स्वर्ण पिशाचिनी का खूनी सौदा

यह रात के 1:00 बजे का वक्त था। तालाब के किनारे दो दोस्त राजीव और महेश बैठकर बातें कर रहे थे। राजीव ने महेश से पूछा, “यार महेश, मेरी तो शादी हो गई, लेकिन तू अपने लिए लड़की कब देख रहा है?” महेश ने उदास होकर जवाब दिया, “मुझे कौन लड़की देखने आने वाली है, यार? मेरी ऐसी किस्मत ही कहां?”

तभी उन्होंने देखा कि एक लड़की काले लहंगे में तालाब के किनारे आई। उसने अपने कपड़े उतारे और तालाब के पानी में उतर गई। उस लड़की का ध्यान इन दोनों की तरफ बिल्कुल भी नहीं था, लेकिन ये दोनों टकटकी लगाकर उसे ही देख रहे थे। चाँद की रोशनी उसके गोरे बदन पर पड़ रही थी, जिससे वो किसी संगमरमर के ताजमहल की तरह चमक रही थी। कुछ देर नहाने के बाद वो तालाब से बाहर आई और उसने अपने बदन पर कपड़े डाले। उसके बालों से पानी टपकने लगा और वो आगे बढ़ने लगी।

महेश खुद पर काबू नहीं कर पाया और बोला, “अरे यार! मुझसे तो सब्र ही नहीं हो रहा है। मैं तो जा रहा हूँ।” राजीव ने उसे समझाया, “ओह भाई! इतना जज्बाती होना ठीक नहीं है।” महेश ने पलटकर कहा, “अरे साले! तेरी तो शादी हो चुकी है, लेकिन मेरे लिए तो जज्बाती होना गलत नहीं है ना?” महेश ऐसा कहते हुए अपनी जगह से उठा और उस लड़की के पीछे हो लिया। कुछ दूर चलने के बाद लड़की को भी शायद पता चल गया था कि कोई उसका पीछा कर रहा है। वो लड़की एक खंडहर के बाहर जाकर रुकी। उसने एक बार पलट कर महेश की तरफ देखा और फिर खंडहर के अंदर चली गई।

महेश भी उसके पीछे खंडहर के अंदर चला गया। वहाँ वो लड़की एक कुएं के पास जाकर रुकी। उसने पलट कर महेश की तरफ देखा और उसको पास आने का इशारा किया। महेश ने कहा, “अरे मेरी जान! मैं अभी आता हूँ।” महेश जाकर उस लड़की के गले लग गया। महेश ने फुसफुसाते हुए कहा, “मेरी जान, अब मुझे और मत तड़पाओ।” महेश उसकी मखमली कमर पर अपने हाथों को घुमा रहा था। तभी उस कुएं के अंदर नीले रंग की रोशनी उत्पन्न हुई और किसी के सांस लेने की भयानक आवाज सुनाई देने लगी।

महेश उस लड़की से अलग होना चाहता था, लेकिन उसने कसकर महेश को गले लगा रखा था। उस कुएं के अंदर से एक बेहद भयानक पिशाचिनी, किसी छिपकली की तरह चलकर ऊपर तक आ गई। उस लड़की ने महेश को कुएं की तरफ धकेल दिया। उस पिशाचिनी ने महेश को पकड़ा और उसे कुएं के अंदर खींच लिया। वो लड़की कुएं को देखते हुए रहस्यमयी अंदाज में मुस्कुरा रही थी।

तभी कुएं के अंदर से महेश का कटा हुआ सिर और उसके साथ सोने के दो सिक्के उछलकर उस लड़की के कदमों में आ गिरे। उस लड़की ने उस कटे सिर को पैर मारकर एक तरफ धकेल दिया और सिक्कों को उठाकर मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई। कुछ दिन पहले, नताशा घर के हॉल में इधर-उधर चक्कर लगा रही थी और बार-बार घड़ी की तरफ देख रही थी।

नताशा मन ही मन सोच रही थी, “पता नहीं ये कहाँ रह गया? ऑफिस तो 8:00 बजे ही खत्म हो जाता है।” तभी दरवाजा धड़ाम से खुला और राजीव लड़खड़ाता हुआ घर के अंदर दाखिल हुआ। नताशा ने चिंता से पूछा, “अरे! क्या हो गया आपको? आपने शराब पी है?” राजीव ने गुस्से में कहा, “हां, पी है मैंने शराब। साला वो नीरज, उसने फिर से मेरा डिमोशन कर दिया। मन करता है उस साले को खत्म कर दूं।” राजीव अपने कमरे में गया और धड़ाम से बेड पर गिर गया। नताशा राजीव की इस हालत को देख नहीं पा रही थी।

