रहस्यमयी द्वार का शाप

अंग देश के राजा भूदेव की इकलौती बेटी, राजकुमारी सुरभि के सोलहवें जन्मदिन की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। बचपन में ही अपनी माँ को खो चुकी सुरभि अपनी खिड़की से महल की रौनक देख रही थी। तभी उसकी नज़र सिपाहियों पर पड़ी जो कुछ ख़तरनाक जानवरों को महल के अंदर ला रहे थे।

राजकुमारी ने जिज्ञासावश अपने पिता महाराज से पूछा, “महाराज, ये सभी जानवर महल के अंदर क्यों लाए जा रहे हैं?” महाराज ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “राजकुमारी, ये सब तुम्हारे जन्मदिन के मनोरंजन के लिए हैं।” कुछ सिपाहियों की फुसफुसाहट ने राजकुमारी का ध्यान खींचा। एक सिपाही बोला, “अगर यही चलता रहा तो राज्य में जानवर नहीं बचेंगे। हर हफ़्ते पचास जानवर हवेली में भेजे जाते हैं।” दूसरे ने उसे चुप कराया, “कहीं राजकुमारी तक यह बात न पहुँच जाए।”

सिपाहियों की बातें सुनकर राजकुमारी हैरान रह गई। वह चुपचाप जानवरों के पीछे चलने लगी। तभी एक सिपाही ने उसे देख लिया और सतर्क किया, “राजकुमारी जी, महाराज का सख़्त आदेश है कि आपको यहाँ नहीं आना है।” अचानक एक तेज़ हवा का झोंका आया और राजकुमारी की चुन्नी उड़कर एक रहस्यमयी दरवाज़े के पास जा गिरी, जहाँ स्वयं महाराज जानवरों को अंदर भेज रहे थे।

पिता को देख राजकुमारी ने अपनी चुन्नी उठाई और वहाँ से चली गई, पर उस रात उसे नींद नहीं आई। उसके मन में कई सवाल घूम रहे थे, “पिताजी मुझे वहाँ जाने से क्यों रोक रहे हैं? इस दरवाज़े का आख़िर क्या रहस्य है? वह मुझसे क्या छिपाना चाहते हैं?” राजकुमारी ने अपनी खिड़की बंद की और लेट गई। तभी महल की सबसे पुरानी दासी, त्रिजटा, उसके कमरे में आई।

त्रिजटा ने राजकुमारी को उदास देख पूछा, “ओह मेरी प्यारी राजकुमारी! आज तुम इतनी परेशान क्यों हो? मैंने तुम्हारी माँ को भी पाला है, इसलिए जानती हूँ कि तुम किसी गहरी चिंता में हो।” राजकुमारी ने दादी माँ से मदद मांगी पर पिताजी को बताने के डर से उसने अपने सवाल दबा दिए।

अगले दिन सुबह राजकुमारी महाराज के पास गई। उसे उदास देखकर महाराज ने पूछा, “बेटी, तुम आज भी उदास हो। पूरे राज्य में तुम्हारा जन्मदिन मनाया जा रहा है और तुम ख़ुश नहीं। लगता है, रात भर सो नहीं पाई।” राजकुमारी ने साहस जुटाकर पूछा, “पिताजी, उस दरवाज़े का क्या रहस्य है?”

महाराज ने कहा, “बेटी, आज तुम्हारा सोलहवाँ जन्मदिन है। मैं तुम्हें यह बात आज ही बताने वाला था। यह एक लंबी कहानी है। जब तुम्हारी माँ गर्भवती थीं, हम जंगल घूमने गए। वहाँ हमें एक बेहद ख़ूबसूरत स्त्री चित्रांगदा मिली, जिसने मुझसे विवाह करने की इच्छा जताई।”

