ताबीज़ का शाप

मेरी इंजीनियरिंग खत्म हुए दस साल बीत चुके हैं, और आज मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोजीशन पर काम करता हूँ। मगर इन दस सालों में एक भी रात ऐसी नहीं गुजरी, जब उस खौफनाक हादसे की याद ने मुझे ना सताया हो। आज भी उस मंजर को याद करके मेरी रूह कांप उठती है, और कई बार तो मैं आधी रात को अचानक उठकर बैठ जाता हूँ, खुद को यह यकीन दिलाने की कोशिश करता हूँ कि वह सब बहुत पहले हो चुका है। यह घटना तब की है जब मैं दिल्ली के एक कॉलेज में इंजीनियरिंग कर रहा था।

कॉलेज में मेरी दोस्ती अमन और विनोद से हुई। हमारी तिकड़ी खूब जमती थी; हम साथ घूमते, मस्ती करते, और एक-दूसरे की मदद से जैसे-तैसे इम्तिहान पास कर लेते। हमें पता ही नहीं चला कि कब तीन साल यूँ ही गुजर गए। फिर एक दिन अमन मेरे पास हाँफता हुआ आया। उसने बताया, “देव, बगल वाले कमरे में एक बहुत पढ़ाकू लड़का रहता है। सोच रहा हूँ क्यों न उसे अपनी टीम में शामिल कर लें? अगर उसने पढ़ा दिया तो शायद हम सब अच्छे नंबरों से पास हो जाएँ और अच्छी नौकरी मिल जाए।”

विनोद भी अमन की बात से सहमत था। वह बोला, “हाँ देव, अमन सही कह रहा है। तुम दोनों तो किसी तरह पास हो जाते हो, पर मेरी मोटी बुद्धि में बातें जल्दी नहीं घुसतीं। प्लीज़ मान जाओ, एक बार उसके साथ पढ़ कर तो देखते हैं। अगर अच्छा नहीं लगा तो दोबारा नहीं जाएँगे।” उनकी ज़िद के आगे मेरी एक न चली, और अगले ही पल हम तीनों उस लड़के के कमरे के बाहर खड़े थे।

अमन ने दरवाज़ा खटखटाते हुए आवाज़ दी, “अरे! कोई अंदर है क्या? दरवाज़ा खोल!” विनोद भी साथ में चिल्लाया, “सुना नहीं क्या? हमें पता है कि तू अंदर ही है, दरवाज़ा खोल!” वे दोनों दरवाज़ा पीटने लगे, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया। मेरे मन में एक विचार आया कि क्यों न खिड़की से झाँक कर देखा जाए कि आखिर अंदर चल क्या रहा है। जो मंज़र मैंने देखा, उसे देखकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। “अमन… विनोद, जल्दी आओ! ये लड़का तो फाँसी लगा रहा है!” मैंने चीखते हुए कहा। मेरी चीख सुनकर अमन और विनोद भी तुरंत मेरे पास दौड़े आए, और उन्होंने भी वही देखा जो मैं देख रहा था।

अमन ने घबराकर चिल्लाया, “विज्ञान, तुम यह क्या कर रहे हो? अभी तुरंत नीचे उतरो!” विनोद ने भी उसे धमकाते हुए कहा, “हाँ विज्ञान, जल्दी नीचे आ जाओ, वरना मैं शोर मचाकर सबको बुला लूँगा! फिर ये तुम्हें कॉलेज से निकाल देंगे। हमारी बात मानो, हम तुम्हारी मदद के लिए आए हैं।” मैंने भी उससे विनती की, “विज्ञान, नीचे आ जाओ दोस्त।” हमारी चीखें सुनकर विज्ञान भी रुक गया। उसे समझ आ गया था कि उसकी आत्महत्या की कोशिश अब नाकाम हो चुकी है। न चाहते हुए भी उसे अपने कमरे का दरवाज़ा खोलना पड़ा। हमारा इरादा था कि उसे समझाएँ कि वह जो करने जा रहा था, वह सिर्फ़ एक बेवकूफ़ी थी।