इसीलिए वो घर से निकल कर एक खंडहर के अंदर पहुंची, जिसके बारे में उसने बहुत बातें सुनी थीं। खंडहर के अंदर एक कुआं था। कुएं के पास जाकर उसने हाथ जोड़े और अपने घुटनों पर बैठकर बोली, “मुझे पता है कि तुम्हारे पास धन की कोई कमी नहीं है। तुमने हमेशा से ही उन लोगों की मदद की है, जिनका भगवान पर से भरोसा उठ गया। मैं भी उनमें से ही एक हूँ।” तभी कुएं के अंदर से एक आवाज आई, “मैं तुम्हें इतने सोने के सिक्के दे दूंगी कि तुम्हारी गरीबी अमीरी में बदल जाएगी।”

यह सुनकर नताशा के चेहरे पर खुशी छलक आई। कुएं की आवाज ने आगे कहा, “तुमको मेरे पास रोजाना एक मर्द को लेकर आना होगा। मैं इस कुएं से बाहर नहीं आ सकती। इसीलिए अगर तुम मुझे भेंट देने के लिए यहाँ जवान मर्दों को लाती रहोगी, तो मैं तुम्हें उसके बदले सोने के सिक्के दूंगी। जितना जवान मर्द होगा, सिक्के तुम्हें उतने ही ज्यादा मिलेंगे।” यह सुनकर नताशा इस भयानक सौदे के लिए राजी हो गई। जो दो सिक्के पिशाचिनी ने नताशा को दिए थे, उसने उनको अपने घर के मुख्य दरवाजे के सामने फेंक दिया।

सुबह राजीव उठा तो बहुत ज्यादा तनाव में था। उसने नाश्ता किया और तैयार होकर घर से निकला। दो कदम बढ़ाने पर ही उसे लॉन में दो सोने के सिक्के नजर आए। राजीव ने अचंभित होकर कहा, “अरे बाप रे!” उसने एक सिक्के को पत्थर पर रगड़कर देखा, तो उसकी आँखें चौंधिया गईं। राजीव ने खुशी से कहा, “सोने के सिक्के..? दो-दो सोने के सिक्के, इसने तो मेरी बहुत सी परेशानियाँ दूर कर दीं। मेरा सारा कर्जा मैं उतार सकता हूँ।” राजीव उन सिक्कों को पाकर बहुत खुश था और उसे खुश देखकर नताशा भी मन ही मन खुश थी।

रात को जब राजीव घर वापस आया तो उसके हाथ में शॉपिंग बैग्स थे। वो बहुत खुश था। उसने नताशा को गले लगा लिया और बोला, “देखो जान, मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आया हूँ?” नताशा उसकी खुशी की वजह जानती थी, लेकिन फिर भी उसने अनजान बनने की पूरी कोशिश की। राजीव ने उसे उसकी मनपसंद साड़ी पहनाई और फिर दोनों ने कमरे में जाकर प्यार भरे लम्हे गुजारे।

तकरीबन 2:00 बजे के वक्त जब राजीव गहरी नींद में था, तो नताशा ने उसका मोबाइल निकाला। उसने उसके मोबाइल से नीरज सर का नंबर लिया और फिर कमरे से निकलकर उसे कॉल लगाया। नीरज ने हैलो कहा, तो नताशा बोली, “हैलो नीरज सर, मैं नताशा बोल रही हूँ, राजीव की वाइफ।” नीरज ने पूछा, “लेकिन तुमने मुझे कॉल क्यों किया?” नताशा ने जवाब दिया, “मैं आपसे मिलना चाहती हूँ, वो भी अकेले। और राजीव को हमारी मुलाकात के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए।” यह सुनकर नीरज के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आई।

कुछ देर बाद नीरज की कार एक चौराहे पर खड़ी थी। तभी वहाँ नताशा आई। उसने नीरज को देखते हुए एक कातिलाना मुस्कान दी और बोली, “आपने मेरे पति से नाराज होकर उसका डिमोशन करवा दिया। मैं बस आपकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश करना चाहती हूँ।” यह सुनकर नीरज का चेहरा खिल उठा और वो बोला, “तो बताओ, तुमको अपने फ्लैट पर ले चलूँ? वहाँ हम आराम से बातें कर सकते हैं।” नताशा ने इनकार करते हुए कहा, “वहाँ नहीं। आपके लिए मेरे पास एक परफेक्ट जगह है।”

