इच्छाधारी नागिन का रहस्य

एक आदमी दर्द से कराहता हुआ जमीन पर रेंग रहा था। उसके पैरों पर अनगिनत साँपों के काटने के निशान थे, जिससे उसका शरीर नीला पड़ रहा था। आँखों और नाक से खून बह रहा था, ज़हर इतना घातक था कि उसका चेहरा भी नीला पड़ चुका था। भयानक पीड़ा सहते हुए भी उसने अपनी जान बचाने की कोशिश नहीं छोड़ी। तभी एक साँप तेजी से रेंगता हुआ उसकी छाती पर आ बैठा और फुंकारते हुए बोला, “तुझे क्या लगा था, तू मुझे मारकर यह खेल खत्म कर देगा? अभी तो यह खेल शुरू हुआ है। मैं आज मर रहा हूँ, लेकिन कल कोई और आएगा जो इस खेल को आगे बढ़ाएगा। याद रख…।”

साँप ने अपनी फुंकार जारी रखी, “रस्सी जल गई, लेकिन बल नहीं गया। तू बस कुछ ही मिनटों का मेहमान है और ऐसे में भी मुझे मारने की बात कर रहा है? कमाल है तू भी। पर चिंता मत कर, ये खेल चाहे कोई भी खेले, जीतूंगी मैं ही।” इतना कहकर वह साँप उस शख्स की गर्दन के चारों ओर कसने लगा। उसकी पकड़ इतनी तीव्र थी कि मजबूर होकर उस आदमी को चीखना पड़ा। जैसे ही उसने मुँह खोला, साँप उसके मुँह में घुस गया, जिससे वह और तेज़ी से छटपटाने लगा और देखते ही देखते उसकी भयानक मौत हो गई।

तीन साल बाद, रोमी नामक एक युवक, जो गाँव के ग्रामीण बैंक का इंचार्ज था, एक कमरा किराए पर लेने की तलाश में था। गाँव में कोई भी उसे कमरा देने को तैयार नहीं था। वह बड़ी उम्मीद से नागेश नामक व्यक्ति के पास पहुँचा और बोला, “कोई है? दरअसल, मुझे कमरा किराए पर चाहिए था। मैंने बहुत कोशिश की, पर इस गाँव में कोई भी कमरा किराए पर नहीं देता। देखिए, मना मत कीजिएगा, मैं बड़ी उम्मीद लेकर आपके पास आया हूँ। प्लीज़ मेरी हेल्प कीजिए, मुझे रहने के लिए कमरा चाहिए।”

नागेश ने रोमी का नाम पूछा, और अपना नाम नागेश बताते हुए हाथ जोड़कर कहा, “हाँ तो रोमी, मेरा नाम नागेश है। मैं भी आगे-आगे हाथ जोड़ता हूँ, मेरे घर में ऐसा कोई कमरा नहीं है जो खाली हो। तो मैं चाहकर भी आपको एक कमरा किराए पर नहीं दे सकता।” रोमी का मन उदास हो गया, और वह वापस जाने को मुड़ा ही था कि नागेश ने कुछ सोचते हुए कहा, “एक जगह है… पर तुम उसमें रह भी पाओगे या नहीं, यह मुझे नहीं पता।”

रोमी ने उत्सुकता से पूछा, “कैसा रास्ता? आप बताइए, कम से कम सुबह तीन घंटे आने और तीन घंटे जाने का समय तो बचेगा। झाड़ू…?” नागेश ने कहा, “हाँ, पकड़ लो इसे और आओ मेरे पीछे। मैं तुम्हें एक बेहद खूबसूरत जगह दिखाता हूँ और वहाँ रहने का किराया भी बहुत मामूली देना होगा।” नागेश ने रोमी को झाड़ू थमाई और अपने पीछे चलने को कहा। दोनों एक पुराने मंदिर के दरवाज़े पर खड़े थे, जिस पर अनगिनत साँपों की आकृतियाँ बनी हुई थीं।

