पूर्णिमा की रात: नर भेड़िया

घोर अंधेरी अमावस्या की रात नहीं, बल्कि पूर्णिमा का भयावह चाँद अपनी दूधिया रौशनी फैला रहा था। घने जंगल में सन्नाटा चीरते हुए भेड़ियों का खौफनाक घुर्राना गूँज रहा था, मानो हर आवाज़ किसी आने वाली मौत की चेतावनी दे रही हो। हाईवे से दूर, इस घने जंगल के भीतर एक छोटी सी बस्ती थी। यह बस्ती दुनिया की चकाचौंध और दिखावे से परे, प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन यापन करती थी। बाहर की दुनिया वाले इन्हें पिछड़ा मानते थे, लेकिन सरकार की नज़र इन पर थी। वे चाहते थे कि ये आदिवासी आधुनिक जीवन को अपनाएँ और जंगल छोड़कर बाकी देशवासियों की तरह रहें। इसी इरादे से सरकारी अधिकारी अक्सर जंगल में इनसे मिलने आते थे, लेकिन बस्ती के लोग, खासकर पूर्णिमा की रात, उनसे मिलना बिल्कुल पसंद नहीं करते थे।

वे सदियों से एक राज़ छिपाते आ रहे थे, और पूर्णिमा की रात वे किसी भी कीमत पर दुनिया वालों को यह राज़ नहीं बताना चाहते थे। इसलिए, अपनी प्राचीन प्राण प्रतिष्ठा से पहले, वे पूरे गाँव की घेराबंदी कर देते थे। पर सरकार द्वारा उनके पीछे लगाई गई एजेंसी की उन पर पैनी नज़र रहती थी, खासकर पूर्णिमा के दिन, यह जानने के लिए कि आखिर वे ऐसा क्यों करते हैं। विक्रम और उसकी दो टीम के साथी, रवि और तेजस, कई रातों से जंगल में पूर्णिमा का इंतज़ार कर रहे थे, ताकि वे उन आदिवासियों के खास दिन में उनके साथ शामिल हो सकें। लेकिन आदिवासियों ने पूर्णिमा की एक रात पहले ही विक्रम और उसके साथियों को जंगल से बाहर फेंककर घेराबंदी कर दी। उन्होंने साफ समझा दिया कि आज रात वे उनसे दूर ही रहें तो सबसे अच्छा होगा।

रवि और तेजस उनके ऐसे बर्ताव पर आग-बबूला हो उठे और सरकार की धमकी भी देने लगे। पर विक्रम के एक इशारे पर वे दोनों शांत हो गए। वहीं, विक्रम की नज़र उस आदिवासी कबीले की एक लड़की, लीला, पर जा टिकी। उसकी हिरण सी आँखों से मोती जैसे आँसू टपक रहे थे, क्योंकि इतने दिनों तक विक्रम के साथ जंगल में रहकर उसे उससे लगाव हो गया था और वह नहीं चाहती थी कि विक्रम उससे कभी दूर जाए। पर अपनी परंपरा को मानते हुए और कबीले का राज़ छिपाते हुए उसे विक्रम को अलविदा कहना ही पड़ा। उसके जाने के बाद रवि तिलमिलाकर बोला, “विक्रम सर, आखिर क्या फायदा हुआ उन जंगलियों के साथ इतने दिन गुज़ारने का? जब उस दिन हमें बाहर कर दिया गया जिसकी हमें सबसे ज़्यादा आस थी।” विक्रम ने शांत स्वर में कहा, “घबराओ नहीं रवि, सच्चाई बाहर लाकर रहूँगा मैं।” रवि ने पूछा, “पर कैसे सर? वो तो हमें घुसने नहीं देंगे।” विक्रम ने जवाब दिया, “तुम चिंता मत करो, मैंने अंदर जाने के लिए एक खुफिया रास्ते का पता कर लिया है, लेकिन अंदर सिर्फ मैं जाऊँगा। तुम दोनों यहीं मेरा इंतज़ार करोगे।”

