मुझे भी भूतों से बातें करना और उनकी कहानियाँ देखना बहुत पसंद था। अक्सर मैं पूरी रात भूतों की किताबें पढ़कर उनकी कहानियाँ दोहराता रहता था। सच कहूँ तो मैंने आज तक कभी कोई भूत नहीं देखा था। मैं हमेशा सोचता था कि भूत कैसे दिखते होंगे? क्या वे फिल्मों की तरह ही डरावने, खूंखार, लंबे नाखूनों वाले होते हैं जो इंसानों का मांस नोचकर खाते हैं? या कुछ और? मैं आपकी तरह ही सोचता था कि अगर कभी कोई भूत, पिशाच, डायन या चुड़ैल मेरे सामने आ जाए तो मैं क्या करूँगा? क्या मैं उन्हें पहचान भी पाऊँगा?
पर उस रात के हादसे के बाद मेरे ये सारे सवाल धरे के धरे रह गए। अब बस मैं दुआ करता हूँ कि आपको ये बुरी ताकतें कभी न दिखें तो बेहतर है। आप सोच रहे होंगे, ऐसा क्या हुआ मेरे साथ जिसने मेरी सोच को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया? तो चलिए, आज मैं आपको अपनी कहानी सुनाता हूँ। यह बात उन दिनों की है जब मैं 23 साल का था और कानपुर से दिल्ली अपनी मौसी के यहाँ अकेला जा रहा था। यह सर्दियों की रात का सफर था।
मैंने अपने लिए खिड़की वाली सीट बुक की थी। मैं खिड़की से अपना चेहरा बाहर निकालकर सर्दियों का मजा ले रहा था, जबकि बाकी यात्री अपनी नींद का लुत्फ उठा रहे थे। तभी अचानक बस ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगा दी। मैं खिड़की से गिरने ही वाला था। मैंने चिल्लाकर कहा, “अबे! क्या पीकर चला रहा है? मरने का ही शौक है तो पटरी पर लेट जा, हमें क्यों मारना चाहता है?”
अचानक ब्रेक लगने से सबकी नींद टूट गई। एक पल में सबका गुस्सा ड्राइवर पर फूट पड़ा। लेकिन कंडक्टर ने बात संभालते हुए कहा, “अरे! घबराइए नहीं, अचानक बिल्लियों का एक जोड़ा बस के नीचे आ गया था, इसलिए एकदम से ब्रेक लगानी पड़ी। पर कोई फायदा नहीं हुआ, वे बेचारे जिंदा ही कुचले गए।”
कंडक्टर की बात सुनकर मेरे बगल में बैठे एक बूढ़े शख्स ने कहा, “क्या… तुमने बिल्ली के जोड़े को कुचल दिया? अरे, आज अमावस है, काली अमावस। यह बारह सालों में सिर्फ एक बार आती है। इस दिन चुड़ैल, पिशाचिनी, डायन किसी जिन्न या भूत के साथ मिलकर खुद को और शक्तिशाली करती हैं। तुमने अनजाने में ही सही, पर बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया है बेटा। अब अनहोनी होने से कोई नहीं रोक सकता।”
बूढ़े शख्स की बातें सुन सबकी रूह कांप गई थी। बस में मौजूद सभी लोगों के चेहरों पर मौत का डर साफ दिखाई दे रहा था। बस में हम कुल पंद्रह लोग ही सफर कर रहे थे। पर किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि कोई बस से नीचे उतरकर देखे। लेकिन कंडक्टर ने बूढ़े शख्स की बातों को हवा में उड़ाते हुए कहा, “अंकल, आप बुढ़ापे में सठिया गए हो। कुछ भी अनाप-शनाप बक-बक करके मेरे पैसेंजर को भी डरा रहे हो।”
कंडक्टर ने आत्मविश्वास से कहा, “देखो, हम आपको सही सलामत दिल्ली पहुंचाते हैं। ड्राइवर साहब, जरा बस को हवाई जहाज तो बनाओ और जल्दी से दिल्ली पहुंचाओ।” कंडक्टर बड़े ही जोश से ड्राइवर से कहता हुआ उसकी तरफ देख ही रहा था कि उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। ड्राइवर अपनी सीट पर नहीं था। ड्राइवर के गायब होते ही बस में हल्ला हो गया। सब लोग एक पल में बेचैन हो गए।
तभी कंडक्टर ने सबको शांत कराते हुए कहा, “अच्छा, शांत हो जाइए आप लोग। इसमें घबराने की कोई बात नहीं। जब कभी बस रुकती है तो ड्राइवर साहब बिना बताए हल्के होने चले जाते हैं। इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है। वैसे भी मैं इतनी बस तो चला ही लेता हूँ कि आप लोगों को सही सलामत दिल्ली पहुंचा दूं। पर पहले ड्राइवर साहब को ढूंढता हूँ।”