दरवाज़ा खोलने से पहले नागेश ने रोमी से पूछा, “तुम्हें नींद में चलने की आदत तो नहीं है, ना?” रोमी ने जवाब दिया, “नहीं, मुझे ऐसा कुछ भी नहीं है।” नागेश ने अगला सवाल किया, “और क्या तुम नॉन-वेज या शराब वगैरह पीते हो?” रोमी ने कहा, “जी, मैं ब्राह्मण हूँ। नॉन-वेज के नाम पर भी उल्टी आ जाती है मुझे। और रही बात शराब की, तो उसका रंग तक नहीं पता।” रोमी की बात सुनकर नागेश ने एक नज़र उसे देखा और फिर दरवाज़े पर ज़ोर से धक्का मारकर उसे खोल दिया।

जब रोमी ने मंदिर को देखा तो उसके होश उड़ गए। एक विशाल मंदिर उसकी आँखों के ठीक सामने था, जिसके चारों ओर साँप की आकृतियाँ बनी हुई थीं। गौर से देखते हुए रोमी ने तुरंत नागेश से कहा, “मुझे अकेले रहना है, खानदान के साथ नहीं।” नागेश ने जवाब दिया, “मेरे पास अब यही एक खाली जगह है, जो मैं तुम्हें दे सकता हूँ।” रोमी ने मन ही मन सोचा, “रोमी बेटा, जो मिल रहा है, ले ले वरना रात किसी पेड़ के नीचे या तबेले में बितानी होगी।”

रोमी अभी सोच ही रहा था कि नागेश ने पूछा, “क्या सोच रहे हो? नहीं रहना क्या?” रोमी ने तुरंत कहा, “नहीं-नहीं, रहना है। भला इतने कम किराए में इतनी अच्छी जगह मिलती है कहीं?” नागेश ने उसे चेतावनी दी, “अच्छा, तो याद रखना… अगर कोई तुमसे इस जगह के बारे में पूछे, तो कहना कि नागेश ठाकुर के आदेश पर रह रहे हो। और मुख्य मंदिर के दरवाज़े खोलने या इधर-उधर भटकने की कोई जरूरत नहीं है। दिनभर काम करना और रात को सिर्फ सोने के लिए ही आना। अब जाओ खुद से कमरा साफ करो। बाकी खाने के लिए मैं कुछ भिजवाता हूँ।”

नागेश रोमी को सारी बातें समझाकर बिना मंदिर के अंदर पैर रखे ही वापस लौट गया। दरअसल, नागेश ने रोमी को पुजारी का कमरा दिया था, जो सालों से धूल खाया हुआ था। कमरे में बड़े-बड़े जाले थे, और उस कमरे की खिड़की से मंदिर का मुख्य द्वार साफ दिखाई देता था। घंटों की मेहनत के बाद रोमी ने कमरा साफ कर दिया था। अब शाम होने को आ गई थी, पर रोमी इतना थक चुका था कि वह बाहर से कुछ खरीदकर खाने की हालत में नहीं था। वह भूखे पेट ही बिस्तर पर लेटा था कि तभी किसी ने मंदिर का दरवाज़ा खटखटाया।

रोमी थकान से अधमरा हो चुका था। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, तो चौंक गया। नागेश की बड़ी बेटी गहना रोमी के लिए खाना लेकर आई थी। गहना ने खाना देते हुए कहा, “लीजिए, बाबा ने आपके लिए खाना भिजवाया है।” रोमी ने पहले तो उस लड़की को ऊपर से नीचे तक एक नज़र प्यार से देखा, फिर बिना कोई तर्क किए खाना ले लिया। रोमी ने गहना को अंदर आने का निमंत्रण दिया, “अच्छा आप भी आइए अंदर, कुछ देर साथ बैठिए। मेरा भी मन लग जाएगा।”

