रक्त पिशाचिनी का खौफ

अमावस्या की घोर काली रात थी, जब जंगल में चमगादड़ उड़ रहे थे और भेड़ियों का झुंड किसी उत्सव में शामिल होने जैसा चिल्ला रहा था। जंगल के भीतर एक पहाड़ी पर बनी गुफा से धीमी, रहस्यमय मंत्रों की आवाजें आ रही थीं – “भूतम रक्त पिशाच मृति का चिकम, भूतम रक्त पिशाच बृति का चिकम।” गुफा के अंदर एक आकृति काले वस्त्रों में ढकी हुई थी, जो एक शव पर खून छिड़क रही थी। वह शव काला और सड़ा हुआ लग रहा था, मानो युगों से वहीं पड़ा हो। उसके पास एक अचेत बच्चा भी था, और वह आकृति लगातार मंत्रों का उच्चारण कर रही थी।

तभी गुफा में दिव्या और एक वृद्धा का प्रवेश हुआ। वृद्धा ने उस काली आकृति से कहा, “जब तक मैं जीवित हूँ, तुम अपने दुष्ट इरादों में कभी सफल नहीं हो पाओगी।” वृद्धा के ये शब्द सुनकर वह काली वस्त्रों वाली स्त्री क्रोधित हो उठी। उसने अपने चेहरे से बुर्का हटाया, जिससे उसका आधा जला हुआ चेहरा और शरीर पर पड़े छाले दिखाई दिए। उसकी आँखें क्रोध से लाल थीं, और वह उन दोनों की ओर घूरने लगी।

दिव्या और बंटी भाई-बहन थे। एक साल पहले उनके माता-पिता रहस्यमय तरीके से गायब हो गए थे, न कोई लाश मिली और न ही उनके अस्तित्व का कोई निशान। माता-पिता के गुम होने के बाद, वे अपने चाचा के साथ रहने लगे। कुछ समय बाद, चाचा को काम के सिलसिले में अमेरिका जाना पड़ा। उन्हें दिव्या और बंटी को इस अनजान शहर में अकेला छोड़ना ठीक नहीं लगा। इसलिए, विदेश जाने से पहले, उन्होंने बच्चों को उनके हक का घर देना चाहा ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो।

कई दिनों की खोजबीन के बाद, उन्हें पता चला कि कलहरी गांव में दिव्या के पिता, दिनेश का एक बड़ा बंगला था जो कई वर्षों से बंद पड़ा था। दिव्या के चाचा ने सोचा कि यह बंगला दिव्या और बंटी के नाम कर देने से उन्हें रहने की कोई समस्या नहीं होगी। अतः वे कलहरी गांव गए, बंगले की साफ-सफाई करवाई और उसे दिव्या और बंटी के नाम कर दिया।

चाचा ने दिव्या से कहा, “देखो बेटा, मुझे न चाहते हुए भी अमेरिका जाना पड़ रहा है। मुंबई में तुम्हारा अपना कोई घर नहीं था, इसलिए मैं तुम दोनों को यहाँ लेकर आया हूँ।” दिव्या ने पूछा, “चाचा, क्या यह हमारा घर है?” चाचा ने जवाब दिया, “हाँ बेटा, यह तुम दोनों का अपना घर है। तुम हमेशा के लिए यहाँ रह सकते हो।” बंटी ने आग्रह किया, “चाचा, आप भी रुक जाओ ना हमारे साथ!” चाचा ने भारी मन से कहा, “बेटा, तुम दोनों को अकेला छोड़कर जाने का मन तो बिल्कुल नहीं है, पर क्या करूँ, मजबूरी है। अपना ध्यान रखना।” यह कहकर दिव्या के चाचा वहाँ से चले गए।

थोड़ी देर बाद, एक औरत वहाँ आई। उसने काले रंग का घाघरा-चोली पहना था, हाथों में चूड़ियाँ, नाक में नथनी और माथे पर एक बड़ी काली बिंदी थी। दिव्या उसे देखकर एक पल के लिए घबरा गई। उस औरत ने दिव्या को बताया कि उसका नाम मंजरी है और उनके चाचा ने ही उसे उन दोनों की देखभाल के लिए भेजा है। दिव्या ने आश्चर्य से पूछा, “लेकिन, चाचा ने तो हमें तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताया?” मंजरी ने जवाब दिया, “चाचा जल्दी में थे ना, शायद भूल गए होंगे। तुम चिंता मत करो, तुम्हें किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझसे मांग लेना।”