अब नताशा ड्राइव करने लगी, और नीरज उसकी खूबसूरती को निहारने लगा। नताशा ने कार को उसी खंडहर के पास ले जाकर रोका। नीरज ने अचंभित होकर कहा, “अरे! ये तो एक खंडहर है।” नताशा बोली, “पता है। आप जल्दी से मेरे साथ आइए।” ये कहते हुए नताशा कार से निकली और खंडहर के अंदर चली गई। उसके बाद नीरज भी आँखों में वासना लिए उसके पीछे हो लिया। नताशा उसी कुएं की बाउंड्री पर जाकर बैठ गई और नीरज भी उसके पास पहुँच गया।

नीरज ने छेड़ने के अंदाज में कहा, “यहाँ क्यों बैठी हो, मेरी जान? क्या ड्राइविंग से थक गई हो?” ये सुनकर नताशा उठी और उसने नीरज को कुएं में धक्का दे दिया। नीरज कुएं की बाउंड्री पर हाथों के सहारे लटक गया। तभी कुएं के अंदर से एक नीली रोशनी उत्पन्न हुई। नीरज चिल्लाया, “नताशा, मुझे ऊपर खींचो… ऊपर खींचो। ये क्या कर रही हो?” नताशा ने ठंडे लहजे में कहा, “तुम ज्यादा देर यहाँ लटके नहीं रह सकते।”

तभी दीवार पर चलती हुई पिशाचिनी नीरज की ओर आने लगी। नीरज चीखा, “आह! मुझे बचाओ।” नीरज ऊपर आने की कोशिश कर रहा था, लेकिन तभी पिशाचिनी ने उसे पीछे से पकड़ा और उसे कुएं के अंदर खींच लिया। कुछ देर बाद ही नताशा के सामने दो सोने के सिक्के आकर गिरे। उन्हें लेकर नताशा घर पहुंची और इस बार भी उसने उन सिक्कों को फिर से घर की चौखट पर फेंक दिया।

सुबह होते ही जब फिर राजीव को सिक्के मिले, तो उसे बहुत खुशी हुई। उसने सिक्के उठाकर अपनी पॉकेट में डाले और ऑफिस पहुँच गया। ऑफिस में उसे नीरज की मौत की खबर मिली, तो उसकी खुशी दोगुनी हो गई। उस दिन शाम को जब राजीव घर पहुंचा, तो उसने खुशी के मारे नताशा को गोद में उठा लिया। राजीव, “नताशा नताशा नताशा… मेरी जान, नताशा।”

नताशा ने मुस्कुराते हुए पूछा, “अरे अरे! क्या हुआ आपको? आज तो आप बहुत खुश लग रहे हैं।” राजीव ने जवाब दिया, “कल नीरज की डेथ हो गई और अब मुझे उसकी पोस्ट मिलने जा रही है।” नताशा ने हैरानी से पूछा, “क्या सच में?” राजीव ने खुशी से कहा, “हाँ मेरी जान, सच में।” राजीव ने नताशा को गले लगा लिया। उस रात भी नताशा ने उसके सोने का इंतजार किया और तकरीबन 2:00 बजे वो उठी।

वो कमरे से निकली और दरवाजा धीरे से बंद कर दिया। उसने ड्रेसिंग रूम में जाकर वही श्रृंगार किया और घर से निकल गई। उस रात उसने चौराहे पर 18 साल के एक लड़के को अपनी अदाओं का दीवाना बनाया और उसे उसी खंडहर में ले आई। लेकिन जैसे ही वो घर वापस लौटी, उसने देखा कि राजीव सामने बैठा हुआ है। उसके पैरों तले जमीन खिसक गई और हाथ से सोने के सिक्के जमीन पर गिर गए।

राजीव ने उसको सजी धजी हालत में देखा तो उसका गुस्सा फूट पड़ा। राजीव ने चिल्लाते हुए कहा, “तो तुम हमारी गरीबी दूर करने के लिए गंदे काम कर रही हो? ये सोने के सिक्के भी तुम ही रास्ते में फेंकती थी, है ना?” नताशा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है, राजीव।” राजीव बहुत गुस्से में था। उसने दो घूंसे नताशा के मुँह पर लगाए और उसे बालों के बल घसीटकर एक कमरे में ले गया।

राजीव ने क्रोधित होकर कहा, “कलंकिनी, अब यहीं इसी कमरे में तेरी चिता बना दूंगा।” राजीव ने ड्रॉअर से एक तेज धार वाला चाकू निकाला। नताशा ने विनती की, “मेरी बात सुनिए।” राजीव ने गुस्से में कहा, “मुझे कुछ नहीं सुनना।” ये कहते हुए उसने एक ही झटके में चाकू से उसकी गर्दन अलग कर दी। उसके खून के छींटे राजीव के चेहरे पर आ गए और उसकी आँखों में अभी भी गुस्सा परवान चढ़ा हुआ था।

