पुराने हवेली का रहस्य

विक्रम एक इतिहासकार था, जो अपने पैतृक हवेली के गहरे राज़ जानने के लिए उत्सुक था। यह हवेली शहर से दूर, घने जंगलों के बीच बसी थी और बरसों से वीरान पड़ी थी। जैसे ही उसने लकड़ी का भारी दरवाज़ा खोला, धूल और सीलन भरी हवा ने उसका स्वागत किया। अंदर की खामोशी इतनी गहरी थी कि उसकी अपनी साँसों की आवाज़ भी अजीब लग रही थी। दीवारों पर लगे पुराने चित्रों की आँखें जैसे उसे घूर रही थीं। यहाँ का माहौल किसी पुरानी कहानी का हिस्सा लग रहा था, जहाँ हर कोने में कोई रहस्य छिपा हो। विक्रम ने अपनी टॉर्च जलाई और भीतर कदम रखा, अनजाने भय से उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।

पहली रात, विक्रम को अजीबोगरीब आवाज़ें सुनाई दीं। कभी ज़मीन पर घिसटने की, तो कभी सीढ़ियों पर किसी के चलने की। उसने सोचा कि यह सिर्फ़ हवा का खेल है या पुरानी लकड़ी की आवाज़ें, पर अगली सुबह उसे रसोई में टूटे हुए बर्तन मिले। कोई तो था, जो रात भर हवेली में घूम रहा था। उसने हर कमरे की जाँच की, पर कोई नहीं मिला। एक पुराने शीशे के सामने खड़ा होकर उसने महसूस किया, जैसे कोई उसकी पीठ पीछे खड़ा है। हवा में एक ठंडी लहर दौड़ गई, और उसकी गर्दन के बाल खड़े हो गए। उसने तेज़ी से मुड़कर देखा, पर वहाँ सिवाय अपने प्रतिबिंब के और कोई नहीं था।

दिन गुज़रने के साथ घटनाएँ और भयानक होती गईं। एक रात, उसे एक कमरे से पुरानी लोरियों की आवाज़ सुनाई दी, जो तुरंत बंद हो गई जब वह दरवाज़े के पास पहुँचा। फिर उसने एक पुरानी डायरी खोजी, जो धूल की मोटी परत के नीचे छिपी थी। डायरी में एक महिला ने अपनी बेटी को खोने के बाद हुए भयानक अनुष्ठानों का ज़िक्र किया था। अंतिम पन्ने पर, कुछ अस्पष्ट शब्द खून से लिखे हुए थे, जिसमें किसी आत्मा को ‘शांत’ करने की बात कही गई थी। विक्रम का दिमाग़ घूम गया। यह केवल एक पुरानी हवेली नहीं, बल्कि किसी अशांत आत्मा का कारावास थी।

अगली रात, जब विक्रम डायरी पढ़ने में लीन था, तो कमरे में अचानक रोशनी टिमटिमाते हुए बंद हो गई। पूरी हवेली में घनघोर अँधेरा छा गया। उसने अपनी टॉर्च उठाई, पर वह भी काम नहीं कर रही थी। एक पल के लिए उसे लगा कि कोई अदृश्य शक्ति उसे खींच रही है। दीवारों पर छायादार आकृतियाँ नाचने लगीं, और हवा में सड़ी हुई मांस की गंध फैल गई। फिर उसने अपने सामने एक धुँधली आकृति देखी – एक महिला, जिसकी आँखें काली थीं और जो एक बच्चे को अपनी बाहों में पकड़े हुए थी। उसका मुखमंडल पीड़ा और क्रोध से भरा था।

आकृति ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया, जैसे उसे अपने साथ ले जाना चाहती हो। विक्रम का पूरा शरीर काँप रहा था। उसे लगा कि उसकी आत्मा उसके शरीर से निकल जाएगी। वह चीखना चाहता था, पर उसकी आवाज़ गले में ही अटक गई। अपनी पूरी ताक़त लगाकर, वह उस आकृति से पीछे हटा और अंधाधुंध दरवाज़े की तरफ़ भागा। बिना पीछे मुड़े, वह हवेली से बाहर निकला और तब तक दौड़ता रहा जब तक वह जंगल से बाहर नहीं आ गया। उसने उस हवेली की दहलीज पर कभी वापस न लौटने की कसम खाई। पुराने हवेली का रहस्य आज भी उस जंगल की खामोशी में दफ़न है, इंतज़ार कर रहा है कि कोई नया शिकारी उसके चंगुल में फँसे।

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