दिव्या ने कहा, “मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए, लेकिन बंटी के दूध पीने का वक्त हो गया है। उसके लिए आप कृपया दूध ले आओ।” मंजरी ने कहा, “ठीक है, तुम दोनों कमरे में जाओ। मैं बंटी के लिए दूध और तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आती हूँ।” दिव्या बंटी को लेकर ऊपर कमरे में चली गई। मंजरी रसोई में दूध लाने के लिए गई।

मंजरी दूध गर्म कर रही थी कि तभी रसोई की खिड़की पर एक काली बिल्ली आ गई। वह मंजरी की ओर देखकर जोर-जोर से आवाजें करने लगी। मंजरी ने गुस्से से बिल्ली की तरफ देखा, और बिल्ली घबराकर खिड़की से कूद कर भाग गई। फिर, मंजरी ने दूध का गिलास भरा और गिलास के ऊपर से हाथ फेरती हुई कुछ मंत्र पढ़ने लगी। दूध का रंग लाल हो गया, और कुछ पल में फिर से सफेद हो गया। मंजरी दूध और बिस्कुट लेकर दिव्या के कमरे में गई और बंटी को दूध पिलाया।

दूध पीने के बाद बंटी की आँखें लाल होने लगीं। यह देख मंजरी मन ही मन मुस्कुराने लगी। दिव्या ने पूछा, “अरे बंटी! क्या हुआ? तुम चुपचाप क्यों हो?” बंटी ने बस कहा, “कुछ नहीं।” दिव्या ने उसे सोने के लिए कहा, “ठीक है, अब तुम सो जाओ।” दिव्या और बंटी सो गए। आधी रात को, दिव्या को कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं। वह घबराकर उठ गई।

उसने देखा कि कमरे की खिड़की खुली हुई है और वहाँ से हल्की-हल्की हवा अंदर आ रही है। दिव्या उठी और खिड़की के पास गई। उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत बाहर खड़ी है और दिव्या की ओर ही देख रही थी। दिव्या उसे देखकर बहुत घबरा गई। उसने तुरंत खिड़की बंद की और कंबल में आकर सो गई। अगले दिन, उसने मंजरी से उस बूढ़ी औरत के बारे में पूछा।

मंजरी ने दिव्या से पूछा, “तुम उससे क्यों मिली थी?” दिव्या ने स्पष्ट किया, “मैं मिली नहीं थी, बस खिड़की से देखा था।” इसके बाद, मंजरी शांत होकर बोली, “देखो दिव्या, वह एक बुरी औरत है। बच्चों को फंसाकर उन्हें मार डालती है। तुम और बंटी उससे जितना दूर रहोगे, उतना ही अच्छा होगा।” इस पर दिव्या ने केवल “ठीक है” कहा।

तभी बंटी सीढ़ियों से नीचे आया। उसने मंजरी से खाने के लिए पूछा, “मुझे भूख लगी है, मुझे खाना दो।” मंजरी बंटी के लिए दूध और बिस्कुट लेकर आई। लेकिन बंटी ने गुस्से से वह दूध फेंक दिया और चिल्लाया, “मुझे यह सब पसंद नहीं, मुझे मांस चाहिए, मांस!” दिव्या यह सुनकर दंग रह गई, क्योंकि बंटी ने पहले कभी मांस नहीं खाया था और उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। लेकिन मंजरी यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।

दोपहर को, मंजरी चुपके से बंटी को जंगल की ओर ले गई। वहाँ उसने खून से एक घेरा बनाया और उसके अंदर आग जलाई। उसने बंटी को उस आग के सामने बैठाया और कुछ मंत्र पढ़ने लगी। फिर, उसने एक जिंदा सांप बंटी के हाथ में दिया और उसे आग में फेंकने के लिए कहा। बंटी ने सांप को आग में फेंक दिया। मंजरी बंटी को घर ले आई। उसी रात, मंजरी ने उस सांप की राख को बंटी के खाने में मिलाया। मंजरी मन ही मन बोली, “अब मेरा बरसों का सपना पूरा होगा! अब होगा मेरा इंतकाम पूरा!”

