प्रेतवाधित हवेली का रहस्य

गाँव के छोर पर एक पुरानी, जीर्ण-शीर्ण हवेली खड़ी थी, जिसके बारे में सदियों से डरावनी कहानियाँ प्रचलित थीं। लोग कहते थे कि रात में वहाँ से अजब-गजब आवाजें आती हैं, और जिसने भी अंदर जाने की हिम्मत की, वह कभी लौटकर नहीं आया। एक तूफानी रात, चार दोस्त – अर्जुन, समीर, प्रिया और रवि – ने एक चुनौती स्वीकार की। उन्हें उस हवेली के अंदर जाकर आधी रात तक रुकना था, ताकि वे अपने साहस को साबित कर सकें। हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी, और बिजली कड़कने की आवाज से माहौल और भी भयावह लग रहा था।

जैसे ही उन्होंने हवेली का भारी, जंग लगा दरवाजा खोला, एक सड़ी हुई गंध ने उनका स्वागत किया। अंदर घना अँधेरा था, जिसे उनकी टॉर्च की रोशनी भी पूरी तरह से भेद नहीं पा रही थी। दीवारों पर काई जमी थी और हर तरफ धूल की मोटी परत बिछी थी। वे धीरे-धीरे आगे बढ़े, हर कदम पर पुरानी लकड़ी के फर्श से चरमराहट की आवाज आती। अचानक, समीर को लगा जैसे किसी ने उसके कंधे को छुआ हो, लेकिन पीछे कोई नहीं था। एक फुसफुसाहट सुनाई दी, जो किसी अदृश्य स्रोत से आ रही थी, “तुम यहाँ क्यों आए हो…?”

प्रिया ने डरकर अर्जुन का हाथ कस कर पकड़ लिया। वे एक बड़े हॉल में पहुँचे जहाँ टूटे हुए फर्नीचर बिखरे पड़े थे। तभी, एक तेज हवा का झोंका आया और एक पुरानी खिड़की ‘धड़ाम’ से बंद हो गई। टॉर्च की रोशनी अचानक टिमटिमाने लगी और फिर पूरी तरह बुझ गई। अँधेरे में, उन्हें एक बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी, जो पहले धीरे थी, फिर तेज़ होती गई। रवि ने अपनी टॉर्च फिर से जलाने की कोशिश की, लेकिन वह काम नहीं कर रही थी। अर्जुन ने चिल्लाकर कहा, “चलो, यहाँ से चलते हैं!” लेकिन जब उन्होंने मुड़कर देखा, तो समीर उनके साथ नहीं था।

उनका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वे समीर को पुकारते रहे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। तभी, हॉल के दूसरे छोर से एक भयानक चीख सुनाई दी। वे उस आवाज की ओर भागे, जहाँ उन्हें समीर एक पुराने, टूटे हुए आईने के सामने खड़ा मिला। उसकी आँखें खाली थीं, और वह एक अजीब-सी धुन गुनगुना रहा था। आईने में उसका प्रतिबिंब भयानक रूप से विकृत दिख रहा था, जैसे कोई और ही उसे नियंत्रित कर रहा हो। आईने के भीतर से एक ठंडी, नीली रोशनी निकली और समीर की आत्मा को अपनी ओर खींचने लगी।

अर्जुन ने हिम्मत करके समीर को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसका शरीर बर्फ-सा ठंडा था और हिल भी नहीं रहा था। आईने के अंदर एक छायादार आकृति दिखाई दी, जिसकी आँखें अंगारों-सी लाल थीं। उसने एक भयानक हँसी हँसी, जिससे हवेली की दीवारें थर्रा उठीं। डर के मारे प्रिया और रवि चिल्ला पड़े और वे तीनों किसी तरह समीर को छोड़कर हवेली से बाहर भागे। वे कभी उस रात की भयावहता को भूल नहीं पाए। समीर कभी वापस नहीं आया, और हवेली आज भी गाँव वालों के लिए एक रहस्यमयी और डरावनी जगह बनी हुई है।

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