मगर जब हम अंदर घुसे, तो विज्ञान कुछ बदला-बदला सा लगा। वह ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे अभी कुछ हुआ ही न हो। उसने कहा, “ये तुम लोग क्या मज़ाक कर रहे हो? मैं और आत्महत्या? यह मुमकिन ही नहीं! मैं तो दूसरों को मारता हूँ, फिर मैं खुद को क्यों मारूँगा?” हम तीनों उसे यकीन दिलाने की बहुत कोशिश करते रहे, पर उसने हमारी एक न सुनी। तभी विनोद की नज़र विज्ञान के गले में लटकी किसी अजीब चीज़ पर पड़ी। “विज्ञान, यह तुम्हारे गले में क्या है? कोई ताबीज़ है क्या?” विनोद यह कहते हुए उस ताबीज़ को छूने की कोशिश करने लगा, तभी विज्ञान ने उसका हाथ झटक कर दूर हटा दिया।

विज्ञान गुस्से में बोला, “खबरदार, अगर इसे छूने की कोशिश भी की! यह मेरी माँ की आख़िरी निशानी है, जो उनके जाने के बाद मुझे एक राक्षस से बचाती है। इसे कभी छेड़ने की कोशिश मत करना।” ताबीज़ की बात निकलते ही माहौल गंभीर हो गया। मैंने इसे महज़ एक इत्तेफ़ाक समझकर बात बदलने की कोशिश की। “अरे, अब ऐसे ही पूरी रात बिताओगे क्या? हम तो यहाँ पढ़ने आए थे, अब क्या हो गया सबको?” मेरी नज़र जब विज्ञान पर पड़ी, तो उसकी आँखें विनोद को ही घूर रही थीं। उसके चेहरे पर एक ऐसी भद्दी, मौत-जैसी मुस्कान थी, जिसे देखकर मैं अंदर तक सिहर उठा।

वैसे, विज्ञान वाकई अक्लमंद था। जिस तरीके से वह हमें समझाता और पढ़ाता था, उसकी हर बात हमें अच्छी तरह याद रहती थी। मैंने खुशी से कहा, “वाह विज्ञान! तुम सच में कमाल के हो। तुम्हारे बारे में जो सुना था, वह सब सच निकला।” विनोद भी उत्साह से बोला, “भाई, तू ऐसे ही एग्ज़ाम से एक रात पहले हम सबको पढ़ा दिया कर, हम एक रात में ही टॉप कर जाएँगे।” हम दोनों विज्ञान से बहुत खुश थे, पर मुझे धीरे-धीरे विज्ञान पर शक होने लगा था। विज्ञान से पढ़ने के बाद हम सब अच्छे नंबरों से पास हो गए।

पर अब बहुत कुछ बदल चुका था। विनोद ज़्यादातर विज्ञान के साथ रहने लगा था। हैरानी की बात यह थी कि विज्ञान के हमारी ज़िंदगी में आने के बाद से विनोद दो बार बड़ी दुर्घटनाओं से बाल-बाल बचा था, और दोनों बार विज्ञान ही उसके साथ मौजूद था। उन दोनों की अच्छी जमने लगी थी, पर इस वजह से उनमें कभी-कभी नोकझोंक भी होने लगी थी। विनोद अक्सर विज्ञान को उसके ताबीज़ को लेकर ताना मारता रहता था। “विज्ञान, तुम इसे क्यों पहनते हो? एक इंजीनियरिंग के छात्र होकर इन सब अंधविश्वासों पर विश्वास रखते हो? कितनी मूर्खतापूर्ण बात है! मैं होता तो कब का इसे तोड़कर फेंक देता।” विनोद की ये बातें सुनकर भी विज्ञान कुछ नहीं कहता था, पर उसके चेहरे पर वही मौत-जैसी भद्दी मुस्कान फिर से झलक उठती, जिसे मैंने पहले भी देखा था।

कुछ और दिन ऐसे ही बीत गए। हमारे फ़ाइनल सेमेस्टर के एग्ज़ाम सिर पर थे, और ठीक एक हफ़्ते पहले विनोद का जन्मदिन भी था। हमने हॉस्टल की छत पर, बिना किसी की इजाज़त के, विनोद की बर्थडे पार्टी रखी। मैंने विनोद से पूछा, “अरे विनोद! इतना चुप क्यों है तू? क्या हुआ? अपने जन्मदिन वाले दिन भी तू खुश नहीं लग रहा है।” मेरी बात सुनकर विनोद और परेशान हो गया। उसने चिल्लाते हुए कहा, “भैया, देखो! विज्ञान अभी तक नहीं आया, जबकि मैंने उसे सबसे पहले बुलाया था।” विज्ञान के प्रति विनोद का यह लगाव मुझे अजीब लग रहा था, पर मैंने इस बात को नज़रअंदाज़ कर विनोद को अपने साथ नाचने के लिए कहा।