चारों तरफ सन्नाटा छा गया, लेकिन तभी एक भयंकर आवाज राजीव को सुनाई दी। आवाज ने गर्जना की, “मुझे भेंट चाहिए… भेंट चाहिए मुझे।” राजीव ने सहमकर पूछा, “ये किसकी आवाज है?” आवाज ने जवाब दिया, “मेरी साधिका को मारकर तूने अच्छा नहीं किया।”

उसके चीखने की आवाज ऐसी थी कि राजीव के घर की सभी खिड़कियों के कांच टूटकर बिखर गए। राजीव अब बेहोश हो गया। सुबह उठा तो सब कुछ शांत था। नताशा की सड़ी लाश उसके पास ही पड़ी थी। राजीव ने खुद को दिलासा दिया, “वो सब एक सपना था, ऐसा कुछ नहीं हुआ।” राजीव जॉब पर गया और अपना काम करने लगा। दिन भर उसके साथ सब कुछ नॉर्मल था, लेकिन रात होते ही उसे वो भयानक आवाज सुनाई देने लगी।

आवाज ने फिर से धमकी दी, “तूने मेरी साधिका को मारकर अच्छा नहीं किया राजीव, मुझे भेंट चाहिए।” राजीव ने हिम्मत करके पूछा, “कौन हो तुम? सामने क्यों नहीं आती?” आवाज ने उसे डराते हुए कहा, “मेरी आवाज का पीछा करते-करते मेरे पास चले आओ, वरना मैं तुम्हे जान से मार सकती हूं।” राजीव उस आवाज का पीछा करते हुए घर से बाहर निकल गया। काफी देर चलने के बाद वो उसी खंडहर में कुएं के सामने पहुँच गया।

राजीव ने भयभीत होकर पूछा, “कौन हो तुम और किस साधिका की बात कर रही थी तुम?” आवाज ने जवाब दिया, “तुम्हारी बीवी मेरी साधिका थी और अब तुमको सब कुछ बता देती हूँ।” अब उस कुएं के अंदर से आती आवाज ने राजीव को सारी सच्चाई बता दी और यह पता चलते ही राजीव को एक बड़ा झटका लगा। वो अपने घुटनों पर आ गया और दहाड़ मार-मार कर रोने लगा। राजीव ने पश्चाताप करते हुए कहा, “मैंने मेरी बीवी को गलत समझकर उसे मार दिया। मुझसे कितना बड़ा पाप हो गया?”

आवाज ने क्रूरता से कहा, “पाप तो हुआ है, लेकिन अब तुम्हारी जान खतरे में है। तुम अब मेरी बीवी की तरह मेरे पास जवान लड़कियां लेकर आओगे। जितनी कम उम्र की लड़की होगी, तुम्हें उतने ज्यादा सोने के सिक्के मिलेंगे।” यह सुनकर अब राजीव को समझ आ गया कि अब वो बड़ी मुसीबत में फंस गया है। अगली शाम जब वो अपने ऑफिस से निकला, तो एक लड़की उसकी कार में आकर बैठी। राजीव ने पहचानते हुए कहा, “अरे! रश्मि तुम?”

रश्मि ने सहानुभूति जताते हुए कहा, “हाँ राजीव, मुझे ये जानकर बहुत अफसोस हुआ कि तुम्हारी बीवी तुम्हें छोड़कर चली गई।” राजीव ने उदास होकर कहा, “अब मैं कर भी क्या सकता हूँ? उसको प्यार तो बहुत किया था मैंने पर अब…” रश्मि ने राजीव के हाथ पर हाथ रखा और बोली, “अगर तुम चाहो तो मैं उसकी जगह ले सकती हूँ।” ये सुनकर राजीव के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान छलक आई और उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी। रश्मि ने पूछा, “अरे! तुमने इस खंडहर के बाहर गाड़ी किस लिए रोकी?”

राजीव ने एक अजीब मुस्कान के साथ कहा, “मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है जान। तुम्हारे लिए वेलकम गिफ्ट है।” रश्मि ने हंसते हुए कहा, “ओ हो! एक खंडहर में वेलकम गिफ्ट?” रश्मि राजीव के साथ उस खंडहर में चली गई और कुछ देर बाद ही उसकी भयानक चीख उस सुनसान हवा में गूंज गई।

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