गहना ने विनम्रता से मना करते हुए कहा, “नहीं, बाबा ने मंदिर के अंदर जाने से मना किया है। हमारे परिवार का कोई भी सदस्य इस मंदिर में कदम नहीं रख सकता, वरना वह जाग जाएगी।” रोमी ने पूछा, “कौन जाग जाएगी? किसकी बात कर रही हैं आप?” गहना ने जवाब दिया, “रहने दीजिए, आप शहर के लोग यह सब नहीं समझेंगे।” इतना कहकर गहना बिना रुके अपने घर की ओर चल दी। रोमी भी खाना खाकर गहरी नींद में सो चुका था।

अगले पाँच दिनों तक रोमी बैंक से मंदिर और मंदिर से बैंक ही आता-जाता रहा। लेकिन आज शनिवार था, इसीलिए बैंक की छुट्टी के बाद वह पूरा दिन मंदिर के कमरे में ही रहा। गहना रोज़ की तरह सुबह और शाम का खाना रोमी को पहुँचाया करती थी। रोमी भी रोज़ एक नज़र प्यार से उसे देखता, मानो उसके दिल और पेट की भूख एक साथ मिट रही थी। पर आज रोमी ने मन बना लिया था कि वह आज गहना से बात करके ही रहेगा।

इसी इरादे से जब शाम को गहना खाना देने आई तो उसने दरवाज़ा नहीं खोला। गहना भी बहुत देर तक दरवाज़ा पीटती रही। पर रोमी मंदिर के अंदर कोने में छिपा गहना को देख रहा था। बहुत देर के बाद जब रोमी ने दरवाज़ा नहीं खोला, तो गहना उसकी चिंता में मंदिर के अंदर आ गई। गहना ने मंदिर में कदम रखा ही था कि मंदिर में तेज़ हवाएँ चलने लगीं, घंटियाँ अपने आप बजने लगीं, और मंदिर का मुख्य द्वार अपने आप ही खुल गया, जिसके अंदर एक शिवलिंग रखा था।

उस शिवलिंग को लपेटे एक विशाल नागिन सोई पड़ी थी, पर दरवाज़े के खुलते ही वह नागिन हरकत में आ गई। गहना यह सब अपनी आँखों के सामने होते हुए देख रही थी। रोमी ने गहना से कहा, “तो आखिरकार तुम्हें मंदिर के अंदर आना ही पड़ा। मैं पूरा दिन अकेले बोर होता हूँ, कोई दो बात करने को नहीं मिलता। सारा गाँव सात-साढ़े सात सो जाता है, इसलिए मैंने जान-बूझकर दरवाज़ा नहीं खोला ताकि तुमसे दो बातें कर सकूँ।”

पर गहना के होश उड़ चुके थे। उसने हड़बड़ाते हुए रोमी से कहा, “मैंने कहा था ना, तुम शहर के लोग कभी नहीं समझोगे? अब भागो यहाँ से जल्दी, वह जाग गई है।” गहना ने चौंकते हुए रोमी का हाथ पकड़ा और मंदिर से बाहर जाने को हुई ही थी कि मंदिर का दरवाज़ा अपने आप ही बंद हो गया। यह सब देखकर रोमी भी डर गया था। रोमी ने पूछा, “यह सब क्या हो रहा है? यह दरवाज़ा कैसे अपने आप बंद हो गया?”

गहना ने तुरंत कहा, “अभी कुछ मत पूछो, भागो यहाँ से। मैं तुम्हें सब बताती हूँ।” गहना की बातें रोमी के सिर के ऊपर से जा रही थीं, पर इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, गहना उसका हाथ पकड़कर दौड़ पड़ी थी और दोनों सीधे पुजारी के कमरे यानी अभी रोमी जिस कमरे में रह रहा था, उसमें जाकर छिप गए। पूरे मंदिर का वातावरण बदल चुका था। चारों तरफ अजीब-सी शांति पसर चुकी थी।