शुरू में तो विनोद ने मना किया, पर शराब के नशे में उसे भी हमारे साथ मज़ा आने लगा। रात काफी गहरी हो चुकी थी। हमारे सभी दोस्त जा चुके थे, अब बस मैं, विनोद और अमन ही बचे थे। इस बीच, विज्ञान कब हमारे बीच आकर नाचने लगा, हमें पता ही नहीं चला। नाचते-नाचते विनोद की नज़र फिर से विज्ञान के गले में लटके उस ताबीज़ पर पड़ी, और उसे फिर से चिढ़ होने लगी। “कितनी बार मना किया है तुझे? पर तू है कि यह फालतू का अंधविश्वास गले में लटकाए घूमता रहता है!” विनोद ने इतना कहकर विज्ञान के गले से वह ताबीज़ खींच लिया और उसे अपने पैरों के नीचे कुचल दिया।

अमन ने विनोद से घबराकर कहा, “विनोद, यह तूने क्या कर दिया? वह उसकी माँ की आख़िरी निशानी थी!” अमन विनोद को कोने में ले गया, पर मैं अभी भी विज्ञान के सामने ही खड़ा था। ताबीज़ के टूटते ही विज्ञान की आँखें लाल हो गईं। उसके कंधों से नुकीली हड्डियाँ उभरने लगीं, और बदन पर घने बाल उग आए। उसकी हड्डियाँ अकड़ रही थीं, और वह किसी खूंखार भेड़िए की तरह अपने दोनों हाथों-पैरों के बल ज़मीन पर बैठकर गुर्राने लगा।

मैंने घबराकर चिल्लाया, “विज्ञान, ये तुम्हें क्या हो गया है? तुम किसी भेड़िए की तरह क्यों हो गए हो, विज्ञान… विज्ञान?” मैं उससे दूर हटता जा रहा था। सच कहूँ तो, इस पल ने मेरे सारे डर को हकीकत में बदल दिया था। मेरी बातें सुनकर, वह भेड़िया मुझे मारने के लिए मेरी तरफ ही बढ़ रहा था, तभी विनोद ने हिम्मत जुटाकर कहा, “अरे जानवर! उस पर क्यों अपना ज़ोर दिखाता है? अगर हिम्मत है तो मुझसे लड़!” विनोद की बात सुनते ही वह भेड़िया उसकी तरफ मुड़ गया। अमन, विनोद के पास ही खड़ा, उस खूंखार भेड़िए को अपनी तरफ आते देख रहा था।

अमन ने सकते में आकर कहा, “विनोद, यह विज्ञान तो एक भेड़िया बन चुका है! पर यह कैसे मुमकिन है?” इतना कहते हुए, अमन ने पास पड़ी एक लोहे की रॉड उठाई और विनोद की रक्षा करने के लिए तैयार हो गया। भेड़ियों को अपनी तरफ आता देख विनोद ने सबको हकीकत बतानी शुरू की। “अमन, मुझे आज ही पता चला है कि विज्ञान एक इंसान नहीं, बल्कि एक भेड़िया है। जब मैं इसे जन्मदिन पर बुलाने इसके कमरे में गया था, तभी मुझे इसकी असलियत का पता चला। यह इंसान बनकर लोगों के बीच रहता है और अपने लिए आसान शिकार ढूँढता है। इस ताबीज़ की वजह से यह इंसान का रूप ले सकता है, या किसी इंसान के शरीर में समा सकता है। इस वक़्त यह जिस विज्ञान के शरीर में था, उसे इस भेड़िए ने छह साल पहले ही मार डाला था।” विनोद अपनी बात पूरी कर ही रहा था कि अमन ने भेड़िए पर ज़ोरदार हमला कर दिया। मैं भी पीछे से खाली बोतलों से उस पर वार करने लगा।