इतना कहकर कंडक्टर गाड़ी से उतरने ही वाला होता है कि मेरे बगल में बैठे बूढ़े शख्स ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, “सुना नहीं कंडक्टर, बाहर मत जाओ। ड्राइवर अब कभी वापस लौटकर नहीं आने वाला और अगर तुम भी बस से उतर गए तो तुम्हारा भी वही हाल होगा जो तुम्हारे ड्राइवर का हुआ है, फिर कभी नहीं मिलोगे।”
बूढ़े शख्स के इतना कहने पर भी कंडक्टर ने उसकी एक नहीं सुनी और बेफिक्र ही बस से उतरकर ड्राइवर को आवाजें लगाने लगा। “ड्राइवर साहब, कहाँ हैं आप? ड्राइवर साहब, अब चलिए। यार, पैसेंजर परेशान हो रहे हैं। जंगल के बीचो बीच बस रोक के कहाँ गायब हो गए?” कंडक्टर चीख-चीखकर ड्राइवर को आवाजें लगा रहा था। उसकी चीखों की गूंज पूरे जंगल में फैल रही थी।
एक तो सर्द रात और ऊपर से डर का खौफ। यह मेरी जिंदगी का पहला लम्हा था, जब मुझे यकीन हो गया था कि जरूरी नहीं कि हर बार डर आपके सामने कोई चेहरा लेकर आए। कहते हैं, जब डर हवा में घुल जाता है तो हर एक सांस कीमती लगने लगती है। ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हो रहा था। सबकी सांसें डर के मारे गरमा गईं थीं।
तभी कंडक्टर की एक चीख ने सबका खून जमा दिया। सब लोग खिड़की से बाहर देखने लगे, पर किसी को भी कंडक्टर दिखाई नहीं दिया। तभी अचानक कंडक्टर का सिर बस के शीशे को तोड़ता हुआ किसी फुटबॉल की तरह हम सबके बीच आ गिरा। कंडक्टर का कटा सिर देख सबके पैरों तले जमीन खिसक गई। सब लोग डर के मारे चीखने लगे थे।
सच कहूँ तो एक पल को कंडक्टर के कटे सिर में मुझे अपना सिर दिखाई दे रहा था। और यह तो बस अनहोनी की शुरुआत भर थी। कंडक्टर के मरते ही बस के आसपास काले साये मंडराने लगे। अजीब-अजीब सी आवाजें कान को छीलने लगीं। एक आवाज बोली, “तुम लोगों ने हमें मार दिया था, हम तुम में से किसी को जिंदा नहीं छोड़ेंगे।”
दूसरी आवाज गरज उठी, “हमारा मिलन तुम लोगों की वजह से अधूरा रह गया। तुम्हें उसकी सजा मिलकर रहेगी।” आवाजें सुनकर साफ पता चल रहा था कि बूढ़े शख्स का कहा एक-एक लफ्ज बिल्कुल सही था। एक डायन और एक जिन्न बस के चारों ओर मंडरा रहे थे। मैं उन्हें अंधेरे साये में भी साफ देख सकता था। डायन और जिन्न की आँखों में बदले की आग साफ छलक रही थी।
वे दोनों हमारे खून के प्यासे बस के दोनों ओर घूम रहे थे। फिर एक पल ऐसा आया कि डायन की चीख से बस के सारे शीशे टूटकर लोगों के जिस्म में जा घुसे। किसी का गला कट गया था तो किसी की छाती। एक ओर जो लोग आधे मरे थे, वो डर के मारे बस से बाहर निकलकर सुनसान जंगल की ओर दौड़ पड़े।
लेकिन जिन्न और डायन ने किसी एक को भी नहीं छोड़ा। काले साये के रूप में जिन्न और डायन लोगों को अपने साथ हवा में ले जाते और बड़ी बेरहमी से उनके जिस्म के टुकड़े कर उन्हें नीचे फेंक देते थे। इधर बस में भी मेरे चारों तरफ खून ही खून इकट्ठा हुए जा रहा था। अब बस में सिर्फ हम दोनों ही जिंदा बचे थे, मैं और वह बूढ़ा शख्स।
कांच के टुकड़ों ने मुझे भी नहीं बख्शा और मेरे जिस्म को भी छलनी कर गए। पर मेरी सांसें अभी भी चल रही थीं। इस भयानक मंजर के बाद मैं अपना होश संभाल पाता, इससे पहले ही मुझे उस बूढ़े शख्स की चीखें सुनाई देने लगीं। उस बूढ़े शख्स की आँखों में कांच के टुकड़े जा घुसे थे। वह पूरी तरह अंधा हो गया था। वह बस दर्द में चीख रहा था, तड़प रहा था।