तभी रोमी ने थोड़ी हिम्मत जुटाकर कमरे की खिड़की से बाहर देखा, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। एक बहुत विशाल नागिन मंदिर के मुख्य द्वार पर फन फैलाए खड़ी थी और उसके सामने लाखों साँप रेंग रहे थे। जिन साँपों की आकृतियाँ उसने मंदिर में देखी थीं, वे सब असली साँप बनकर उस नागिन के सामने आ रहे थे। नागिन ने ज़ोरदार आवाज़ में कहा, “फिर से हमारे कर्तव्य निभाने की बारी आ चुकी है। लालची इंसानों ने फिर से हमारे भगवान को हमसे छीनने की कोशिश की है, जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी होगी। ढूँढो उन्हें, वे इसी मंदिर में कहीं छुपे हुए हैं।”

नागिन की बात सुन सारे साँप एक पल में तितर-बितर हो गए और मंदिर के हर कोने में रेंगते हुए रोमी और गहना को ढूँढने लगे। खिड़की से यह सब देख रोमी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। तो उसने तुरंत गहना का हाथ पकड़ा और उसे दीवार से लगाकर गुस्से से पूछा, “यह सब क्या हो रहा है? कौन हो तुम लोग? यह क्या है और यह किसे ढूँढने की बात कर रही है? मैंने तो कुछ किया ही नहीं, फिर मेरे साथ यह सब क्यों?”

गहना ने रोमी को पूरी कहानी बताई, “रोमी, यह हमारा पुश्तैनी मंदिर है जिसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी देवताओं ने हमारे खानदान को दी थी। पीढ़ी दर पीढ़ी हम इसकी रक्षा करते आ रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला गया, कर्तव्य में लालच की मिलावट होने लगी। फिर एक दिन मेरे परदादा ने शिवलिंग को चुराने की सोची। तब हमें यह श्राप मिला कि अगर हमारे खानदान में से किसी ने भी इस मंदिर में कदम भी रखा, तो इच्छाधारी नागिन हमें मार डालेगी।”

गहना आगे बोली, “यही कारण है कि मेरे कदम रखते ही मुख्य मंदिर का दरवाज़ा अपने आप खुल गया और अब वह इच्छाधारी नागिन फिर से अपने शिकार के लिए निकल चुकी है।” गहना की बात सुन रोमी टूट गया। उसे लगा कि आज रात के बाद वह जिंदा नहीं बचेगा। वह निराश हो कमरे के कोने में बैठ गया और इस बारे में सोच ही रहा था कि अगले ही पल कमरे में बने एक छोटे से बिल से एक-एक करके सैकड़ों साँप निकलने लगे और रोमी को घेरने लगे।

रोमी भी डर के मारे एक कोने में सिमटता जा रहा था। बारी-बारी से साँप उसके जिस्म से लिपटने लगे थे। देखते ही देखते रोमी का शरीर साँपों से ढक चुका था, पर एक भी साँप ने उसे काटा नहीं था। सब बस उसके जिस्म से लिपटे हुए फन फैलाए रोमी को ही देख रहे थे। रोमी भी डर के मारे चीखते हुए सबसे कह रहा था, “छोड़ दो मुझे, मुझे तुम्हारा शिवलिंग नहीं चाहिए। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ।” वह चीख ही रहा था कि अचानक उसे याद आया कि गहना कमरे से गायब है।

अब साँप उसे पूरी तरह से जकड़कर कमरे के बाहर ले आए। रोमी इस वक्त खुद नहीं चल रहा था, बल्कि साँप उसे चला रहे थे। कुछ पल बाद रोमी नागिन के सामने खड़ा था। नागिन ने कहा, “यह कौन है? किसको उठा लाए हो तुम? इसके माथे पर कोई श्राप नहीं लिखा है।” नागिन के इतना कहते ही रोमी के जिस्म से लिपटे सारे साँप एकदम अलग हो गए और रोमी एकदम रिहा हो गया। रोमी जिंदा बचने की खुशी मना ही रहा था कि तभी कमरे के अंदर से किसी को कहते सुना,