विक्रम सारी बातें अपने साथियों को समझाकर जंगल की दूसरी तरफ बनी एक गुफा के पास पहुँच गया, जिसे आदिवासी लोगों की बस्ती का प्रवेश द्वार कहा जाता था। दोपहर की धूप अब शाम के सुरूर में बदलने को बेकरार थी कि इतने में विक्रम ने मशाल जलाई और गुफा के अंदर अपने पता लगाए रास्ते की ओर निकल पड़ा। जब तक वह दूसरी तरफ गाँव में निकला, तब तक बेकरार शाम रात में बदलने को तैयार हो चुकी थी, और साथ ही पूर्णिमा का चाँद भी। विक्रम चोरी-छिपे उनके गाँव में घुस गया, लेकिन उनकी बस्ती पूरी तरह से खाली थी। हर घर में सन्नाटा ऐसे पसरा था जैसे वहाँ कोई रहता ही ना हो। तभी विक्रम के कंधे पर किसी ने पीछे से हाथ रखा, जिसके बाद डर के मारे उसकी साँसें अटक गईं। उसे लगा कि वह पकड़ा गया, जिसका मतलब शायद उसकी मौत भी हो सकती थी। पर जैसे ही वह पीछे मुड़ा, माथे की चिंता की लकीर मिट गई और वह बोला, “तुमने तो मुझे डरा ही दिया था, लीला।”

लीला ने गंभीर होकर कहा, “डरना तो पड़ेगा, क्योंकि मेरे अलावा किसी ने भी तुम्हें यहाँ देखा तो तुम्हारी मौत तय है और जो तुम देखना चाहते हो, अभी कुछ देर में तुम्हें पता चल जाएगा। पर किसी ऐसी जगह में छुपकर देखना जहाँ मैं भी तुम्हें ना देख पाऊँ।” लीला के इतना कहते ही पीछे जंगल से ज़ोर से किसी भोंपू और नगाड़े के बजने की आवाज़ आई, जो एक ही राग में बज रहे थे। आवाज़ कहाँ से आ रही है, यह देखने के लिए विक्रम पीछे मुड़ा तो उसने पाया कि जंगल में दूर कहीं आग की लपटें उठ रही हैं। फिर कुछ पूछने के लिए जैसे ही वापस लीला की तरफ घूमा, तो वह वहाँ थी नहीं। विक्रम समझ गया कि आगे का सफ़र उसे खुद पूरा करना है। नगाड़े की आवाज़ सुनते-सुनते विक्रम वहाँ तक पहुँच चुका था जहाँ पूरे कबीले के लोग इकट्ठा हुए थे। वह दूर झाड़ियों के पीछे से ही सब कुछ देखने और सुनने लगा था। लगातार बज रहे नगाड़े की आवाज़ उनके सरदार के हाथ दिखाते ही एक ऊँचाई पर आकर रुक जाती है और फिर भोंपू की आवाज़ के साथ ही उनका सरदार रुकता है और सभी की तरफ देखते हुए कहता है, “पूर्णिमा हर दिन आती है लेकिन साल की वो पूर्णिमा बहुत खतरनाक होती है, जब हम अपनी इच्छाधारी शक्तियों का इस्तेमाल कर वह रूप लेते हैं जिससे कि हमारा वंश आगे बढ़े और आज वही पूर्णिमा है। इंतज़ार है तो बस पूरे चाँद का। आओ उसे एक साथ बुलाते हैं।”

सरदार के इतना कहते ही वह नगाड़े एक बार फिर से बजना शुरू हो गए और सभी लोग अपने घुटनों के बल बैठकर, एक के बाद एक दोनों हाथों से अपने सीने को थपथपाते हुए चाँद को बुलाने लगे। उनको यह सब करता देख विक्रम को कुछ ज़्यादा समझ में नहीं आता है। पर तभी कुछ ऐसा होता है जिसे देख विक्रम की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं और फिसल कर वह नीचे गिर जाता है। इस वक्त विक्रम के डर से भरी आँखें देखकर यह साफ-साफ समझा जा सकता है कि उसके सामने कुछ ऐसा है, जो उसे तहस-नहस कर सकता है। उसके सामने पूरा कबीला, चाँद की रौशनी में, एक-एक करके खूँखार भेड़ियों में बदल रहा था। उनके शरीर फैल रहे थे, बाल उग रहे थे, और उनके चेहरे भयानक थूथन का रूप ले रहे थे। उनकी आँखों में लालच और हिंसा की चमक थी।