महाराज ने बताया, “मैंने उससे कहा कि मैं विवाहित हूँ और अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ।” चित्रांगदा ने धमकियाँ देते हुए कहा कि मुझे उससे विवाह करना ही होगा। महाराज ने उसे पहचान लिया और अपने पवित्र रुद्राक्ष की माला से एक रुद्राक्ष उस पर फेंका। रुद्राक्ष के स्पर्श से वह अपने असली, बदसूरत और भयंकर जादूगरनी असुर बाला के रूप में आ गई।

असुर बाला ने क्रोधित होकर कहा, “तू अपनी पत्नी की सुंदरता पर घमंड करता है ना? आज से तुझे अपनी पत्नी के चेहरे से घृणा हो जाएगी। और सुन, तुम्हें जल्द ही एक बेटी होगी। जब वह अपनी माँ का चेहरा देखेगी, तो वह भी तेरी पत्नी जैसी हो जाएगी।” इतना कहकर वह ग़ायब हो गई।

महाराज ने आगे बताया कि सुरभि के जन्म के कुछ समय बाद, एक दिन महारानी का चेहरा भयंकर हो गया। उनके चेहरे से साँप लटकने लगे, आँखें अंगारों-सी जलने लगीं, शरीर सूखे पेड़ जैसा और आवाज़ साँप की फुफकार-सी हो गई। वह जीवित पशु-पक्षियों और इंसानों को खाने लगीं, और प्यास लगने पर रक्त पीती थीं।

राजकुमारी ने समझा, “इसीलिए आपने मुझे बचाने के लिए माँ को उस हवेली में रखा।” महाराज ने दुःख से कहा, “बेटी, मैं तुम्हारी माता से बहुत प्यार करता हूँ, उनसे दूर नहीं रह सकता था। इसलिए मैंने उनके लिए एक अलग महल बनवाया, जिसका वह दरवाज़ा है। वहाँ तुम्हारी माँ की भूख मिटाने के लिए जानवर भेजे जाते हैं।”

अपनी माँ की यह दर्दनाक कहानी सुनकर राजकुमारी बहुत उदास हो गई। उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, क्या माँ के इस शाप का कोई तोड़ नहीं है?” महाराज ने आशाभरी नज़रों से कहा, “हाँ बेटी, तोड़ है। कुछ साल पहले मैं शिकार पर जंगल में था, तब वह जादूगरनी फिर मिली। वह मरने वाली थी और अपनी ग़लती पर शर्मिंदा थी। उसने मुझे तुम्हारी माँ को शाप से मुक्ति दिलाने का उपाय बताया।”

राजकुमारी ने आश्चर्य से पूछा, “तो आपने इतने दिनों तक यह बात किसी को बताई क्यों नहीं?” महाराज ने समझाया, “बेटी, उसने कहा था कि यह इलाज तभी संभव है जब तुम सोलह वर्ष की हो जाओ, और पहली अमावस पर ही इस शाप को तोड़ा जा सकता है। अगर मैं तुम्हें पहले बताता, तो मैं भी शापित हो जाता।”

राजकुमारी ने कहा, “आज मैं सोलह वर्ष की हो गई हूँ और कल अमावस है। कृपया मुझे बताएं कि मैं अपनी माँ को शाप से कैसे आज़ाद कर सकती हूँ।” महाराज ने बताया, “मेरी बच्ची, तुम्हें कल उस मायावी दरवाज़े से अंदर जाना होगा। वहाँ तुम्हें भयानक घटनाओं का सामना करना पड़ेगा, पर तुम किसी से मत डरना।”

राजकुमारी ने दृढ़ता से कहा, “पिताजी महाराज, मैं माँ को लेकर ही वापस आऊँगी, आप मुझ पर विश्वास रखें।” महाराज ने चेतावनी दी, “राजकुमारी, सोच लो। तुम्हें बस दो बातों का ध्यान रखना है – अपनी नेकी और बुद्धि का। इनका साथ कभी मत छोड़ना। अगर तुमने इनका सही इस्तेमाल किया, तो तुम माँ तक ज़रूर पहुँच जाओगी।”

