काले गुलाब का श्राप

मैं नीलेश हूँ, और यह मेरी कहानी है। एक समय मैं भी आप सबकी तरह एक साधारण इंसान था, पर आज दुनिया मुझे पागल कहती है। जो लोग कभी मेरा हालचाल पूछते थे, आज वही मुझे देखकर पत्थर फेंकते हैं, डरकर अपना रास्ता बदल देते हैं। यह सब मेरे एक भयानक गलत फैसले का नतीजा है, जिसे अब मैं चाहकर भी ठीक नहीं कर सकता। उस एक गलती ने मेरा सब कुछ छीन लिया, और मुझे इस अँधेरी खाई में धकेल दिया जहाँ से निकलना नामुमकिन है।

एक सर्द शाम, मैं दफ्तर से घर लौट रहा था। अपने मनपसंद गाने की धुन में खोया हुआ था कि तभी रास्ते में एक साधु दिखाई दिया। मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था। साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्या बात है बेटा, आज बहुत खुश दिख रहे हो? इतनी खुशी किस बात की है?” मैं उसे अनसुना करके आगे बढ़ने ही वाला था कि उसके अगले शब्द सुनकर मेरे पैर थम गए। उसने धीमी, रहस्यमयी आवाज़ में कहा, “शहनाज़ तुझे बहुत पसंद है ना? चिंता मत कर। मेरी बात मानेगा तो वो भी तुझे चाहने लगेगी।”

मैं हैरान रह गया। “पर आप हैं कौन, और आपको कैसे पता कि मैं शहनाज़ को चाहता हूँ?” मैंने पूछा, ना चाहते हुए भी उसके सामने रुक गया। मेरी बेचैनी देखकर साधु मुस्कुराया। “अरे नीलेश, परेशान क्यों होता है? मैंने कोई जादू-टोना नहीं किया तुम पर बल्कि शहनाज़ के बारे में तो तुमने ही मुझे बताया है।” मैं अचंभित था। “नहीं, मैंने तो आपसे कभी बात नहीं की, फिर यह कैसे संभव है?” मुझे उस पर शक तो शुरू से ही था, पर जैसे-जैसे वह मेरे बारे में बताता जा रहा था, मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति मुझे उसकी ओर खींच रही हो।

“बाबा, आप कुछ कहते क्यों नहीं? मैंने आपको शहनाज़ के बारे में कब बताया?” मैंने फिर पूछा। साधु ने एक गहरी साँस ली और बोला, “नीलेश, मैं अक्सर यहीं बैठा लोगों को आते-जाते देखता हूँ, और रात होते ही पीछे कब्रिस्तान में सो जाता हूँ। यही मेरा जीवन है। मैंने तुम्हें खुद से बातें करते देखा, तुम्हारे चेहरे पर एकतरफा प्यार का दर्द साफ झलक रहा था। एक दिन तुम्हारे मुँह से उस लड़की का नाम सुना – शहनाज़।”

“मेरा मन हुआ तुमसे बात करने का, क्योंकि मैं जिससे प्यार करता था, उसका नाम भी शहनाज़ ही था।” मुझे पहले तो खुशी हुई, पर फिर मैं चौंक गया। “था… का क्या मतलब है? आपकी शहनाज़ को क्या हुआ?” साधु के चेहरे पर दर्द की एक लहर दौड़ गई, पर उसने जवाब नहीं दिया। उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा। “नीलेश, चिंता मत करो। यह लो सफेद गुलाब। कल इसे अपनी शहनाज़ के बालों में लगा देना, और वह तुम्हें तुरंत हाँ कर देगी।” उस सफेद गुलाब को देखकर मुझे अजीब लगा, पर मैं अपने एकतरफा प्यार में इतना अंधा था कि कुछ और सोचे बिना मैंने वह गुलाब ले लिया और घर आ गया। उस रात मुझे नींद नहीं आई।