विक्रम अपनी जान बचाकर ऐसे भागता है जैसे अगर वह आज नहीं भागा, तो फिर कभी नहीं भाग पाएगा। इसीलिए वह गिरने-पड़ने के बावजूद भी बस जान बचाकर भागे जा रहा था। उसके पीछे से ऐसी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई खूँखार झुंड उसके पीछे पड़ा हो। हाँ, वह भेड़ियों का झुंड ही था, जो अब अपने परिवर्तित रूप में उसका पीछा कर रहा था। पर वह अपनी जान बचाकर उस गुफा तक पहुँच ही जाता है, जहाँ से वह आया था। वहाँ पहुँचते ही वह सबसे पहले जी जान लगाकर एक बड़े पत्थर की मदद से उस गुफा के मुँह को बंद करता है, जिसके दूसरी तरफ से भेड़ियों की भयानक आवाज़ें आ रही होती हैं। पर विक्रम बिना कुछ और सोचे भागा-भागा जैसे-तैसे गुफा के दूसरी ओर पहुँचने में कामयाब हो गया, जहाँ उसके साथी उसका इंतज़ार कर रहे होते हैं। पर वहाँ तक पहुँचने में वह इतना घायल हो जाता है कि एक सेकंड भी उसके सामने खड़ा नहीं हो पाता और बदहवास होकर वहीं गिर जाता है।

जब उसकी आँख खुलती है तो दिमाग में उस रात का ही मंज़र घूम रहा होता है और उसके सामने दो साथियों के अलावा एक सीनियर अधिकारी भी खड़ा था। तभी विक्रम को महसूस हुआ कि उसके चेहरे से दाढ़ी गायब है और उसने अजीब से मरीज़ के कपड़े पहने हुए हैं। वह कुछ और सोच पाता इससे पहले उसका सीनियर उससे कहता है, “पूरे एक महीने के बाद उठे हो तुम, विक्रम, और हम तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं। अब बताओ, तुमने वहाँ क्या देखा जो तुम्हारी ऐसी हालत हो गई?” उस रात का नाम सुनकर विक्रम एक बार फिर से उस मंज़र में खो जाता है, जब उसने अपनी आँखों के सामने पूरे कबीले को चाँद की रौशनी में एक साथ भेड़िए में बदलते देखा। और साथ ही यह भी कि जब पूरे भेड़िए का झुंड उस पर मौत बनकर झपटा, तो कैसे लीला, जो खुद भी एक भेड़िया के रूप में थी, उसने उसे वहाँ से बच निकलने का मौका दिया? और आज वह यहाँ ज़िंदा खड़ा है।

विक्रम अभी सोचकर ही बाहर निकला था कि तभी उसके सीनियर ने फिर से कहा, “विक्रम, तुमने जो अभी देखा वो बताने में देरी मत करो और बताओ, चल क्या रहा है वहाँ? आज पूर्णिमा है और हम उन्हें रंगे हाथ पकड़कर जंगल से फिकवा सकते हैं। पर तुम कुछ बोलो तो।” उसकी इसी बात के साथ पूरे अस्पताल की लाइट चली जाती है और छठी मंज़िल पर विक्रम के कमरे में काँच की खिड़की से होते हुए बादलों से निकलते चाँद की रौशनी पहुँचने लगती है। और उसी के साथ उसका रवैया भी बदलने लगता है। कोसों दूर जंगल में बज रहे नगाड़े की आवाज़ साफ-साफ उसे अपने कानों में सुनाई देती है और साथ ही कबीले के सरदार का फरमान भी कि लीला को जान से मार दिया जाए, क्योंकि उसने कबीले का नियम तोड़ा है। विक्रम बेड से उठ अपने हाथ से स्लाइन का पाइप निकालता है और कहता है, “चले जाओ, चले जाओ यहाँ से! अकेला छोड़ दो उन्हें, अगर वो तुम्हें परेशान नहीं कर रहे हैं तो तुम क्यों उनकी ज़िंदगी में घुस रहे हो?”

