा खुला पाया, जबकि उन्हें अच्छी तरह याद था कि उन्होंने उसे बंद किया था। घर में एक अदृश्य उपस्थिति का एहसास अब इतना प्रबल हो चुका था कि इसे किसी भी तर्क से नकारा नहीं जा सकता था।

प्रिया ने स्थानीय पुस्तकालय से उस घर के इतिहास की खोजबीन शुरू की। उसने चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए: दशकों पहले, इस हवेली में छाया नाम की एक छोटी बच्ची की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। गाँव वाले आज भी उस घटना को एक दुखद और अनसुलझा रहस्य मानते थे। कुछ पुरानी कहानियों में घर को “मनहूस” बताया गया था, जहाँ किसी बच्ची की आत्मा भटकती है। प्रिया के रोंगटे खड़े हो गए। मीरा के दोस्त का नाम “छाया” था – यह केवल एक संयोग नहीं हो सकता था। आत्मा ने उनकी बेटी को अपना नया साथी बना लिया था।

अब छाया की उपस्थिति पहले से कहीं अधिक आक्रामक हो गई थी। मीरा अक्सर डरी हुई, भ्रमित और अस्वस्थ दिखाई देती। वह कभी-कभी ऐसी बातें करती जो उसकी उम्र के बच्चों को पता नहीं होतीं, और उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गूँज सुनाई देती थी। एक शाम, जब प्रिया मीरा को सुला रही थी, उसने कमरे के कोने में एक हल्की परछाई को हिलते हुए देखा। परछाई एक छोटी बच्ची की थी, जो मीरा की ओर देख रही थी, उसकी आँखें बिल्कुल वैसी थीं जैसी मीरा अपनी ड्राइंग्स में बनाती थी। प्रिया को लगा कि उसका दिल धड़कना भूल गया है।

एक भयानक रात, जब राहुल और प्रिया गहरी नींद में थे, उन्हें मीरा के कमरे से एक तीखी चीख सुनाई दी। वे भागकर मीरा के कमरे में पहुँचे। मीरा अपने बिस्तर पर सहमी हुई बैठी थी, उसकी आँखें छत की ओर टकटकी लगाए हुए थीं, जहाँ एक धुंधली आकृति धीरे-धीरे ठोस रूप ले रही थी। आकृति एक छोटी बच्ची की थी, जिसके चेहरे पर पीड़ा और क्रोध का मिलाजुला भाव था। उसने मीरा की ओर अपना हाथ बढ़ाया, जैसे उसे अपने साथ ले जाना चाहती हो। राहुल ने मीरा को तुरंत अपनी बाहों में भर लिया, और प्रिया ने उस भयावह आकृति पर चिल्लाना शुरू कर दिया।

घर की हवा में अचानक भयानक ठंडक भर गई, और कमरे में रखी चीजें अपने आप गिरने लगीं। राहुल और प्रिया को समझ आ गया कि वे इस शक्तिशाली आत्मा से लड़ नहीं सकते। उनका एकमात्र रास्ता बचना था। वे मीरा को लेकर तुरंत घर से बाहर निकले, अपनी जान बचाते हुए, पीछे मुड़कर देखे बिना। उन्होंने उस घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया। आज भी, उस हवेली के बारे में कहानियाँ सुनाई जाती हैं, जहाँ एक छोटी बच्ची की आत्मा अपने “साथी” की तलाश में भटकती रहती है, और जो कोई भी वहाँ रहने आता है, उसे उसकी भयावह उपस्थिति का सामना करना पड़ता है।

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