एक आवाज़ ने कहा, “बस कर दो दीदी। बहुत लोगों की जान ले ली आपने, अब और नहीं।” रोमी ने आवाज़ का पीछा किया तो देखा कि गहना मंदिर में कलश लिए खड़ी है। गहना को मंदिर में देख नागिन भी अपने असली रूप में आ गई, जो हू-ब-हू गहना जैसी दिख रही थी। यह एक और राज़ रोमी के सामने खुला था, जिसका ना तो उसे सिर का पता था और ना ही पैर का। नागिन ने गहना को रोका, “नहीं बहना, अगर तूने शिवलिंग का जलाभिषेक किया, तो मैं सौ सालों के लिए निद्रा में चली जाऊँगी। ऐसा मत करना, इन इंसानों का कोई भरोसा नहीं है।”

पर गहना ने उसकी एक नहीं सुनी और कलश से शिवलिंग पर जल डालने लगी। जैसे ही जल की बूँदें शिवलिंग पर गिरीं, साँप धीरे-धीरे गायब होने लगे। उनका अस्तित्व मिटने लगा था। रोमी भी गहना की हमशक्ल को धीरे-धीरे धूल होता हुआ देख रहा था। पर पूरी तरह से मिट्टी में मिटने से पहले वह इतना कह गई, “अगर शिवलिंग को कुछ हुआ, तो मैं इसे कभी माफ नहीं करूंगी, माफ…।” इसके बाद नागिन का अस्तित्व हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गया।

इस हादसे के बाद गहना पूरी रात रोमी के साथ ही रुकी और उसे सारा मामला समझाते हुए कहा, “रोमी, यह बात सच है कि मेरा खानदान इस शिवलिंग की रक्षा करने के लिए चुना गया था, पर हम थे तो सिर्फ इंसान ही। और इस शिवलिंग को पाने के लिए राक्षसों ने भी प्रयास किए थे। तब हमें एक वरदान से नवाजा गया था कि हर पीढ़ी में हमारे खानदान में दो जुड़वां बच्चे होंगे जो इच्छाधारी नाग होंगे और उन्हें ही इस शिवलिंग की रक्षा करनी होगी।”

गहना ने अपनी कहानी जारी रखी, “फिर पाँच पीढ़ियों पहले मेरी बहन नागिन को मेरे परदादा ने धोखा दिया और शिवलिंग चुराने की कोशिश करी। तब से मेरी बहन का मेरे खानदान के लोगों पर से विश्वास खत्म हो गया और उसने कसम खाई कि परिवार का कोई भी अगर इस मंदिर में आया, तो वह उसे मार डालेगी। तब से कोई भी इस मंदिर में नहीं आता। और जिस नागेश से तुम मिले थे, वह मेरे पिता नहीं है।”

“हमारा परिवार तो अब कहीं और जा बसा है और श्राप मिलने के बाद हमारी पीढ़ी में कभी कोई जुड़वा बच्चे भी पैदा नहीं हुए। ना ही किसी को इच्छाधारी नाग का वरदान मिला। इसलिए दीदी किसी को जिंदा नहीं छोड़ती। वह जानती है, हमारे जाने के बाद इस शिवलिंग की रक्षा करने के लिए कोई नहीं रहेगा।” रोमी ने पूछा, “तो शिवलिंग का जलाभिषेक कर सारे साँप कैसे खत्म हो गए?”

गहना ने समझाया, “वह इसलिए क्योंकि जल अभिषेक का मतलब है कि शिवलिंग सुरक्षित है और मेरी बहन मरी नहीं है। वह तो बस विलुप्त होकर कुछ सालों के लिए ज़मीन के नीचे चली गई है सोने के लिए। लेकिन अगर कभी भी शिवलिंग को खतरा हुआ तो वह फिर से जाग जाएगी।” रोमी ने एक आखिरी सवाल किया, “अच्छा एक आखिरी सवाल… अगर तुम्हारी बहन एक इच्छाधारी नागिन है, तो क्या तुम भी एक इच्छाधारी नागिन हो?”

रोमी के सवाल पर गहना देखते ही देखते एक विशाल नागिन बन गई, जो रोमी के जिस्म से लिपट उसके ऊपर रेंगने लगी। पर अब रोमी डरा नहीं, बल्कि प्यार से उसे सहलाते हुए मुस्कुराने लगा था।

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