मैं डरा-सहमा बस की सीट के नीचे छिपा हुआ उस बूढ़े शख्स से कह रहा था, “लगता है अब हम लोग जिंदा नहीं बचेंगे। वो डायन और जिन्न हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे।” उस बूढ़े शख्स ने भी दर्द में तड़पते हुए मेरी बात का जवाब दिया, “बेटा, किसी तरह हमें सुबह होने का इंतजार तो करना ही पड़ेगा। दूसरा और कोई रास्ता नहीं है हमारे पास, बस किसी तरह ये रात कट जाए।”
बूढ़े शख्स की बात खत्म होती इससे पहले ही मुझे महसूस हुआ कि हम लोग हवा में ऊपर उठने लगे थे। जब मैंने खिड़की से बाहर देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। जिन्न और डायन ने बस को हवा में उठा रखा था और जोर-जोर से उसे गोल-गोल घुमाए जा रहे थे। यह मंजर इतना भयानक था कि दिल के टुकड़े हुए जा रहे थे।
पूरी बस अब खून से लाल हो चुकी थी। मैं और वो बूढ़ा शख्स अनगिनत लाशों के खून से पूरी तरह से भीग चुके थे। मैंने बाबा से पूछा, “बाबा, रात काटना तो बहुत मुश्किल है। अगर हमने जल्दी से कोई रास्ता नहीं निकाला तो हम भी इन लाशों के बीच एक लाश बनकर रह जाएंगे। बाबा, आप कुछ तो बोलो।”
मेरी इस बात पर बाबा ने जवाब देते हुए कहा, “बेटा, एक ही रास्ता है। हमें किसी तरह आग का इंतजाम करना होगा, क्योंकि बुरी से बुरी ताकतें आग के आसपास भी नहीं भटकतीं। बस हमारे पास जलाने के लिए एक माचिस के अलावा और कुछ नहीं है।” यह सुनते ही मेरे दिमाग में एक आइडिया आया।
मैंने कहा, “बाबा, भले ही हमारे पास कुछ न हो, लेकिन बस में तो डीजल भरा पड़ा होगा। उससे हम इस डायन और जिन्न को दूर भगा सकते हैं।” बाबा और मैं बात कर ही रहे थे कि बस कब खुद-ब-खुद नीचे आ गई, हमें पता ही नहीं चला। पर अब सबसे बड़ा सवाल ये था कि बस से डीजल कौन निकालेगा?
क्योंकि बाबा अंधे हो चुके थे और मैं अपनी जान खतरे में नहीं डालना चाहता था। पर मन मारकर भी मैंने अपनी जान दांव पर लगाई और बस के बाहर जाने का फैसला किया। मैं अभी बस से डीजल निकाल ही रहा था कि मुझे बहुत तेजी से ठंड लगने लगी। मेरे आसपास काले साये भटकने लगे। मैं तुरंत ही समझ गया था कि वो डायन और जिन्न मेरे आसपास ही मंडरा रहे हैं।
मैं आधा बोतल डीजल ही गाड़ी से निकाल पाया था कि मुझे डायन की हँसी सुनाई देने लगी। जिसे सुनकर मैं कांपने लगा। मैंने कांपते हुए अपनी गर्दन ऊपर उठाई ही थी कि मैंने देखा कि वो डायन मेरे सिर के ठीक ऊपर हवा में उल्टी लटकी हुई है और मुझ पर ही हंसे जा रही थी। सच कहूँ तो मैं भी समझ गया था कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा।
पर तभी बाबा ने चिल्लाते हुए कहा, “ये लो बेटा माचिस और बस को ही जला दो। मेरी फिक्र मत करो।” इतना कहकर बाबा ने खिड़की से माचिस बाहर फेंक दी, जो ठीक मेरे पैरों के पास ही आकर गिरी थी। मैं माचिस उठाने ही वाला था कि मैंने देखा कि बस के नीचे जिन्न ड्राइवर के जिस्म से मांस नोचकर खाए जा रहा था।
उसके मुँह से ड्राइवर की अंतड़ियाँ बाहर निकल रही थीं। यह खौफनाक मंजर देख मैंने डर के मारे डीजल की बोतल फेंक दी और तुरंत ही माचिस से बस में आग लगा दी। जिन्न तो तुरंत ही साया बनकर गायब हो गया पर बस ने आग पकड़ ली और वो बूढ़ा शख्स भी बस के साथ जिंदा जलने लगा। आग की रौशनी देख वो डायन और जिन्न का कुछ पता नहीं चला।
मैं भी सुबह होने तक जलती बस की आग के साये में बैठा रहा और सूरज की पहली किरण के साथ ही वहाँ से चला गया। उस हादसे के बाद अब मैं किसी से भूत, पिशाच, जिन्न या फिर डायन की बात नहीं करता। बस अब इन सब पर यकीन करता हूँ।