छलावा भूत की भयावह पुकार

मई की चिलचिलाती गर्मी में, मैं अपनी मौसी के घर छुट्टियाँ बिताने गया था। मौसा जी एक डॉक्टर थे, इसलिए उन्हें शहर से थोड़ी दूर एक सरकारी क्वार्टर मिला था। हम दूसरी मंजिल पर रहते थे और हमारी बालकनी के ठीक पीछे एक घना जंगल था। रात होते ही वहाँ से तरह-तरह की अजीबोगरीब आवाजें आती थीं, जो अक्सर हमें डरा देती थीं। यह जगह जितनी शांत थी, उतनी ही रहस्यमयी भी।

एक रात, हम सब खाने के बाद बालकनी में बैठे बातें कर रहे थे। माहौल हँसी-मज़ाक का था, तभी मेरी मौसी का लड़का, अमित, अचानक पूछ बैठा, “क्या किसी में इतनी हिम्मत है कि वह इस रात के अँधेरे में उस जंगल के अंदर जाए?” हम सब उसकी बात सुनकर हँसने लगे और उसे ऐसी बेकार की बातें न करने को कहा। भला इतनी रात को कोई जंगल में क्यों जाएगा, जहाँ जंगली जानवरों का खतरा हो? हमारी हँसी से बालकनी गूँज उठी।

अमित थोड़ा गंभीर होकर बोला कि वह मज़ाक नहीं कर रहा है। उसने बताया कि उसके स्कूल के दोस्त अक्सर एक कहानी सुनाते हैं, जिसमें एक लड़का ऐसे ही जंगल में गया था और फिर कभी वापस नहीं लौटा। गाँव वाले कहते हैं कि उस लड़के को अपने पिता की आवाज़ सुनाई दी थी, जो उसे जंगल के अंदर बुला रही थी। वह उस आवाज़ का पीछा करते-करते अंदर चला गया और फिर किसी ने उसे दोबारा नहीं देखा। मैंने इसे एक झूठी कहानी मानकर हँसते हुए उड़ा दिया।

मैंने अमित से पूछा, “अगर वह लड़का कभी वापस नहीं आया, तो लोगों को कैसे पता चला कि वह आवाज़ उसके पिता की थी?” अमित ने बताया कि लड़के के पिता भी वहीं पास में थे और उन्होंने भी वही आवाज़ सुनी थी, जैसे कोई उन्हें भी अपनी ही आवाज़ में पुकार रहा हो। जब वे दौड़कर उस जगह पहुँचे, तो उनका बेटा वहाँ नहीं था। इसी कारण कोई भी उस जंगल की ओर नहीं जाता। मैंने उसकी बात सुनकर फिर से मज़ाक उड़ाया और कहा, “वाह! जंगल का भूत, जो लोगों को गायब कर दे!”

कुछ देर बाद, हम सभी टीवी देखने लगे, लेकिन मेरा मन नहीं लगा। मैं थोड़ी ताज़ी हवा लेने फिर से बालकनी में आ गया। रात का ठंडा मौसम था और तेज़ हवा चल रही थी। मेरा ध्यान बार-बार उस घने जंगल की ओर जा रहा था। मैं सोच रहा था कि आखिर कौन होगा वह ‘छलावा’? क्या अमित की कहानी सच थी? तभी मैंने देखा कि मेरा मौसेरा भाई, अमित, जंगल के किनारे खड़ा मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहा था और इशारे से मुझे भी नीचे आने को कह रहा था।

मैं चौंक गया। अभी तो अमित टीवी देख रहा था, फिर इतनी जल्दी नीचे कैसे पहुँच गया? मैंने पीछे मुड़कर देखा, वह टीवी के पास नहीं था। मुझे लगा शायद वह नीचे चला गया है और मुझे बुला रहा है। अमित ने नीचे से फिर आवाज़ दी, “अरे! क्या देख रहे हो? नीचे आओ! थोड़ी सैर करते हैं।” मैंने सोचा, चलो थोड़ी देर घूम लेते हैं। मैं नीचे जाने के लिए दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि तभी मैंने देखा, मेरा भाई अमित टॉयलेट करके बाहर आ रहा है। यह देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

मेरे ज़हन में बस एक ही सवाल कौंध रहा था – अगर अमित यहाँ है, तो नीचे जंगल के किनारे कौन था? मैं घबराकर उससे बोला, “तुम तो अभी नीचे थे। इस बाथरूम में कब आए?” उसने मुझे हैरानी से देखा और कहा, “मैं तो यहीं था। मैं नीचे गया ही नहीं हूँ। तुम क्या बोल रहे हो?” मैंने उसे समझाया कि मैंने अभी-अभी उसे जंगल के किनारे देखा था और वह मुझे बुला रहा था। वह हँसने लगा और बोला, “मज़ाक मत करो। तुम्हें क्या लगता है, मैं डर जाऊँगा? मुझे पता है तुम मुझे डराने की कोशिश कर रहे हो, पर मैं नहीं डरने वाला।” इतना कहकर वह वापस टीवी देखने चला गया। मुझे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।

उसी रात, जब मैं सोने की कोशिश कर रहा था, तब मुझे किसी की पुकार सुनाई दे रही थी। इस बार यह आवाज़ अमित जैसी नहीं थी, बल्कि किसी बूढ़े आदमी की थी, जिसकी आवाज़ भारी और थकी हुई लग रही थी, जैसे कोई बहुत सिगरेट पीता हो। वह मुझसे कह रहा था, “मैं तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रहा हूँ, तुम आए ही नहीं। जल्दी आ जाओ। फिर हम दोनों साथ में इस जंगल के अंदर घूमेंगे।” यह आवाज़ मुझे पूरी रात परेशान करती रही।

सुबह जब मैंने यह बात सबको बताई, तो सबने कहा कि यहाँ ऐसा होना आम बात है। उन्होंने मुझे उस ओर ध्यान न देने और अपना काम करने को कहा, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि भूलकर भी उस जंगल की ओर नहीं जाना। कुछ दिनों तक मुझे उस जंगल से आवाज़ें आती रहीं, फिर अचानक वे रुक गईं। इस घटना के कुछ दिनों बाद मेरे पापा मुझे लेने आ गए, क्योंकि मेरी गर्मी की छुट्टियाँ भी खत्म होने वाली थीं। लोग उस जंगल में रहने वाले को ‘छलावा’ कहते हैं, और जो कोई भी उसके पीछे जाता है, वह फिर कभी लौटकर नहीं आता।

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