राजकुमारी ने पूछा, “क्या माँ मुझे पहचान पाएँगी?” महाराज ने कहा, “बेटी, जादूगरनी ने तुम्हारे लिए हर क़दम पर चुनौतियाँ रखी हैं। तुम्हें ही उन्हें पार करना होगा, तभी आगे का रास्ता मिलेगा। आख़िर में, अगर तुम अपनी माँ के अंदर ममता जगाने में सफल रहीं, तभी महारानी अपने असली रूप में लौटेंगी।”

महाराज ने आगे बताया, “बेटी, तुम्हें सबसे पहले सोन गिरी की पहाड़ियों में जाकर एक जादुई गुफ़ा में रहने वाले तपस्वी बाबा से एक जादुई किताब लेनी होगी। उस किताब में ही तुम्हें माँ को ठीक करने का रास्ता मिलेगा। मुझे बस इतना ही पता है। आगे क्या होगा, वो तुम्हें ख़ुद पता करना होगा और यह काम तुम्हें अकेले ही करना होगा।”

राजा ने राजकुमारी को एक रुद्राक्ष की माला देते हुए कहा, “अपना ध्यान रखना और ख़ुद पर भरोसा रखना, बेटी। इस दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जो हम नहीं कर सकते।” राजकुमारी ने कहा, “आप चिंता मत करिए, पिताजी महाराज। मैं आपकी बातों का ध्यान रखूँगी। अपना आशीर्वाद दीजिए।”

इसके बाद, राजकुमारी सोनगिरी की पहाड़ियों में उस गुफ़ा की तलाश में निकल पड़ी। थोड़ी देर चलने के बाद उसे एक तालाब दिखाई दिया। वह थक गई थी, इसलिए तालाब के पास बैठकर आराम करने लगी। तभी उसकी नज़र एक घायल हिरण पर पड़ी, जिसके पास एक मगरमच्छ धीरे-धीरे उसे खाने के लिए बढ़ रहा था।

राजकुमारी तुरंत उस हिरण के पास भागी और मगरमच्छ के सामने खड़ी हो गई। उसने हिरण से कहा, “तुम चिंता मत करो, मेरे होते हुए यह मगरमच्छ तुम्हें कोई नुक़सान नहीं पहुँचा पाएगा।” राजकुमारी ने साहस के साथ उस मगरमच्छ का सामना किया और उसे मार दिया।

जैसे ही मगरमच्छ मरा, वह एक सुंदर कन्या में बदल गया। राजकुमारी ने आश्चर्य से पूछा, “आप कौन हैं?” कन्या ने बताया, “मैं जल की देवी हूँ। एक तांत्रिक ने मुझे इस मगरमच्छ के रूप में क़ैद कर रखा था ताकि वह इस तालाब के जादुई जल का मनमाना उपयोग कर सके।”

देवी ने आगे कहा, “यह कोई साधारण वन नहीं है। इसे देवराज इंद्र ने यहाँ के राजा को भेंट किया था। इस वन की हर चीज़ जादुई है। अब वह तांत्रिक अपनी मनमानी नहीं कर पाएगा। राजकुमारी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! बताइए, मैं आपकी कैसे मदद कर सकती हूँ?”

राजकुमारी ने बताया, “इस वन में एक गुफ़ा है, जहाँ तपस्वी रहते हैं। उनसे मुझे उनकी जादुई किताब लेनी है।” देवी ने पूछा, “वह किताब तो लोगों को उनकी मंज़िल दिखाती है। इस उम्र में भला तुम्हें कौन-सी मंज़िल जाननी है?”