पूरी रात, मैं साधु के दिए सफेद गुलाब में शहनाज़ का चेहरा देखता रहा, कल्पना कर रहा था कि कब वह मुझे हाँ कहेगी और मैं उसे अपनी बाँहों में भर लूँगा। इन मीठे सपनों में ही रात बीत गई, सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला। ‘शहनाज़, आई लव यू!’ और फिर वह मुझे प्यार से गले लगा लेगी। मैं बस यही सोचता रहा कि उसे हाँ कहने के बाद कहाँ ले जाऊँ – खाने पर, या खरीदारी के लिए? खुद से बातें करता हुआ जब मैं दफ्तर पहुँचा, तो शहनाज़ कहीं दिखाई नहीं दी। किसी तरह बेचैनी में दिन खत्म हुआ। शाम हो गई। सभी लोग जा चुके थे, पर मैं अभी भी शहनाज़ का इंतज़ार कर रहा था।

मैं दफ्तर में बैठा था कि अचानक शहनाज़ मेरे सामने आ गई। उसके गले में वरमाला थी। उसने मेरे ही बॉस से शादी कर ली थी। दिल टूटना किसे कहते हैं, मैंने उस पल अनुभव किया। मैं उस भयानक पल को शब्दों में बयां नहीं कर सकता था। मेरा मन कर रहा था कि सब कुछ छोड़कर कहीं दूर भाग जाऊँ। तभी शहनाज़ मेरे पास आई और गले लगाते हुए बोली, “नीलेश, मैं तुम्हें सब कुछ बताने ही वाली थी, पर सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि मुझे मौका ही नहीं मिला।” वह अभी बोल ही रही थी कि उसकी नज़र मेरे हाथ में साधु के दिए सफेद गुलाब पर पड़ी।

“अरे वाह!” शहनाज़ ने खुशी से कहा, “तुम सच में मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। मेरे लिए सफेद गुलाब लाए हो? यह मेरा पसंदीदा है! लाओ, इसे मुझे दो, मैं इसे अपने बालों में लगा लेती हूँ।” कहते ही उसने मेरे हाथों से गुलाब लेकर अपने बालों में लगा लिया। गुलाब लगाते ही उसकी आँखों में कुछ अजीब हुआ। उसकी आँखें एकदम लाल हो गईं। मैं चौंका, पर अगले ही पल इसे अपना वहम समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया। गुलाब लगाते ही वह पूरी तरह बदल गई थी। वह खुद को शीशे में देख रही थी और एक अजीब सी हँसी हँसे जा रही थी, जैसे किसी पुरानी आत्मा को नया शरीर मिल गया हो। एक पल को मुझे लगा कि शहनाज़ अंधेरे में किसी से बात कर रही है।

शीशे में देखकर शहनाज़ बुदबुदाई, “लो, मैं आ गई। क्या खूबसूरत जिस्म ढूंढा है तुमने? इस बार कसम से दिल खुश हो गया। जल्दी तेरे पास आती हूँ, तुझे भी खुश करने।” “यह अंधेरे में किससे बातें कर रही हो तुम?” मैंने उससे पूछा, पर उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मुझे पहचानती ही न हो। बिना कुछ कहे वह दफ्तर से बाहर निकल गई। “शहनाज़, सुनो तो… इतनी रात में कहाँ जा रही हो? तुम्हारा पति तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है, शहनाज़!” मैं उसे पुकारता हुआ उसके पीछे भागा, पर मेरे बार-बार बुलाने पर भी उसने एक बार भी मुड़कर नहीं देखा। मेरे मन को किसी अनहोनी का डर सता रहा था। तभी मैंने देखा, शहनाज़ एक कब्रिस्तान के अंदर जा रही थी।

“यह कब्रिस्तान…” मैंने खुद से कहा, “यह तो वही कब्रिस्तान है जिसमें वह साधु रहता है!” तभी मुझे किसी के मंत्रोच्चारण की आवाज़ सुनाई दी। शहनाज़, एक जीवित लाश की तरह, उन्हीं मंत्रों की दिशा में बढ़ती जा रही थी। मैं एक कब्र के पीछे छिपकर यह सब देख रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, मैंने देखा कि वही साधु हवन कुंड में कुछ मंत्र पढ़ते हुए अपने खून की आहुति दे रहा था। साधु ने मंत्र पढ़ते-पढ़ते अपनी एक आँख खोली और शहनाज़ को अपने सामने खड़े देखा। शहनाज़ को देखते ही उसके चेहरे पर एक भयानक मुस्कान फैल गई। अब मुझे सब कुछ साफ-साफ समझ में आ चुका था।