बंटी और दिव्या कमरे में सोने चले गए। आधी रात को, बंटी अचानक नींद से जागा और दरवाजे की ओर जाने लगा। दरवाजे की आवाज से दिव्या की आँख खुल गई। उसने देखा कि बंटी कमरे से बाहर जा रहा है। दिव्या ने पुकारा, “बंटी… बंटी, कहाँ जा रहे हो? क्या चाहिए तुम्हें?” बंटी ने कोई जवाब नहीं दिया, मानो दिव्या की आवाज उसके कानों तक पहुँची ही न हो। दिव्या बंटी के पीछे गई। उसने देखा कि नीचे हॉल में बंटी और मंजरी एक दूसरे के सामने खड़े हैं। फिर, मंजरी बंटी को अपने पीछे-पीछे घर के बाहर ले गई।

दिव्या ने सोचा, “यह मंजरी आंटी बंटी को इतनी रात को कहाँ लेकर जा रही है? और बंटी भी मेरी कोई बात नहीं सुन रहा।” दिव्या जल्दी-जल्दी उन दोनों के पीछे जाने लगी। वह बंटी को फिर से आवाज देने ही वाली थी कि पीछे से उस बूढ़ी औरत ने दिव्या का मुँह अपने हाथों से बंद कर दिया और उसे छिपा लिया। दिव्या ने बूढ़ी औरत से पूछा, “तुम कौन हो और… और मुझे… मुझे यहाँ क्यों खींच के लाई? तुम क्यों हमारे पीछे पड़ी हुई हो? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”

बूढ़ी औरत ने कहा, “मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती दिव्या बेटा। मैं तो तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ। मंजरी कोई साधारण औरत नहीं है। वह 1000 सालों से जीती आ रही एक रक्त पिशाचिनी है।” यह सुन दिव्या दंग रह गई। बूढ़ी औरत ने बताया कि उसके दादाजी इस गांव के मुखिया थे। सारा गांव खुशी से रहता था। लेकिन एक दिन, एक रक्त पिशाच और एक रक्त पिशाचिनी उनके गांव में आ गए और एक-एक करके गांव के लोगों को मारकर जिंदा खाने लगे। लोगों में डर फैलने लगा।

तब तुम्हारे दादाजी ने एक तांत्रिक की मदद से एक ऐसा अस्त्र बनाया, जो उन रक्त पिशाचों को मार सकता था। आज से 90 साल पहले, आज ही की पूर्णमासी की रात को तुम्हारे दादाजी वह अस्त्र लेकर उन रक्त पिशाचों को मारने के लिए गए थे। दादाजी ने ललकारा, “पिशाचों, आज मैं तुम सबका खात्मा कर दूंगा और अपने गांव की रक्षा करूंगा।” रक्त पिशाच और उनके दादाजी के बीच एक भयानक लड़ाई हुई। हार न मानते हुए, दादाजी ने वह अस्त्र रक्त पिशाच के सीने के आर-पार कर दिया।

रक्त पिशाचिनी तो वहाँ से भाग गई। सभी गांव वालों को लगा कि सब ठीक हो गया है, लेकिन कुछ दिन बाद, तुम्हारे दादाजी की लाश उनके कमरे में मिली, आधे मांस में। दिव्या ने पूछा, “तो… क्या दादाजी को उस रक्त पिशाचिनी ने मार डाला? और… और अब वो मेरे भाई को भी? नहीं, नहीं! मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।” बूढ़ी औरत ने कहा, “रक्त पिशाचिनी का सामना अब तुम्हें ही करना पड़ेगा। जिस वंश के लोगों ने उस रक्त पिशाच को मारा है, उसी वंश के बच्चे की बलि से वह फिर से जीवित हो जाएगा।”

बूढ़ी औरत दिव्या को उस गुफा में लेकर गई। रक्त पिशाचिनी ने अपना आधा जला हुआ चेहरा दिखाया। दिव्या उसे देखकर घबरा गई, लेकिन बूढ़ी औरत ने उसे लड़ने की हिम्मत दी। रक्त पिशाचिनी धीरे-धीरे हवा में उड़ने लगी और जोर-जोर से हँसने लगी। उसने बूढ़ी औरत पर हमला किया और उसे जमीन पर गिरा दिया। दिव्या ने पीछे से एक अस्त्र निकाला। यह वही अस्त्र था जिससे दादाजी ने रक्त पिशाच को मारा था। अस्त्र देख रक्त पिशाचिनी डर गई।

दिव्या ने दृढ़ता से कहा, “बुराई की कभी जीत नहीं होती! पहले भी नहीं हुई थी और आज भी नहीं होगी।” ऐसा कहकर दिव्या ने वह अस्त्र रक्त पिशाचिनी के सीने के आर-पार कर दिया।

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