मेरा नाम दुष्यंत है और मैं हरिद्वार के श्मशान घाट में बीते बारह सालों से काम कर रहा हूँ। मेरा काम लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करना, उनकी चिताओं को आग लगाना और फिर श्मशान घाट की सफाई करना था। लेकिन मेरे जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसने सब कुछ बदल दिया। आज भी उस दिन को याद करके मेरी रूह काँप उठती है। हम अक्सर लाशों को जलाने के बाद उनकी अस्थियों को इकट्ठा करते और बची हुई राख को गंगा में बहा देते थे।
पुलिस हवलदार और इंस्पेक्टर मेरे पास अक्सर आते-जाते रहते थे, क्योंकि मैं लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार सबसे कम खर्चे में करता था, और मुझे ज़्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती थी। एक शाम, एक इंस्पेक्टर मेरे पास एक अनजान लड़की की लाश लेकर आया। इंस्पेक्टर ने कहा, “दुष्यंत, ऊपर से आदेश है। इसे जल्दी से निपटा दे। यह बहुत बड़ा सिरदर्द है। और सुन, अस्थियों वाला ताम-झाम नहीं चाहिए। बस लाश को फूंक दे और सब कुछ गंगा में बहा दे। गंगा माँ सब माफ़ कर देगी।”
इंस्पेक्टर ने कफ़न में लिपटी लाश को गाड़ी से उतारकर मेरे सामने रख दिया। मैंने इंस्पेक्टर से कहा, “पर साहब, शाम के छह बज गए हैं। अर्थी सजाते-सजाते ही रात हो जाएगी, और रात को अंतिम संस्कार नहीं कर सकते। वेदों में इसकी सख़्त मनाही है, पाप लगता है साहब।” मेरी बात सुनकर इंस्पेक्टर कुछ सोचने लगा।
इंस्पेक्टर ने नोटों की एक गड्डी मेरी शर्ट की जेब में ठूँस दी और कहा, “अच्छा ऐसा है क्या? तो ये ले, रख ले। गंगा और गाँधी इन दोनों से या तो पाप धुल जाते हैं, या फिर हमेशा के लिए दफन हो जाते हैं। अब फालतू की बातें बंद कर, मुझे ऊपर भी जवाब देना होता है।” यह कहकर वह कोने में जाकर बीड़ी पीने लगा। शायद उसने सच ही कहा था कि गंगा और गाँधी से पापों को छिपाया और मिटाया जा सकता था। तभी तो मैं बिना कोई सवाल किए उस लड़की को जलाने के लिए अस्थियां सजाने लगा।
मैं कफ़न में दबी लाश को देख ही रहा था कि इतने में इंस्पेक्टर ने फिर कहा, “यार दुष्यंत, वैसे ज़्यादा लकड़ियां लगने वाली नहीं हैं। जवान थी ये। देख तो कितनी दुबली पतली सी है? इसीलिए कह रहा हूँ, जल्दी से फूंक डाल इसे।” कुछ देर बाद, मैंने इंस्पेक्टर से कहा, “इंस्पेक्टर साहब, सब कुछ सेट कर दिया है मैंने। आप ज़रा लाश को हाथ लगाओ, चिता पर लिटाते हैं इसको।”
मैं अंतिम संस्कार के सारे इंतज़ाम कर चुका था। अब बस लाश को चिता पर लिटाकर उसे अग्नि देनी थी। इसलिए मैंने इंस्पेक्टर को अपने पास बुलाया। इंस्पेक्टर भी मेरी मदद करने आ गया। हम दोनों ने लड़की की लाश को उठाकर चिता पर लिटा दिया। उसका जिस्म तप रहा था। हाँ, लड़की का जिस्म तप रहा था। मैंने पूछा, “साहब, कितना टाइम हुआ है इसे मरे हुए?”
