नीता, एक होशियार लेकिन अकेली रहने वाली कॉलेज छात्रा, अपनी परीक्षा खत्म होने के बाद अपने गाँव लौटना चाहती थी। गाँव जाने के लिए एकमात्र विकल्प एक रात की ट्रेन थी। उसने दो महीने पहले ही टिकट के लिए आवेदन दे दिया था, लेकिन उसकी किस्मत में शायद कुछ और ही लिखा था। सफर से एक दिन पहले तक उसकी टिकट वेटिंग लिस्ट में ही अटकी हुई थी।
नीता ने सफर के लिए कुछ स्नैक्स और रास्ते में पढ़ने के लिए एक हॉरर नॉवल खरीद ली—“ट्रेन का भूत“। भूतिया कहानियाँ पढ़ना उसका शौक़ था, लेकिन इस रुचि के कारण कॉलेज में लोग उससे दूरी बनाकर रखते थे। नीता को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था; वह अकेले रहना पसंद करती थी।
अजीब शुरुआत
अगले दिन नीता रेलवे स्टेशन पहुँची। वेटिंग लिस्ट अभी भी क्लियर नहीं हुई थी, लेकिन ट्रेन के आने में कुछ ही मिनट बचे थे। मजबूरी में वह बिना रिज़र्वेशन वाली एक खाली सीट पर बैठ गई और नॉवल पढ़ने में खो गई।
जैसे जैसे ट्रेन ने गति पकड़ी, नीता पूरी तरह से किताब में डूब गई। कहानी में भूतों को बुलाने वाला एक रहस्यमय मंत्र था, जिसे अनजाने में नीता ने ज़ोर से पढ़ लिया। वहीं से सब कुछ बदल गया। भूत की कहानियां डरावनी
अंदर कुछ उतर आया था…
दो घंटे बाद टिकट चेकर नीता के पास आया और टिकट माँगा। नीता ने टिकट दिखाया—वेटिंग लिस्ट। चेकर नाराज़ होकर पूछ बैठा,
“क्या तुम यूँ ही रातभर बिना सीट के सफर करोगी?”
नीता ने बगैर भाव बदले कहा,
“२३ नंबर बर्थ खाली होने वाली है… सुबह तक कोई नहीं आएगा…”
यह बात टिकट चेकर को चौंका देती है, क्योंकि वह सीट वास्तव में कैंसिल हो चुकी थी, लेकिन यह जानकारी सिर्फ़ उसे और रेलवे सिस्टम को पता थी। इससे पहले कि वह कुछ और पूछता, नीता फुसफुसाकर कहती है,
“सिर्फ़ १२०० रुपये के लिए किसी की जान लेना सही नहीं था, सर…”
ये शब्द सुनते ही चेकर का चेहरा पीला पड़ गया। उसे याद आया—पंद्रह दिन पहले एक मुसाफिर ट्रेन से गिरा था… और शायद उसकी ग़लती से।
असली डर की शुरुआत
कुछ देर बाद, चेकर अपनी सीट पर बैठा ही था कि नीता चुपचाप उसके पास आकर बैठ गई। उसके बाल बिखरे हुए थे, चेहरा भयावह, और आँखों का काजल फैला हुआ था। उसकी शक्ल किसी डरावनी चुड़ैल से कम नहीं लग रही थी।
नीता को देखते ही टिकट चेकर घबरा कर बेहोश हो गया।
जब होश आया, तो वह ट्रेन की खिड़की से लटका हुआ था, चीखता हुआ मदद की गुहार कर रहा था। बाकी यात्री उसे देखकर दहशत में आ गए, लेकिन नीता की डरावनी शक्ल देख किसी की हिम्मत नहीं हुई उसे बचाने की।
अंतिम मोड़: भिक्षु का प्रवेश
ट्रेन में एक बुज़ुर्ग भिक्षु भी यात्रा कर रहे थे, जो अब तक मौन ध्यान में बैठे थे। यात्रियों की चीखें सुनकर उन्होंने आँखें खोलीं और सारा मंजर देखा।
वह नीता के पास आए और बोले,
“तुम उसे छोड़ दो। तुम्हारे साथ न्याय होगा।”
नीता की रूह पर कोई असर नहीं हुआ। भिक्षु समझ गए कि नीता के हाथ में पकड़ा नॉवल ही समस्या की जड़ है। उन्होंने तत्परता से वह किताब छीनी और खिड़की से बाहर फेंक दी। bhoot wali kahani
भूत भागा, लेकिन निशान छोड़ गया…
जैसे ही किताब नीता से दूर हुई, वह बेहोश होकर ट्रेन में गिर पड़ी। उसी समय टिकट चेकर नीचे गिरा, लेकिन सौभाग्यवश उसकी जान बच गई—हालाँकि गंभीर रूप से घायल हुआ।
भिक्षु ने नीता को अपने नियंत्रण में लिया और अगले स्टेशन पर उसे अस्पताल पहुँचाया। रेल पुलिस ने मौके पर पहुँचकर टिकट चेकर को मेडिकल सहायता दी।
लेकिन उस दिन के बाद… “ट्रेन का भूत” नाम की वह किताब कभी नहीं मिली।
कहते हैं, जो भी उस नॉवल को पढ़ता है, कहानी उसके जीवन में उतर आती है…