शहर के एक कोने में एक पुरानी, जर्जर हवेली खड़ी थी — वीरान, भयावह और कहानियों से घिरी हुई। सालों से कोई उसके करीब नहीं गया था। कहा जाता था कि वहाँ जाने वाला कोई भी व्यक्ति ज़िंदा नहीं लौटता। लोगों ने उसे “भूतों का घर” कहना शुरू कर दिया था।
एक दिन, एक प्रसिद्ध टेलीविजन डायरेक्टर ने इस डरावनी हवेली को अपने नए रियलिटी शो का केंद्र बनाने का फ़ैसला किया। शो का नाम था – “मौत का खेल।” इस खेल में प्रतिभागियों को उस हवेली के भीतर एक पूरी रात बितानी थी। नियम आसान थे – डर के आगे जीत थी, और जो बिना ब्रेसलेट का panic button दबाए पूरी रात निकाल लेता, उसे मिलता एक करोड़ रुपये का इनाम।
हालाँकि प्रशासन ने इस योजना पर आपत्ति जताई, लेकिन डायरेक्टर ने प्रतिभागियों की सुरक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी ली और अतिरिक्त शर्तों और खर्चों के साथ अनुमति हासिल कर ली। पूरे शहर में “मौत का खेल” के पोस्टर लग गए। लोगों में उत्सुकता तो थी, लेकिन डर उससे कहीं ज़्यादा।
खेल की शुरुआत
प्रतियोगिता में कुल 15 प्रतिभागी थे – 12 लड़के और 3 लड़कियाँ। सबको एक-एक कमरा दिया गया, हर कमरे में नाइट विज़न कैमरे और स्पीकर लगे थे। हर प्रतिभागी के हाथ में एक ब्रेसलेट था – जिसमें एक बटन थी, जिसे दबाते ही प्रतियोगी बाहर आ सकता था (लेकिन इससे वह खेल से बाहर माना जाता)। यह बात उनसे छुपा कर रखी गई थी।
कमरे में दाखिल होते ही, सभी दरवाज़े इलेक्ट्रॉनिकली लॉक कर दिए गए। निर्देशों के अनुसार सभी ने अपनी चाबी बाहर फेंक दी। कैमरे लाइव थे, और लाखों दर्शक टीवी स्क्रीन पर यह शो देख रहे थे। daravani kahaniya
डर का आगमन
अंधेरा होते ही हवेली का सन्नाटा बदलने लगा। अचानक एक लड़की की चीख गूँजी – वह किसी अदृश्य ताकत से जूझ रही थी। फिर दूसरे कमरे से कराहने की आवाज़ें आने लगीं। धीरे-धीरे हर प्रतिभागी अजीब हरकतें करने लगा – कोई खुद को दीवार से टकरा रहा था, कोई अपने चेहरे पर नाखून मार रहा था, कोई अपना गला घोंट रहा था।
कैमरे साफ़ दिखा रहे थे कि वे खुद अपने साथ ये सब कर रहे थे, लेकिन उनके चेहरों पर दर्द और आतंक से भरी बेबसी साफ़ दिख रही थी। कुछ ही देर में दर्शकों में दहशत फैल गई। प्रशासन हरकत में आया और शूटिंग तुरंत रुकवाने का आदेश दे दिया।
नरसंहार की रात
फायर ब्रिगेड और मेडिकल टीमें मौके पर पहुँचीं, लेकिन कोई भी उस भूतिया हवेली के अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। डायरेक्टर ने स्पीकर से निर्देश दिए कि ब्रेसलेट का बटन दबाओ, लेकिन न तो कोई आवाज़ अंदर पहुँची, न ही कोई प्रतिभागी उस मानसिक स्थिति में था कि वह कुछ कर सके। bhoot ki kahaniyan
देखते ही देखते, कैमरे पर ही एक-एक कर सभी प्रतिभागियों की मौत हो गई। हर किसी की आत्महत्या की गई जैसी स्थिति में लाश मिली, लेकिन हर कोई जानता था – ये आत्महत्याएँ नहीं, बल्कि एक अदृश्य शक्ति द्वारा किया गया नरसंहार था।
अंतिम न्याय
सुबह होते ही सभी लाशें बाहर निकाली गईं। डायरेक्टर पर मुकदमा चला और उसे लंबी सज़ा और भारी जुर्माना भुगतना पड़ा। हवेली को एक “नो-विज़िट ज़ोन” घोषित कर दिया गया। मौत का खेल, अब एक ऐसा खेल बन गया था, जिसे किसी ने जीता नहीं — सबने सिर्फ़ खोया।