इस पर इंस्पेक्टर ने कहा, “तुझे क्या करना? ज़्यादा पुलिसवाला मत बन। ज़्यादा बोलेगा ना, तो इसके खून में तुझको ही अंदर कर दूँगा। समझा?” मैं इंस्पेक्टर की बात सुनकर चुप हो गया। मैंने हाथ में मशाल लेकर लाश को जलाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अचानक लाश के मुँह पर से कपड़ा उड़ गया, और मेरी नज़र उस लाश के चेहरे पर ठहर गई। उसे देखकर मेरी रूह काँप उठी।
मैंने देखा कि वो लाश अपनी पलकें झपका रही थी। ऐसा लग रहा था कि शायद वो रो रही थी, क्योंकि उसकी आँखों से आँसू थम नहीं रहे थे। उस लाश को देख मैं भी एक पल को ज़िंदा लाश बन गया था और यही सोच रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है? आज तक मैंने कभी किसी लाश को ऐसे नहीं देखा था। मैंने इंस्पेक्टर से चीखते हुए कहा, “इंस्पेक्टर साहब, ये मरी नहीं है! ये तो ज़िंदा है! ये क्या अनर्थ करवा रहे हैं आप मुझसे?”
मैं इंस्पेक्टर से कहता हुआ पीछे हट गया, और मेरे हाथ से मशाल भी नीचे गिर गई। इस वक्त पूरे श्मशान घाट में सिर्फ हम लोग ही थे। इसलिए मेरी चीख सुनकर भी कोई हमारे आसपास नहीं भटका। धीरे-धीरे मुझे समझ आने लगा था कि ज़्यादा पैसों के लालच में आकर मैं एक बड़ा पाप करने जा रहा था। इस पर इंस्पेक्टर बोला, “दुष्यंत, पागल तो नहीं हो गया है? कैसी बातें कर रहा है? वो एक लाश है और लाश साँस नहीं लेती। यह तेरा रोज़ का काम है, फिर भी तू ड्रामे कर रहा है। हाँ, रात हो गई है पर डर क्यों रहा है? मैं हूँ तो तेरे साथ। अब जल्दी से चिता को अग्नि दे, समझा?”
इंस्पेक्टर की बातें सुनकर मेरी साँसें तो शांत हो गईं, पर मेरा मन नहीं। फिर मैंने अपना मन मारकर चिता को अग्नि देने के लिए आगे बढ़ा ही था, तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मशाल के आसपास काले साये मंडरा रहे हैं और चिता से भी लकड़ियां अपने आप गिर रही हैं। मेरा मन बेचैन होने लगा, पर इसे नज़र का धोखा मानकर मैं लाश के पास चला गया।
फिर अचानक ही मुझे महसूस हुआ कि लाश ने मेरा हाथ पकड़ लिया और रोते हुए मुझसे कहने लगी, “प्लीज़ मुझे मत जलाओ, मैं ज़िंदा हूँ। ये सब मुझे ज़िंदा जलाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि इनका राज़ सामने ना आए। कम से कम तुम तो इनका साथ मत दो। मैं पेट से हूँ, माँ बनने वाली हूँ। मुझसे बदला लेने के लिए मेरे इस बच्चे को तो मत मारो, प्लीज़। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ।” लाश की बातें सुन मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
तभी इंस्पेक्टर ने मुझे फिर टोकते हुए कहा, “अरे! चिता के पास खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है? अब क्या फिर लेक्चर दूँ तुझे? एक बार में बात समझ नहीं आती क्या? बोला लाश को जला तो जलाता क्यों नहीं है? अगर तेरे से नहीं होता है तो ला मुझे दे ये मशाल, मैं ख़ुद ही फूंक डालता हूँ उसे।” इतना कहकर वो इंस्पेक्टर मेरे हाथ से मशाल लेने आगे बढ़ा ही था कि तभी मैंने उसी मशाल से इंस्पेक्टर का चेहरा जला दिया, जिसके दर्द से वह ज़ोर-ज़ोर से छटपटाने लगा था।