राजकुमारी ने भावुक होकर कहा, “जलदेवी, मुझे अपनी माँ को बचाना है। एक शाप के कारण वह एक राक्षस में बदल गई हैं। उनकी मुक्ति के लिए मुझे उस जादुई किताब तक पहुँचना ही होगा।” देवी ने कहा, “तुम्हारी वजह से मैं इस क़ैद से आज़ाद हो पाई हूँ, इसलिए मैं तुम्हें गुफ़ा तक पहुँचाऊँगी। उस गुफ़ा का रास्ता इसी तालाब से होकर जाता है। यह जलरथ तुम्हारी सहायता करेगा। तुम्हारी यात्रा सफल हो।”

इसके बाद राजकुमारी उस जलरथ में बैठकर तालाब के अंदर चली गई और थोड़ी देर बाद गुफ़ा तक पहुँच गई। जलरथ से उतरकर राजकुमारी गुफ़ा के अंदर गई, जहाँ उसे एक छोटी-सी मछली के पंखों में एक काँटा फँसा हुआ दिखा। राजकुमारी ने जैसे ही उसके पंखों से काँटा निकाला, मछली बोली,

मछली ने धन्यवाद करते हुए कहा, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद राजकुमारी! इस काँटे की वजह से मैं अपने अपनों से पीछे छूट गई थी। अब मैं उनके पास वापस जा सकूँगी। वैसे आप यहाँ क्या कर रही हैं? इस जगह तो इंसानों को आए सालों बीत गए।” राजकुमारी ने बताया, “मुझे यहाँ रहने वाले तपस्वी से मिलना है, उनकी जादुई किताब चाहिए।”

मछली ने पूछा, “जादुई किताब? वह भला क्यों चाहिए तुम्हें? ओह! तो तुम्हें अपनी माँ को बचाने के लिए यह किताब चाहिए?” तभी वह छोटी मछली एक तपस्वी में बदल गई। तपस्वी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं तुमसे ख़ुश हुआ, बेटी। तुम इस किताब से कोई भी एक सवाल पूछ सकती हो, उसके बाद यह किताब अपने आप ग़ायब हो जाएगी।”

राजकुमारी ने कृतज्ञता से कहा, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बाबा! आख़िरकार मैंने अपनी पहली मंज़िल पार कर ली है। जादुई किताब, मुझे बता, मैं अपनी माँ को उस जादू के शाप से कैसे आज़ाद कर सकती हूँ?” किताब ने उत्तर दिया, “इस शाप से मुक्ति तभी मिलेगी जब कोई ‘जंगल की आत्मा की मणि’ को महारानी के माथे के बीचोंबीच लगा दे। इससे महारानी अपने असली रूप में आ जाएँगी।”

इसके बाद राजकुमारी उसी जलरथ में बैठकर वापस आ गई और सोचने लगी, “अब मैं वह मणि तक कैसे पहुँचूँ?” तभी उसे वही हिरण दिखा जिसके प्राणों की रक्षा उसने मगरमच्छ से की थी। हिरण ने पूछा, “आप इतनी उदास क्यों हैं?” राजकुमारी हैरान हुई, “तुम भी बोल सकती हो?”

हिरण ने कहा, “आप भूल गईं, यह वन जादुई है? यहाँ सब बोल सकते हैं, इसके कण-कण में जादू है। आप इतनी परेशान क्यों हैं, राजकुमारी?” राजकुमारी ने बताया, “मुझे अपनी माँ को बचाना है, इसलिए मुझे वन देवी की आत्मा से निकली मणि की ज़रूरत है। पर समझ नहीं आ रहा कि वहाँ तक कैसे पहुँचूँ? मैंने तो कभी माँ को देखा तक नहीं है।”

हिरण ने घबराकर कहा, “राजकुमारी, भाग जाइए, भाग जाइए यहाँ से वरना यह दानव मेरे साथ-साथ आपको भी मार के खा जाएगा। जाइए, राजकुमारी, आप चली जाइए यहाँ से।” राजकुमारी ने कहा, “मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकती। तुम यहाँ से जाओ, मैं इसका ध्यान भटकाती हूँ, उतने में तुम भाग जाना।”

