डरावनी हवेली का रहस्य

चार दोस्त – माया, रोहन, समीर और प्रिया – एक रात पहाड़ों की ओर ड्राइव कर रहे थे। आधी रात के करीब उनकी कार अचानक घने जंगल के बीच, एक सुनसान सड़क पर खराब हो गई। आस-पास कोई बत्ती नहीं थी, सिर्फ़ पेड़ों की सरसराहट और दूर कहीं उल्लू की आवाज़। अंधेरा इतना गहरा था कि वे एक-दूसरे का चेहरा भी मुश्किल से देख पा रहे थे। मोबाइल में सिग्नल भी नहीं था। उन्हें रात बिताने के लिए कोई जगह ढूंढनी थी।

कुछ देर पैदल चलने के बाद, उन्हें दूर एक परछाई-सी दिखी। पास जाकर पता चला कि वह एक पुरानी, खंडहर-जैसी हवेली थी। डरावनी लग रही थी, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। किसी तरह वे हवेली के भारी-भरकम दरवाज़े को धक्का देकर अंदर घुसे। अंदर एक अजीब-सी ठंडक और पुरानी, मिट्टी की महक थी। फर्श पर धूल की मोटी परत जमी थी और दीवारों पर जाले लगे थे।

रोहन, जो सबसे ज़्यादा हिम्मतवाला था, उसने अपने मोबाइल की टॉर्च जलाई। उसकी रोशनी में विशाल कमरों की झलक दिखी, जो टूटे-फूटे फर्नीचर और रहस्यमयी पेंटिंग्स से भरे थे। माया को अँधेरे से डर लगता था, और हवेली की चुप्पी उसे और भी बेचैन कर रही थी। प्रिया को अकेलेपन से नफरत थी, पर यहाँ अपने दोस्तों के साथ होने के बावजूद, उसे एक अजीब-सा अकेलापन महसूस हो रहा था। समीर को बंद जगहों से घुटन होती थी, और हवेली की दीवारें उसे अपने ऊपर गिरती हुई महसूस हो रही थीं।

जैसे ही उन्होंने एक कमरे में डेरा डालने की सोची, उन्हें पीछे से फुसफुसाहट की आवाज़ सुनाई दी। “कौन है वहाँ?” रोहन ने पूछा, पर कोई जवाब नहीं मिला। आवाज़ें अचानक बंद हो गईं, और फिर से वही अजीब सन्नाटा छा गया। उन्होंने एक-दूसरे की तरफ़ देखा, उनके चेहरों पर डर साफ झलक रहा था। रोहन ने उन्हें दिलासा देने की कोशिश की, “शायद यह सिर्फ़ हवा थी, या हमारी कल्पना।” पर उसके शब्द खोखले लग रहे थे।

उन्होंने सोने की कोशिश की, लेकिन किसी को नींद नहीं आ रही थी। माया ने आँखें बंद करते ही एक काली परछाई को अपने बिस्तर के पास खड़ा देखा, जिसकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं। प्रिया को लगा जैसे ठंडे हाथ उसके पैरों को छू रहे हैं और कोई उसका नाम बुदबुदा रहा है, “प्रिया… तुम अकेली हो…” समीर को महसूस हुआ कि दीवारें धीरे-धीरे पास आ रही हैं, उसे कुचलने के लिए। हर कोई अपने सबसे गहरे डर से घिर चुका था।

रोहन ने देखा कि उसके दोस्त अपनी नींद में कराह रहे थे, उनके चेहरे पर दहशत थी। उसे महसूस हुआ कि यह सिर्फ़ एक पुरानी हवेली नहीं है, बल्कि कुछ बुराई है जो उनके डर पर पल रही है। उसने उन्हें जगाने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी निजी दुःस्वप्न में फँसे हुए थे। हवेली की हवा भारी हो रही थी, जैसे कि कोई अदृश्य शक्ति उनके डर को सोख रही हो।

रोहन ने भागने का फैसला किया। उसने दरवाज़े की तरफ़ दौड़ लगाई, लेकिन कमरे के रास्ते अचानक बदल गए। गलियारा लंबा होता चला गया, और उसे लगा जैसे दीवारें उसके पीछे दौड़ रही हैं। फिर अचानक उसके सामने एक कंकालनुमा आकृति प्रकट हुई, जिसकी आँखें लाल अंगारों-सी चमक रही थीं। वह उनकी सामूहिक डर का साकार रूप थी। रोहन ने अपनी पूरी ताकत लगाई, अपनी आँखों को बंद करके उस डर को दूर करने की कोशिश की।

अगले ही पल, उसने माया को झकझोर कर जगाया। माया हाँफते हुए उठी, उसकी आँखें लाल थीं। जैसे ही भोर की पहली किरण हवेली की खिड़की से अंदर आई, हवेली की भयानक ऊर्जा कम होती महसूस हुई। वे किसी तरह लड़खड़ाते हुए बाहर निकले। बाहर धूप में, हवेली उतनी डरावनी नहीं लग रही थी, जितनी रात में थी। उन्होंने कभी उस रात की बात दोबारा नहीं की, लेकिन उस हवेली का डर हमेशा उनके साथ रहा।

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