इंस्पेक्टर चीख रहा था, “कोई बचाओ मुझे, मेरा चेहरा जल गया है! दुष्यंत, तूने मेरा आधा चेहरा जला दिया है। ये तूने अच्छा नहीं किया।” इंस्पेक्टर अपना चेहरा छुपाए दर्द के मारे इधर-उधर भटक रहा था और ज़ोर-ज़ोर से चीख रहा था। पर जैसा कि मैंने पहले कहा था, हम लोगों के अलावा पूरे श्मशान घाट में कोई नहीं था जो उसकी मदद के लिए आ पाता। लाश की आँखें भी बस एकटक इंस्पेक्टर को ही तड़पते हुए देख रही थीं।
उसकी आँखों में सुकून साफ़ झलक रहा था, और मैंने भी अब ठान ली थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे अब इस लड़की के बारे में जानना था जिसको इंस्पेक्टर ज़िंदा ही जलाना चाहता था। मैं भी अपने हाथ में मशाल लिए सीधा उस इंस्पेक्टर की ओर चल दिया और उसे मशाल से ज़िंदा जलाने की धमकी देते हुए बोला, “अभी तो तेरा आधा चेहरा ही आग से झुलसाया है। अगर सच नहीं बताया तो लड़की के बजाय मैं तुझे ही ज़िंदा जला दूँगा।”
इंस्पेक्टर को आग में अपनी मौत दिखाई दे रही थी। उसने भी लड़खड़ाते हुए कहा, “हाँ, ये लड़की मरी नहीं है, ज़िंदा है।” जैसे ही मैंने यह सुना, मेरा रोम-रोम सिहर उठा था। मैंने पूछा, “पर क्यों, इंस्पेक्टर साहब? आप ये अनर्थ क्यों करवाना चाहते थे, बताइए? अगर मेरे हाथों ये पाप हो जाता तो मैं कभी ख़ुद को माफ़ नहीं कर पाता। क्यों किया आपने ऐसा, बोलिए?”
इस पर इंस्पेक्टर ने एक लंबी साँस लेते हुए कहा, “दुष्यंत, तुम शायद भूल रहे हो कि कानून अंधा होता है। हमें बस ऊपर से आर्डर दिए जाते हैं, जिन्हें हर हाल में हमें फॉलो करना होता है। और रही बात इस लड़की की तो इसका भाई एक रिपोर्टर था जिसने कमिश्नर की नाक में दम कर दिया था। फिर कमिश्नर के कहने पर मैंने इसके भाई का एनकाउंटर कर दिया।”
“लेकिन इसकी बहन काला जादू जानती थी, जिसकी मदद से इसने अपने भाई की आत्मा को वापस बुलाया और कमिश्नर को जान से मारने की कोशिश की। उसे इतना डराया कि वो पागल हो गया। और तो और, इसने मेरी पत्नी को भी पागल कर दिया। मन तो किया कि इसका भी इसके भाई की तरह एनकाउंटर कर दूँ, लेकिन मैं कमिश्नर की शपथ लेने वाला हूँ। इसलिए कह रहा हूँ, तुझे और पैसे चाहिए तो बता। मैं करोड़पति बना दूँगा तुझे, बस किसी भी तरह से लड़की को फूंक डाल अभी के अभी।”
इंस्पेक्टर की बात सुन मेरे होश उड़ गए थे। मेरे मन में बस इंस्पेक्टर की कही हुई बातें घूम रही थीं, जिसके बारे में सोचते हुए मैंने ख़ुद से कहा, “मतलब कि वो मेरा भ्रम नहीं था। इस लड़की ने काले जादू की मदद से सच में ही मुझसे बातें की थीं।” पर मेरे मन को एक सवाल और नोच रहा था, जिसका जवाब मैंने इंस्पेक्टर से पूछा, “अगर ये लड़की ज़िंदा है तो तुमने इसके साथ ऐसा क्या किया जो ये हिल भी नहीं पा रही है? और इसने तो कहा था कि ये पेट से है, मरना नहीं चाहती है।”