“अच्छा, तो इस साधु ने सफेद गुलाब पर काला जादू किया था!” मैंने बुदबुदाया। साधु ने शहनाज़ को अपने पास आने का इशारा किया, और वह एक सम्मोहित सी उसके पास बढ़ने लगी। मैंने चिल्लाते हुए साधु से कहा, “तो इस साजिश के पीछे तेरा हाथ है, और तूने जो कुछ भी कहा, वह सब झूठ था?” साधु मुझे गुस्से में देखकर मुस्कुराया और हवन कुंड में फिर से अपने खून की आहुति डालते हुए बोला, “इस संसार में प्यार जैसा कुछ नहीं होता। यह सब सिर्फ एक कल्पना है, और कुछ नहीं। अगर इस संसार में कुछ वास्तविक है, तो वह है वासना… सिर्फ और सिर्फ वासना।”

“और हाँ… मैंने तुझसे जो कुछ भी कहा था, वह सब झूठ था, बिल्कुल तेरे एकतरफा प्यार की तरह। अभी तो मैं तेरी आँखों के सामने ही तेरे प्यार को तार-तार करने वाला हूँ।” इतना कहकर साधु ने शहनाज़ को अपनी बाँहों में भर लिया। यह देखकर मेरे पूरे बदन में आग लग गई। जिस हवन कुंड में साधु अपने खून की आहुति दे रहा था, उसी में से दो और साधु निकल आए। उन्होंने मुझे पकड़ लिया और मेरा गला दबाने लगे। मैं अपनी आखिरी साँस के लिए भी उन भयानक बहरूपियों से लड़ रहा था।

तभी मैंने देखा, साधु ने शहनाज़ को अपनी गोद में बिठाया हुआ था, उसके गालों को छू रहा था और उसके जिस्म को सहला रहा था। वह पल था जब मुझे अपने किए पर गहरी शर्मिंदगी हुई, क्योंकि शहनाज़ के साथ जो कुछ भी हो रहा था, उसका कारण मैं ही था। उस बेचारी को तो इस बारे में कुछ पता भी नहीं था। मैं साधु के सामने खूब गिड़गिड़ाया। “अरे! क्या बिगाड़ा है इसने तेरा? मैं तेरे हाथ जोड़ता हूँ!” मैं उससे शहनाज़ की भीख माँग रहा था, पर साधु ने मेरी एक न सुनी।

वह साधु अब शहनाज़ के जिस्म से कपड़े नोंचने लगा था, जो मुझे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं था। जिन बहरूपिए साधुओं ने मुझे दबोच रखा था, मैं उन सबको अपने साथ घसीटता हुआ हवन कुंड की ओर बढ़ने लगा। शहनाज़ उस असली साधु की बाँहों में किसी बेजान गुड़िया की तरह पड़ी हुई थी, जिसे वह साधु चूमने जा ही रहा था कि तभी मैं हवन कुंड के पास पहुँचा। मैंने उसे एक लात मारी और दूर फेंक दिया, जिससे उसकी आग ज़मीन पर फैलकर बुझ गई। आग के खत्म होते ही, वे बहरूपिए साधु हवा में विलीन हो गए।

“दुष्ट! यह क्या किया तूने?” साधु मुझ पर चिल्लाया, “तूने हवन कुंड की आग को ही बुझा दिया। तुझे पता भी है, तूने कितना बड़ा अनर्थ किया है?” वह हाथ में चाकू लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था। मैं भी उसे अपनी ओर आता देख तैयार हो गया। उसके पास आते ही मैंने उस पर लातों और घूँसों की बरसात कर दी। उसके मुँह से खून निकलने लगा। मैंने उस साधु के जिस्म की कितनी हड्डियाँ तोड़ीं, यह मुझे खुद नहीं पता। मुझे तब होश आया, जब वह मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगा और अपनी जान की भीख माँगने लगा।