पर हमारी कोशिशें नाकाम रहीं। लोहे की रॉड से कई वार करने के बावजूद, उस भेड़िए को एक खरोंच तक नहीं आई। उसने अपने नुकीले पंजों से अमन का पेट फाड़ दिया और उसकी सारी अंतड़ियाँ बाहर निकाल दीं। फिर उसने अमन का सिर अपने मुँह में दबाकर धड़ से अलग कर दिया। उसके बाद, उसने दोनों बेजान शरीरों को हॉस्टल की छत से नीचे फेंक दिया। भेड़िए का इतना खूंखार रूप देखकर विनोद और मेरी रूह काँप उठी। मैंने तुरंत विनोद से चीखते हुए कहा।

मैंने विनोद से चिल्लाकर कहा, “विनोद, वहाँ से भाग! वरना यह तेरा भी वही हाल करेगा, जो इसने अमन का किया है!” मैं अभी उसे समझा ही रहा था कि विनोद ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और खड़ा हो गया। “नहीं देव, तू भाग जा! यहाँ से भाग जा और अपनी जान बचा ले! मैं जानता हूँ यह भेड़िया हर हाल में मुझे मार डालेगा।” ये विनोद के मुझसे कहे आख़िरी शब्द थे। विनोद ने मुझे भागने का कहकर खुद ही छत के किनारे पर जाकर खड़ा हो गया। भेड़िया उसकी तरफ़ दौड़ा ही था कि विनोद ने उसे कसकर जकड़ लिया।

विनोद ने दहाड़कर कहा, “मैं तुझे अब और लोगों की जान नहीं लेने दूँगा! तूने मेरे दोस्त अमन पर जो हमला किया, उसका बदला तो मैं लेकर ही रहूँगा!” इतना कहते हुए विनोद अपनी पूरी ताक़त से उस भेड़िए को छत के किनारे की ओर खींचने लगा। विनोद उस भेड़िए के जिस्म से इस तरह चिपक गया था कि ढेर सारे हमलों के बाद भी वह भेड़िया खुद को उससे अलग नहीं कर सका। विनोद धीरे-धीरे उस भेड़ियों को किनारे तक ले आया। मैं भी अपने डर से मजबूर, एक ज़िंदा लाश की तरह यह सब होते हुए देख रहा था। तभी विनोद उस भेड़िए को अपने साथ लेकर हॉस्टल की छत से नीचे जा गिरा।

एक ही पल में, मेरे दो सबसे प्यारे दोस्त मुझे हमेशा के लिए छोड़ गए थे। अगले दिन जब कॉलेज को इस बारे में पता चला, तो मैंने उन्हें सारी सच्चाई बता दी। पर किसी को भी मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ। बल्कि, कॉलेज प्रशासन ने मुझसे कहा कि मुझे पुलिस को यह बयान देना होगा कि विनोद और अमन नशे में धुत होकर आपस में लड़ने लगे थे, और अपनी ही गलती से हॉस्टल की छत से गिरकर उनकी मौत हो गई। उन्होंने मुझे यह भी धमकी दी कि अगर मैंने ऐसा नहीं किया, तो कॉलेज मेरा करियर बर्बाद कर देगा, और मुझे कहीं नौकरी नहीं मिलेगी।

न चाहते हुए भी मुझे कॉलेज की बात माननी पड़ी, और उस भयानक रात हुए हादसे को महज़ एक ग़लती बताना पड़ा। यही बात मुझे आज भी सबसे ज़्यादा सताती है और रातों को चैन से सोने नहीं देती। अमन और विनोद की चीखें आज भी मेरे कानों में गूँजती हैं, क्योंकि मैं ही अपने दोस्तों को इंसाफ़ नहीं दिला पाया। उस हादसे वाली रात को हॉस्टल की छत से तीन लाशें नीचे गिरी थीं, पर मेरे लिए सिर्फ़ दो, अमन और विनोद की थीं। उस भेड़ियों का कहीं कोई नामो-निशान तक नहीं मिला।

यह बात मैंने आज तक किसी को नहीं बताई। उस रात, मैंने उस भेड़िए के ताबीज़ के टुकड़े अपने पास रख लिए थे, और आज मैं उस ताबीज़ को पूरी तरह जोड़ भी चुका हूँ। इस उम्मीद में कि शायद किसी दिन वह भेड़िया अपने ताबीज़ को ढूँढ़ता हुआ मेरे पास आए, और मैं उससे अपने दोस्तों की मौत का बदला ले सकूँ। तो हो सकता है, वह भेड़िया आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा हो। क्या पता, वह अभी आपके साथ, आपके पास ही बैठा हो, और यह कहानी देख रहा हो?

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