हमारे गाँव के बुजुर्गों की मानें तो घने जंगल में एक आदमखोर भूत रहता है, जिसके बारे में सोचकर भी रूह काँप उठती है। यह कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों से चला आ रहा एक खौफनाक सच है। गाँव वाले कहते हैं कि जिसने भी उस भूत को देखा है, वह वापस नहीं लौटा। अगर मैं कभी उससे रूबरू होता, तो शायद आज यह कहानी सुनाने के लिए जिंदा न होता।
वह भूत सिर्फ रात के अँधेरे में सक्रिय होता है, जंगली जानवरों का शिकार करता है, लेकिन उसका असली निशाना इंसान होते हैं। जंगल से अक्सर अजीबोगरीब चीखें और डरावनी आवाजें आती रहती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि वहाँ कुछ तो भयावह है। यही वजह है कि कोई भी उस जंगल के करीब जाने की हिम्मत नहीं करता। यहाँ तक कि लकड़ी काटने वाले भी पड़ोसी गाँवों के जंगलों का रुख करते हैं, पर उस खौफनाक जंगल से लकड़ी लाने की बात तो दूर, उसके बारे में सोचते भी नहीं हैं।
कई लोग उस जंगल में लापता हो चुके हैं, और उनका कभी कोई सुराग नहीं मिला। जंगल इतना घना है कि दिन के उजाले में भी रास्ता भटकना आसान है, और रात में तो वह आदमखोर भूत पल भर में शिकार कर लेता है। ऐसे में, उस जंगल से जीवित बाहर निकलना लगभग असंभव माना जाता है।
एक पुरानी घटना आज भी गाँव वालों की जुबान पर है, जो लगभग पचास-पचपन साल पहले घटी थी। कुछ गाँव वाले अपनी बैलगाड़ी से घर लौट रहे थे। सब कुछ सामान्य था, लेकिन अचानक उनकी बैलगाड़ी के बैल एक जगह आकर रुक गए और आगे बढ़ने से साफ इनकार कर दिया। उस समय बैलगाड़ी में पाँच लोग बैठे थे, जो बैलों के इस अजीब व्यवहार से हैरान थे।
तभी जंगल के भीतर से एक दिल दहला देने वाली चीख सुनाई पड़ी। उस चीख ने उन पाँचों लोगों और बैलों को बुरी तरह डरा दिया। वे समझ गए थे कि यह वही आदमखोर भूत है जिसकी कहानियाँ उन्होंने सुन रखी थीं। गनीमत यह थी कि वे लोग जंगल से लगभग 200 मीटर दूर एक कच्ची पगडंडी पर थे। एक आदमी ने हिम्मत करके बैलों की पीठ पर रस्सी से जोर से मारा, और बैल तेजी से वहाँ से भाग निकले। जब वे सुरक्षित गाँव पहुँचे, तब जाकर सभी को जान में जान आई।
वे सभी जंगल के बाहरी छोर पर थे, इसलिए बच गए। आज भी दिन के समय कुछ लोग मजबूरीवश जंगल में चले जाते हैं, पर रात में उस जंगल में जाने की हिम्मत कोई नहीं करता। उस आदमखोर भूत का खौफ आज भी गाँव की हवा में घुला हुआ है।