“नीलेश, मुझे माफ़ कर दे, माफ़ कर दे मुझे!” साधु गिड़गिड़ाने लगा। पर मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ था, और मैं गुस्से में उसका गला दबाकर उसे जान से मारने ही वाला था कि तभी मुझे शहनाज़ की आवाज़ सुनाई दी। “नीलेश! नीलेश…” शहनाज़ अपने हाथ में साधु का चाकू लिए मेरे पीछे खड़ी थी। हवन कुंड की अग्नि बुझते ही सफेद गुलाब पर किया गया काला जादू भी खत्म हो गया था, और शहनाज़ होश में आ चुकी थी। उसने अपनी हालत देखी, तो अगले ही पल उसे सब कुछ समझ आ गया। वह पूरी तरह टूट चुकी थी, उसकी आँखों में आँसू थे।

“नीलेश, तुमने मुझे बर्बाद कर दिया!” शहनाज़ ने सिसकते हुए कहा, “मैं तो तुम्हें एक अच्छा दोस्त समझती थी, पर तुम तो हैवान निकले। तुमने मेरा घर बसने से पहले ही उजाड़ दिया। नीलेश, मेरी नई-नई शादी हुई थी, मैंने अपना परिवार बसाने के सपने देखे थे, और तुमने सब कुछ बर्बाद कर दिया… सब बर्बाद कर दिया। तुम मेरे दोस्त नहीं, दुश्मन हो, दुश्मन!” शहनाज़ की यह बातें मेरे दिल में तीर की तरह चुभ गईं। जिस प्यार के लिए मैं तरस रहा था, उसी प्यार की नज़रों में आज मैं एक हैवान बन चुका था। यह सब मेरे एक गलत फैसले के कारण हुआ था। मैं जानता था कि जो गलती मैं कर चुका हूँ, उसे अब मैं चाहकर भी सुधार नहीं सकता।

फिर भी मैंने कोशिश की और शहनाज़ को पूरी बात बताने के लिए उसकी तरफ बढ़ा। तभी शहनाज़ ने मुझे चाकू दिखाते हुए कहा, “रुक जा, हैवान! मुझे गंदा करने के बाद भी तेरा मन नहीं भरा, जो तू फिर से मेरे करीब आना चाहता है? खबरदार… अगर एक कदम भी मेरी तरफ बढ़ाया तो! मैं मर जाऊँगी, पर तुझे खुद को छूने नहीं दूँगी!” “नहीं शहनाज़, तुम गलत समझ रही हो। एक बार मेरी बात तो सुनो!” यह मेरे आखिरी शब्द थे जो शहनाज़ ने सुने। मैं उसे समझाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि शहनाज़ ने मुझे अपनी तरफ आता देख आत्महत्या कर ली। अपने हाथ में लिए चाकू को उसने अपने पेट में घुसा दिया और दर्द के मारे तड़पने लगी।

“शहनाज़, यह तुमने क्या किया? क्यों मुझे इतनी बड़ी सज़ा दे रही हो? शहनाज़, मेरी बात तो सुनो!” मैं शहनाज़ को संभालने उसकी तरफ बढ़ा ही था, पर उसने मुझे खुद को छूने से भी रोक दिया। “नीलेश, खबरदार अगर तुमने मुझे छुआ भी! मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी परछाई भी मुझ पर पड़े। तुम एक हैवान हो, हैवान! मुझे शर्म आती है कि मैंने तुम्हें कभी अपना दोस्त समझा था!” इतना कहकर शहनाज़ मेरी आँखों के सामने मर गई। मेरे प्यार ने मेरी आँखों के सामने ही अपना दम तोड़ दिया, जिसकी वजह मैं खुद था।

शहनाज़ की वो आखिरी बातें मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया और अपना दिमागी संतुलन खो बैठा। लोग मुझे देखकर डरते हैं, दूर भागते हैं, मुझे पत्थर मारते हैं। पर मैं इसी कब्रिस्तान में अपने प्यार, अपनी शहनाज़ की कब्र के पास पड़ा रहता हूँ। उसकी कब्र को छूता नहीं, क्योंकि उसे यह अच्छा नहीं लगता। बस दिन-रात उससे माफी माँगता रहता हूँ, इस उम्मीद में कि शायद किसी रोज़ वह मुझे माफ़ कर देगी। मैं खुद को याद दिलाता हूँ कि मैं एक हैवान हूँ… सिर्फ एक हैवान, जिसने अपने ही प्यार को तबाह कर दिया।

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