सीनियर ने तल्ख आवाज़ में कहा, “अच्छा विक्रम, अब तुम उन जंगलियों की भाषा बोलने लगे? अरे! सरकार तो उन्हें बाकी इंसान की तरह ही दर्जा देना चाहती है।” विक्रम ने गुस्से में कहा, “नहीं चाहिए उन्हें कोई दर्जा। दूर रहो उनसे, वरना वो पूरी मानव जाति के लिए खतरा बन जाएँगे। सिर्फ आप लोगों के एक गलत कदम से।” सीनियर ने सिक्योरिटी को आदेश दिया, “सिक्योरिटी, विक्रम को कस्टडी में ले लो और अब मैं पर्सनली देखता हूँ, कैसे बचते हैं वो जंगली? अरे! उनको साफ करने के लिए पूरी फोर्स लगा दूँगा। अरबों की ज़मीन दबाकर बैठे हैं वो लोग, ऐसे थोड़े ही जाने दूँगा।” विक्रम के बार-बार मना करने पर भी उसका सीनियर उसकी बात नहीं सुनता है और वहाँ से निकल जाता है। और सिक्योरिटी विक्रम की तरफ बढ़ने लगती है। तभी विक्रम खिड़की से बाहर चाँद को देखते हुए घुटनों के बल अपने सीने को थपथपाता है और देखते ही देखते उसका शरीर एक खूँखार नर भेड़िये का रूप ले लेता है।

विक्रम को भेड़िये में बदलता देख सिक्योरिटी का भी दिमाग घूम जाता है या यूँ कहिए कि उनकी हालत पस्त हो जाती है। इसीलिए वे अपनी बंदूकें निकाल लेते हैं पर उनका यह पैंतरा विक्रम पर काम नहीं करता। तभी भेड़िये में बदल चुका विक्रम अपने दोनों हाथों से उन्हें उठाकर खिड़की के बाहर फेंक देता है और खुद भी बाहर निकलकर अस्पताल की बिल्डिंग पर से चलने लगता है और फिर तेज़ रफ़्तार से जंगल की तरफ निकल जाता है। और जब वह जंगल में पहुँचता है, तो देखता है कि लीला को मारने की तैयारी पूरी हो चुकी है। बस गले पर हथियार चलाना बाकी था। पर इससे पहले कि वे लीला को मारते, विक्रम नर भेड़िये के रूप में ही उन पर झपट पड़ता है और लीला को अपने साथ ले सरदार के पास पहुँच जाता है और वापस से अपने असली रूप में आ जाता है।

लेकिन इससे पहले कि सरदार कुछ कहता, विक्रम ने सारी बात उसे बता दी कि जंगल खाली करवाने के लिए उन पर हमला किया जाएगा। पर सरदार को उसकी बात पर विश्वास नहीं होता, बल्कि वह तो इस बात पर गुस्सा होता है कि उनकी शक्तियाँ अब उसमें भी आ गई हैं। पर अगले ही पल उन्हें चारों तरफ से घेर लिया गया और सरदार भी यह समझ चुका था कि विक्रम की बात सच है। फिर सरदार के इशारे पर सभी नर भेड़ियों का रूप ले लेते हैं और हमला करने के लिए आगे झपटते हैं। लेकिन फोर्स की तरफ से बेतहाशा फायरिंग शुरू हो जाती है और काफी मुठभेड़ के बाद बचे हुए भेड़िये जिधर जगह मिली, उधर जंगल की ओर भाग जाते हैं। सीनियर ने कहा, “चलो मुसीबत टली।” सैनिक ने पूछा, “पर सर ये क्या हुआ? कैसे ये लोग भेड़िये में कैसे बदल गए?” सीनियर ने जवाब दिया, “हमें उससे क्या? उन्हें जंगल की ज़मीन का क्लियरेंस चाहिए और हमें बदले में पैसे और प्रमोशन, इसीलिए ध्यान रहे जो यहाँ देखा वो बात यहीं तक रहे। अच्छा मुझे कॉल रिसीव करना है, तुम सब क्लियर करवाओ।” सैनिक ने हाँ में हाँ मिलाई, “हाँ सर, काम हो गया। अब आपको यहाँ से हीरा निकालना है या सोना, आप खुद देखिए। बस अपना वादा याद रखिएगा, बंदा आगे भी काम आएगा।” कबीले को तबाह कर लालची इंसानों को ज़मीन तो मिल गई, पर तब क्या होगा जब जंगल से भागकर शहर की तरफ गए ये मासूम कबीले वाले अगले पूर्णिमा पर नर भेड़िए में बदल जाएँगे और शहरी जीवन में कहर बरपाएँगे? यह एक नई और ज़्यादा भयानक शुरुआत थी, जिसके लिए दुनिया तैयार नहीं थी।

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