हिरण ने कहा, “नहीं राजकुमारी, यह हमारी नियति है। हमारे जन्म लेते ही मौत हमारा पीछा करने लगती है। लेकिन आपको अपनी माँ को बचाना है, आप जाओ यहाँ से। मैं इसका ध्यान भटकाता हूँ।” राजकुमारी ने दृढ़ता से कहा, “मैं एक क्षत्रिय हूँ। इस तरह पीठ दिखा कर भागना हमारे ख़ून में नहीं है। इस दानव का मैं वह हाल करूँगी कि आज के बाद किसी को नहीं खा पाएगा।”

इसके बाद राजकुमारी उस दानव से लड़ने लगी। काफ़ी देर तक लड़ने के बाद, जैसे ही राजकुमारी अपनी तलवार से उसे मारने वाली थी, उसने दोनों की आँखों में आँसू देख लिए और थोड़ी देर में एक छोटा सा दानव भी देखा, जो उसी दानव का पुत्र था। यह देख राजकुमारी रुक गई और उन्हें जाने दिया।

राजकुमारी ने दानव से कहा, “आज के बाद इस तरह का नुक़सान किसी को नहीं पहुँचाना। जाओ, वहाँ तुम्हारा बच्चा तुम्हारी राह देख रहा है।” हिरण ने पूछा, “आपने उसे क्यों जाने दिया, राजकुमारी?” राजकुमारी ने उत्तर दिया, “मैं एक बच्चे को उसकी माँ से अलग नहीं कर सकती। आज जब मैं ख़ुद माँ के प्यार को तरस रही हूँ, तो भला यही दर्द मैं किसी और को कैसे सहने दे सकती हूँ?”

हिरण ने कहा, “आप सच में बहुत दयालु हैं। आपसे मिलना मेरी ख़ुशकिस्मती है, राजकुमारी।” राजकुमारी ने कहा, “तुम भी कैसी बातें कर रही हो? चलो, अपना ध्यान रखना और हाँ, ध्यान से देख कर बाहर निकलना। मैं चलती हूँ। अभी लंबा सफ़र तय करना है।”

हिरण ने कहा, “वह तो ठीक है, लेकिन अगर तुम चली गईं तो यह मणि कौन ले जाएगा?” राजकुमारी ने पूछा, “मतलब?” तभी हिरण वन देवी में बदल गया। देवी ने कहा, “मैं तुम्हारे आने का उद्देश्य पहले से ही जानती थी, लेकिन मैं देखना चाहती थी कि तुम मेरी आत्ममणि लेने के क़ाबिल हो भी या नहीं? यह सब तुम्हें परखने के लिए एक छलावा था।”

वन देवी ने आगे कहा, “मुझे पहली बार अपनी आत्ममणि देने में ख़ुशी हो रही है। तुम अपने उद्देश्य में सफल हो, मेरी यही दुआ है। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। लो, इसे ले जाओ।” वन देवी ने अपनी शक्तियों से अपनी आत्ममणि राजकुमारी को दे दी। राजकुमारी ने कहा, “आपका यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूँगी, वन देवी।”

देवी ने कहा, “जाओ पुत्री, काम ख़त्म होने के बाद पुनः मेरे पास लौट आना। अब जाओ, देर मत करो।” इसके बाद राजकुमारी अपने महल वापस आ गई। राजा ने उसे देखते ही पूछा, “तुम आ गईं, बेटी?” राजकुमारी ने कहा, “आपके आशीर्वाद से मैं माँ को ठीक करने का उपाय भी ले आई हूँ। अब बस महल के उस कमरे में जाकर माँ को बचाना है।” राजा ने कहा, “हाँ बेटी, भगवान तुम्हारी मदद करेंगे।”

इसके बाद राजकुमारी उस कमरे में चली गई। जैसे ही राजकुमारी हवेली के अंदर पहुँची, चारों तरफ़ भयंकर जानवरों और मांस की बदबू फैली हुई थी। राजकुमारी जैसे ही आख़िरी कमरे में पहुँची, तभी उन्हें एक बड़ी भयानक औरत नज़र आई, जिसे देखते ही राजकुमारी डर से चीख़ पड़ी।