इस पर इंस्पेक्टर ने हँसते हुए कहा, “अच्छा तो काले जादू की मदद से ये तेरे से भी बातें करने लगी। अरे! जब मैंने इसे घर से उठाया तो बहुत छटपटा रही थी, तो इसे शांत करने के लिए मैंने इसमें इतने इंजेक्शन ठोके कि पैरालाइज़ हो गई। और रही बात बच्चे की तो गरीब की झोली में कौन सा दान किसका है, क्या मालूम?” इंस्पेक्टर की सारी बात सुनने के बाद मैं ख़ुद से बस यही कह रहा था, “लोग तो पहले ही कब के मर चुके होते हैं, अंदर से। ये श्मशान तक आना, चिताओं का अंतिम संस्कार होना, ये सब तो सिर्फ़ एक रस्म है।”
मैं ख़ुद से कह ही रहा था कि मेरा ध्यान भटकते ही इंस्पेक्टर ने अपनी रिवॉल्वर मुझ पर तानते हुए कहा, “दुष्यंत, तेरा एनकाउंटर तो मैं अपने हाथों से ही करूँगा। मेरा चेहरा बर्बाद कर दिया तूने।” इंस्पेक्टर मुझ पर गोली चलाने वाला था कि तभी तेज़ हवाएँ चलने लगीं। चिता पर लेटी हुई लड़की का कफ़न उड़कर मेरी रक्षा के लिए मेरे सामने आ गया। इंस्पेक्टर ने गोली चलाई भी, पर एक भी गोली कफ़न को चीर नहीं पाई।
मैं सही सलामत ही कफ़न के दूसरी तरफ़ खड़ा रहा। मानो जैसे वो कफ़न कोई कपड़ा नहीं बल्कि कोई लोहे की दीवार हो। इंस्पेक्टर ने अपनी रिवॉल्वर की छह की छह गोलियां मुझ पर चला दी थीं, पर एक भी मेरा बाल भी बांका नहीं कर पाई। अगले ही पल वो कफ़न इंस्पेक्टर के जिस्म से लिपटकर उसका गला घोटने लगा। इंस्पेक्टर का जिस्म उस कफ़न में कटने लगा था। वह दर्द के मारे चीख रहा था, तड़प रहा था, अपनी जान की भीख मांग रहा था।
इंस्पेक्टर के जिस्म से लिपटा कफ़न उसके खून में भीग कर पूरी तरह से लाल हो चुका था। जाने मेरे मन को भी क्या सूझी, मैंने भी नीचे गिरी मशाल को उठाकर उस इंस्पेक्टर पर आग लगा दी। वो इंस्पेक्टर ज़िंदा ही जलने लगा था। कुछ देर तो उसकी चीखों की गरमाहट हवा में रही, लेकिन फिर धीरे-धीरे सब कुछ रात के सन्नाटे की तरह शांत हो गया।
इंस्पेक्टर के जलने के बाद मैंने उसकी अस्थियां गंगा में बहा दीं और उस लड़की को लेकर घर चला आया। आज उस घटना को आठ साल हो चुके हैं। मैंने अब श्मशान में काम करना छोड़ दिया है। अब मैं एक छोटी सी नौकरी करता हूँ और मीना का ख्याल रखता हूँ। ये नाम मैंने उस लड़की को दिया है।
उसके पेट में पल रहा बच्चा दवाइयों के रिएक्शन से पेट में ही मर गया था। पर वह आज भी मुझसे पलकें झपकाकर बातें ही किया करती है। सच कहूँ तो मैं मीना से प्यार करने लगा हूँ। पर ये बात मैं उसे तब बताऊँगा जब वो पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। पर आप उससे कुछ मत कहना, पता है ना वो जादू जानती है?