राजकुमारी ने सोचा, “यह औरत तो मेरी माँ नहीं हो सकती। मैंने इतना भयानक चेहरा कभी नहीं देखा।” डरी हुई राजकुमारी ने ख़ुद को संभाला। वह औरत राजकुमारी को खाने के लिए आगे बढ़ी और मुँह से साँप की फुफकार निकालने लगी। राजकुमारी ने कहा, “माँ, आप मुझे खाना चाहती हैं? मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी अगर मैं आपका भोजन बन पाऊँ। आपका अंश आप में ही समाहित हो जाए।”

महारानी ने कहा, “मेरा अंश? तुझ जैसी ख़ूबसूरत राजकुमारी मेरा अंश नहीं हो सकती।” राजकुमारी ने पहचान कराने की कोशिश की, “नहीं माँ, पहचानिए, मैं आपकी ही बेटी हूँ।” महारानी ने गुस्से में कहा, “बेटी… मेरी बेटी? हाथ में तलवार लेकर मुझे मारने आई है।” राजकुमारी ने गिड़गिड़ाकर कहा, “माँ, एक बार मुझे गले से लगा लीजिए। आपको सब याद आ जाएगा।”

महारानी ने क्रूरता से कहा, “नहीं, मुझसे दूर रह, तुझे डर नहीं लगता? यह देख, मेरे दाँत…” औरत ने राजकुमारी के बाल पकड़कर उसे दूर फेंक दिया। राजकुमारी के शरीर से ख़ून बहने लगा। राजकुमारी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी, “माँ, कभी माँ के पास आने में भी किसी को डर लगा है? बचपन से माँ के प्यार को तरस रही हूँ, मुझे एक बार गले से लगा लीजिए, माँ।”

राजकुमारी दौड़कर उस भयानक औरत को गले लगा लेती है। औरत ने अपने दाँत राजकुमारी के शरीर में गड़ा दिए और राजकुमारी दर्द से चिल्ला उठी, “माँ!” लेकिन तभी राजकुमारी ने उस मणि को महारानी के माथे के बीचोंबीच लगा दिया। मणि के माथे में समाते ही महारानी अपने असली रूप में लौट आईं।

ऐसा करते ही महारानी के दिल में ममता भर गई और आँखों से आँसू निकलने लगे। महारानी ने कहा, “मेरी बच्ची, मुझे सब याद आ गया। तूने मुझे इंसान बना दिया, मैं शाप से मुक्त हो गई।” ऐसा कहते ही वह औरत महारानी के रूप में परिवर्तित हो गई। जादूगरनी का शाप सदा के लिए ख़त्म हो गया। राजकुमारी अपनी माँ के गले लग गई।

राजकुमारी ने कहा, “चलो माँ, घर चलें। पिताजी महाराज आपकी राह देख रहे हैं।” दोनों के हवेली से बाहर आते ही चारों तरफ़ ख़ुशियाँ मनाई जाने लगीं। पूरे राज्य में उपहार बाँटे गए। महाराज ने कहा, “आज मेरा परिवार फिर पूरा हो गया। मेरी महारानी तुम्हारे साहस और निष्ठा के कारण वापस आ सकी है।”

महाराज ने गर्व से कहा, “मुझे तुम पर गर्व है, बेटी। आज से तुम इस राज्य की नई उत्तराधिकारी बनोगी। हम हमेशा सोचते थे कि हमारे बाद यह राज्य कौन संभालेगा? लेकिन जिसकी तुम जैसी निडर बेटी हो, उसे किसी बेटे की क्या ज़रूरत?” राजकुमारी ने कहा, “पिताजी, आपने मुझे इस योग्य समझा, इसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ। मैं आपकी सारी उम्मीदों पर खरी उतरूँगी, देख लीजिएगा।” राजकुमारी के साहस के कारण हवेली के ख़ूबसूरत दरवाज़े को हमेशा के लिए खोल दिया गया, और वह अपने माता-पिता के साथ ख़ुशी-ख़ुशी महल में रहने लगी।

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